भारत शिक्षा और नौकरियों के मध्य एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। जैसा कि भविष्य के कौशल भविष्य
की नौकरियों से जुड़े होते हैं, इस संदर्भ में 2030 में नौकरियों और कौशल के भविष्य को समझने की
कोशिश करते हैं, जैसा कि दुनिया की प्रमुख परामर्श कंपनियों (मैकिन्से (McKinsey), पीडब्ल्यूसी
(PWC) आदि) द्वारा भविष्यवाणी की गई है।
पीडब्ल्यूसी द्वारा कार्य की चार वैकल्पिक दुनिया को
देखा गया है, सभी का नाम अलग-अलग रंगों के नाम पर रखा गया है:
1. एक दुनिया बड़ी कंपनियों से दूर जा सकती है क्योंकि नई तकनीक छोटे व्यवसायों को अधिक ताकत
हासिल करने की अनुमति देती है।
2. दूसरे में, कंपनियां समग्र रूप से समाज की बेहतरी के लिए मिलकर काम कर सकती हैं। निम्न
पंक्तियों में देखते हैं:
लाल दुनिया: यहां, प्रौद्योगिकी छोटे व्यवसायों को सूचना, कौशल और वित्तपोषण के विशाल भंडार का लाभ
उठाने की अनुमति देता है।इसमें मानव संसाधन एक अलग कार्य के रूप में मौजूद नहीं रहेगा, और उद्यमी
लोगों की प्रक्रियाओं के लिए बाहरी स्रोतों की सेवाओं पर भरोसा करेंगे। प्रतिभा के लिए भयंकर प्रतिस्पर्धा
होना संभव है, और भविष्य के कौशल की मांग वाले लोग उच्चतम पुरस्कार प्राप्त कर सकेंगे।
नीली दुनिया :यहां, वैश्विक निगम पहले से कहीं अधिक बड़े, शक्तिशाली और अधिक प्रभावशाली हो
जाएंगे। कंपनियां (Companies) अपने आकार और प्रभाव को अपने लाभ संचय की रक्षा के सर्वोत्तम
तरीके के रूप में देखेंगी। शीर्ष प्रतिभाओं का जमकर मुकाबला किया जाएगा।
हरी दुनिया :मजबूत जनमत, दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों और सख्त अंतरराष्ट्रीय नियमों की प्रतिक्रिया के
रूप में, कंपनियां एक मजबूत नैतिक और पारिस्थितिक कार्यावली को आगे बढ़ाएंगी।
पीली दुनिया :यहां, श्रमिक और कंपनियां अधिक अर्थ और प्रासंगिकता की तलाश करेंगी। मजबूत नैतिक
और सामाजिक मानकों वाले संगठनों के लिए काम करते हुए श्रमिकों को स्वायत्तता, लचीलापन और पूर्ति
मिलेगी। काम के भविष्य में उचित वेतन की अवधारणा प्रबल होगी।
वहीं सीबीआरई (CBRE) और जेनेसिस (Genesis) द्वारा प्रकाशित स्वतंत्र अध्ययन और डब्ल्यूएसजे
(Wall Street Journal, WSJ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 में कार्यस्थल आज की तुलना में
बहुत अलग होगा।
2030 में काम कैसा दिख सकता है, इसकी एक झलक निम्न पंक्तियों में दी गई
है:
"काम करने के स्थान" होंगे - सबसे अच्छे कार्यस्थलों में अलग-अलग शांत क्षेत्र होंगे ताकि श्रमिकों के पास
यह विकल्प हो कि वे कहाँ काम करना चाहते हैं, यह पूरी तरह से नियत बैठने की व्यवस्था को समाप्त
कर देता है।
छोटे व्यक्तिगत संगठन- सहकार्यता के इतने अवसर के साथ, एक महंगा बड़ा व्यवसाय बनाने की
आवश्यकता नहीं होगी।
स्वास्थ्य पर अधिक जोर –कार्यालय में अधिक स्वस्थ वातावरण होगा, चाहे वह अच्छी रोशनी, विश्राम क्षेत्र,
सोने के कमरे, संगीत, काम पर पालतू जानवर आदि हो।
"कार्य के प्रमुख" भूमिका की आवश्यकता- कार्य प्रमुख संगठन में संस्कृति को स्थापित करेगा। यह भूमिका
भविष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ नौकरियों में भी शामिल हो सकती है।
रोबोट (Robot) सहायक- आने वाले ईमेल (Email), सुनियोजित बैठक, स्प्रेडशीट (Spreadsheet) बनाने आदि
को क्रम से लगाने के लिए सभी स्तरों पर सभी कार्यकर्ता भविष्य में सिरी (Siri) या एलेक्सा (Alexa) जैसे
रोबोटिक सहायकों का उपयोग करेंगे।
साथ ही पियर्सन (Pearson) द्वारा किए गए शोध में यह अनुमान लगाया गया है कि 2030 में कौन
से कौशल और रोजगार दिख सकते हैं और नौकरी की भूमिकाओं में कुछ संभावित रुझानों को निम्न
पंक्तियों से पहचान सकते हैं:
उनका अनुमान है कि वर्तमान समय में पांच में से केवल एक कर्मचारी नौकरियों में है, और यह भविष्य में
कम होने की संभावना है।
कृषि, व्यापार और निर्माण से संबंधित व्यवसाय,जिनमें अन्य अध्ययनों में गिरावट का अनुमान लगाया
गया है,उसमें उनका अनुमान है कि कौशल में वृद्धि के साथ इसके अवसरों में भी वृद्धि को देखा जा
सकता है।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में, वे अनुमान लगाते हैं कि दस में से केवल एक श्रमिक ऐसे
व्यवसायों में लगे हुए हैं जिनके बढ़ने की संभावना है।
पियर्सन का अनुमान है कि दस में से सात कर्मचारी ऐसी नौकरियों में हैं जहां भविष्य के बारे में अधिक
अनिश्चितता है।
उनके निष्कर्ष जटिल समस्या समाधान, मौलिकता, विचारों की प्रवाह और सक्रिय सीखने जैसे उच्च-क्रम के
संज्ञानात्मक कौशल के महत्व की पुष्टि करते हैं। ये भविष्य के लिए सबसे अधिक मांग वाले कौशल होंगे।
मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट (McKinsey Global Institute)द्वारा किए गए शोध रिपोर्ट में शीर्ष तीन
कौशल समूह जिन्हें श्रमिकों को भविष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ करियर सुरक्षित करने की आवश्यकता होगी
पर प्रकाश डाला गया है।
भविष्य के लिए ये सबसे अधिक मांग वाले कौशल हैं:
उच्च संज्ञानात्मक - इनमें उन्नत साक्षरता और लेखन, महत्वपूर्ण सोच, और मात्रात्मक विश्लेषण और
सांख्यिकीय कौशल शामिल हैं। डॉक्टर (Doctor), एकाउंटेंट (Accountant), शोध विश्लेषक (Research
analysts) और लेखक इनका उपयोग करते हैं।
सामाजिक और भावनात्मक- इनमें उन्नत संचार, सहानुभूति, अनुकूलनीय होना और लगातार सीखने की
क्षमता शामिल है। व्यवसाय विकास, कार्यक्रम निर्माण और परामर्श के लिए इन कौशलों की आवश्यकता
होती है। ये नौकरियां अगले दस वर्षों के लिए सर्वश्रेष्ठ व्यवसाय में से एक हैं।
तकनीकी- इसमें बुनियादी से लेकर उन्नत आईटी कौशल, डेटा विश्लेषण और इंजीनियरिंग तक सब कुछ
शामिल है। ये भविष्य के कौशल सबसे अधिक भुगतान किए जाने की संभावना है।
साथ ही, हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि 2021 तक भारतीय उच्च शिक्षा के अधिकांश
अध्ययनों से पता चलता है कि भारत के आधे से अधिक स्नातक बेरोजगार हैं। शिक्षा की वर्तमान
स्थिति बहुत खराब है और भविष्य की नौकरियों के लिए एक बड़े सुधार की आवश्यकता
है।विश्वविद्यालय से स्नातक न केवल अपने विषय में एक विशेषज्ञ होना चाहिए और काम करने के
लिए कौशल होना चाहिए, बल्कि उनके पास ऐसे कौशल भी होने चाहिए जो उन्हें सहयोग करने, तोल
भाव करने, विक्रय करने, समूहों में काम करने आदि के लिए तैयार कर सकें।स्नातक युवाओं में उच्च
बेरोजगारी न केवल चिंताजनक है बल्कि देश के लिए कई मुद्दों का संकेत भी है।
इस प्रवृत्ति के तीन
कारण माने जा सकते हैं:
# सबसे पहले, स्नातक युवाओं के लिए कोई भी नौकरी करना मुश्किल होता है और वे रोजगार लेने के
बजाय बेरोजगार रहना पसंद करते हैं।उनके परिवार संभवतः उनका समर्थन करने में सक्षम हैं, जब वे
उपयुक्त नौकरियों की तलाश करते हैं या परीक्षाओं की तैयारी करते हैं जो उन्हें उनकी शिक्षा से मेल
खाने वाली आवश्यक नौकरी नहीं बल्कि एक निश्चित जीवन प्रदान करेंगे।
# दूसरा, युवाओं ने जो शिक्षा प्राप्त की है वह ऐसी गुणवत्ता की है कि वे रोजगार योग्य नहीं हैं और
उद्योग उन्हें रोजगार के लिए पर्याप्त आकर्षक नहीं पाते हैं।
# तीसरा, उद्योग को कम भुगतान करने और कम उत्पादकता के साथ काम करने की आदत हो गई है
और इस प्रकार वे कुशल कार्यबल के लिए अच्छे वेतन का भुगतान नहीं करते हैं।
जबकि सामाजिक वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि बेरोजगारों के एक बड़े हिस्से के
बेरोजगार रहने की खतरनाक प्रवृत्ति में कौन सा कारण सबसे अधिक योगदान देता है,साथ ही शिक्षा
प्रणाली, नीति और उद्योग को शिक्षा पर खर्च का सर्वोत्तम लाभ उठाने के लिए अपनी भूमिका निभाने
की आवश्यकता है।केवल बहुआयामी कार्रवाई से युवाओं, उनके परिवारों और उद्योग की मानसिकता
में बदलाव आने की संभावना है, जिससे उच्च शिक्षा प्राप्त छात्रों को अधिक रोजगार मिलेगा।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत पिछले चार सालों में 150 से 300 घंटे के अल्पकालिक
पाठ्यक्रम के लिए 12,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, ताकि युवाओं को कौशल बनाया जा
सके और उन्हें रोजगार के लायक बनाया जा सके। साथ ही कंपनियों ने स्नातकों को नौकरी के लिए
तैयार करने के लिए व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं। ये दोनों उपाय कुछ हद तक मदद
करते हैं, लेकिन घाव पर पट्टी बांधने के समान हैं।इनके साथ ही कार्यबल के लिए आवश्यक कौशल
को स्नातकों के बीच पढ़ाया जाना चाहिए और उन्हें स्थापित किया जाना चाहिए। स्नातक शिक्षा में
हस्तक्षेप उन विश्वविद्यालयों से शुरू होनी चाहिए जो उद्योग की जरूरतों से जुड़े पाठ्यक्रमों को फिर
से नियोजित करने पर काम कर रहे हैं।उद्योग की जरूरतों को समझने और उद्योग के साथ सह-
नियोजित किए जाने पर ध्यान देने के साथ पाठ्यक्रमों को नियोजित करने की आवश्यकता
है।
विश्वविद्यालयों को परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों के बजाय छात्रों में योग्यता को विकसित करने
पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम की रचना और शिक्षण के प्रति शिक्षकों की
मानसिकता में बदलाव की जरूरत है।व्यावसायिक डिग्री की एक नई श्रेणी बनाने के अलावा,
विश्वविद्यालयों में पेश किए जा रहे पाठ्यक्रमों में एक कौशल घटक जोड़ना महत्वपूर्ण है।जुलाई
2020 में जारी प्रशिक्षण अंतर्निहित डिग्री प्रदान करने के लिए यूजीसी (UGC) दिशानिर्देशों द्वारा
प्रस्तावित कौशल अंतर्निहित डिग्री अपनाने वाले अधिक विश्वविद्यालयों के लाभ स्नातक और उद्योग
दोनों को प्राप्त होंगे। इससे स्नातक नौकरी के लिए तैयार होंगे और अपने अध्ययन के क्षेत्र में काम
करने के इच्छुक होंगे। उद्योग को विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त रोजगार योग्य स्नातक मिलेंगे।
कर्मचारियों की बढ़ी हुई उत्पादकता कुशल लोगों के लिए उच्च वेतन को उचित ठहराएगी।वहीं फरवरी 2021 को जारी भारत कौशल रिपोर्ट (आईएसआर) के आठवें संस्करण से पता चलता है
कि पेशेवर कौशल समूह की कमी के कारण, भारतीय स्नातकों में से आधे भी रोजगार योग्य नहीं हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में 47.38 प्रतिशत, 2020 में 46.21और 2021 में भारी गिरावट के
साथ केवल 45.9 प्रतिशत स्नातक ही रोजगार योग्य पाए गए।रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां महिला
उम्मीदवारों को पुरुषों की तुलना में अधिक रोजगार योग्य पाया गया, 46.8 प्रतिशत रोजगार योग्य
महिलाएं बनाम 45.91 प्रतिशत रोजगार योग्य पुरुष, वहीं बीटेक (BTech) स्नातक 46.82 प्रतिशत के
साथ सबसे अधिक रोजगार योग्य हैं, इसके बाद एमबीए (MBA) 46.59 प्रतिशत है।हालांकि, महिलाओं
के अधिक रोजगार योग्य होने के बावजूद, पुरुषों को ही सबसे अधिक रोजगार मिलता है। रिपोर्ट के
अनुसार, भारत में औसतन 64 प्रतिशत पेशेवर पुरुष हैं, जबकि भारत में केवल 36 प्रतिशत कार्यबल
महिलाएं हैं।किसी भी क्षेत्र में महिलाओं का उच्चतम प्रतिशत बैंकिंग (Banking) और वित्तीय सेवा
उद्योग में दर्ज किया गया, जो इस उद्योग में रोजगार योग्य प्रतिभा का 46 प्रतिशत तक है।
साथ ही
इंटरनेट कारोबार में महिला कर्मचारियों की संख्या 39 प्रतिशत दर्ज की गई।सबसे अधिक पुरुष
कर्मचारी 79 प्रतिशत के साथ ऑटोमोटिव (Automotive) क्षेत्र से थे, उसके बाद लॉजिस्टिक्स
(Logistics) क्षेत्र में 75 प्रतिशत और फिर कोर और ऊर्जा क्षेत्र में 72 प्रतिशत रोजगार योग्य थे।
यदि राज्य-वार आंकड़ों को देखा जाएं, तो महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के
उम्मीदवारों को उच्चतम रोजगार योग्य प्रतिभा वाले पाए गए हैं, जबकि हैदराबाद, बेंगलुरु और पुणे
शहरों में शीर्ष स्थान पर हैं।महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में नौकरी की मांग में वृद्धि को देखा
गया है। 2021 में, दिल्ली, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश शीर्ष भर्तीकर्ता थे, और 2022 में महाराष्ट्र, उत्तर
प्रदेश और केरल सबसे अधिक भर्ती करने वाले माने गए हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3weAJqO
https://bit.ly/3vOzFLx
चित्र संदर्भ
1 प्रोजेक्ट प्रस्तुतीकरण को दर्शाता एक चित्रण (Center for Architecture)
2. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत सीखते छात्रों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. तकनीकी छात्रों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
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