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प्रारंभ में कुछ वैश्विक साम्राज्यों का वर्णन करने के लिए एक वाक्यांश "वह साम्राज्य जहां
पर सूर्य कभी अस्त नहीं होता" का प्रयोग किया जाता था. ये साम्राज्य बहुत व्यापक थे
ऐसा लगता था मानो इसके किसी न किसी भाग में सूर्य का प्रकाश हमेशा मौजूद रहता है।
19वीं शताब्दी में, यह वाक्यांश ब्रिटिश (British) साम्राज्य के लिए प्रयोग किया जाने लगा
था। उस दौरान ब्रिटिश साम्राज्य को दुनिया के नक्शे में लाल और गुलाबी रंग में दिखाया
गया था ताकि दुनिया भर में फैली ब्रिटिश साम्राज्य की शक्ति को उजागर किया जा सके।
1913 तक, ब्रिटिश साम्राज्य ने 412 मिलियन से अधिक लोगों पर नियंत्रण कर लिया था,
जो उस समय विश्व की आबादी का 23% हिस्सा था। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध तक
ब्रिटिश साम्राज्य की जनसंख्या 88 मिलियन हो गयी थी।हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के
बाद 1922 तक इन्होंने अतिरिक्त क्षेत्रों पर अधिग्रहण कर लिया, जिससे यह आंकड़ा
लगभग 458 मिलियन तक पहुंच गया।1938 में द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभिक चरण तक
जनसंख्या का यह आंकड़ा अपने चरम पर पहुंच गया था, उस समय तक ब्रिटिश साम्राज्य
में 531 मिलियन लोग शामिल हो गए थे, जिससे यह जनसंख्या के हिसाब से इतिहास का
सबसे बड़ा साम्राज्य बन गया।1920 के दशक तक ब्रिटिश साम्राज्य ने विश्व की भूमि का
पांच प्रतिशत हिस्सा कवर कर रखा था। 20वीं शताब्दी में संयुक्त राज्य अमेरिका के
आर्थिक और सैन्य उद्भव के साथ, ब्रिटिश उपनिवेशवाद को व्यापक रूप से आज अंग्रेजों
द्वारा निभाई जाने वाली वैश्विक भूमिका का मुख्य कारण माना जाता है।
ब्रिटिश साम्राज्य मानव इतिहास का सबसे बड़ा साम्राज्य था। एक सदी से भी अधिक समय
तक यह दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य और आर्थिक महाशक्ति थी। यह साम्राज्य यूरोप में
खोज युग का परिणाम था जो 15 वीं शताब्दी की खोज यात्राओं के साथ शुरू हुआ, जिसके
कारण यूरोपीय औपनिवेशिक साम्राज्यों का निर्माण हुआ। 1921 तक, ब्रिटिश साम्राज्य की
आबादी 45 करोड़ थी। यह उस समय विश्व की कुल आबादी का चौथाई हिस्सा था जो केवल
ब्रिटेन की सरपरस्ती के अंतर्गत था। 3.3 करोड़ वर्ग किलोमीटर पर फैला यह साम्राज्य न
केवल इतिहास का सबसे बड़ा साम्राज्य था, बल्कि दुनिया के सभी महाद्वीपों पर फैले होने
के साथ-साथ यह साम्राज्य अपने वृहदतम रूप में धरती के एक-तिहाई भूभाग को नियंत्रित
करता था। इस प्रकार इसकी भाषा और सांस्कृतिक प्रसार दुनिया भर में थी, और मौजूद
समय में अंग्रेज़ी भाषा, संस्कृति तथा अंग्रेजी शासन शैली एवं वेस्टमिंस्टर (Westminster)
शैली से प्रभावित सरकारी प्रणालियों में देखी जा सकती है। दुनिया के सभी महाद्वीपों, क्षेत्रों
और लगभग हर भूभाग पर इसकी मौजूदगी होने के कारण, इस प्रचलित कथन का जन्म
हुआ: "ब्रिटिश साम्राज्य पर कभी सूरज नहीं डूबता है।"
उन्नीसवीं सदी के दौरान ब्रिटिश साम्राज्यवाद का इतिहास विस्तार, सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया
और इसकी सफलता विशेष रूप से उल्लेखनीय है।उत्तरी अमेरिका में क्रांति, युद्ध और तेरह
अमेरिकी उपनिवेशों की हानि के बाद, अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यह साम्राज्य अपना
आकर्षण खोने लगा था।अठारहवीं शताब्दी के अंत में, ईस्ट इंडिया कंपनी (East India
Company) ने एक व्यापारिक कंपनी से एक अर्ध-स्वायत्त राज्य में परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू
की। उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान, ब्रिटिशों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण के माध्यम से
कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में औपनिवेशिक बस्तियों का विस्तार प्रारंभ किया। इसने अंततः
उप-महाद्वीप को कवर किया, पूर्व की ओर बर्मा और दक्षिण में सीलोन को अपने नियंत्रण
क्षेत्र में लेकर पूर्व से दक्षिण तक अपना विस्तार किया। उत्तर में, अफगानिस्तान में 12
महीने संघर्ष चलता रहता था, किंतु फिर भी यहां पर ब्रिटिश साम्राज्य पकड़ बनी रही।
उन्नीसवीं सदी के मध्य तक, "सुरक्षात्मक" समझौतों के माध्यम से राज्यों के प्रबंधन के
लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने सहायक संधि का सिद्धान्त अपनाया। इसके तहत, ब्रिटिश
प्रशासन ने उन राज्यों पर नियंत्रण कर लिया जहां पर किसी शासक का अपना पुत्र नहीं होता
था। इस प्रकार कुलीन वर्गों के बीच पैदा हुए असंतोष ने पारंपरिक रूप से ब्रिटिश शासन के
खिलाफ 1857-58 के विद्रोह में योगदान दिया, जो "भारतीय विद्रोह" के रूप में जाना जाता
है। यद्यपि विद्रोहियों ने कुछ समय के लिए अपनी जमीन पर कब्जा कर लिया, और अपने
विरोधियों को काफी नुकसान पहुंचाया, लेकिन विद्रोह अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के अपने
उद्देश्य में विफल रहा। यद्यपि 1857 के विद्रोह ने ब्रितानी उद्यमियों को हिलाकर रख दिया
और वो इसे रोक नहीं पाये थे। इस गदर के बाद ब्रितानी और अधिक चौकन्ने हो गये और
उन्होंने आम भारतीयों के साथ संवाद बढ़ाने का पर्यत्न किया तथा विद्रोह करने वाली सेना
को भंग कर दिया। प्रदर्शन की क्षमता के आधार पर सिखों और बलूचियों की सेना की नई
पलटनों का निर्माण किया गया। उस समय से भारत की स्वतंत्रता तक यह सेना कायम रही।
1861 की जनगणना के अनुसार भारत में अंग्रेज़ों की कुल जनसंख्या 125,945 पायी गई।
इनमें से केवल 41,862 आम नागरिक थे बाकी 84,083 यूरोपीय अधिकारी और सैनिक थे।
1880 में भारतीय राजसी सेना में 66,000 ब्रितानी सैनिक और 130,000 देशी सैनिक
शामिल थे।इसके बाद कंपनी की सरकार को अब सीधे ब्रिटेन शासन द्वारा नियंत्रित किया
जाने लगा, और महारानी विक्टोरिया ने 1876 में भारत की महारानी की उपाधि धारण
की।अन्त में ब्रितानियों ने सामाजिक परिवर्तन से भारतीयों के मोहभंग को महसूस किया।
विद्रोह तक वो उत्साहपूर्वक सामाजिक परिवर्तन से गुजरे जैसे लॉर्ड विलियम बेंटिंक (Lord
William Bentinck) ने सती प्रथा पर रोक लगा दी।उन्होंने यह भी महसूस किया कि भारत
की परम्परा और रीती रिवाज बहुट कठोर तथा दृढ़ हैं जिन्हें आसानी से नहीं बदला जा
सकता; तत्पश्चात और अधिक, मुख्यतः धार्मिक मामलों से सम्बद्ध ब्रितानी सामाजिक
हस्तक्षेप नहीं किये गये।
यह भी पाया गया कि रियासतों के मालिक और जमींदारों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया था
जिसे लॉर्ड कैनिंग (Lord Canning) के शब्दों में "तूफान में बांध" कहा गया। उन्हें ब्रितानी
राज सम्मानित भी किया गया और उन्हें आधिकारिक रूप से अलग पहचान तथा ताज दिया
गया। कुछ बड़े किसानों के लिए भूमि-सुधार कार्य भी किये गये जिसे बाद में 90 वर्षों तक
वैसा ही रखा गया।
उत्तरी अमेरिका (North America) और ऑस्ट्रेलिया (Australia)के उपनिवेशों के विपरीत,
भारतीय उपमहाद्वीप कभी भी बड़ी संख्या में ब्रिटिश प्रवासियों के लिए एक गंतव्य नहीं बन
पाया। यहां यात्रा करने वालों में से अधिकांश ने ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारियों के रूप में
यात्रा की, और जब उनका कार्यकाल समाप्त हो गया तो वे वापस लौट गए। फिर भी, ब्रिटिश
लोगों की उपस्थिति और ब्रिटिश शासन को लागू करने का भारत के स्वदेशी समाज पर
पर्याप्त प्रभाव पड़ा। कंपनी सरकार के तहत अपने पहले वर्षों में बंगाल को आर्थिक मंदी और
अकाल का सामना करना पड़ा। भारत भर में, भूमिधारकों, किसानों और राज्य के बीच संबंधों
में बदलाव ने पुराने कुलीन वर्गों को नुकसान पहुंचाया।
भारतीयों ने अपने जीवन को बदलने और अपने नए राष्ट्र बनाने के लिए ब्रिटिश तरीकों और
संस्थानों का उपयोग करना सीखा। जैसा कि भारतीय समाजशास्त्री आंद्रे बेतेले ने लिखा है,
ब्रिटीश राज द्वारा स्थापित विश्वविद्यालयों ने "एक ऐसे समाज में बौद्धिक और संस्थागत
रूप से नए क्षितिज खोले, जो सदियों से रूढ़िवादी और पदानुक्रमित सांचे में खड़ा था।" इन
"खुले और धर्मनिरपेक्ष संस्थानों" ने भारतीयों को अन्य बातों के अलावा, "लिंग और जाति के
सदियों पुराने प्रतिबंधों" पर सवाल उठाने की अनुमति दी।
संदर्भ:
https://bit.ly/3IzrOGu
https://bit.ly/3nZUsa2
https://bit.ly/3AO91oL
https://bit.ly/3o1eT6B
चित्र संदर्भ
1. 1921 में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1909 के ब्रिटिश भारत के नक्शा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ईस्ट इंडिया कंपनी के हथियारों के कोट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. लॉर्ड विलियम बेंटिंक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कैसर बाग लखनऊ को लूट रहे अंअंग्रेजी सैनिकों, को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
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