हम 21वीं सदी के ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां रोजगार के अवसरों का भारी हनन हो रहा है।हर गुजरते
वक्त के साथ भारत में रोजगार सृजन को लेकर चुनौतियां बढ़ रही हैं, इस पर मुंबई कीएक निजी
शोध फर्म सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट (Centre for Monitoring Indian
Economy Pvt) (CMIE) ने एक रिपोर्ट तैयार की है। 15 से 64 वर्ष की आयु के बीच की
लगभग दो-तिहाई आबादी के बीच रोजगार को लेकर प्रतिस्पर्धा भयंकर हो गयी है। सरकार के द्वारा
निकाले जाने वाले सिमित पदों पर नियमित रूप से लाखों लोग आवेदन करते हैं और अब शीर्ष
इंजीनियरिंग स्कूलों (engineering schools) में प्रवेश व्यावहारिक रूप से अनर्थक होता जा रहा
है। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट (McKinsey Global Institute) की 2020 की एक रिपोर्ट के
अनुसार, युवाओं की संख्या के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए, भारत को 2030 तक कम से कम
90 मिलियन नए गैर-कृषि रोजगार सृजित करने होंगे। इसके लिए 8 फीसदी से 8.5 फीसदी की
वार्षिक जीडीपी (GDP) वृद्धि की आवश्यकता होगी।
सीएमआईई के नए आंकड़ों के अनुसार, योग्यता के अनुसार नौकरी नहीं मिलने से निराश, लाखों
भारतीय, विशेष रूप से महिलाएं, श्रम बल की श्रेणी से बाहर आ रहे हैं।भारतीय अर्थव्यवस्था
दुनिया की तीव्रता से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जिसमें भारतीय युवा श्रमिकों की
विशेष भुमिका है। 2017 से 2022 के बीच, समग्र श्रम भागीदारी दर 46 प्रतिशत से घटकर 40
प्रतिशत हो गई। लगभग 21 मिलियन श्रमिक कार्यबल से गायब हो गए, केवल 9 प्रतिशत योग्य
आबादी को रोजगार मिला है या फिर शेष ने अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार को तलाशना ही
छोड़ दिया।सीएमआईई के अनुसार, अब कानूनी कामकाजी उम्र के 900 मिलियन भारतीयों में से
आधे से अधिक लगभग अमेरिका (America) और रूस (Russia) की कुल जनसंख्या के बराबर,
नौकरी की तलाश ही नहीं करना चाहते हैं।श्रम में गिरावट महामारी से पहले की है। 2016 में,
सरकार द्वारा काले धन पर नियंत्रण कसने हेतु 500-1000 के नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया था,
जिस कारण भारतीय अर्थव्यवस्था गड़बड़ा गयी। उसी समय के आसपास एक राष्ट्रव्यापी विक्रय कर
ने एक और चुनौती पेश की। भारत ने अनौपचारिक से औपचारिक अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित
होने के लिए संघर्ष किया।इन सभी कारकों प्रभाव सीधे रोजगार सृजन पर पड़ा।
बेंगलुरू में सोसाइटी जेनरल जीएससी प्राइवेट (SocieteGenerale GSC Pvt.) के अर्थशास्त्री
कुणाल कुंदु ने कहा, "हतोत्साहित श्रमिकों का बड़ा हिस्सा बताता है कि भारत अपनी युवा आबादी के
लाभांश को पूर्णत: प्राप्त करने में सक्षम नहीं है।" "भारत के मध्यम आय के जाल में रहने की
संभावना है, K-आकार के विकास पथ के साथ असमानता को और बढ़ावा मिलेगा।"भारत अपनी
अर्थव्यवस्था को उदार तो बना रहा है यहां तक कि अमेज़न (Amazon) और एप्पल
(Apple)जैसी कंपनियों (companies) की पसंद भी बन रहा है किंतु अभी भी यह अपने युवा श्रम
का पुर्णत: उपभोग करने में सक्षम नहीं है। यही स्थिति बनी रही तो भारतीय वृद्ध हो सकते हैं,
लेकिन अमीर नहीं।
श्रमबल की भागीदारी में गिरावट के कई अलग-अलग कारण हैं। बेरोजगार भारतीय अक्सर छात्र या
गृहिणी होती हैं। उनमें से कई किराये की आय, घर के बुजुर्ग सदस्यों की पेंशन या सरकारी द्वारा दी
जाने वाली आय पर जीवित रहते हैं। तेजी से तकनीकी परिवर्तन की दुनिया में, अन्य लोग विपणन
योग्य कौशल अर्जित करने में पिछड़ रहे हैं।महिलाएं कई बार सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक कदम
नहीं उठा पाती हैं। हालांकि वे भारत की 49 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं, महिलाएं
अपने आर्थिक उत्पादन में केवल 18 प्रतिशत का योगदान करती हैं, जो वैश्विक औसत का लगभग
आधा है।
सीएमआईई के महेश व्यास ने कहा, "महिलाएं अधिक संख्या में श्रम बल में शामिल नहीं होती हैं
क्योंकि नौकरियां अक्सर उनके प्रति अनुकुल नहीं होती हैं।" "उदाहरण के लिए, पुरुष अपनी नौकरी
स्थल तक पहुंचने के लिए ट्रेनों को बदलने से संकोच नहीं करते हैं। महिलाएं ऐसा करने में संकोच
करती हैं। जो कि बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है।"
सरकार ने इस समस्या का समाधान करने की कोशिश की है, जिसमें महिलाओं के लिए न्यूनतम
विवाह आयु को 21 वर्ष तक बढ़ाने की योजना की घोषणा भी शामिल है। भारतीय स्टेट बैंक की एक
हालिया रिपोर्ट के अनुसार, यह महिलाओं को उच्च शिक्षा और करियर बनाने के लिए मुक्त करके
कार्यबल की भागीदारी में सुधार कर सकता है।
किंतु सांस्कृतिक अपेक्षाओं को बदलना शायद कठिन कार्य हो सकता है।25 वर्ष की शिवानी ठाकुर
बताती हैं कि उन्होंने कॉलेज से स्नातक करने के बाद, मेहंदी कलाकार के रूप में काम करना शुरू
कर किया, वह आगरा शहर के एक पाँच सितारा होटल में मेहमानों के हाथों में मेंहदी लगाकर
लगभग 20,000 रुपये का मासिक वेतन अर्जित कर रही थी।लेकिन देर रात तक काम करने के
कारण, उनके माता-पिता ने उन्हें नौकरी छोड़ने के लिए कह दिया। वे अब उनकी शादी करने की
योजना बना रहे हैं। जिससे उनकी वित्तीय स्वतंत्रता समाप्त हो रही है और उनका जीवन निर्भरता
की ओर बढ़ रहा है।ठाकुर कहती हैं, "मेरी आंखों के सामने मेरा भविष्य बर्बाद किया जा रहा है।"
"मैंने अपने माता-पिता को समझाने की हर कोशिश की, लेकिन कुछ भी काम नहीं कर रहा है।"यह
स्थिति न जाने कितनी भारतीय लड़कियों की है, जो चाहकर भी वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर नहीं
बन पा रही हैं तो वहीं कुछ को योग्यता के अनुसार रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। स्थिति
को सुधारने हेतु भारतीय सरकार को इसे गंभीरता से लेना होगा।
संदर्भ:
https://bit।ly/3Kg0Tyw
https://bit।ly/3MrvMBG
चित्र संदर्भ
1 काम पर जाती भारतीय महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
2. कार्यालय में काम करती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सिलाई करती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
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