वाराणसी मण्डल में स्थित जनपद जौनपुर की सीमा वर्तमान में वाराणसी, गाजीपुर, आजमगढ़, सुलतानपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद एवं संत रविदास नगर (भदोही) से मिलती है। गोमती, वरुणा (बरना), सई, पीली, बसुही तथा मांगर आदि सरिताओं से सिंचित इस जनपद का प्रारम्भिक इतिहास स्पष्ट नहीं है। संभवतः प्रारम्भिक ऐतिहासिक काल में यह भूभाग कोशल और वत्स महाजनपदों में विभाजित था। कालान्तर में यह मगध साम्राज्य का भाग बन गया। इसके बाद जौनपुर का इतिहास मगध साम्राज्य के इतिहास से संयुक्त जान पड़ता है जो मगध के अधीन मौर्य, कुषाण, गुप्त, मौखरी, कलचुरी, पाल, प्रतिहार तदोपरान्त कन्नौज, मुस्लिम तथा शर्की राजवंश के अधीन रहा। जौनपुर जनपद में स्थित वर्तमान कस्बों मछलीशहर व केराकत की पहचान बौद्ध साहित्य में वर्णित मच्छिका सण्ड तथा कीटागिरि से की जाती है, जहां कभी गौतम बुद्ध का आगमन हुआ था। सम्भवतः वाराणसी से श्रावस्ती तथा कौशाम्बी से श्रावस्ती जाने वाले प्राचीन पथ इन स्थलों से होकर जाते थे। मछली शहर तहसील के घिसवा परगना में स्थित कोटवां गांव से कन्नौज नरेश हरि चन्द्रदेव का विक्रम सम्वत् 1253 का एक ताम्रपत्र भी प्राप्त हुआ है। संस्कृत भाषा और देवनागरी लिपि में अंकित इस ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि यह भूभाग कभी गाहड़वाल राजाओं के अधीन भी रहा होगा। जौनपुर के पुरातात्विक अध्ययन का कार्य अभी तक सीमित स्तर पर ही किया गया है। इनमें पं० हीरानन्द, ए० फ्यूहरर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, राजदेव दूबे,” सुरेन्द्र कुमार यादव प्रवीण कुमार मिश्र” पर्सी ब्राउन आदि ने अत्यन्त सीमित स्तर पर यहां के पुरावशेषों का अध्ययन किया है। हाल ही में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा मुगराबादशाहपुर विकास खण्ड में स्थित मादरडीह नामक पुरास्थल का उत्खनन कराया गया जिसके परिणामस्वरूप यहां से लगभग छठी शताब्दी ई.पू. से लेकर पांचवीं शताब्दी ई. तक के पुरावशेष प्रकाश में आये हैं। जौनपुर जनपद के विस्तृत पुरातात्विक अध्ययन के अभाव से इस क्षेत्र के इतिहास पर सम्यक प्रकाश नहीं पड़ता है। इस उद्देश्य से उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग की क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई वाराणसी द्वारा ग्राम स्तरीय पुरातात्विक सर्वेक्षण योजना के अन्तर्गत वर्ष 2011-12 एवं 2012-13 में जनपद जौनपुर की मड़ियाहूं तहसील में स्थित विकास खण्ड मड़ियाहूँ, रामनगर, रामपुर एवं बरसठी के लगभग 600 ग्रामों का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराया गया जिसके परिणाम स्वरूप लगभग 100 से अधिक पुरास्थल व स्मारक प्रकाश में आये हैं। अबतक भारत में कुछ गिने-चुने स्थान पर ही सूर्य मंदिर उपलब्ध हैं जिनमें मोधेरा, कोणार्क व मारतंड मंदिर कश्मीर मुख्य हैं परन्तु प्रदेश पुरातत्व द्वारा किये गये कार्य में जौनपुर सूर्य मंदिरो के गढ के रूप में उभर कर सामने आया है। हलांकी वर्तमान में कुछ एक मंदिर ही अपनी स्थिति में हैं और बाकी के छतिग्रस्त या पूर्णरूप से जमींदोज़ हो चुके हैं। यहां से प्राप्त सूर्य प्रतिमायें मुख्य रूप से प्रतिहार कालीन हैं। सिंगरामऊ के बगौझर नाम के गाँव से प्राप्त सूर्य मंदिर के अवशेष व प्रतिमायें जो की भारत के विशालतम् सूर्य प्रतिमाओं में से एक है को प्रतिहार काल से जोड़ा जाता है। यह प्रतिमा करीब 10वीं से 11वीं शताब्दी के मध्य की है। कमरूद्दीनपुर व धनेथू से भी प्राप्त सूर्य प्रतिमाओं की तिथि 10वीं से 11वीं शताब्दी की हैं जो यह प्रस्तुत करती हैं की हो ना हो उस समय कोई सूर्य भक्त प्रतिहार राजा इस स्थान पर राज करता था जिसने ये सारे सूर्य मंदिरों की स्थापना करवाया था। चित्र में बगौझर से प्राप्त सूर्य प्रतिमा को प्रदर्शित किया गया है। 1. प्रागधारा 24, सुभाष चन्द्र यादव, सम्पादक प्रहलाद कुमार सिंह, राकेश कुमार श्रीवास्तव, राजीव कुमार त्रिवेदी, उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग, 2015 2. इंडियन आर्कीटेक्चर (इस्लामिक पीरियड), पर्सी ब्राउन, तारापुरवाला मुम्बई, 1964
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