Post Viewership from Post Date to 10-Aug-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
3159 16 3175

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

शयनी एकादशी में रखे जाने वाले व्रत की कथा का महत्व

जौनपुर

 11-07-2022 09:36 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है।ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु शेष नाग (ब्रह्मांडीय सर्प) पर क्षीरसागर (दूध का ब्रह्मांडीय सागर) में सो जाते हैं।इस प्रकार इस दिन को देव-शयनी एकादशी (अर्थात् "भगवान-नींद की ग्यारहवीं") या हरि- शयनी एकादशी(अर्थात्"विष्णु-नींद की ग्यारहवीं") या शयन एकादशी भी कहा जाता है।विष्णु अंत में चार महीने बाद प्रबोधिनी एकादशी (हिंदू महीने कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) में उज्ज्वल पखवाड़े के ग्यारहवें दिन) पर अपनी नींद से जागते हैं।इस अवधि को चतुर्मास ("चार महीने") के रूप में जाना जाता है और यह बारिश के मौसम के साथ आता है।
शायनी एकादशी चातुर्मास की शुरुआत है। भक्त इस दिन विष्णु को प्रसन्न करने के लिए चतुर्मास व्रत का पालन करना शुरू करते हैं।इस दिन विष्णु और लक्ष्मी की छवियों की पूजा की जाती है, रात प्रार्थना गायन में बिताई जाती है, और भक्त उपवास करते हैं और इस दिन व्रत रखते हैं, जिसे पूरे चातुर्मास के दौरान रखा जाता है। इनमें प्रत्येक एकादशी के दिन किसी खाद्य पदार्थ को छोड़ना या उपवास करना शामिल हो सकता है।उपवास में सभी प्रकार के अनाज, सेम,साथ ही प्याज और कुछ मसालों सहित कुछ सब्जियों से परहेज किया जाता है। भविष्योत्तर पुराण में, कृष्ण ने युधिष्ठिर को शयनी एकादशी का महत्व बताया, जैसा कि निर्माता- देवता ब्रह्मा ने अपने पुत्र नारद को एक बार महत्व बताया था।इसी सन्दर्भ में राजा मंडता की कथा सुनाई जाती है। धर्मपरायण राजा के देश ने तीन वर्षों तक सूखे का सामना किया था, लेकिन राजा को वर्षा देवताओं को प्रसन्न करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।अंत में, ऋषि अंगिरस ने राजा को देव-शयनी एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। ऐसा करने पर विष्णु की कृपा से राज्य में वर्षा होने लगी।
देवशयनी एकादशी व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है :
धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा: हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूँ।एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया: सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किंतु भविष्य में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता। अतः वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है।उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि में कमी हो गई। जब मुसीबत पड़ी हो तो धार्मिक कार्यों में प्राणी की रुचि कहाँ रह जाती है। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना की दुहाई दी।राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुःखी थे। वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन-सा पाप-कर्म किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।वहाँ विचरण करते-करते एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुँचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। ऋषिवर ने आशीर्वचनोपरांत कुशल क्षेम पूछा। फिर जंगल में विचरने व अपने आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा।तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा: महात्मन्‌! सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूँ। आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है, कृपया इसका समाधान करें।
यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा: हे राजन! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है।उन्होंने बताया कि राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है, जबकि ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है। यही कारण है कि राज्य में वर्षा नहीं हो रही है, इसलिए जब तक वह काल को प्राप्त नहीं होगा, तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा। किंतु राजा का हृदय एक निरपराध शूद्र तपस्वी का शमन करने को तैयार नहीं हुआ। और राजा ने कोई अन्य उपाये के लिए प्रार्थना करी, जिसके बाद महर्षि अंगिरा ने बताया: आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस दिन, पंढरपुर आषाढ़ी एकादशी वारी यात्रा के रूप में जानी जाने वाली तीर्थयात्रियों की एक विशाल यात्रा या धार्मिक शोभायात्रा चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित दक्षिण महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंढरपुर में निकाली जाती है।पंढरपुर विष्णु के स्थानीय रूप, विट्ठल देवता की पूजा का मुख्य केंद्र है। इस दिन लाखों (सैकड़ों हजारों) तीर्थयात्री महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से पंढरपुर आते हैं।उनमें से कुछ पालकियों को महाराष्ट्र के संतों की छवियों के साथ ले जाते हैं।ज्ञानेश्वर की छवि अलंदी से, नामदेव की छवि नरसी नामदेव से, तुकाराम की देहु से, एकनाथ की पैठण से, निवृतिनाथ की त्र्यंबकेश्वर से, मुक्ताबाई की मुक्ताईनगर से, सोपान की सासवद और संत गजानन महाराज कीशेगांव से छवि लाई जाती है।इन तीर्थयात्रियों को वारकरी कहा जाता है। वे विट्ठल को समर्पित संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर के अभंग गाते हैं।

संदर्भ :-

https://bit.ly/3Rn44t1
https://bit.ly/3yVyw6A

चित्र संदर्भ
1. शेष शैया पर सोते हुए भगवान विष्णु को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. युधिष्ठिर और अर्जुन से संवाद करते कृष्ण, को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
3. महर्षि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पंढरपुर आषाढ़ी एकादशी वारी यात्रा के रूप में जानी जाने वाली तीर्थयात्रियों की एक विशाल यात्रा या धार्मिक शोभायात्रा को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • जौनपुर शहर की नींव, गोमती और शारदा जैसी नदियों पर टिकी हुई है!
    नदियाँ

     18-09-2024 09:14 AM


  • रंग वर्णकों से मिलता है फूलों को अपने विकास एवं अस्तित्व के लिए, विशिष्ट रंग
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:11 AM


  • क्या हैं हमारे पड़ोसी लाल ग्रह, मंगल पर, जीवन की संभावनाएँ और इससे जुड़ी चुनौतियाँ ?
    मरुस्थल

     16-09-2024 09:30 AM


  • आइए, जानें महासागरों के बारे में कुछ रोचक बातें
    समुद्र

     15-09-2024 09:22 AM


  • इस हिंदी दिवस पर, जानें हिंदी पर आधारित पहली प्रोग्रामिंग भाषा, कलाम के बारे में
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:17 AM


  • जौनपुर में बिकने वाले उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है बी आई एस
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:05 AM


  • जानें कैसे, अम्लीय वर्षा, ताज महल की सुंदरता को कम कर रही है
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:10 AM


  • सुगंध नोट्स, इनके उपपरिवारों और सुगंध चक्र के बारे में जानकर, सही परफ़्यूम का चयन करें
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:12 AM


  • मध्यकाल में, जौनपुर ज़िले में स्थित, ज़फ़राबाद के कागज़ ने हासिल की अपार प्रसिद्धि
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:27 AM


  • पृथ्वी पर सबसे दुर्लभ खनिजों में से एक है ब्लू जॉन
    खनिज

     09-09-2024 09:34 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id