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आपको यह अवश्य पता होगा की, “हमारी पृथ्वी के लगभग 71% प्रतिशत हिस्से में केवल पानी ही है”!
लेकिन आपको यह जानकर और अधिक हैरानी होगी की, “धरती पर इतनी अधिक मात्रा में जल की
उपलब्धता होने के बावजूद, इसमें से केवल 1.2 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है”! साथ ही पेयजल संबंधी यह
आंकड़ा निरंतर गिरता जा रहा है! लेकिन हमारे जौनपुर की जल सखी योजना सहित दुनियाभर में पानी को
पीने योग्य बनाने के लिए, कुछ रचनात्मक उपाय भी अपनाए जा रहे हैं।
इंसानों ने हजारों वर्षों से पानी की गुणवत्ता के साथ संघर्ष किया है। चौथी और पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में,
आधुनिक चिकित्सा के जनक माने जाने वाले हिप्पोक्रेट्स (hippocrates) ने अशुद्ध पानी को बीमारी से
जोड़ा और सबसे पुराने पानी के फिल्टर में से एक का आविष्कार किया।
शुद्ध पानी से जुड़ी हुई, चुनौती आज, भी ज्यों की त्यों है, तथा जैव विविधता और कई मानव समुदायों के
साथ ही साथ आर्थिक प्रगति और मानव जीवन की स्थिरता एवं अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रही
है।
जैसे-जैसे भारत में शहरीकरण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे, शहरों के जल निकाय भी विषाक्त हो रहे हैं। एक
अनुमान के मुताबिक़ भारत में लगभग 70% सतही जल, उपभोग के लिए अनुपयुक्त पाया गया है। हर
दिन, लगभग 40 मिलियन लीटर अपशिष्ट जल, नदियों और अन्य जल निकायों में प्रवेश करता है,
जिसका केवल एक छोटा सा अंश ही पर्याप्त रूप से उपचारित होता है। विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट
बताती है कि, इस तरह के प्रदूषण से डाउनस्ट्रीम क्षेत्रों (downstream areas) में आर्थिक विकास कम हो
जाता है, जिससे इन क्षेत्रों में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि भी एक तिहाई तक कम हो जाती है। भारत जैसे
मध्यम आय वाले देशों में जहां जल प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, इसे बदतर बनाने के लिए, इसका प्रभाव
सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के लगभग आधे हिस्से के नुकसान तक बढ़ जाता है।
एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, भारत में प्रदूषित हिस्सों के डाउनस्ट्रीम होने से कृषि राजस्व में 9% की
कमी और डाउनस्ट्रीम कृषि उपज में 16% की गिरावट आई है। भारत में पर्यावरण क्षरण की लागत प्रति
वर्ष 3.75 ट्रिलियन ($80 बिलियन) होने का अनुमान है। साथ ही अकेले जल प्रदूषण के कारण, स्वास्थ्य का
लागत का अनुमान लगभग 470-610 बिलियन (प्रति वर्ष 6.7-8.7 बिलियन डॉलर) हो जाता है, जो कि पांच
वर्ष से कम उम्र के बच्चों में डायरिया, मृत्यु और रुग्णता और अन्य जनसंख्या रुग्णता से जुड़ा है।
आर्थिक लागत के अलावा, पानी की कमी और स्वच्छता के परिणामस्वरूप, भारत में प्रति वर्ष 400,000
लोगों की जान चली जाती है। वहीं विश्व स्तर पर, पानी से संबंधित बीमारियों के परिणामस्वरूप हर साल
पांच साल से कम उम्र के 1.5 मिलियन बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इस प्रकार भारत का जल संकट
महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है।
केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री के कार्यालय और आवास सहित दिल्ली में एकत्र किए गए पानी के नमूने
सभी व्यक्तिगत मापदंडों में विफल रहे, जिसका अर्थ है कि राष्ट्रीय राजधानी को आपूर्ति किए जाने वाले
पानी की गुणवत्ता देश में सबसे खराब है। 11 मापदंडों में जहरीले पदार्थों की उपस्थिति का पता लगाने के
लिए ऑर्गेनोलेप्टिक (organoleptic), भौतिक, रासायनिक और बैक्टीरियोलॉजिकल परीक्षण
(bacteriological test) शामिल थे।
पानी की गुणवत्ता में धीरे-धीरे गिरावट इसलिए होती है, क्योंकि अधिकांश अंतिम छोर तक, पाइपलाइन
नेटवर्क खराब तरीके से बनाए गए है। कई मामलों में, विशेष रूप से मलिन बस्तियों में, उन्हें खुली, जल
नालियों के माध्यम से या नगरपालिका के सीवरों के निकट में बिछाया जाता है।
लंबे समय तक आपूर्ति न करने की अवधि के दौरान, दूषित भूजल रिसता है क्योंकि पाइपों में दबाव शून्य
हो जाता है। जब भी नगर निगम की जलापूर्ति सेवा फिर से शुरू होती है तो यह दूषित पानी अंततः नलों से
बह जाता है।
हालांकि दूषित पानी की समस्या से उभरने के लिए, कुछ शानदार पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों की
सहायता ली जा सकती है। जैसे:
नदियों को साफ करने के लिए, निर्णय निर्माताओं को अलग-अलग तरीके से उच्च आवृत्ति पर एकत्रित
विश्वसनीय, प्रतिनिधि और व्यापक डेटा प्रदान किया जाना चाहिए। पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए
पारंपरिक दृष्टिकोण धीमा, थकाऊ, महंगा और मानवीय त्रुटि से ग्रस्त है, और यह केवल बुनियादी ढांचे और
संसाधनों की कमी के कारण सीमित संख्या में नमूनों के परीक्षण की अनुमति देता है। गैर-स्थिर तरीके से
डेटा एकत्र करने के लिए स्वचालित, जियोटैग्ड, टाइम-स्टैम्प्ड, रीयल-टाइम सेंसर (Geotagged, time-
stamped, real-time sensor) का उपयोग करते हुए, शोधकर्ता नदियों में प्रदूषण हॉटस्पॉट को इंगित
करने और प्रदूषण के प्रसार की पहचान करने में सक्षम हैं।
कई शहरों, विशेष रूप से मुंबई ने पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण कदम उठाकर वास्तव में पानी की गुणवत्ता
में सुधार किया है। उदाहरण के लिए, 2012-13 से, ग्रेटर मुंबई नगर निगम (Municipal Corporation of
Greater Mumbai (MCGM) ने सतह के वितरण के लिए स्टील के पानी के पाइप का उपयोग बंद कर दिया
है। यहां जल की आपूर्ति अब 14 भूमिगत कंक्रीट जल सुरंगों के माध्यम से की जा रही है। कई मलिन
बस्तियों में, पाइप के क्रिस-क्रॉसिंग नेटवर्क (criss-crossing network) को सिंगल छह-इंच पाइप से बदल
दिया गया है।
ऐसे समय में जब भारत में 84 प्रतिशत ग्रामीण घरों में अभी भी पाइप से पानी की आपूर्ति नहीं है, शहरों में
नगरपालिका आपूर्ति की अक्षमताओं को अत्यंत तत्परता से हल करना होगा। सीडब्ल्यूएमआई (CWMI)
के अनुसार, देश के 21 शहरों में 2020 तक भूजल खत्म होने की संभावना है! यह देखते हुए अगले दशक में
नगर निगम की जलापूर्ति बहुत अधिक महत्व प्राप्त करने के लिए तैयार है।
हमारा जौनपुर शहर भी, पानी को शुद्ध करने के लिए भी कुछ रचनात्मक उपाय अपना रहा हैं! दरअसल
जौनपुर में पानी की शुद्धता की जांच अब जल सखी स्वयं सहायता समूह द्वारा की जा रही है। जिसके
तहत पानी की शुद्धता की जांच करने और ग्रामीण स्तर पर प्रदूषित जल से बचाने के लिए इनके कंधों पर
जिम्मेदारी दी जा रही है। इस क्रम में जौनपुर के 21 ब्लॉक में जल सखी को पानी की शुद्धता के जांच की
जिम्मेदारी दी जा रही है। पानी की शुद्धता की जांच के लिए इन सभी को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस
मिशन के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत में पानी की टंकी भी बनाई जाएगी। वर्तमान में कार्यालय की तरफ से
ऐसे समूह की महिलाओं का डाटा इकट्ठा किया जा रहा है। और जल्द से जल्द जौनपुर वासियों को शुद्ध
पानी पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।
संदर्भ
https://bit.ly/3MJHwPC
https://bit.ly/3QjGfC3
https://bit.ly/3xKOHmC
चित्र संदर्भ
1. समूह में बैठी महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. आधुनिक चिकित्सा के जनक माने जाने वाले हिप्पोक्रेट्स (hippocrates) ने अशुद्ध पानी को बीमारी से जोड़ा और सबसे पुराने पानी के फिल्टर में से एक का आविष्कार किया। जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जनगणना 2011 पेयजल स्रोत के ग्राफ को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. जल शोधन इकाई को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. पानी के नमूने लेते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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