इस साल अप्रैल के महीने में ही, हमारे जौनपुर शहर का तापमान लगभग 40° सेल्सियस के करीब जा पंहुचा
है! ऐसे में हमारे लिए यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है की, आखिर तापमान में हर वर्ष होने वाली इस
बढ़ोतरी का क्या कारण हो सकता है? इस संदर्भ में विशेषज्ञों का मानना है की, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन
(greenhouse gas emissions), तापमान में वृद्धि के सबसे बड़े कारणों में से एक है! हालांकि यह ग्रीन
हाउस गैसें, आमतौर पर मानव जनित कारणों से उत्पन्न होती हैं, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी
की, जंगली जानवर या मवेशी भी कुछ हद तक ग्रीन हाउस गैसों जैसे मेथेन (CH4) के उत्सर्जन के लिए
जिम्मेदार होते हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को, सभी ज्ञात ग्रीन हाउस गैसों में से सबसे प्रचुर माना जाता है। कार्बन
डाइऑक्साइड (Carbon dioxide) एक रंगहीन और गंधहीन गैस होती है। वातावरण में कार्बन
डाइऑक्साइड जीवाश्म ईंधन को जलाने से निकलती है। कार्बन डाइऑक्साइड के बाद, दूसरी सबसे प्रचुर
मात्रा में ग्रीनहाउस गैस, मीथेन (CH 4 ) होती है। हालांकि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन गैस
की तुलना में बहुत अधिक प्रचुर मात्रा में मौजूद है, लेकिन मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में
लगभग 30 गुना अधिक गर्मी में ठहर सकती है। इसलिए मीथेन पर नज़र रखना जरूरी है।
मीथेन, प्राकृतिक स्रोतों और मानवजनित दोनों स्रोतों से उत्पन्न हो सकती है। मीथेन के प्राकृतिक स्रोतों में
वेटलैंड्स (wetlands), जल निकाय, और कई पौधे खाने वाले जानवर (जैसे हाथी, कंगारू और दीमक!)
शामिल होते हैं, जबकि मानव से संबंधित स्रोतों में प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम और कृषि आधारित श्रेणियां
शामिल होती हैं।
कृषि आधारित स्रोतों में चावल उत्पादन, पशुधन (जानवर) और खाद प्रबंधन शामिल हैं। मीथेन के अन्य
स्रोतों में बायोमास का जलना, कोयला खनन, लैंडफिल और अपशिष्ट जल का उपचार शामिल है। वैश्विक
ग्रीनहाउस गैसों में मुख्य योगदानकर्ताओं में पशुधन स्रोत के अंतर्गत, गोमांस और डेयरी पशु उद्योग
शामिल होता है। पशुधन क्षेत्र द्वारा उत्सर्जित मीथेन से कुल ग्रीनहाउस गैसों का लगभग आधा 50%
हिस्सा निर्मित होता है। मीथेन उत्सर्जक के उदाहरण के तौर पर, गाय दो मुख्य तरीकों, अपने पाचन और
अपने अपशिष्ट के माध्यम से मीथेन उत्पन्न करती हैं। गाय जुगाली करने वाले जानवरों (ruminants) के
एक समूह का हिस्सा हैं। भेड़, बकरी और जिराफ भी जुगाली करने वाले जानवर होते हैं। दरअसल जुगाली
करने वालों के पेट चार अलग-अलग कक्षों में श्रेणीगत होते हैं। पहले कक्ष को रूमेन (rumen) कहा जाता है,
जो सूक्ष्मजीवों के एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र (complex ecosystem) का घर माना जाता है। इन
सूक्ष्मजीवों में बैक्टीरिया, कवक और प्रोटोजोआ (Bacteria, Fungi and Protozoa) शामिल होते हैं। कुछ
बैक्टीरिया और प्रोटोजोआ पौधों से चीनी और स्टार्च (starch) को तोड़ते हैं, जबकि अन्य सेल्यूलोज
(cellulose) को तोड़ते हैं, जो पौधे की कोशिका भित्ति (cell wall) का निर्माण करते हैं। पेट में दूसरा कक्ष
रेटिकुलम (reticulum) होता है। इस स्थान पर मुश्किल से पचने वाले पौधे अर्थात घास जमा होती है। जहां
बार-बार चबाने से भोजन को शारीरिक रूप से तोड़ने में मदद मिलती है। तीसरा कक्ष ओम सम (Omsam)
होता है, जो यंत्रवत् रूप से भोजन को और अधिक तोड़ देता है। पेट में आखिरी और चौथा कक्ष अबोमासूम
(anomalous) होता है, जहाँ भोजन से सभी पोषक तत्व अवशोषित किये जाते हैं।
रूमेन में एंटरिक किण्वन (enteric fermentation) नामक एक महत्वपूर्ण रासायनिक प्रक्रिया होती है,
जिस दौरान बैक्टीरिया जटिल कार्बोहाइड्रेट (complex carbohydrates) को सरल शर्करा (simple
sugars) में तोड़ते हैं। बैक्टीरिया द्वारा आंतों के किण्वन के अंतिम उत्पादों में वाष्पशील फैटी एसिड
(volatile fatty acids) के साथ-साथ कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों का उत्सर्जन होता है।
चुगाली करने वाले जानवर क्या खाते है, इसका उनके द्वारा उत्पादित मीथेन की मात्रा पर बड़ा प्रभाव पड़ता
है। कुछ विशिष्ट प्रकार के भोजन को पचाने से, अन्य खाद्य पदार्थों को पचाने की तुलना में अधिक मीथेन
उत्पन्न होता है। उदाहरण के तौर पर, घास को पचाने में, मकई की तुलना में अधिक मीथेन का उत्पादन
होता है।
आज वैज्ञानिक, गाय के चारे के नए विकल्पों का अध्ययन कर रहे हैं, जो कम मीथेन पैदा कर सकता है।
उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक गायों के भोजन में समुद्री शैवाल मिलाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है
कि समुद्री शैवाल, विशिष्ट एंजाइम को रोक सकते हैं। 2018 के एक प्रयोग से पता चला है कि गाय के
आहार में समुद्री शैवाल को शामिल करने से, उनके मीथेन उत्पादन में आधे 50% तक की कमी आ सकती
है! लेकिन इसके साथ एक समस्या यह है की, गायों को समुद्री शैवाल का नमकीन स्वाद बहुत पसंद नहीं
होता है!
एक वर्ष में, एक गाय एक अल्पकालिक लेकिन शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस, लगभग 220 पाउंड मीथेन का
उत्सर्जन कर सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार अगले कुछ दशकों में, गोमांस और डेयरी की खपत 70% तक
बढ़ जाएगी। अगर गायों की संख्या उम्मीद के मुताबिक बढ़ती है, तो इससे ग्लोबल वार्मिंग (Global
warming) भी निश्चित तौर पर बढ़ेगी।
हालांकि, इस बीच कुछ नए स्टार्टअप (startup), गायों को कम गैस उत्सर्जक बनाने के प्रयास में जुटे हुए हैं!
इस क्रम में, एक कंपनी गाय की नाक के ऊपर, मास्क जैसे यन्त्र के साथ, नाक और मुंह से होने वाले सीधे
उत्सर्जन को सीमित करने का प्रयास कर रही है। दरअसल मवेशी, अधिकांश मीथेन को अपने मुंह और
नाक के माध्यम से बाहर निकालते हैं। अतः इस विचित्र मास्क-डिवाइस पर मौजूद एक सेंसर, मीथेन का
पता लगाता है, और जब गैस का स्तर एक निश्चित सीमा से गुजरता है, तो तकनीक मीथेन को मास्क में
एक तंत्र में खींचती है, जो गैस को ऑक्सीकरण (oxidation) कर देता है, और इसे कम-शक्तिशाली CO2
तथा पानी में बदल देता है।
कंपनी का दावा है की "ऐसा करके, वह प्रभावी रूप से जानवरों के होने वाले उत्सर्जन को उनके मूल के 2% से
कम कर रहे हैं। यह डिजाइन, विकास के अंतिम चरण में है, जिसके 2022 तक बाजार में आने की संभावना
है। इसका लक्ष्य बिना किसी बदलाव या रिचार्ज के किसी जानवर पर चार साल तक काम करना है।
हालांकि घातक, मीथेन से बचने का सबसे बेहतर उपाय तो यही है की, लोगों द्वारा कम बीफ (Beef) का
सेवन किया जाए। गायों के डकार (Burp) से मीथेन की मात्रा को कम किया जाए, और अधिक वनों की
कटाई से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को कम किया जाए।
संदर्भ
https://bit.ly/3vuqAr2
https://bit.ly/3Ku7Gov
https://bit.ly/38F8oCc
चित्र संदर्भ
1 मास्क पहने गाय को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. मीथेन गैस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गाय के पाचन तंत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गाय की भीतरी संरचना को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. गाय के मास्क को दर्शाता एक चित्रण (Indiatimes)
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