भारत ने सं 2000 से 2019 तक अनुमानित 1.2 मिलियन (12 लाख) सर्पदंश से होने वाली मौतों को
देखा है, जो प्रति वर्ष औसतन 58,000 है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of
Medical Research) - नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड पब्लिक हेल्थ
डिपार्ट्मन्ट, महाराष्ट्र (National Institute for Research in Reproductive Health and Public
Health Department, Maharashtra) के एक नए अध्ययन के अनुसार, वास्तविक चिंता का विषय
सांप और सांप के काटने के बारे में अनुचित धारणा, अपर्याप्त जागरूकता और ज्ञान है, जो आदिवासी
समुदाय के लिए जहरीले सांप के काटने के जोखिम में वृद्धि करता है।
सर्पदंश विष (सांप के काटने से
जहर) को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा उच्च प्राथमिकता वाले उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग के रूप में
वर्गीकृत किया गया था।विश्व भर में प्रत्येक वर्ष लगभग 5.4 मिलियन (54 लाख) लोग सांप के
द्वारा काटे जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जहर के 1.8 से 2.7 मिलियन मामले सामने आते
हैं।सर्पदंश के कारण प्रत्येक वर्ष 81,410 और 1,37,880 मौतें होती हैं और लगभग तीन गुना अधिक
अंगच्छेदन और अन्य स्थायी अक्षमताएं होती हैं।ज्यादातर विकासशील देशों में सर्पदंश के शिकार कई
दीर्घकालिक जटिलताओं जैसे विकृति, संकुचन, अंगच्छेदन, दृश्य हानि, गुर्दे की जटिलताओं और
मनोवैज्ञानिक संकट से पीड़ित होते हैं।भारत में सर्पदंश के सबसे अधिक मामले हैं और वैश्विकसर्पदंश से होने वाली मौतों का लगभग 50% हिस्सा भारत में है। किसान, मजदूर, शिकारी, चरवाहे,
सांप बचाने वाले, आदिवासी और प्रवासी आबादी, और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुंच
वाले लोग सर्पदंश के लिए उच्च जोखिम वाले समूह हैं।जागरूकता की कमी, सर्पदंश की रोकथाम के
बारे में अपर्याप्त ज्ञान और समुदाय के साथ-साथ परिधीय स्वास्थ्य कर्मियों के बीच प्राथमिक
चिकित्सा की कमी, जीवन रक्षक उपचार प्राप्त करने में देरी, और सर्पदंश के प्रबंधन के लिए
प्रशिक्षित चिकित्सा अधिकारियों की अनुपलब्धता से अधिक संख्या में मौतें होती हैं।
महाराष्ट्र के पालघर जिले में एक उच्च आदिवासी आबादी वाले आदिवासी समूह में से एक, दहानू
समूह में जून 2016 से अक्टूबर 2018 तक एक प्रतिनिघ्यात्मक अध्ययन किया गया था।अध्ययन
का उद्देश्य दहानू के जनजातीय समूह में सर्पदंश के उपचार के लिए समुदाय के सदस्यों की
जागरूकता, सर्पदंश के ज्ञान, रोकथाम, प्राथमिक चिकित्सा पद्धतियों और स्वास्थ्य देखभाल व्यवहार
को समझना पारंपरिक आस्था चिकित्सकों, सांप बचाव कर्ताओं और स्वास्थ्य कर्मियों के बीच सर्पदंश के
लिए ज्ञान, और प्रबंधन प्रथाओं का आकलन करना था। 2014 में सर्पदंश के कारण मृत्यु दर 4.4%
थी। सामुदायिक हस्तक्षेप, चिकित्सा अधिकारियों और अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के
प्रशिक्षण के बाद, 2017 में मृत्यु दर के मामले धीरे-धीरे घटकर 0.4% हो गए।अध्ययन दहानू में
आदिवासी समुदाय के बीच अपर्याप्त ज्ञान, गलत धारणाओं, रोकथाम और सर्पदंश के प्रबंधन के लिए
अप्रमाणित तरीकों के उपयोग को दर्शाता है। जिससे पता चलता है कि जहरीले सांपों और सर्पदंश की
पहचान के बारे में समुदाय की गलत धारणा थी। अध्ययन में बताए गए कुछ अंधविश्वासों में सांप
देवता में विश्वास, जहर के प्रभाव को कम करने के लिए इमली के बीज या चुंबक का उपयोग
शामिल हैं।दहानू प्रखंड के पचास प्रतिशत चिकित्सा अधिकारियों को क्रेट (Krait) के काटने के लक्षणों
और रसेल वाइपर (Russell viper) के काटने से गुर्दे की जटिलताओं के बारे में सही जानकारी नहीं
थी।अध्ययन समूह के अनुसार, अध्ययन क्षेत्र में किसी भी सरकारी स्वास्थ्य सुविधा में जहरीले और
गैर विषैले सांपों की पहचान, रोकथाम, प्राथमिक उपचार और सर्पदंश के उपचार पर कोई सूचना,
शिक्षा और संचार सामग्री उपलब्ध नहीं थी।
साथ ही भारत में एकमात्र उपलब्ध सर्प विषरोधी देश में पाए जाने वाले अधिकांश घातक सांपों के
काटने के उपचार में अप्रभावी माना जाता है।भारत में उपयोग में आने वाला सर्प विषरोधी, देश में
सबसे अधिक काटने के लिए जिम्मेदार चार सांप की प्रजातियों के जहर से प्राप्त एक पॉलीवैलेंट
(Polyvalent), कम ज्ञात लेकिन चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों जैसे कि क्रेट के जहर को
बेअसर करने में अप्रभावी पाया गया।
सांपों की केवल लगभग 60 प्रजातियां ही घातक रूप से काटने
या गंभीर रुग्णता का कारण बन सकती हैं, लेकिन हम भारत में इन उपेक्षित सांपों की प्रजातियों
द्वारा लगाई गई चिकित्सा समस्या की भयावहता को पूरी तरह से समझने में असमर्थ हैं।वहीं
महत्वपूर्ण दवा की समस्याओं के बावजूद, पॉलीवलेंट विषरोधी कई दशकों पुराने मूल लिपि के माध्यम
से प्राप्त किया जा रहा है।घोड़ों, गायों और बकरियों जैसे जानवरों के शरीर में जहर को छोटी खुराक
में डालकर विषरोधी को बनाया जाता है। इन जानवरों द्वारा जहर के विरुद्ध उत्पादित प्रतिरक्षी को
फिर शुद्धिकरण के लिए एकत्र और संसाधित किया जाता है।विषरोधी को पहली बार 1895 में अल्बर्ट
कैलमेट द्वारा भारतीय कोबरा के विष से बचाव के लिए विकसित किया गया था।भारत में, केवल
घोड़ों का उपयोग प्रतिरक्षी के उत्पादन के लिए किया जाता है और उपयोग किया जाने वाला विष
'बिग फोर' प्रजातियों (स्पेकटेकल्ड कोबरा, क्रेट, रसेल वाइपर और सॉ-स्केल्ड वाइपर) से एकत्र किए
गए विष का एक संयोजन है। निर्माता ज्यादातर जहर तमिलनाडु में इरुला स्नेक कैचर्स इंडस्ट्रियल
कोऑपरेटिव सोसाइटी (Irula Snake Catchers Industrial Cooperative Society) से लेते हैं।एक
विषरोधी विष प्रोटीन (Protein) के साथ बांधता है और उनकी विषाक्तता को बेअसर करता है।
हालांकि, सांपों की प्रत्येक प्रजाति और उप-प्रजाति विष की प्रोटीन संरचना में भिन्नता प्रदर्शित करती
है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/38vhyBb
https://bit.ly/3Lku4SA
https://bit.ly/3ERHLFV
चित्र संदर्भ
1 सांप पकडे सपेरे को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
2. 2004-13 के लिए भारत में सर्पदंश मृत्यु जोखिम का स्थानिक वितरण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. 2001-2014 में देखी गई मौसमीता के विश्लेषण से दैनिक सर्पदंश से होने वाली मौतों की भविष्यवाणी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारतीय सपेरे को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
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