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यदि आप गोमती नदी के किनारे सैर करने जाते हैं, तो भी पानी की अत्यधिक प्रदूषित
प्रकृति और प्रदूषण के कुछ स्रोतों को आसानी से देख सकते हैं। गोमती नदी का यह प्रदूषण
शहर की आबादी के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है क्योंकि नदी लगभग शहर के बीच
में बहती है तथा इसके आस-पास रहने वाले लोग इसका उपभोग करते हैं। कई कार्बनिक
और अकार्बनिक प्रदूषकों जैसे,प्लास्टिक, फार्मास्यूटिकल्स, कीटनाशक और धातुओं का स्रोत
मानवीय गतिविधियाँ हैं तथा इन स्रोतों का स्थलीय और जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर
प्रभाव पड़ रहा है।चूंकि गोमती नदी में मछलियों सहित कई अन्य जीव निवास करते हैं,
इसलिए यह सम्भावना बहुत अधिक है, कि वे उन प्रदूषकों का सेवन भी करते हैं। यह
प्रदूषक फिर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मछलियों के माध्यम से मानव और अन्य जीवों तक
पहुंचते हैं। कई हानिकारक पदार्थ जैसे, कीटनाशक, भारी धातु और हाइड्रोकार्बन
(hydrocarbons) को अक्सर जलीय वातावरण में स्रावित किया जाता है।
जब बड़ी मात्रा में
प्रदूषकों को जलीय वातावरण में छोड़ा जाता है, तब जलीय जीवों की बड़े पैमाने पर अचानक
मृत्यु भी देखी जा सकती है। उदाहरण के लिए कृषि कीटनाशक जब जलीय तंत्र को दूषित
करने लगते हैं, तब परिणामस्वरूप मछलियों की संख्या में महत्वपूर्ण गिरावट आती है। यदि
प्रदूषकों का स्रावण निम्न स्तर पर हो, तो भी जलीय जीवों में प्रदूषकों का संचय हो सकता
है, जो मछलियों के प्रतिरक्षी तंत्र, चयापचय, गलफड़ों तथा अन्य अंगों को प्रभावित करता
है। ऐसा माना जा रहा है, कि मछलियों से सम्बंधित विभिन्न बीमारियां जैसे एपिडर्मल
पेपिलोमा (Epidermal papilloma), फिन/टेल रोट (Fin/tail rot), गिल रोग,
हाइपरप्लासिया (Hyperplasia), लीवर की क्षति, नियोप्लासिया (Neoplasia) और
अल्सरेशन (Ulceration) आदि प्रदूषण के कारण हो रही हैं।
कुछ अनुसंधानों के अनुसार
मछलियों में एरोमोनास (Aeromonas), फ्लेवोबैक्टीरियम (Flavobacterium) और
स्यूडोमोनास (Pseudomonas) के कारण होने वाली कुछ बीमारियां आमतौर पर पानी की
खराब गुणवत्ता के कारण है, और यह खराब गुणवत्ता जल में कार्बनिक पदार्थों की अधिक
मात्रा,ऑक्सीजन की कमी, पीएच मानों में परिवर्तन और अधिक माइक्रोबियल (Microbial)
आबादी के कारण हुई है।सेराटिया (Serratia) और यर्सिनिया (Yersina) से होने वाले कुछ
संक्रमण घरेलू सीवेज के जलीय तंत्रों से संपर्क का परिणाम है। कई प्रदूषकों का स्थलीय और
जलीय जीवों के व्यवहार पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है,विशेष रूप से मछली
में।अकार्बनिक और जैविक प्रदूषक मछलियों के व्यवहारों की एक विस्तृत श्रृंखला जैसे
क्रियात्मकता,अन्वेषण, परिहार, सामाजिकता,आक्रामकता, यौन और फीडिंग (Feeding)को
प्रभावित करते हैं।संदूषक मछलियों की कोलिनेस्टरेज़ (Cholinesterase) गतिविधि,
न्यूरोट्रांसमीटर (Neurotransmitter) या हार्मोन के स्तर को बदल देते हैं। उदाहरण के
लिए कार्बोफ्यूरान (Carbofuran) कीटनाशक डिकेंट्रार्चस लैब्राक्स (Dicentrarchus
labrax) में न्यूरोफंक्शन को बदल देते हैं।फ्लुओक्सेटीन एंटीडिप्रेसेंट (Fluoxetine
antidepressant),बेट्टा स्प्लेंडेंस (Betta splendens) में आक्रामकता को प्रभावित करते
हैं। कीटनाशकों के उपभोग से सुनहरी मछली कैरासियस ऑराटस (Carassius auratus)
की गतिविधि कम हो गई है तथा पारस मेजर (Parus major) के रक्त में धातु के उच्च
स्तर ने उनकी खोज की प्रकृति को कम कर दिया है। खोज की प्रकृति में कमी आने से
मछलियों की उचित आवास को खोजने की क्षमता में कमी आई है, जो उनकी फीडिंग और
प्रजनन को प्रभावित कर रही है। मछलियों के सामाजिक संपर्क को भी प्रदूषकों ने बुरी तरह
प्रभावित किया है। उदाहरण के लिए एल्यूमीनियम संदूषण ने अटलांटिक सैल्मन साल्मो
सालार (Atlantic salmon Salmo salar) की सीखने की प्रकृति को प्रभावित किया है।
कीटनाशकों जैसे कार्बनिक प्रदूषकों ने ज़ेब्राफिश डैनियो रेरियो (Zebrafish Danio rerio)
और मिनो गोबियोसाइप्रिस रारस (Minnow Gobiocypris rarus) की गतिविधि और
स्थानिक स्मृति को प्रभावित किया है।तांबा, फेथेड मिननो (Fathead minnow) के घ्राण
न्यूरॉन्स को खराब करता है, जो संकेतों को समझने की उनकी क्षमता को बदल देता है तथा
शिकार के प्रति उनकी संवेदनशीलता को बढ़ा देता है।एक अन्य अध्ययन के अनुसार बैंडेड
टेट्रा (Banded tetra) अस्थानाक्स ऐनीस (Astyanax aeneus), जब ऑर्गनोफॉस्फेट
(Organophosphate) कीटनाशक के संपर्क में आती है, तो वह उसके परिहार व्यवहार को
बदल देती है तथा शिकारी हमले से बचने की उसकी क्षमता को कम कर देती है। इस प्रकार
प्रदूषक मछलियों के संज्ञानात्मक और व्यवहारात्मक पक्ष को बुरी तरह से प्रभावित करते
हैं।
चूंकि मछलियां प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों का महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं, इसलिए यह
संभावना बढ़ जाती है, कि प्रदूषक मनुष्य और उन अन्य जीवों के शरीरों को भी नुकसान
पहुंचाए,जो उनका सेवन कर रहे हैं। यह समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है, क्यों कि इसका
गहन अध्ययन अभी तक नहीं किया गया है। मछली प्रजातियों पर प्रदूषकों के संज्ञानात्मक,
व्यवहारात्मक आदि प्रभावों के गहन अध्ययन और शोध से इस समस्या का हल निकाला जा
सकता है। साथ ही इस मामले में जागरूकता फैलाना भी बहुत प्रभावी हो सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3ek9dDd
https://bit.ly/3Reo9kL
https://bit.ly/3ALf4ZS
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर में गोमती नदी को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. प्रदूषण से मृत पड़ी मछलियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जौनपुर पुल के निकट फैले जल प्रदूषण को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
4. पानी में तैरती मछलियों को दर्शाता एक चित्रण (prarang)