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जूट को भारतीय उपमहाद्वीप में कम से कम 5,000 वर्षों से कपड़ा प्रयोजनों के लिए उगाया जाता
रहा है। इस पौधे के रेशे के उत्पादन का सबसे पहला प्रमाण लगभग 3000 ईसा पूर्व का है, लेकिन
यह पूरी तरह से संभव है कि सिंधु घाटी सभ्यता या पूर्ववर्ती समाजों ने भी इस तिथि से पहले रेशा
के उद्देश्यों के लिए जूट की खेती की हो।यद्यपि कपास का उत्पादन भारत में भी लोकप्रिय था, फिर
भी जूट ने यूरोपीय (European) उपनिवेशवाद के प्रभाव से पहले के सहस्राब्दियों तक भारतीय समाज
के विकास में अधिक केंद्रीय भूमिका निभाई। भारत में ब्रिटिश शासन के आगमन के साथ, जूट एक
नकदी फसल बन गया जिसने ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रयासों को बढ़ावा देने में मदद की।जबकि
स्कॉटलैंड (Scotland) में जूट भी कई शताब्दियों तक उगाया गया था, बंगाल और भारत के अन्य
हिस्सों में जूट का उत्पादन जल्दी से स्कॉटिश उत्पादन से आगे निकल गया।
जूट उत्पादन 19वीं
शताब्दी के अंत तक ब्रिटिश साम्राज्य की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना रहा और भारतीयस्वतंत्रता के बाद, जूट इस क्षेत्र का एक प्रमुख निर्यात उत्पाद बना रहा।संश्लेषिक रेशा के आगमन के
साथ, हालांकि, 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जूट का उत्पादन धीमा हो गया। फिर 21 वीं शताब्दी
की शुरुआत तक इस पौधे के रेशा का उत्पादन फिर से भारतीय उपमहाद्वीप के क्षेत्र, बंगाल,
बांग्लादेश और अन्य देशों में एक प्रमुख आर्थिक कारक बन गया।
जूट एक लंबी प्राकृतिक रेशा है जो कोरकोरस जीनस (Corchorus genus) के पौधों से उत्पन्न होती
है और पौधे के कोशिका रस और लिग्निन (Lignin) से बने होते हैं। इन रेशाओं का उपयोग विभिन्न
रूपों में किया जाता है,जिसमें जैवनिम्नीकरणीय पैकिंग सामग्री का निर्माण शामिल है, जैसे कि बोरी।
वैश्विक खपत और उत्पादन के मामले में कपास के बाद केवल जूट को दुनिया में दूसरे सबसे
महत्वपूर्ण वनस्पति रेशा के रूप में मान्यता प्राप्त है।भारत विश्व का सबसे बड़ा जूट उत्पादक देश है,
जिसका वार्षिक उत्पादन 1.968 मिलियन टन से अधिक होने का अनुमान है।फसल की खेती की
प्रक्रिया में सुधार के साथ-साथ जूट की खेती में प्रौद्योगिकी के उपयोग की वजह से ही भारत जूट के
वैश्विक उत्पादन में प्रमुख स्थान बनाए हुए है। भारत में उत्पादित अधिकांश जूट की खपत आंतरिक
रूप से होती है। मान्यता प्राप्त पैकेजिंग (Packaging) सामग्री के संबंध में भारत में सख्त कानून
देश में जूट की अधिक मांग का एक प्राथमिक कारण है।2011 में, भारत द्वारा जूट की घरेलू मांग
को पूरा करने के लिए 337,000 टन से अधिक जूट और जूट उत्पादों का आयात किया गया था।
वहीं देश के कुल जूट उत्पादन का 50% हिस्सेदार पश्चिम बंगाल है। देश के अन्य प्रमुख जूट
उत्पादक क्षेत्रों में बिहार, उत्तर प्रदेश, मेघालय, असम और उड़ीसा शामिल हैं।
वहीं बांग्लादेश (Bangladesh)विश्व में जूट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है,जिसका वार्षिक उत्पादन
1.349 मिलियन टन होने का अनुमान है। ये पहले विश्व में शीर्ष जूट उत्पादक था, लेकिन बांग्लादेश
की जूट की खेती में तकनीकी प्रगति की कमी ने उत्पादन को स्थिर कर दिया, जिससे भारत अब
शीर्ष में है। फिर भी, विश्व में बांग्लादेश जूट रेशा का सबसे बड़ा निर्यातक बना हुआ है और वैश्विक
जूट निर्यात में इसकी 70% की हिस्सेदारी है। कई सदियों से घरेलू खपत के लिए बांग्लादेश में जूट
का उत्पादन किया जाता रहा है, लेकिन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company)
की स्थापना के बाद यह फसल एक प्रमुख निर्यात वस्तु बन गई।बांग्लादेश में प्रमुख जूट उत्पादक
क्षेत्रों में तंगेल (Tangail), ढाका (Dhaka), जेसोर (Jessore), जमालपुर (Jamalpur), बोगरा
(Bogra) और फरीदपुर (Faridpur) शामिल हैं।
बांग्लादेश में जूट की खेती का कुल क्षेत्रफल लगभग
559,838 हेक्टेयर है। वहीं देश भर के जूट किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज बांग्लादेशी जूट
अनुसंधान संस्थान (एक राज्य के स्वामित्व वाला संस्थान है) द्वारा प्रदान किया जाता है। साथ ही
कुछ अन्य देशों में भी जूट उत्पादन का महत्वपूर्ण स्तर है। इन देशों में चीन (China) भी शामिल है,
जिसका सालाना जूट उत्पादन करीब 29,628 टन होने का अनुमान है। चीन दुनिया के सबसे बड़े
उपभोक्ताओं और प्राकृतिक रेशा के आयातकों में से एक है। अन्य जूट उत्पादकों में उज्बेकिस्तान
(Uzbekistan - 20,000 टन), नेपाल (Nepal - 14,890 टन) और दक्षिण सूडान (Sudan- 3,300
टन) शामिल हैं।
जूट दुनिया में सबसे आम प्राकृतिक रेशों में से एक है और अपने एंटीस्टेटिक (Antistatic) और
तापावरोधन गुणों के साथ-साथ अपनी कम तापीय वाहकता के लिए प्रसिद्ध है। जूट में कम प्रसारण
क्षमता और उच्च तन्यता मजबूती भी होती है, जो जूट से बनी पैकेजिंग सामग्री को सांस लेने योग्य
बनाती है और इसलिए कृषि सामग्रियों की पैकेजिंग के लिए यह उपयुक्त होती है। बढ़ते प्रदूषण के
चलते विश्व भर के कई देशों ने प्लास्टिक (Plastic) पैकेजिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे जूट
अपनी जैव-अवक्रमणीय प्रकृति के कारण एक लोकप्रिय विकल्प बन गया है। वहीं जूट का उपयोग
बोरी, हस्तशिल्प, कपड़ा, परिधान और साज-सामान सहित विभिन्न उत्पादों के निर्माण में किया जाता
है। एक्सपोर्ट जीनियस (Export Genius) की बाजार अनुसंधान विवरण के अनुसार, चीन दुनिया में जूट के
उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। साथ ही घाना (Ghana) जूट की बोरी का सबसे बड़ा
आयातक देश है और देश ने 2018 में 14.3% का आयात किया था। जबकि भारत जूट की बोरी का
शीर्ष निर्यातक देश है और देश ने 2018 में 43.7% का निर्यात किया था। 2018 में वैश्विक स्तर पर
जूट के कपड़े का निर्यात 856.1 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि आयात में 788.2 मिलियन
अमेरिकी डॉलर दर्ज किए गए।जर्मनी (Germany)विश्व में शीर्ष जूट कपड़े आयातक देश है और देश
द्वारा कुल आयात में 14.9% हिस्सेदारी रही थी।
जूट एक अपेक्षाकृत मोटा रेशा है, जिसका अर्थ है कि यह परिधान अनुप्रयोगों के लिए अच्छी तरह से
अनुकूल नहीं है जब तक कि यह एक व्यापक उत्पादन प्रक्रिया से न गुजरे। इसके बजाय, जूट का
खुरदरापन और स्थायित्व इसे औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए आदर्श बनाता है। जबकि जूट पानी को
आसानी से अवशोषित कर लेता है, यह जल्दी सूख भी जाता है, और यह घर्षण और दाग के लिए
अत्यधिक प्रतिरोधी है। हालांकि, पौधा-आधारित होने के कारण, जूट का अपेक्षाकृत अवक्रमण तेज़ी से
होता है, इसलिए इसको लंबे समय तक बाहरी अनुप्रयोगों के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता है।
अधिकांश प्रकार के जूट रेशा हल्के भूरे रंग के होते हैं, लेकिन इनमें कुछ धूमिल सफ़ेद किस्में भी
मौजूद होती हैं। सामान्यतःजूट के सफेद रूपों को भूरे रंग के रूपों से हलका माना जाता है, लेकिन
सफेद जूट परिधान अनुप्रयोगों के लिए अधिक उपयोगी हो सकता है।
चूंकि यह मोटा और लचीला होता
है, जूट रेशा का किसी वस्तु निर्माण में उपयोग करना आम तौर पर आसान होता है, और चूंकि यह
रेशा अपनी असंसाधित अवस्था में लंबी और चमकदार होती है, इसलिए जूट के धागे का निर्माण
अपेक्षाकृत आसान होता है। जूट अत्यधिक हलका होने की वजह से पहनने में भी काफी आरामदायक
है, लेकिन यह स्वाभाविक रूप से अधिक गर्मी को अवशोषित नहीं करता है, जो इसे गर्म और आर्द्र
जलवायु के लिए एक आदर्श परिधान सामग्री बनाता है।अब बड़ा सवाल यह है कि जूट का कपड़ा कैसे
बनता है?
1. परिपक्व जूट के डंठल की हाथ से कटाई की जाती है।
2. इसके बाद डंठल से पत्तों को हटाया जाता है।
3. जूट के डंठल के तने और त्वचा से गैर-रेशेदार सामग्री को हटाने के लिए अपगलन (Retting) नामक
एक प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है।
4. डंठल के तने और त्वचा से गैर-रेशेदार सामग्री को हटाने के बाद, लंबे रेशमी रेशों को अलग किया
जाता और उन्हें लंबी रस्सी में सुलझाया जाता है।
5. फिर इन सुलझाए गए रेशों को सूत में काता जा सकता है।जबकि जूट के धागों को स्वचालित मशीनों
के साथ बनाना तकनीकी रूप से संभव है, लेकिन अधिकांश जूट उत्पादक समुदाय अभी भी इस
प्रक्रिया के लिए कताई के पहियों का उपयोग करना पसंद करते हैं।
6. जूट के रेशे को धागों में बनाने के बाद,इसे रंगने के लिए, इसे पानी प्रतिरोधक बनाने, या इसे आग
प्रतिरोधी बनाने के लिए विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं का उपयोग किया जा सकता है।
7. फिर, जूट रेशों के तैयार धागों को कपड़ा उत्पादन सुविधाओं में भेज दिया जाता है,जिन्हें परिधान या
औद्योगिक वस्त्रों में बुना जाता है।
वहीं जूट परिधान को अधिक आरामदायक बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की नरमी तकनीकों का
उपयोग किया जाता है। कुछ निर्माता जूट के धागे की खुरदरापन को कम करने के लिए रासायनिक
तकनीकों का उपयोग करते हैं। औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाले जूट धागों को
आमतौर पर उसकी मूल स्थिति में तैयार किया जा सकता है।जैसा कि जूट का पर्यावरण पर समग्र
सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।जूट का उपयोग करने से हम प्रकृति को भी काफी लाभ पहुंचा रहे हैं।जूट
के सभी निपटान के तरीके, जलाने सहित, बहुत कम पर्यावरणीय प्रभाव को उत्पन्न करते हैं। जबकि
कृत्रिम रेशा हवा में जहरीले रसायनों को छोड़ते हैं या सदियों तक पर्यावरण में रहते हैं, जब उन्हें
भरावक्षेत्र में छोड़ दिया जाता है, जूट और अन्य प्राकृतिक रेशा तेजी से आसपास के पारिस्थितिक तंत्र
में पुन: अवशोषित हो जाते हैं चाहे उनका ठीक से निपटान किया जाए या नहीं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3JIvaXp
https://bit.ly/3qFGqw1
https://bit.ly/3ICjqEw
चित्र संदर्भ
1. जूट से निर्मित छोटे पैकेट को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. जूट के रेशों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. साराघाट में नावों से जूट की गांठें स्थानांतरित करते कुलीयों को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
4. जूट की टोपी को दर्शाता एक चित्रण (PIXNIO)
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