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क्यों धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है विशालकाय कछुए की विभिन्न प्रजातियाँ

जौनपुर

 03-03-2022 10:01 AM
शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

मेगालोचेली एटलस (Megalochelys atlas), जिसे पहले कोलोसोचेली एटलस (Colossochelys atlas), जियोचेलोन एटलस (Geochelone atlas), या टेस्टुडो एटलस (Testudo atlas) के रूप में जाना जाता थामध्यनूतन युग(Miocene) सेअत्यंतनूतन युग (Pleistocene) के दौरान क्रिप्टोडायर(Cryptodire) कछुएकी एक विलुप्त प्रजाति है।इसे 1837 की शुरुआत में मेगालोचेलीज़ सिवलेंसिस(बाद में इसे हटा दिया गया) के रूप में भी उल्लिखित किया गया था। ये शुष्क हिमनद काल के दौरान पश्चिमी भारत और पाकिस्तान (Pakistan) (संभवत: दक्षिण और पूर्वी यूरोप (Europe) के पश्चिम तक भी) से लेकर इंडोनेशिया (Indonesia) में सुलावेसी (Sulawesi) और तिमोर (Timor)के पूर्व तक पाए जाते थे। इस कछुए की प्रजाति के जीवाश्म नमूनों को शिवालिक जीवाश्म पार्क (Shivalik Fossil Park) में भी देखा जा सकताहै।वे अपने विशाल आकार के लिए विख्यात हैं, जो किसी भी ज्ञात कछुओं की प्रजाति में सबसे बड़ा है, मेगालोचेली एटलस में अधिकतम पृष्ठवर्म कीलंबाई 2 मीटर (6.5 फीट - जावा द्वीप, इंडोनेशिया से प्रारंभिक अत्यंतनूतन युगके प्राप्त एक नमूने पर आधारित।) से अधिक है। इस कछुए की प्रजाति के अनुमानित वजनों में काफी भिन्नता को देखा गया है, जिसमें सबसे अधिक अनुमान इसके 4,000 किलोग्राम तक होने का है।हालांकि, कंकाल के विशाल-काय विस्थापन, या दो- आयामी कंकाल चित्रों के आधार पर अनुमानों के आधार पर इसके वजन को इंगित करता है, जो बताता है कि मेगालोचेली एटलस संभवतः द्रव्यमान में 1,000 से 2,000 किलोग्राम के करीब था।वहीं चाकमय कल्प के एकमात्र बड़े कछुए समुद्री आर्केलॉन (Archelon) और प्रोटोस्टेगा (Protostega) थे और दक्षिण अमेरिकी (American) में देर के मध्यनूतन युग के जलीय, मीठे पानी के स्टुपेंडेमीज़ (Stupendemys) थे। वहीं एक विशाल कछुआ,मध्यनूतन से अत्यंतनूतन युगसे यूरोप काटाइटेनोचेलॉन (Titanochelon) के खोल की लंबाई 2 मीटर (6.6 फीट) तक थी।आधुनिक गैलापागोस (Galapagos) कछुए की तरह, मेगालोचेली एटलस का वजन चार हाथी जैसे पैरों द्वारा संभाला जाता था।साथ ही ऐसा माना जाता है कि इन क्षेत्रों में होमो इरेक्टस (Homo erectus - होमो इरेक्टस अत्यंतनूतन युग से पुरातन मानव की विलुप्त प्रजाति है, ये लगभग 2 मिलियन वर्ष पहले मौजूद थे।) के आगमन के साथ-साथ उनके द्वारा किए गए शोषण के कारण कछुए की इस प्रजाति के विलुप्त होने का अत्यधिक संदेह है। साथ ही एम. ताकाई के नेतृत्व में जापान (Japan) और म्यांमार (Myanmar) के संयुक्त पैलियोन्टोलॉजिकल (Paleontological)खोज-यात्रा ने 2003 से निओजीन (Neogene) से इस वंश के प्रचुर मात्रा में जीवाश्मों का पता लगाया है।मेगालोचेली के सभी खोजे गए जीवाश्म निचले इरावदी शयनों से खराब संरक्षण में पाई गई थी, सिवाय एक लगभग पूर्ण खोल को छोड़कर।मध्यम से बड़े आकार के टेस्टुडिनिड्स का उपयोग करके खंडित सामग्री से खोल की लंबाई का अनुमान लगाया गया था।वहीं शोध से पता चलता है कि वे स्टेगोडन (Stegodon) जैसे स्थलीय स्तनधारियों से जुड़े हुए हैं। वहीं एक पूर्ण खोल लगभग 180 सेंटीमीटर लंबा है, हालांकि यह मेगालोचेली का एक अपेक्षाकृत युवा पुरुष कछुए के होने की शंका है, जो पतले एपिप्लास्ट्रल आकारिकी (Epiplastral morphology) पर आधारित है।दूसरी ओर, सबसे बड़े प्रगंडिका, जिसकी मूल लंबाई 75 सेमी अनुमानित है, से पता चलता है कि इसका खोल लगभग 270 सेमी लंबा था। 1835 में, चार्ल्स डार्विन पहली बार गैलापागोस द्वीपसमूह पर गए थे, वहाँ से उन्होंने सैकड़ों नमूनों को इंग्लैंड (England) भेजा और साथ-साथ, डार्विन द्वारा द्वीपों में खोज की गई और स्थानीय प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने का आनंद लिया गया।यकीनन उन सबसे शानदार जानवरों में से एक जिस पर उनकी नज़र पड़ी, वे थे विशालकाय कछुए। अपने प्राणी और भूवैज्ञानिक लेखन, द वॉयज ऑफ द बीगल (Voyage of the Beagle) में, उन्होंने इन विशाल कछुओं का काफी जगह उल्लेख किया है। ये विशालकाय कछुए काफी बड़े होते हैं।गैलापागोस द्वीपसमूह के कई द्वीपों पर विशाल कछुओं की 13 अलग-अलग प्रजातियां थीं, जिनमें से कम से कम 2 हाल ही में विलुप्त हो गई थीं।सबसे अद्भुत बात यह है कि विशाल कछुआ केवल गैलापागोस द्वीपसमूह तक ही सीमित नहीं है। एक अन्य प्रजाति हिंद महासागर में एल्डब्रा एटोल पर रहती है: एल्डब्रा विशाल कछुआ (Aldabra giant tortoise)। कुछ सौ साल पहले तक हिंद महासागर में इंसानों के हस्तक्षेप करने से पहले कई द्वीपों पर विशालकाय कछुए रहते थे।एक समय ऐसा था कि वहां कछुए की कई प्रजातियाँ थीं जो धीरे-धीरे विलुप्त होने लगी। वे लगभग 100,000 साल पहले लुप्त होने लगे थे और लगभग 10,000 साल पहले अधिकांश विलुप्त हो गए थे। ऐसा अनुमान है कि उनके विलुप्त होने के पीछे का कारण द्विपाद वानर की एक प्रजाति थी। इनके बड़े आकार के वजह से ये इंसानों और द्विपाद वानरों के लिए एक उपयुक्त भोजन थे, तथा इनके आकार की वजह से वे इन्हें काफी आसानी से पकड़ने में सक्षम थे।वहीं मेगालोचेली एटलस अब तक का सबसे बड़ा विशालकाय कछुआ था। ये विशालकाय कछुए छोटे द्वीपों पर नहीं रहते थे; वे एक महाद्वीप पर रहते थे। तथा बड़े भूभागों पर भी जानवर काफी बड़े हो सकते हैं।इनमें से कुछ जानवरों के लिए विशालकाय आकार में बढ़ जाना काफी आम था, जैसे मैमथ (Mammoth) और जाइगोलोफोडन (Zygolophodon) जैसे विशालकाय जीव भी बड़े आकार में बढ़ गए थे। लेकिन इन कछुओं के इतने बड़े होने का कोई विशेष कारण नहीं है, सिवाय इसके कि वे इन विशालकाय आकार तक बढ़ सकते थे।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3K3G8q7
https://bit.ly/3Is5qOi
https://bit.ly/3K7Mx3Q
https://bit.ly/3taX9YI

चित्र संदर्भ   
1. मेगालोचेली ("महान कछुआ") क्रिप्टोडिरान कछुओं का एक विलुप्त जीन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. विशालकाय कछुए को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. एल्डब्रा विशाल कछुए (Aldabra giant tortoise) को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. हिमयुग: खोया साम्राज्य - बर्मिंघम बॉटनिकल गार्डन - मेगालोचेली एटलस को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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