Post Viewership from Post Date to 26-Apr-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
394 44 438

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में खड़ा हो सकता है, बड़ा खाद्य संकट

जौनपुर

 21-04-2022 08:41 AM
जलवायु व ऋतु

धरती पर इंसानों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए, रोटी, कपड़े और मकान को सबसे मूलभूत आवश्यकता माना जाता है। इन सभी में मकान के अभाव में, इंसान कई वर्षों तक जीवित रह सकता है, और कपड़ें न मिलें तब भी वह, आदिमानवों की भांति कुछ भी लपेटकर अपना काम चला सकता है! लेकिन यदि भोजन न मिले, तो धरती पर इंसानों का एक या दो हफ्ते भी जीवित रहना एक चमत्कार बन जायेगा! बच्चे, बूढ़े और बीमार के लिए तो शायद बिना भोजन के दो तीन दिन भी जीवित रहना संघर्षपूर्ण बन जायेगा! हालांकि आपको यह केवल एक कल्पना लगे, लेकिन जितनी तेज़ी से ग्लोबल वार्मिग (global warming) बढ़ रही है, और जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उसे देखकर तो यही प्रतीत होता है की, इस कल्पना को वास्तविकता बनने में अब अधिक समय नहीं रहा!
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) की एक नई मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में, जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादन को भारी नुकसान पहुंच रहा है, और सूखा, खाद्य असुरक्षा का भारी संकट खड़ा हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार सूखे ने तकरीबन 454 मिलियन हेक्टेयर से अधिक फसल भूमि को नष्ट कर दिया है, जो कि वैश्विक कटाई वाले क्षेत्र का तीन-चौथाई हिस्सा माना जाता है। फसल के इस नुकसान के कारण संचयी उत्पादन घाटा $ 166 बिलियन (12.5 लाख करोड़ रुपये) के अनुरूप हो गया है। आईपीसीसी विश्लेषण में पाया गया है कि, यदि पूर्व-औद्योगिक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग 1 डिग्री सेल्सियस से 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ती है तो, भारत में चावल का उत्पादन 10 प्रतिशत के बजाय 30 प्रतिशत घट सकता है! ऐसे में मक्के का उत्पादन 25 फीसदी के बजाय 70 फीसदी तक, स्वाभाविक रूप से घट जाएगा।
आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 1964-1984 के पहले के सूखे से हुए नुकसान की तुलना में (1985- 2007) के दौरान हुई उपज का नुकसान लगभग 7 प्रतिशत अधिक था। उच्च आय वाले देशों में यह घाटा, कम आय वाले देशों की तुलना में लगभग 8 से 11 प्रतिशत अधिक था। सूखे की स्थिति में मक्का के लिए उपज हानि की संभावना 22 प्रतिशत, चावल के लिए नौ प्रतिशत और सोयाबीन के लिए 22 प्रतिशत बढ़ गई। 2006-2016 के बीच सूखे ने उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका, एशिया तथा प्रशांत में खाद्य असुरक्षा और कुपोषण में बहुत बड़ा योगदान दिया। जहाँ इनमें से 36 फीसदी देशों में भयंकर सूखा पड़ने के साथ ही, कुपोषण भी बढ़ा है।
ग्लोबल वार्मिंग से न केवल खाद्य, बल्कि जल क्षेत्रों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिसमें तापमान का 1.5 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़ने का बड़ा जोखिम होगा। खाद्य उत्पादन के अचानक हुए नुकसान और घटी हुई आहार विविधता के कारण भोजन तक पहुंच की कमी ने, कई समुदायों में कुपोषण की समस्या को भी बढ़ा दिया है। यह विशेष रूप से स्वदेशी लोगों, छोटे पैमाने के खाद्य उत्पादकों और कम आय वाले परिवारों के साथ-साथ बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को प्रभावित कर रहा है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, 1901 और 2018 के बीच पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में देश में वार्षिक औसत तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। 15 सबसे गर्म वर्षों में से ग्यारह, अब तक पिछले 15 वर्षों के भीतर ही रहे हैं! 2018 भारत के रिकॉर्ड किए गए इतिहास में छठा सबसे गर्म वर्ष है।
एक अनुमान के मुताबिक पर्यावरण में हानिकारक बदलावों से, प्रमुख फसलों की पैदावार में 25 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। आईपीसीसी (IPCC) की एक हालिया रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि, आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती आबादी की बढ़ती मांगों को देखते हुए, खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। कुछ अनुमानों के अनुसार, प्रभावी अनुकूलन के अभाव में, वैश्विक पैदावार में 2050 तक 30 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।
जो देश पहले से ही संघर्ष, प्रदूषण, वनों की कटाई और अन्य चुनौतियों से जूझ रहे हैं, उन्हें इन प्रभावों का भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन से खाद्य कीमतों में वृद्धि होगी, भोजन की उपलब्धता में कमी आएगी, और पानी तथा उपजाऊ भूमि पर प्रतिस्पर्धा के कारण अस्थिरता और संघर्ष बढ़ेगा। अतः आज पूरी आबादी को खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करने के लिए , शीघ्र ही कुछ गंभीर योजना और प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है। बढ़ते तापमान और अत्यधिक वर्षा जैसे जलवायु कारक उत्पादकता को भी प्रभावित करेंगे। इसके अलावा, वे मिट्टी की उर्वरता, कीटों के प्रकोप की घटनाओं और पानी की उपलब्धता को प्रभावित करेंगे। इसका असर फसलों, पशुपालन के साथ-साथ मत्स्य पालन पर भी निश्चित तौर पर पड़ेगा।
2020, 2050 और 2080 के लिए जलवायु अनुमानों के लिए सिमुलेशन मॉडल (simulation model) से पता चलता है कि, सिंचित क्षेत्रों में चावल की पैदावार में 2050 तक 7% और 2080 तक 10% की कमी आ सकती है। राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल के शोध में पाया गया है कि, गर्मी के तनाव का गायों और भैंसों के प्रजनन गुणों और उनकी प्रजनन क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। एनआईसीआरए (NICRA) ने अनुमान लगाया है कि, भारत के मैदानी इलाकों में चावल और गेहूं, पश्चिम बंगाल में ज्वार और आलू तथा दक्षिणी पठार में ज्वार, आलू और मक्का की उत्पादकता में भारी कमी आने की संभावना है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सोयाबीन, मूंगफली, चना और आलू की उत्पादकता बढ़ सकती है। इसी तरह तापमान और वर्षा के पैटर्न में वृद्धि से हिमाचल प्रदेश में सेब की उत्पादकता बढ़ सकती है, साथ ही उत्तर भारत में कपास की उपज भी कम हो सकती है।
सरकार ने कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दूर करने के लिए शमन रणनीतियां तैयार करने के कुछ प्रयास किए हैं। निक्रा परियोजना (nicra project) के तहत, आईसीएआर (ICAR) ने विभिन्न स्थानों से जर्म-प्लाज्म (germplasm) एकत्र किया है। इन्हें गर्मी और सूखा-सहिष्णु गेहूं और दालें और बाढ़- सहिष्णु चावल विकसित करने के लिए प्रजनन कार्यक्रमों के लिए स्रोत सामग्री के रूप में उपयोग किया जाएगा। आज वैज्ञानिक विभिन्न फसलों की ऐसी किस्मों के प्रजनन के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, जो जलवायु के अनुकूल हों।
कृषि वानिकी (फसलों या चरागाहों में पेड़ों की खेती और संरक्षण को शामिल करना) खेतों पर अतिरिक्त "कार्बन सिंक" बनाकर उत्सर्जन में कटौती कर सकती है। जलवायु परिवर्तन के सबसे विनाशकारी प्रभावों से बचने और पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, हमें अपनी कृषि प्रणालियों को मौलिक रूप से बदलना होगा। साथ ही दुनिया को खाद्य हानि और अपशिष्ट को कम करना होगा, जो विश्व स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 8% है।

संदर्भ
https://bit.ly/37Zazjw
https://bit.ly/3KS8zYU
https://bit.ly/3Ovfd9U

चित्र संदर्भ
1. हाथ में मक्का पकडे किसान को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. अल्पपोषण से पीड़ित जनसंख्या के प्रतिशत के आधार पर देशों की सूची को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ग्लोबल वार्मिंग की प्रगति और सीमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अपने पुत्र को भोजन कराते पिता को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM


  • क्या ऊन का वेस्ट बेकार है या इसमें छिपा है कुछ खास ?
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:17 AM


  • डिस्क अस्थिरता सिद्धांत करता है, बृहस्पति जैसे विशाल ग्रहों के निर्माण का खुलासा
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:25 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id