जौनपुर एक कृषक जिला है यहाँ की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा भाग यहाँ की कृषी पर आधारित है। खेती व भोज्य पदार्थ का बड़ा आधार यहाँ के मवेशी हैं। खेत की जुताई से लेकर दूध-दही व आग के लिये ऊपल बनाने का गोबर तक इन्ही मवेशियों से आता है। मवेशी या स्तनपायी जीव पृथ्वी पर कब आये, मानव से पहले या बाद में आदि महत्वपूर्ण प्रश्न हैं यह जानने के लिये हमें पृथ्वी के तृतियक काल का सफर करना पड़ेगा। तृतियकाल काल जीववैज्ञानिक दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण काल था, इसकाल मे कई प्रकार के जीवों का जन्म हुआ, परन्तु देखने वाली बिन्दु यह है की जो जीव (अमोनाईट) पिछले 2 अरब साल से पृथ्वी पर मौजूद था पूर्ण रूप से इसकाल मे अनुपस्थित पाया जाता है। तृतियक काल स्तनपायी जीवों का काल रहा है, जिसका सबसे बड़ा कारण यह था की इस काल मे बड़े पैमाने पर स्तनपायी जीवों का विकास हुआ। शारीरिक रूप से ही नही अपितु जीवों मे दिमाग का विकास भी हुआ जो की जीवों को सोचने मे समर्थ बनाया तथा निर्णय लेने मे सक्षम किया। इस काल के शुरुआती समय मे विकसित होने वाले स्तनपायीयों मे कंगारू, एकिडना, ग्लाइप्टोडॉन आदि, एकिडना अंडे देती थी परन्तु इनकी शारीरिक संरचना स्तनपायियों के समान थी। परतदार चींटी-खाने वाली जानवरों के ऊपर शरीश्रृपों की तरह परत थी। यह दर्शाता है की जीवों का विकास तीव्रगती से होना शुरू हो चुका था। आदि नूतनकाल जो की तृतियक काल से ही सम्बन्धित है, मे पशु जगत में कई और बदलाव देखने को मिले तथा इस काल मे बड़े स्तनपायियों का आविर्भाव हुआ, चार-नाखून वाले घोड़ो का आगमन इसी काल मे हुआ जिसके साक्ष्य अमेरिका से प्राप्त हुये हैं। गैंडों का आविर्भाव इस काल तक हो चुका था, हाँथियों के शुरुआती वंशजों का आविर्भाव का भी काल यही था। बलूचिथेरियम जो की बलूचीस्तान से पाया गया था, जो की गैंडों के वंश मे ही आता है के जीवाश्म की (1911) प्राप्ति ने एक नया आयाम बनाया इनका शारीरिक दृष्टिकोंण से ये 5.5 मीटर लम्बे व 10 मीटर चौड़े होते थे जो की अत्यन्त ही वृहदाकार होने का प्रमाण देते हैं। इस काल मे अन्य कई प्रकार के जीवों का जन्म हुआ जो कि इस बात के समर्थक हैं की तृतियक काल स्तनपायियों के विकास के लिये जाना जाता है। मछलियों व पंछियों के विकास की दृष्टिकोंण से भी यह काल महत्वपूर्ण था। इस काल ने मवेशियों के उद्भव द्वार खोल दिये, इस काल के बाद धीरे-धीरे इन स्तनपायियों का विकास हुआ और करीब पाषाणकाल के अन्त होने के समय से ही स्तनपायियों मुख्यतः गाय, भैंस आदि को पालना शुरू कर दिया। सिंधु सभ्यता के विभिन्न सील से इस तथ्य की पुष्टि हो जाती है और मेहरगढ जो की नवपाषाण काल से सम्बन्धित है से कृषी के अवशेष दिखाई देता है। सिंधु सभ्यता से प्राप्त अवशेषों में विभिन्न मृणमूर्तियों की प्राप्ति पशुपालन के इतिहास पर एक महत्वपूर्ण प्रकाश डालती है। पशुपति सील भी मवेशियों की महत्ता को प्रदर्शित करती है, दायमाबाद से प्राप्त कांस्य प्रतिमायें भी मवेशी पालन को समग्र रूप से प्रस्तुत करती हैं। अब यदि जौनपुर के पशुधन पर प्रकाश डाला जाये तो प्रमुख तथ्य सामने आते हैं- गाय की संख्या 1 लाख 87 हज़ार, 2 लाख 5 हज़ार भैंस तथा 2 लाख 16 हज़ार भेड़- बकरी व सुअर| जिले मे प्रतिदिन 5 मीट्रिक लीटर दुग्ध का उत्पाद होता है| जिले मे 41 पशु चिकित्सालय, 69 गर्भधानी केंद्र, 58 दूध संस्थायें हैं तथा दुग्ध शीत घर की व्यवस्था 25000 लीटर प्रतिदिन की है| सम्पूर्ण पशुधन से करीब 1 लाख व्यक्ति को रोजगार लाभान्वित होता है| 1. इवोल्यूशन ऑफ़ लाईफ- एम. एस. रन्धावा, जगजीत सिंह, ए.के. डे, विश्नू मित्तरे 2. इंडिका- प्रणय लाल 3. सी डैप जौनपुर 4. डी. पी. आई. एस. जौनपुर 5. राइज़ ऑफ़ सिविलाइजेशन इन इंडिया एण्ड पाकिस्तान- ब्रिजेट एण्ड रेमंड एलचिन, कैम्ब्रिज
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