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विज्ञान में रुचि रखने वाले सभी लोग जानते है की जैसे ही पानी तापमान 99°C डिग्री से बढ़कर
100 डिग्री सेल्सियस हो जाता है, तो ठीक इसी बिंदु पर आ कर पानी उबलने लगता है। लगभग
यही तर्क हमारे हरे-भरे गृह पृथ्वी पर भी लागू हो जाता है। जहां पृथ्वी उबलने अर्थात जलवायु
परिवर्तन के टिपिंग बिंदु पर पहुंच चुकी है और इसमें मात्र 1 डिग्री की छेड़छाड़ भी हमारी धरती पर
भारी विध्वंस मचा सकती है।
हमारी पृथ्वी पर बड़े पैमाने की कुछ ऐसी प्रणालियाँ हैं, जो इसके निर्वाह के लिए अति आवश्यक हैं।
वैज्ञानिक इन्हें 'क्लाइमेट टिपिंग एलिमेंट्स (climate tipping elements)' कहते हैं। इन तत्वों
की कुछ सीमाएं होती हैं, जिन्हें 'टिपिंग पॉइंट (tipping point)' के रूप में जाना जाता है, तथा
जिसके आगे उनमें थोड़ा सा भी परिवर्तन करने के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। जलवायु
विज्ञान में, टिपिंग पॉइंट एक महत्वपूर्ण सीमा है, जिसे पार करने पर, जलवायु प्रणाली में बड़े और
अक्सर अपरिवर्तनीय परिवर्तन होने लगते हैं। यदि टिपिंग पॉइंट्स को पार किया जाता है, तो उनके
मानव समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ने की संभावना है।
टिपिंग व्यवहार पूरी जलवायु प्रणाली, पारिस्थितिक तंत्रों, बर्फ की चादरों, समुद्र और वायुमंडल के
संचलन में पाया जाता है। साइंस जर्नल (Science Journal) में प्रकाशित एक प्रमुख नए विश्लेषण
के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़
जाता है, तो कई जलवायु टिपिंग पॉइंट ट्रिगर (Trigger) हो सकते हैं। यहां तक कि वैश्विक
तापन के मौजूदा स्तरों पर भी दुनिया में पहले से ही पांच खतरनाक जलवायु टिपिंग बिंदुओं को पार
करने का जोखिम है, और प्रत्येक दसवें डिग्री के आगे बढ़ने के साथ जोखिम और भी अधिक बढ़
जाता है।
एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने 2008 में प्रकाशित 200 से अधिक पत्रों की व्यापक समीक्षा से
टिपिंग पॉइंट्स, उनके तापमान थ्रेशहोल्ड, टाइम स्केल (Threshold, Time Scale) और प्रभावों के
साक्ष्य को संश्लेषित किया। उन्होंने संभावित टिपिंग बिंदुओं की सूची नौ से बढ़ाकर सोलह कर दी
है। 12-14 सितंबर में एक्सेटर विश्वविद्यालय (University of Exeter) में एक प्रमुख सम्मेलन
"टिपिंग पॉइंट्स: क्लाइमेट क्राइसिस टू पॉजिटिव ट्रांसफॉर्मेशन (Tipping Points: Climate
Crisis to Positive Transformation)" से पहले प्रकाशित शोध ने बताया कि मानव उत्सर्जन ने
पहले ही पृथ्वी को भारी खतरे में डाल दिया है।
"दुनिया पहले से ही कुछ टिपिंग बिंदुओं के जोखिम में है। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में और वृद्धि
होती है, वैसे-वैसे और अधिक टिपिंग पॉइंट संभव होते जाते हैं।” यह दर्शाता है कि मानवता के
कारण आज तक वैश्विक ताप के केवल 1.1C बढ़ने के साथ ही पांच खतरनाक टिपिंग बिंदु पहले ही
पार हो चुके हैं। इनमें ग्रीनलैंड की बर्फ में कमी, समुद्र के स्तर में भारी वृद्धि, उत्तरी अटलांटिक में
एक प्रमुख धारा का पतन, बारिश की कमी और कार्बन युक्त पर्माफ्रॉस्ट (carbon-rich
permafrost) का अचानक पिघलना शामिल है।
विश्लेषण में कहा गया है कि 1.5C हीटिंग पर, पांच में से चार टिपिंग पॉइंट संभव हो सकते हैं।
जिससे विशाल उत्तरी जंगलों में परिवर्तन और लगभग सभी पर्वतीय हिमनदों का नुकसान होना
तय है। वैज्ञानिकों के अनुमानों के अनुसार, कुल मिलाकर, शोधकर्ताओं को 16 टिपिंग पॉइंट्स के
प्रमाण मिले, जिनमें से अंतिम छह को, कम से कम 2°C के ग्लोबल हीटिंग (global heating) को
ट्रिगर करने की आवश्यकता थी। टिपिंग पॉइंट कुछ वर्षों से लेकर सदियों तक के समय-सारिणी पर
प्रभावी होंगे।
पृथ्वी पर रहने योग्य परिस्थितियों को बनाए रखने और स्थिर समाजों को सक्षम करने के लिए,
हमें हर संभव प्रयास करना चाहिए ताकि टिपिंग पॉइंट्स को पार करने से रोका जा सके।"
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change
(IPCC) की छठी आकलन रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व-औद्योगिक तापमान से लगभग 2 डिग्री
सेल्सियस ऊपर और 2.5-4 डिग्री सेल्सियस की बढ़त से बहुत अधिक जलवायु टिपिंग बिंदुओं को
ट्रिगर करने के जोखिम अधिक हो जाते हैं।
यह नया विश्लेषण इंगित करता है कि तापमान लगभग 1 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग से अधिक होने
पर पृथ्वी पहले ही एक 'सुरक्षित' जलवायु स्तर को पार कर चुकी होगी। इसलिए शोध का निष्कर्ष
यह है कि संयुक्त राष्ट्र के पेरिस समझौते का लक्ष्य वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और
अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना खतरनाक जलवायु परिवर्तन से पूरी तरह से
बचने के लिए पर्याप्त नहीं है। आकलन के अनुसार, 1.5-2 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के 'पेरिस रेंज
(Paris Range)' में टिपिंग पॉइंट की संभावना स्पष्ट रूप से बढ़ जाती है, जिसमें 2 डिग्री सेल्सियस
से भी अधिक जोखिम होता है।
इस प्रकार टिपिंग पॉइंट जोखिमों को सीमित करने के लिए, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को
2030 तक आधा कर देना चाहिए और 2050 तक इसे शुद्ध-शून्य तक पहुंच जाना चाहिए।
जानकार मान रहे हैं की "अभी हमने टिपिंग पॉइंट जोखिमों पर दुनिया को अपडेट करने की दिशा में
पहला ही कदम उठाया है। टिपिंग एलिमेंट इंटरैक्शन (Tipping Element Interaction) पर एक
गहन अंतर्राष्ट्रीय विश्लेषण की तत्काल आवश्यकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3BusiM8
https://bit.ly/3BsUoqZ
https://bit.ly/3eHaXGC
चित्र संदर्भ
1. प्रकृति पर आपदाओं को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
2. संवेदनशील जलवायु टिपिंग पॉइंट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. समुद्री तूफान की चपेट में आए शहर को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
4. समय के साथ भूकंप की बढ़ती संख्याओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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