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गणित के संदर्भ में भारत का प्राचीन काल से ही गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। हमारे देश में श्रीनिवास
रामानुजन् एवं आर्यभट्ट जैसे कई महान गणितज्ञ हुए हैं, जिन्होंने अपनी गणितीय खोजों तथा
समझ के आधार पर पूरे विश्व में अपार लोकप्रियता हासिल की है। लेकिन वर्तमान में महान
गणितज्ञों का देश रहा हमारा भारत भी, गणित के क्षेत्र में निराशाजनक प्रदर्शन कर रहा है।
दरसल इस वर्ष मार्च में केंद्र द्वारा किए गए एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन में पाया गया है कि, कक्षा 3
में नामांकित 37 प्रतिशत छात्रों में, मूलभूत संख्यात्मक संख्याओं की पहचान करने जैसे कौशल
बेहद "सीमित" है, जबकि 11 प्रतिशत छात्रों में "सबसे बुनियादी ज्ञान की भी कमी पाई गई"।
10,000 स्कूलों में 86,000 छात्रों पर किये गए इस अध्ययन में अंग्रेजी सहित 20 भाषाओं में,
छात्रों के साक्षरता कौशल का भी आकलन किया। जहाँ 15 प्रतिशत में अंग्रेजी में "बुनियादी कौशल"
की कमी थी, वहीँ 30 प्रतिशत में "सीमित कौशल" पाया गया। यह अध्ययन 23-26 मार्च के बीच
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT, एनसीईआरटी)
द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
अध्ययन साक्षात्कार-आधारित था तथा प्रदर्शन के आधार पर, छात्रों को चार समूहों में वर्गीकृत
किया गया था:
१. जिनके पास सबसे बुनियादी ज्ञान और कौशल की कमी थी।
२. जिनके पास ज्ञान और कौशल सीमित था।
३. जिन्होंने पर्याप्त ज्ञान और कौशल विकसित किया था।
४. जिन्होंने बेहतर ज्ञान और कौशल विकसित किया था।
जो छात्र अपने ग्रेड-स्तरीय कार्यों को आंशिक रूप से पूरा कर सकते थे, उन्हें "सीमित कौशल" समूह
में रखा गया था, जबकि जो साधारण ग्रेड-स्तरीय कार्यों को भी पूरा करने में विफल रहे, उन्हें "सबसे
बुनियादी कौशल की कमी" के रूप में वर्गीकृत किया गया था। संख्यात्मकता में, तमिलनाडु में, 29
प्रतिशत ऐसे छात्र थे, जो सबसे बुनियादी ग्रेड-स्तरीय कार्यों को पूरा नहीं कर सके, इसके बाद जम्मू
और कश्मीर (28 प्रतिशत), असम, छत्तीसगढ़ और गुजरात (18 प्रतिशत) का स्थान रहा। छात्रों को
दी गई चुनौतियों में संख्या की पहचान, संख्या भेदभाव (बड़ी संख्या की पहचान करना), जोड़ और
घटाव, भाग और गुणा, अंश, संख्याओं और आकृतियों वाले पैटर्न की पहचान करना शामिल था।
जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे "सीमित कौशल" श्रेणी में आते
हैं, उनमें अरुणाचल प्रदेश (49 प्रतिशत), चंडीगढ़ (47 प्रतिशत), छत्तीसगढ़ (41 प्रतिशत), गोवा (50
प्रतिशत), गुजरात, (44 प्रतिशत), हरियाणा (41 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (46 प्रतिशत), नागालैंड (56
प्रतिशत), और तमिलनाडु (48 प्रतिशत) शामिल हैं।
नीति आयोग द्वारा जारी एक स्कूल शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि पंजाब,
सिक्किम, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में माध्यमिक शिक्षा में जाने वाले (कक्षा 8 से
कक्षा 10) के छात्रों के लिए गणित का स्कोर 2016-17 में सबसे कम था। औसत स्कोर के मामले में
सूची में शीर्ष पर राजस्थान, उसके बाद झारखंड, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश थे।
पंजाब में कक्षा 5 के छात्रों का औसत (बड़े राज्यों में) सबसे कम 43 प्रतिशत है, और जब वे कक्षा 8
से स्नातक होते हैं और माध्यमिक विद्यालय में प्रवेश करते हैं तो यह औसत और भी कम होकर
मात्र 31 प्रतिशत रह जाता है। अन्य राज्यों का भी प्रदर्शन अच्छा नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है की,
"जम्मू और कश्मीर में सबसे कम औसत भाषा स्कोर 43 प्रतिशत है जबकि पंजाब में सबसे कम
औसत गणित स्कोर 31 प्रतिशत है।" राष्ट्रीय औसत गणित स्कोर 39.6 प्रतिशत दर्ज किया गया
है। इसका मतलब है कि हमारे देश में बच्चे गणित में निरंतर कमजोर हो रहे हैं।
जैसे-जैसे छात्र आगे बढ़ते हैं, उनके अंकों में और भारी गिरावट आने लगती है। "बड़े राज्यों में,
कर्नाटक का कक्षा 5 में गणित का औसत अंक क्रमश: 67 प्रतिशत है। चंडीगढ़ में भाषा और गणित
का औसत अंक क्रमश: 69 और 64 प्रतिशत है, जबकि अरुणाचल प्रदेश में सबसे कम औसत अंक
क्रमश: 43 और 39 प्रतिशत है। अरुणाचल प्रदेश में सबसे कम औसत भाषा स्कोर 44 प्रतिशत है
जबकि सिक्किम में सबसे कम औसत गणित स्कोर 30 प्रतिशत है, लेकिन बाकी राज्यों का
प्रदर्शन भी बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। अतः हमें वास्तव में अपनी शिक्षा योजना पर पुनर्विचार
करने की आवश्यकता है।
यदि हम वैश्विक स्तर पर बात करें तो लड़कों की तुलना में लड़कियां गणित में कमज़ोर प्रदर्शन कर
रही हैं। यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में लड़कियां
गणित में लड़कों से पिछड़ रही हैं, और इसके मूल कारणों में लिंगवाद और लिंग रूढ़िवादिता
शामिल है। रिपोर्ट में पाया गया है कि लड़कियों की तुलना में लड़कों में गणित कौशल हासिल करने
की संभावना 1.3 गुना अधिक है।
गणित को समझने में लड़कियों की अक्षमता का प्रमुख कारण,
शिक्षकों, माता-पिता और साथियों द्वारा रखे गए, नकारात्मक लिंग मानदंड और रूढ़िवादिता है।
यह मानदंड लड़कियों के आत्मविश्वास को कम कर रहे है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गणित कौशल
सीखने से याददाश्त, समझ और विश्लेषण मजबूत होता है, जिससे बच्चों की सृजन क्षमता में
सुधार होता है। इस संदर्भ में घरेलू आर्थिक स्थिति भी एक निर्धारण कारक है। रिपोर्ट में कहा गया
है कि सबसे गरीब परिवारों के बच्चों की तुलना में सबसे अमीर परिवारों के स्कूली बच्चों के पास
चौथी कक्षा तक पहुंचने तक संख्यात्मक कौशल हासिल करने की संभावना 1.8 गुना है। जो बच्चे
प्रारंभिक बचपन की शिक्षा और देखभाल कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, उनके पास 15 वर्ष की आयु तक
गणित में न्यूनतम दक्षता हासिल करने की संभावना उन बच्चों की तुलना में 2.8 गुना अधिक
होती है, जो ऐसा नहीं करते हैं। यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल (Katherine
Russell) के अनुसार "लड़कियों में भी लड़कों के समान ही गणित सीखने की क्षमता होती है,
लेकिन उनके पास इन महत्वपूर्ण कौशलों को हासिल करने के समान अवसर की कमी होती है।"
"हमें उन लैंगिक रूढ़ियों और मानदंडों को दूर करने की ज़रूरत है जो लड़कियों को पीछे कर रहे हैं।
सन्दर्भ
https://bit.ly/3eYI8G6
https://bit.ly/3qO8i0O
https://uni.cf/3dnXV0B
चित्र संदर्भ
1. कक्षा में गणित सीखते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. ग्रामीण स्कूल के बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बच्चे को हल समझाते अध्यापक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रूचिकर विषयों को पढ़ते बच्चो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कतार में लगी छात्राओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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