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शरीर, वाणी और मन की पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता है, कमल का फूल

जौनपुर

 14-06-2022 08:27 AM
बागवानी के पौधे (बागान)

कमल विश्व के कई महत्वपूर्ण धर्मों की मूर्ति विज्ञान और साहित्य के लिए जाना जाता है। अब तक खोजे गए विभिन्‍न संदर्भों में इसका उल्‍लेख किया गया है तथा इसके बहुत गहन महत्व और अर्थ पर प्रकाश डाला गया है। कमल सुंदरता, पूर्ण पवित्रता, ईमानदारी, पुनर्जन्म, आत्म-पुनरुत्थान, ज्ञानोदय का प्रतीक माना गया है। एशियाई कला में एक कमल सिंहासन, कभी-कभी कमल मंच, एक शैलीगत कमल का फूल होता है जिसका उपयोग किसी मूर्ति के लिए आसन या आधार के रूप में किया जाता है।
यह बौद्ध कला और हिंदू कला में देवताओं के लिए सामान्य आसन है, और अक्सर जैन कला में भी इसे देखा गया है। भारतीय कला में प्रदर्शित कमल विशेष रूप से पूर्वी एशिया में पाया जाता है । कमल एक जलीय पौधा है जो हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म जैसे भारतीय धर्मों की कला में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है। हिन्‍दू धर्म के प्रमुख देवी देवताओं में से एक विष्णु और लक्ष्मी को अक्सर मूर्ति विज्ञान में गुलाबी कमल पर चित्रित किया जाता है; ऐतिहासिक रूप से, कई देवता, अर्थात् ब्रह्मा, सरस्वती, लक्ष्मी, कुबेर, आमतौर पर एक शैलीबद्ध कमल सिंहासन पर बैठते हैं। विष्‍णु की नाभि से पद्मनाभ (कमल की नाभि) एक कमल निकलता है, जिस पर ब्रह्मा विराजमान रहते हैं।
वहीं देवी सरस्वती को एक हल्के गुलाबी कमल पर चित्रित किया जाता है। कमल, सूर्य और अग्नि देवताओं का गुण है। यह आंतरिक क्षमता की प्राप्ति का प्रतीक है, विष्णु को अक्सर "कमल जैसी आँखों वाला "( पुंडरीकाक्ष ) के रूप में वर्णित किया जाता है।
कमल की उभरी हुई पंखुड़ियाँ आत्मा के विस्तार का संकेत देती हैं। हिंदू प्रतिमा में, लक्ष्मी और गणेश जैसे अन्य देवताओं को अक्सर कमल के फूलों के साथ उनके आसन के रूप में चित्रित किया जाता है। उदाहरण के लिए, पौराणिक और वैदिक साहित्य में कमल के पौधे का व्यापक रूप से उल्लेख किया गया है; कई एशियाई संस्कृतियों के शास्‍त्रों (लिखित और मौखिक) में कमल आलंकारिक रूप में मौजूद है, जो लालित्य, सुंदरता, पूर्णता, पवित्रता और अनुग्रह का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे अक्सर कविताओं और गीतों में आदर्श स्त्री गुणों के रूपक के रूप में उपयोग किया जाता है। कमल का फूल कर्नाटक , हरियाणा और आंध्र प्रदेश सहित कई भारतीय राज्यों का राज्य फूल है। बौद्ध धर्म में यह फूल उन लोगों के ज्ञान के सार का प्रतीक बन जाता है जिन्होंने ध्यान किया है और गहन कानून पर ध्यान देंगे। एक महत्त्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध, स्‍वयं की तुलना एक कमल से करते हैं, जिसमें उन्‍होंने कहा है कि कमल का फूल कीचड़ में भी बिना किसी दाग के उगता है, कमल शरीर, वाणी और मन की पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता है, मानो शरीर भौतिक आसक्ति और भौतिक इच्छा के दुषित पानी के ऊपर तैर रहा हो। पौराणिक कथा के अनुसार, जहां-जहां पर गौतम बुद्ध के पहले कदम पड़े वहां पर कमल के फूल दिखाई दिए। तिब्बत में, पद्मसंभव, कमल-जन्मे (Lotus- Born), को दूसरा बुद्ध माना जाता है, जिसने स्थानीय देवताओं को जीतकर या परिवर्तित करके उस देश में बौद्ध धर्म स्थापित किया था; उन्हें आम तौर पर एक फूल पकड़े हुए दिखाया गया है। बौद्ध कला में सबसे महत्वपूर्ण प्रतिमाओं के लिए कमल सिंहासन सामान्य आसन हैं।
जैन धर्म के संस्थापकों (तीर्थंकरों) को कमल के सिंहासन पर बैठे या खड़े चित्रित किया गया है। जैन तीर्थंकर पद्मप्रभा को भी कमल के प्रतीक द्वारा दर्शाया गया है। पद्मप्रभा का अर्थ संस्कृत में 'लाल कमल के रूप में उज्ज्वल' है। पानी की सतह के नीचे और ऊपर अपने अस्तित्व में रहते हुए इसे परिवर्तनकारी सुगंध के लिए सर्वोच्च पौधा माना जाता है। नीले कमल को रात में उगते सूरज का प्रतीक माना जाता था। हिंदू दर्शन में कमल को सृष्टि का पहला जन्म और ब्रह्मांड और देवताओं के लिए एक जादुई गर्भ माना जाता है। कमल को दीर्घायु, उर्वरता, धन और ज्ञान के लिए भी मन जाता हैं|
यह भी माना जाता है कि नीला कमल बुद्धि, ज्ञान और ज्ञान पर आत्मा की जीत का प्रतीक होता है| "सफेद कमल" बुद्ध‍ि के जाग्रत होने, मानसिक शुद्धता और आध्यात्मिक पूर्णता की ओर बढ़ने का प्रतीक है। इसका तात्पर्य आध्यात्मिक परिपक्वता की स्थिति से है जो किसी के स्वभाव की शांति से जुड़ती है। "गुलाबी कमल" को बुद्ध का सच्चा कमल और सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। कभी-कभी हाथियों द्वारा बरसाए गए कमल के साथ लक्ष्मी की छवियां भारत के बाहर भी दिखाई देती हैं।
एक अजीबोगरीब वस्तु डेनमार्क (Denmark) की गुंडेस्ट्रुप कौल्ड्रॉन (Gundestrup Cauldron) है जो कमल और हाथियों के साथ एक देवी को दर्शाती है। कमल का रूपांकन न केवल सुंदरता के भारतीय आदर्श का प्रतीक है, बल्कि इसकी अनंतता की अवधारणा भी है।

"पद्मप्रियम, पद्महस्तम, पद्माक्षम, पद्मसुंदरीम
पद्माभावम, पद्ममुखम, पद्मनाभप्रियं रामम,
पद्ममालाधरम द्विम, पद्मिनीम, पद्मगंधीनीम"
“वह जो कमल की पूजा करती है, जो अपने हाथों में कमल धारण करती है, जो कमल की आंखों वाली है, जो कमल जैसी सुंदरता रखती है, जो कमल की माला पहनती है, जो कमल का प्रतीक है, जो कमल की सुगंध रखता है"। इसके माध्‍यम से कवि ने देवी लक्ष्‍मी की कल्पना की है बल्कि अपार प्रसन्नता को व्यक्त करने वाला होता है, कमल भारत की प्रतिमा और साहित्य में सर्वव्यापी है। कमल से लक्ष्मी का जन्म हुआ है तो वही लक्ष्मी हाथ में कमल कैसे धारण कर रही है?
इसे तब तक समझा नहीं जा सकता जब तक हम यह महसूस नहीं कर लेते कि यह छवि एक भ्रम है, इस अवधारणा का केंद्र पद्मनाभप्रियम शब्द है, जो विष्णु के साथ लक्ष्मी की दोहरी छवि का आह्वान करता है, दोनों कमल के प्रतीक हैं। विष्णु को श्रीनिवास या लक्ष्मी-निवास कहा जाता है, अर्थात वह जो लक्ष्मी में निवास करता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3mByI3I
https://bit.ly/3NItQWE
https://bit.ly/3MI5St1

चित्र संदर्भ
1. ध्यानमग्न बौद्ध और कमल को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
2. समुद्र पर विश्राम करते विष्णु,को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
3. कोटोकू में कमल के साथ अमिदा बुद्ध की मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. नील कमल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. कमल के पुष्प पर खड़ी माता लक्ष्मी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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