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प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के लिए एक प्रमुख चुनौती बनता जा रहा है तथा इसे कम करने
के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इसी प्रयास में प्लास्टिक पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध भी
शामिल है, जिसके तहत सिंगल यूज प्लास्टिक (Single-use plastic) पर प्रतिबंध लगाया
गया है।प्रतिबंधित वस्तुओं में ईयरबड्स (Earbuds), आइसक्रीम और अन्य वस्तुओं में
इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक की छड़ें, प्लास्टिक के गिलास, कटलरी (Cutlery) और प्लेट,
सजावट के लिए उपयोग किया जाने वाला थर्मोकॉल, प्लास्टिक से बनी रैपिंग और पैकेजिंग
सामग्री और इसी तरह की वस्तुएं शामिल हैं।
31 दिसंबर तक शुद्ध बहुलक या
पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक से बने ऐसे कैरी बैग तथा अन्य वस्तुओं पर भी प्रतिबंध लगा दिया
जाएगा,जिनकी मोटाई 120 माइक्रोन से कम है। यह दिलचस्प है कि उत्तरप्रदेश सरकार ने
2018 में ही सिंगल यूज प्लास्टिक और थर्माकॉल से बनी वस्तुओं के साथ-साथ प्लास्टिक
कैरी बैग पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन उसके बाद भी इनका राज्य भर में उपयोग
किया गया तथा किया जा रहा है।
1957 में भारतीय प्लास्टिक उद्योग ने जोरदार शुरुआत की थी, लेकिन इसे भारतीय जीवन
शैली में शामिल होने में 30 साल से भी अधिक का समय लगा। परिणामस्वरूप आज यह
हमारे जीवन के हर पहलू से जुड़ा हुआ है। हालांकि इससे सम्बंधित समस्याएं बहुत पहले से
ही उभर रही हैं, तथा उन्हें कम करने का प्रयास तब से ही किया जा रहा है।
1994 में सूरत
में प्लेग (Plague) को देखते हुए अन्य शहरों में लोगों ने सार्वजनिक स्वच्छता की मांग की
तथा नियामक निकायों से प्लास्टिक बैग के उत्पादन, वितरण और उपयोग पर प्रतिबंध
लगाने का आग्रह किया। तब से प्लास्टिक का कचरा,कचरा बीनने वालों विशेषकर महिलाओं
और बच्चों के लिए एक मुख्य आधार बना, क्यों कि वे प्लास्टिक के कचरे को बीनते तथा
उन्हें बेचते है। इस प्रकार यह उनकी आजीविका का स्रोत बन गया।
2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अनुमान लगाया कि देश में औसत प्लास्टिक
अपशिष्ट उत्पादन, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का लगभग 6.92 प्रतिशत है। 60 प्रमुख
शहरों के प्लास्टिक कचरा उत्पादन के आंकड़ों को देखते हुए यह अनुमान लगाया गया कि
भारत में प्रति दिन लगभग 25,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है।दिल्ली, चेन्नई,
कोलकाता, मुंबई, बेंगलुरु, अहमदाबाद और हैदराबाद प्लास्टिक का कचरा उत्पन्न करने वालों
की सूची में शीर्ष पर हैं, जबकि गंगटोक, पंजिम, दमन, द्वारका और कवरत्ती इस सूचकांक में
सबसे नीचे हैं। इस प्लास्टिक कचरे में से लगभग 60 प्रतिशत का ही पुनर्नवीनीकरण हो
पाता है, बाकि 9,400 टन से अधिक भूमि,सड़कों,समुद्र, महासागरों आदि में एकत्रित हो
जाता है।
भारत में प्लास्टिक कचरे का अत्यधिक उत्पादन तेजी से बढ़ते शहरीकरण, खुदरा श्रृंखलाओं
के प्रसार, खाद्य और सब्जी उत्पादों और सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुओं की पैकेजिंग में उपयोग
के कारण हुआ है।सकल घरेलू उत्पाद की उच्च विकास दर और तेजी से हो रहे शहरीकरण
को देखते हुए यह लगता है कि भारत में प्लास्टिक की खपत और प्लास्टिक कचरे के बढ़ने
की और अधिक संभावना है।2018 में प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग ने अनुमान लगाया था
कि 2017 से 2022 तक बहुलक खपत 10.4 प्रतिशत बढ़ जाएगी, जिसमें से लगभग आधा
हिस्सा सिंगल यूज प्लास्टिक का है।
2018 में विश्व पर्यावरण दिवस पर, प्रधान मंत्री नरेंद्र
मोदी ने 2022 तक एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को समाप्त करने का संकल्प लिया।इस
संदर्भ में, उसके बाद से10 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल
प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु) वर्तमान में अपने
एकत्रित प्लास्टिक कचरे को सह-प्रसंस्करण के लिए सीमेंट संयंत्रों में भेज रहे हैं, 12
राज्य/केंद्र शासित प्रदेश (आंध्र प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश,
उड़ीसा, नागालैंड, तमिलनाडु, तेलंगाना, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल)पॉलीमर कोलतार सड़क
निर्माण के लिए प्लास्टिक कचरे का उपयोग कर रहे हैं और चार राज्य/केंद्र शासित प्रदेश
(चंडीगढ़, दिल्ली, कर्नाटक मध्य प्रदेश) प्लास्टिक के कचरे का उपयोग तेल उत्पादन और
ऊर्जा संयंत्रों के लिए कर रहे हैं।
हालांकि, देश में अभी तक प्लास्टिक कचरा प्रबंधन की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए
कोई महत्वपूर्ण उपाय नहीं है। हम आज भी प्लास्टिक पर अत्यधिक निर्भर हैं, या यूं कहें कि
चारों ओर से प्लास्टिक से घिरे हुए हैं, जो प्लास्टिक के कचरे में वृद्धि कर रहा है।तीव्र
आर्थिक विकास ने एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों के साथ आने वाले सामानों की मांग
को बढ़ावा दिया है,लेकिन भारत, जो सालाना लगभग 14 मिलियन टन प्लास्टिक का
उपयोग करता है, में प्लास्टिक के कचरे के प्रबंधन के लिए एक संगठित प्रणाली का अभाव
है, जिससे व्यापक रूप से कचरा फैल रहा है। सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध प्लास्टिक
कचरा प्रबंधन के लिए एक प्रभावशाली उपाय है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए एक और
मजबूत और समावेशी राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार करने की आवश्यकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3RKr1Wi
https://bit.ly/3er4RKv
चित्र संदर्भ
1. कूड़ा बीनती महिला को दर्शाता एक चित्रण (pixlar)
2. कूड़े के ढेर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. स्थानीय सफाई कर्मी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. प्लास्टिक के कचरे की छंटनी करती महिला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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