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भारत में प्रतिवर्ष दिल के मरीज तेज़ी से बढ़ रहे हैं। यदि हम चिकित्सा की भाषा में कहें तो, भारत में
ह्रदय रोगियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और यह वास्तव में गंभीर समस्या है। किंतु इससे भी
गंभीर समस्या यह है "भारत में हृदय रोग विशेषज्ञों की संख्या निरंतर घट रही है!"
भारत, को दुनिया की मधुमेह राजधानी कहा जाता है, क्यों की देश में कम से कम 50.8 मिलियन
लोग टाइप -2 मधुमेह से पीड़ित हैं। इस कारण लोगों के हृदय रोगों से प्रभावित होने का जोखिम
काफी उच्च होता है। हाल ही में “द इंडियन एक्सप्रेस” (The Indian Express) की एक रिपोर्ट में
कहा गया है कि, पिछले साल देश में 1,907 सुपर स्पेशियलिटी मेडिकल सीटों (super specialty
medical seats) में से 552 सीटें खाली रहीं और इनमें से 104 कार्डियोवैस्कुलर
(cardiovascular) और थोरैसिक सर्जरी (Thoracic Surgery (CVTS) और 55 कार्डियोलॉजी
(cardiology) में थीं। पिछले साल NDTV की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि, भारत में लगभग 30
मिलियन हृदय रोगी हैं, जिनमें से 14 मिलियन शहरी क्षेत्रों में और 16 मिलियन ग्रामीण क्षेत्रों में
रहते हैं। एम्स के कार्डियोथोरेसिक और वैस्कुलर सर्जरी विभाग के प्रोफेसर (Professor in the
Department of Cardiothoracic and Vascular Surgery, AIIMS, Delhi) शिव चौधरी ने
कहा था कि, डॉक्टर अक्सर कार्डियोवैस्कुलर में विशेषज्ञता का चयन नहीं करते हैं, क्योंकि इसमें
लंबी ऊष्मायन अवधि, अधिक काम के घंटे और वेतन भी कम होता है।
कार्डियोलॉजिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया (Cardiologists Society of India (CSI) के अनुसार,
आज देश में केवल 5500 कार्डियोलॉजिस्ट ही कार्यरत हैं। इस प्रकार 1.3 अरब की आबादी के साथ,
देश में 30,000 आबादी के लिए केवल एक हृदय रोग विशेषज्ञ है। साथ ही छात्र भी कार्डियोलॉजी
स्पेशलिटी का विकल्प नहीं चुन रहे हैं, जिस कारण मेडिकल की सीटें भी नहीं भर पा रही हैं। भारत
में कार्डियोलॉजिस्ट की कमी के पैनल डिस्कशन पर एक टिप्पणी देते हुए, नेफ्रोलॉजी एंड यूरोलॉजी
(Nephrology and Urology) के निदेशक और मणिपाल हॉस्पिटल्स ग्रुप के मेडिकल
एडवाइजरी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ एच सुदर्शन बल्लाल ने स्वास्थ्य कर्मियों के असमान वितरण का
एक उदाहरण देते हुए कहा की, नागालैंड में 17,000 आबादी पर केवल 1 हृदय रोग विशेषज्ञ है
जबकि गोवा में 350 की आबादी पर 1 हृदय रोग विशेषज्ञ है। इस प्रकार देश के पश्चिम और दक्षिण
क्षेत्र में विशेषज्ञों का जमावड़ा है। पीएसआरआई अस्पताल (PSRI Hospital) के अध्यक्ष डॉ के के
तलवार के अनुसार "कुछ मुद्दे ऐसे हैं, जिन्हें जल्द से जल्द संबोधित करने की आवश्यकता है।
जैसे कि नामांकित चिकित्सकों में कार्डियोलॉजिस्ट की संख्या कम है। इसके अलावा देश में अच्छी
फैकल्टी (Faculty) की भी जरूरत है। अच्छे हृदय रोग विशेषज्ञों का सरकारी से निजी क्षेत्र में जाने
का चलन बढ़ा है और इसलिए भी हृदय रोग विशेषज्ञों की संख्या कम हो रही है।
साथ ही “हृदय की देखभाल को सुलभ बनाने के लिए परिधीय केंद्रों पर सेवाएं प्रदान करने की
आवश्यकता है। मई 2012 में, वैश्विक नेताओं ने 2025 तक गैर-संचारी रोगों से वैश्विक मृत्यु दर
को 25% तक कम करने के लिए एक लक्ष्य प्रतिबद्ध किया। दरसल हृदय रोग (सीवीडी) सभी
एनसीडी मौतों में से लगभग आधी के लिए जिम्मेदार है, जिससे यह दुनिया का नंबर एक हत्यारा
बन गया है। इसलिए 29 सितंबर को विश्व हृदय दिवस, वार्षिक पालन और उत्सव आयोजित किया
जाता है, जिसका उद्देश्य हृदय रोगों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना है।
देश के सबसे दूर के हिस्से में हृदय रोग विशेषज्ञों की कमी के बावजूद लोगों के लिए हृदय संबंधी
देखभाल को सुलभ बनाने के लिए, एक अच्छी रेफरल प्रणाली को लागू करने के लिए हब स्पोक
मॉडल (spoke model) को अपनाने की आवश्यकता है, जहां तृतीयक देखभाल केंद्रों के हृदय रोग
विशेषज्ञ, चिकित्सकों के साथ डिजिटल उपकरणों के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या जिला
अस्पताल से जुड़ सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार “कोविड, तनाव, चिंता और अवसाद जैसे कई कारणों से भी मधुमेह का खतरा
बढ़ सकता है। महामारी विज्ञान के अध्ययनों से यह भी पता चला है कि मधुमेह में हृदय-संवहनी
रोगों (Cardiovascular diseases (CVD) का प्रसार गैर-मधुमेह आबादी से कम से कम दोगुना है।
देश भर में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी पर चेतावनी देते हुए देश के शीर्ष चिकित्सकों ने सांसदों
को भी सूचित किया कि भारत में मृत्यु के शीर्ष 10 कारणों को एक सामान्य एमबीबीएस डॉक्टर
(MBBS Doctor) द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता है। हृदय रोग, फेफड़ों की बीमारी, ब्रेन स्ट्रोक
(Brain Stroke), डायरिया, किडनी की क्रॉनिक डिजीज, तपेदिक, नवजात शिशु का समय से पहले
जन्म और दुर्घटनाएं मृत्यु के प्रमुख कारणों में से हैं। लेकिन देश में कार्डियोलॉजिस्ट,
पल्मोनोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियन, नेफ्रोलॉजिस्ट और जनरल सर्जन
(Cardiologist, Pulmonologist, Neurologist, Pediatrician, Nephrologist, General
Surgeon) की भारी कमी है। विशेषज्ञों की अपेक्षाकृत अधिक संख्या वाले राज्य महाराष्ट्र (736),
तमिलनाडु (474), बिहार (456) और पश्चिम बंगाल (384) हैं।
भारत में 4,000 हृदय रोग विशेषज्ञ हैं, लेकिन आवश्यकता 88,000 की है। कार्डियोलॉजी में केवल
315 पोस्ट-ग्रेजुएट सीटें हैं, जबकि जरूरत 3,375 सीटों की है। नेफ्रोलॉजी में, केवल 1,200 अभ्यास
करने वाले डॉक्टर हैं लेकिन भारत के आकार के देश में 40,000 विशेषज्ञों की जरूरत है। इसी तरह
बाल चिकित्सा और हृदय चिकित्सा में, एमबीबीएस स्नातकों के लिए केवल 31 सीटें उपलब्ध हैं।
नतीजतन, भारत में केवल 23,000 बाल रोग विशेषज्ञ हैं, हालांकि भारत के बाल मृत्यु दर को कम
करने के लिए 2,30,000 की आवश्यकता है। दुनिया की मधुमेह राजधानी के रूप में भारत की
प्रतिष्ठा के बावजूद, पूरे देश में एंडोक्रिनोलॉजी में केवल 78 पीजी सीटें उपलब्ध हैं, जिसके कारण
लगभग 28,000 की आवश्यकता के मुकाबले लगभग 650 विशेषज्ञ हैं। प्राक्कलन समिति ने
संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा, "सभी कॉलेजों में पीजी सीटों की संख्या बढ़ाने की तत्काल
आवश्यकता है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता से
समझौता नहीं किया जाए।"
संदर्भ
https://bit.ly/3R1sN4I
https://bit.ly/3Sf7gqw
https://bit.ly/3famTBe
चित्र संदर्भ
1. महिला चिकित्सकों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. स्वास्थ जांच करती महिला चिकित्सक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. मेडिकल छात्राओं को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. प्रसिद्द डॉक्टर रमाकांत पांडा जी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. हृदय चिकित्सा को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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