Post Viewership from Post Date to 13-Aug-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2637 24 2661

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

100 वर्षों से अधिक पुराना एक साबुन, जो भारतीयों की भावनाओं से जुड़ा है

जौनपुर

 14-07-2022 09:45 AM
गंध- ख़ुशबू व इत्र

आमतौर पर हर व्यक्ति या वस्तु की लोकप्रियता की एक निश्चित सीमा या दायरा होता है! एक निश्चित समय तथा दायरे के बाद अधिकांश व्यक्तियों या वस्तुओं को भुला दिया जाता है। लेकिन आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा की, हमारे देश के मैसूर के चंदन की मनमोहक खुशबू को समेटे “मैसूर सैंडल साबुन” उन चुनिंदा साबुनों में से एक है, जो लगभग 100 वर्षों से भी अधिक समय से लाखों भारतीयों के दिलों में राज कर रहा है। यह साबुन न केवल अद्वितीय है, बल्कि इसके निर्माताओं द्वारा साबुन बाजार को घेरने के लिए जो तरकीबें या दृष्टिकोण अपनाए गए, वह भी अपने आप में बेहद अनूठे माने जाते हैं!
मैसूर सैंडल साबुन (mysore sandal soap) की खोज श्री कृष्णराज वाडियार चतुर्थ (Sri Krishnaraja Wadiyar IV) और दीवान सर एम. विश्वेश्वरैया के द्वारा की गई। अपनी खोज के सौ साल बाद भी यह कई लोगों का पसंदीदा साबुन बना हुआ है! सर एम. विश्वेश्वरैया अपने उद्घोषणा, “औद्योगीकरण या नाश (industrialization or destruction)” के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कई औद्योगिक, व्यापार और वाणिज्य इकाइयों को शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने बैंगलोर को भारत के कुछ शीर्ष औद्योगिक केंद्रों में से एक बनने के लिए एक बहुत मजबूत नींव रखी। उनके द्वारा 1916 में मैसूर सैंडल साबुन का निर्माण उनकी दूरदर्शिता का एक बेहतरीन प्रमाण है। इस साबुन की दिलचस्प गाथा प्रथम विश्व युद्ध से शुरू हुई थी। दरअसल उस दौरान मैसूर साम्राज्य, दुनिया में चंदन का सबसे बड़ा उत्पादक माना जाता था, जिसका अधिकांश हिस्सा यूरोप को निर्यात किया जाता था। लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, चंदन को युद्ध के कारण बाहर नहीं भेजा जा सकता था। इस बीच, दीवान सर एम. विश्वेश्वरैया ने बंगलौर में औद्योगिक विकास पर अधिक जोर दिया। वे आम जनता की पहुंच के भीतर अच्छी गुणवत्ता का साबुन बनाने का सपना देख रहे थे। इस प्रयास के तहत उन्होंने बंबई से एक तकनीकी निपुर्ण व्यक्ति “एसजी शास्त्री” को भी आमंत्रित किया, और उसके लिए भारतीय विज्ञान संस्थान के परिसर में प्रयोग करने की व्यवस्था की गई थी। सरकार ने शास्त्री जी को साबुन बनाने का तकनीकी ज्ञान सीखने के लिए इंग्लैंड भेज दिया।
आवश्यक ज्ञान प्राप्त करने के बाद, शास्त्री जी जल्दी से मैसूर लौट आए जहाँ महाराजा और उनके दीवान उत्सुकता से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने साबुन में शुद्ध चंदन के तेल को शामिल करने की प्रक्रिया को मानकीकृत किया जिसके बाद बेंगलुरु में के आर सर्कल (KR Circle) के पास सरकारी साबुन कारखाना स्थापित किया गया।
उसी वर्ष, साबुन बनाने वाली इकाई को चंदन के तेल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मैसूर में एक और तेल निष्कर्षण कारखाना भी स्थापित किया गया था। एक बार जब साबुन बाजार में आ गया, तो यह न केवल रियासत के भीतर बल्कि पूरे देश में जनता के बीच लोकप्रिय हो गया। उन दिनों, अन्य कंपनियों के साबुन आकार में आयताकार हुआ करते थे, और पतले चमकदार रंगीन कागजों में लपेटे जाते थे। लेकिन मैसूर सैंडल साबुन को पहली बार अंडाकार आकार दिया गया। नामक कारखाने के लोगो (Logo) के रूप में शरबा को चुना गया, जो एक पौराणिक प्राणी था, जिसका शरीर शेर का था और सर हाथी का था । भारतीय संस्कृति के साथ जोड़ते हुए, एसजी शास्त्री ने मैसूर सेंडल साबुन के लिए आभूषण के बक्से जैसा एक आयताकार बॉक्स बनाया जिसके बाद फूलों के डिजाइन और उनके रंग सावधानी से चुने गए और बॉक्स पर मुद्रित किए गए। साबुन को टिशू पेपर (tissue paper) में लपेटा गया था, क्योंकि गहने की दुकानें उसी तरह से गहने भी ग्राहकों तक पहुंचाती हैं।
इसके लिए उचित एवं व्यवस्थित विज्ञापन की भी व्यवस्था की गयी। “द हिंदू” जैसे प्रमुख समाचार पत्र ने , इस ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए आधा पेज विज्ञापन के लिए दिया। यहां तक ​​कि माचिस और ट्राम के टिकट पर भी साबुन के डिब्बे की तस्वीरें लगी हुई थीं। एक बार कराची में ऊंट की पीठ पर साबुन के विज्ञापन के लिए जुलूस निकाला गया। लंदन में भी इस उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए एक प्रदर्शनी की व्यवस्था की गई, इसमें साबुन को महारानी विक्टोरिया को भी शानदार तरीके से प्रस्तुत किया गया। उन्हें इसकी सुगंध इतनी पसंद आई कि उन्होंने शाही परिवार के लिए कुछ और साबुन रख लिए।
लेकिन मैसूर सेंडल साबुन की लोकप्रियता और व्यवस्थित प्रचार ने ब्रिटिश साबुन निर्माताओं को ईर्ष्या से भर दिया। कहा जाता है कि उन्होंने इसे माई-सोर साबुन (my-sour soap) बताकर धोखा देने की कोशिश की। लेकिन कई प्रयासों के बावजूद वह सभी मिलकर भी बैंगलोर के मैसूर सैंडल साबुन को घर-घर में मशहूर होने से कोई नहीं रोक पाए।
जैसे-जैसे लोकप्रियता और मांग बढ़ती गई, उत्पादन बढ़ाने की जरूरत भी बढ़ने लगी। इसलिए, सोप फैक्ट्री (soap factory) को 1957 में राजाजीनगर औद्योगिक उपनगर में एक बड़े स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया था। 1980 में, सरकार ने मैसूर और शिमोगा में चंदन की तेल इकाई का विलय कर दिया और उन्हें कंपनी के नाम, कर्नाटक साबुन और डिटर्जेंट लिमिटेड (Karnataka Soaps and Detergents Limited (KSDL) के तहत शामिल कर दिया। कंपनी तब से लेकर आज भी विभिन्न आकारों में चंदन साबुन के अलावा अगरबत्ती, टैल्कम पाउडर और डिटर्जेंट (Talcum Powder and Detergent) का निर्माण कर रही है। सन 2000 में कच्चे माल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, 'मोर सैंडल' परियोजना भी शुरू की गई थी। आज साबुन के कई ब्रांड हैं, लेकिन उनमें से मैसूर सैंडल साबुन का सभी के बीच एक विशिष्ट स्थान है। यह हमारी समृद्ध संस्कृति और विरासत का एक प्रतिष्ठित प्रतीक रहा है। मैसूर सेंडल साबुन अधिकांश कन्नड़ घरों में एक प्रधान वस्तु है।
इस साल जुलाई में, एक ट्विटर उपयोगकर्ता अनुभा उपाध्याय ने भी इस साबुन की एक तस्वीर साझा करते हुए लोगों से पूछा कि, क्या वे इसे सूंघ सकते हैं। ट्वीट जल्द ही वायरल हो गया और दुनिया भर में लोग साबुन के बारे में बात करने लगे। उपाध्याय, भी अपने ट्वीट को मिली प्रतिक्रिया से "आश्चर्यचकित" थीं। मैसूर सैंडल सोप ने अपने समकक्ष लक्स और संतूर (Lux and Santoor) के विपरीत कभी भी हाई- प्रोफाइल तरीके से विज्ञापन नहीं दिया। लेकिन लक्स के 2,700 करोड़ रुपये के विज्ञापन बजट के विपरीत, सिर्फ 5 करोड़ रुपये के वार्षिक विज्ञापन और बिक्री प्रचार बजट के साथ, मैसूर सैंडल सोप ने 125 करोड़ रुपये की बिक्री की, जो 2011 में केएसडीएल के कुल कारोबार का 61 प्रतिशत था।
हालांकि आज मैसूर सैंडल साबुन को भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है! इसकी लोकप्रियता के बावजूद, मैसूर सैंडल साबुन अखिल भारतीय उत्पाद नहीं है। इसके लगभग 75 प्रतिशत उपभोक्ता कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से हैं और 40 वर्ष से अधिक आयु के हैं। कंपनी चंदन की सीमित उपलब्धता के कारण भी संघर्ष कर रही है। खुद को रिब्रांड (rebrand) करने के प्रयास में, केएसडीएल ने जनवरी 2012 में भारत का सबसे महंगा साबुन, मैसूर सैंडल मिलेनियम (Mysore Sandals Millennium) भी लॉन्च किया। इस सुपर-प्रीमियम लग्जरी (super-premium luxury) साबुन की कीमत 150 ग्राम साबुन बार के लिए 720 रुपये थी, जो अब बढ़कर 810 रुपये हो गई है। फर्म के अपेक्षाकृत सीमित राजस्व सृजन और विज्ञापन खर्च को देखते हुए, 102 वर्षीय कंपनी को हिंदुस्तान यूनिलीवर के लक्स और डब्ल्यूसीसीएल के संतूर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। जहां केएसडीएल मैसूर सैंडल साबुन के अपने 75 ग्राम और 125 ग्राम बार क्रमशः 38 रुपये और 62 रुपये में बेचता है, वहीं यूनिलीवर अपने लक्स सैंडल और क्रीम साबुन के 100 ग्राम बार को सिर्फ 26 रुपये में बेचता है। इस प्रकार कंपनी के विकास को सीमित करने में मूल्य चुनौतियां भी एक प्रमुख कारक रही हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3P8dy9S
https://bit.ly/3NOYMUl
https://bit.ly/3auPWNF

चित्र संदर्भ
1. मैसूर सैंडल साबुन और दीवान सर एम. विश्वेश्वरैया को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. सर एम. विश्वेश्वरैया, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. चंदन के मैसूर सैंडल साबुन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मैसूर सैंडल साबुन के विज्ञापन को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
5. सुपर-प्रीमियम मैसूर सैंडल साबुन को दर्शाता एक चित्रण (Open Food Facts)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM


  • क्या ऊन का वेस्ट बेकार है या इसमें छिपा है कुछ खास ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:17 AM


  • डिस्क अस्थिरता सिद्धांत करता है, बृहस्पति जैसे विशाल ग्रहों के निर्माण का खुलासा
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:25 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id