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अश्विन महीने की पूर्णिमा, वाल्मीकि जयंती पर प्रकाश रामायण में निहित दार्शनिक सत्य पर

जौनपुर

 07-10-2022 11:08 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

भारतीय संस्कृति को दिशा प्रदान करने में हमारे धार्मिक ग्रंथों एवं नाट्य शास्त्रों की अहम भूमिका रही है। आप इनकी व्यवहार्यता इस तर्क से समझते हैं की, भारत में प्रभु श्री राम एवं माता सीता को सर्वोच्च एवं आदर्श पुरुष तथा आदर्श स्त्री के रूप में संज्ञा दी जाती हैं। रामायण के केवल यही दो प्रमुख चरित्र ही नहीं, वरन सम्पूर्ण रामायण स्वयं में गहरे वेदांतिक अर्थ एवं प्रतीकवाद निहित किये हुए है।
रामायण दुनिया के सबसे लोकप्रिय महाकाव्यों में से एक है। यह भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास में गहराई से जुड़ी हुई है। 24000 छंदों के साथ, जो छह खंडों (कांडों) में विभाजित हैं, यह दुनिया के इतिहास में सबसे पुराने और सबसे बड़े महाकाव्यों में से एक मानी जाती है। मूल रूप से संस्कृत में रचित, इसका मूल लेखक महर्षि वाल्मीकि को बताया जाता है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, अश्विन महीने में पूर्णिमा के दिन वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। वाल्मीकि रामायण के पहले अध्याय को मूल-रामायण कहा जाता है, जिसे देवर्षि नारद ने ब्रह्मर्षि वाल्मीकि मुनि को सुनाया था। वास्तव में यह ऋषि नारद द्वारा सर्वोच्च व्यक्तित्व अर्थात श्री राम की स्तुति है। मूल रामायण में श्री राम को श्रेष्ठ व्यक्तित्व के रूप में दर्शाने वाले कई संदर्भ मिलते हैं। हालांकि, महाकाव्य के कई संस्करण और रूपांतर भी हैं। शुरुआती समय से अब तक, इसे भारत सहित कंबोडिया, इंडोनेशिया थाईलैंड, चीन, बर्मा और मलेशिया जैसे देशों में हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख परंपराओं के कई विद्वानों द्वारा कई भाषाओं में अनुवादित किया गया है।
यह हिंदू धर्म में, महाभारत के साथ प्राचीन इतिहास की महाकाव्य शैली से संबंधित है। हिंदुओं का मानना ​​है कि दोनों महाकाव्यों में वर्णित घटनाएं ऐतिहासिक हैं और हमारे ग्रह (पृथ्वी) के इतिहास में किसी समय घटित हुई हैं। जनता में लोकप्रिय धार्मिक विषयों और नैतिक विचारों के प्रसार के साथ ही इन दो महाकाव्यों ने हिंदू कला, वास्तुकला, साहित्य, नृत्य और नाटक पर भी बहुत प्रभाव डाला।
रामायण केवल एक लंबी और जटिल महाकाव्य कहानी नहीं है। इसमें कहानियों के भीतर कई उप- भूखंड, और उप कहानियां शामिल हैं, जो कथा को बहुत जटिल बनाती हैं। इसकी मुख्य कहानी स्पष्ट है और इसे समझने के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। रामायण, हिंदू धर्म की प्रमुख अवधारणाओं से अवगत कराती है और पाठकों से दुनिया की व्यवस्था तथा नियमितता के लिए चरित्र और धर्मी आचरण करने की अपील करती है। साथ ही, कोई भी इसमें छिपे हुए प्रतीकवाद और निहित शिक्षण को आसानी से पहचान सकता है। रामायण का अर्थ: व्युत्पत्ति के अनुसार, रामायण मूल शब्द राम या बस राम (संक्षिप्त स्वर के साथ) से लिया गया है। राम महाकाव्य के नायक हैं और राम का संदर्भ है, जो हिंदुओं द्वारा विष्णु के अवतार के रूप में और मानव रूप में पूजनीय हैं। राम (संक्षिप्त स्वर के साथ) का अर्थ है आनंद लेना। राम का एक और अर्थ, भोक्ता या वह जो सृष्टि के खेल में प्रसन्न होता है। यह स्वयं भगवान (ईश्वर) का संदर्भ है। अयनम का अर्थ है चलना। इस प्रकार, रामायण या रामायणम का अर्थ “राम की यात्रा या राम का भटकना” होता है। प्रतीकात्मक रूप से हम इसकी प्रकृति के क्षेत्र में या नश्वर दुनिया में आत्मा के भटकने (स्थानांतरण) के रूप में व्याख्या कर सकते हैं।
एक और परिभाषा के अनुसार शब्द 'किरणें' और 'चमक' संस्कृत के मूल शब्द 'र' से आए हैं। 'रा' का अर्थ है प्रकाश, 'म' का अर्थ है मेरे भीतर, मेरे हृदय में। इस प्रकार, राम का एक और अर्थ, मेरे भीतर का प्रकाश भी होता है। प्रकाश जो जीव के कण-कण में दीप्तिमान है, वही राम है। राम का अर्थ सुंदर स्त्री, प्रिय या पत्नी भी होता है। इस प्रकार, महाकाव्य के मूल अर्थ के भीतर राम की पत्नी माता सीता का संदर्भ भी छिपा है। इस दृष्टिकोण से, रामायण केवल राम या उनके जंगल में भटकने के बारे में नहीं है, बल्कि यह सीता, देवी माँ की यात्रा और नश्वर दुनिया में उनकी कठिनाइयों को धर्म में राम के भागीदार के रूप में संदर्भित करती है। मुख्य कथा का प्रतीकवाद: रामायण के प्रतीकात्मक महत्व की व्याख्या विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न प्रकार से की गई है। सबसे बुनियादी स्तर पर, महाकाव्य उन कमजोरियों का प्रतिनिधित्व करती है। यह भगवान और उनके भक्तों और भक्ति की शक्ति के गहरे संबंध को चित्रित करती है। साथ ही रामायण यह भी बताती है कि कैसे पुण्य और धार्मिकता के साथ, भगवान की मदद से नश्वर प्राणी बुराई को नष्ट करने की क्षमता में देवताओं से भी आगे निकल सकते हैं। महाकाव्य रामायण कई मूल्यवान सबक सिखाता है। यह मानव जीवन की भेद्यता और इस संदेश को सामने लाता है कि भगवान भी पृथ्वी पर अवतरित होने पर पीड़ा से मुक्त नहीं होते हैं। हम इससे सीखते हैं कि कठिनाइयों के बीच मनुष्य को अपनी नैतिक अनिवार्यता नहीं खोनी चाहिए। उन्हें राम के उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए और दुष्ट प्रलोभनों के आगे झुके बिना तथा बुरी शक्तियों के सामने आत्मसमर्पण किए बिना, धार्मिकता के मार्ग पर बने रहना चाहिए। उन्हें रावण के उदाहरण से यह भी सीखना चाहिए कि अज्ञानता, इच्छाओं, अहंकार और भ्रम की अशुद्धियों से दूषित होने पर ज्ञान और शक्ति अपने लिए ही विनाशकारी हो सकती है। महाकाव्य मानव जीवन में भक्ति की शक्ति तथा भगवान और उनके भक्तों के बीच गहरे संबंध का प्रतीक है।
1. राम शुभ गुणों और सर्वोच्च स्व के प्रतीक हैं। वह अपने भक्त, व्यक्तिगत स्व (सीता) की तलाश में नश्वर दुनिया (शरीर) में उतरते है, जिससे वह सृष्टि की शुरुआत में अलग हो जाते है।
2. रावण दस बुरे गुणों वाले अहंकार का प्रतीक है, जो भगवान की अवहेलना करता है और अपने तामसिक तथा राक्षसी स्वभाव के कारण अपने व्यक्तित्व का दावा करता है।
3. शरीर लंका का प्रतिनिधित्व करता है, जो अहंकार (रावण) द्वारा शासित है, जो भ्रम और राक्षसी अभिमान के कारण देहधारी स्व (सीता) को कैद में रखता है।
4. भगवान (राम) वानरों की सेना को इकट्ठा करते हैं, जो इंद्रियों और अन्य शारीरिक अंगों द्वारा प्रतिनिधित्व करते हैं जो स्वभाव से बेचैन और चंचल हैं।
5. बुद्धि (लक्ष्मण), श्वास (हनुमान) और संयमित इंद्रियों (भक्त बंदरों की सेना) की मदद से, वह चेतना (मन) के सागर में एक पुल बनाते है ताकि वह अस्तित्व में उतर सके और स्वयं को ढूंढ सके। रामायण केवल एक कहानी नहीं है जो बहुत पहले घटी थी, बल्कि इसका दार्शनिक, आध्यात्मिक महत्व और इसमें एक गहरा सत्य छिपा हुआ है। # मुख्य पात्रों के प्रतीकवाद:
राजा दशरथ और माता कौशल्या प्रभु श्री राम के परिजन थे। दशरथ का अर्थ है 'दस रथ'। दस रथ पाँच ज्ञानेन्द्रियों और पाँच कर्मेन्द्रियों के प्रतीक हैं। कौशल्या का अर्थ है 'कौशल'। दस रथों का कुशल सवार राम को जन्म दे सकता है। जब दस का कुशलता से उपयोग किया जाता है, तो भीतर चमक पैदा होती है। राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। अयोध्या का अर्थ है 'ऐसी जगह जहां कोई युद्ध नहीं हो सकता'। जब हमारे मन में कोई द्वन्द्व न हो, तब तेज का उदय हो सकता है।
कहा जाता है कि रामायण आपके ही शरीर में हो रही है। आपकी आत्मा राम है, आपका मन सीता है, आपकी सांस या जीवन-शक्ति (प्राण) हनुमान है, आपकी जागरूकता लक्ष्मण है तथा आपका अहंकार रावण है। जब रावण (अहंकार) ने मन को चुरा लिया तो आत्मा बेचैन हो उठी। अब आत्मा अपने आप मन तक नहीं पहुंच सकती, उसे श्वास-प्राण का सहारा लेना पड़ता है। प्राण की सहायता से मन आत्मा से जुड़ गया और अहंकार विलीन हो गया। रामायण में प्रमुख पात्रों का प्रतीकात्मक महत्व और वे रचना के किन गुणों तथा पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं?
१. श्री राम: विष्णु, अवतार, ईश्वर, पूर्ण मनुष्य, आदर्श पुत्र, आदर्श शिष्य, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श राजा, निडर योद्धा, पवित्रता या सत्त्व, सदाचार, धर्मी आचरण, कर्तव्यपरायणता, निष्ठा, नेतृत्व, पूर्णता, शक्ति, वीरता, पालनकर्ता धर्म, करुणा, समानता, संकल्प या दृढ़ता, आदर्श मित्र, एकीकृत जागरूकता।
२. लक्ष्मण: आदर्श भाई, बुद्धि, आदिश, आदर्श साथी, सलाहकार, रक्षक, सदाचार, कर्तव्यपरायणता, द्वैत, रिश्तेदारी, जाग्रत, निस्वार्थ सेवा, भक्ति, भक्त, निस्वार्थ समर्पण, निष्ठा, छाया, प्रतिबद्धता, विनम्रता, आज्ञाकारिता , बिना शर्त प्यार, समर्थन।
३. माता सीता: पृथ्वी, लक्ष्मी, शरीर, मूर्त स्व या व्यक्तिगत स्व, आदर्श पत्नी, आदर्श महिला, देवी, माता, पीड़ा, धैर्य, धीरज, शक्ति, पूर्णता, गुण, धर्म, प्रकृति, सौंदर्य, स्त्रीत्व, शुद्धता , पवित्रता, सभ्यता, वफादारी, बिना शर्त प्यार, भक्त।
४. हनुमान: भगवान के वाहक, समर्पित मन, भक्ति, भक्त, सेवक, पवन, शिव, योद्धा, वफादारी, सेवा, समर्पण, बिना शर्त प्यार, शक्ति, वीरता, विनम्रता, चपलता, साहस, संकल्प, पवित्रता, ईमानदारी, मंत्री, रक्षक, शुभता अलौकिक शक्ति, पवित्र करने वाली शक्ति, श्वास को शुद्ध करने वाली, बुराई को दूर करने वाली, ईश्वर के साथ एकता, ईश्वर में लीनता, अमर शक्ति, सहयोगी ईश्वर।...
५. रावण: बुराई, दानव, दस इंद्रियों वाला अहंकार, कई पहचानों वाला अहंकार, दस भ्रमों वाला अहंकार, दस बुरी इच्छाओं वाला अहंकार, काम, भ्रम, तमस, रजस, अनैतिकता, क्रूरता, घमंड, आसुरी गुण स्वार्थ, मोहभंग भक्ति, बेकाबू महत्वाकांक्षा, निर्णय या विवेक की कमी, भौतिकता, शरीर में स्थूलता, मोहित विद्वान, विकृति, बाधा, प्रतिकूलता। उपरोक्त मुख्य चरित्र के अलावा, कई अन्य पात्र भी रामायण कथा का हिस्सा हैं। जैसे
१. दशरथ: मोहग्रस्त मनुष्य, कर्तव्यपरायण गृहस्थ और प्रेममय पिता और पति, जो कर्म, इच्छाओं, द्वैत, मोह, मृत्यु और पुनर्जन्म के अधीन है।
२. कैकेयी: कर्म का फल, समय, भविष्य, प्रतिकूलता और स्वार्थी प्रेम।
३. अहिल्या: भौतिक संसार की अशुद्धियों से आच्छादित भ्रमित मन या बुद्धि।
४. जटायु: विवेक, कारण की आवाज, दिव्य दूत, कानून के संरक्षक।
५. विभीषण: अंधकार में प्रकाश, भक्त, साहस।
६. कुंभकर्ण: तमस, मोहित आत्मा, पाशविक शक्ति, अज्ञानता, मानसिक पीड़ा।
उक्त में से कई प्रतीक लेखक के व्यक्तिगत विचारों पर आधारित हैं।


सन्दर्भ
https://bit.ly/3e63Bgd
https://bit.ly/3CzEtYA
https://bit.ly/3eeAebl

चित्र संदर्भ
1. जंगल में श्री राम एवं महर्षि वाल्मीकि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण को दर्शाता एक चित्रण (Wisdom Books of India)
3. अशोक वाटिका वन में माता सीता एवं हनुमान को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. रामायण के युद्ध को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. अपने चार पुत्रों के साथ राजा दशरथ को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
6. राम राज्याभिषेक को दर्शाता एक चित्रण (Publicdomainpictures)



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