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जब भी हम ऐतिहासिक धरोहरों अथवा विरासतों के बारे में चर्चा करते हैं तो, आमतौर पर चर्चा के
विषय ऐतिहासिक स्मारकों, प्रसिद्ध लोगों की मूर्तियों या स्थापत्य मूल्य की इमारतों तक ही
सीमित होते हैं। लेकिन भारत, विरासतों के इस गौरव को एक कदम और ऊपर ले गया है, और
संभवतः आपको जानकर आश्चर्य होगा की हमारे जौनपुर (उत्तरप्रदेश) सहित देश के विभिन्न
हिस्सों में, मानव जीवन के संदर्भ में पेड़ों की महत्ता को ध्यान में रखते हुए हरे-भरे जीवित पेड़ों को
भी सांस्कृतिक अथवा ऐतिहासिक विरासतों का दर्जा दिया जा रहा है। यह जीवित विरासत
विभिन्न स्थानों जैसे सड़कों के किनारे, पार्कों में, जल निकायों के पास, जंगली पेड़ों के बीच, धार्मिक
स्थानों में और यहां तक कि निजी संपत्ति में भी पाए जा सकते है।
विभिन्न मानदंडों के आधार पर पेड़ों को विरासत का दर्जा दिया जाता हैं। यह भौतिक और
अभौतिक मानदंड या गुण, वृक्ष को विशिष्ट बनाते हैं। भौतिक गुणों में वृक्ष की आयु, रूप या आकार
हो सकते हैं। इसके अलावा भौतिक कारणों में यह हो सकता है कि पेड़ एक दुर्लभ प्रजाति का हो या
उस पेड़ की प्रजाति के विल्पुत होने का खतरा हों। वहीं गैर-भौतिक मानदंड (non-material
standards) सांस्कृतिक और सौंदर्य संबंधी पहलुओं से संबंधित होते हैं। जैसे हो सकता है कि पेड़
का किसी व्यक्ति, घटना या स्थान के साथ ऐतिहासिक या सांस्कृतिक जुड़ाव रखता हो। इसमें
मिथक या लोककथाओं से जुड़ा पेड़ भी हो सकता है।
एयरड (Aird "2005") द्वारा विरासत वृक्ष की एक व्यापक परिभाषा के अनुसार "विरासत पेड़
इसके रूप, आकार, सुंदरता, आयु, रंग, दुर्लभता, आनुवंशिक संविधान, या अन्य विशिष्ट
विशेषताओं के कारण एक उल्लेखनीय नमूना होता है। किसी वृक्ष को विरासत वृक्ष मानने के लिए
उसके सौंदर्य, वनस्पति, बागवानी, पारिस्थितिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्यों
को भी ध्यान में रखा जाता है। किसी ऐतिहासिक व्यक्ति, स्थान, घटना या काल से जुड़े नमूने को
भी हेरिटेज ट्री (heritage tree) माना जाता है।
विभिन्न संस्थाओं और सरकार द्वारा इनके संरक्षण के लिए विशेष तौर पर पहल की जाती हैं, और
कुछ सुझाव भी दिए जाते हैं, जैसे:
१.विरासत वृक्षों के संरक्षण के लिए हर जिले में एक विरासत वृक्ष संरक्षण समिति (heritage tree
protection committee) की स्थापना की जा सकती है।
२.समिति के अध्यक्ष जिला कलेक्टर (District Collector) हो सकते हैं और अन्य सदस्यों में
जिला वन अधिकारी, संयुक्त आयुक्त (एचआर और सीई), कृषि के संयुक्त निदेशक, बागवानी के
संयुक्त निदेशक, मंडल अभियंता (पीडब्ल्यूडी), राजस्व मंडल अधिकारी, तहसीलदार को शामिल
किया जा सकता हैं।
3.समिति समय-समय पर बैठक करने और पेड़ों का निरीक्षण करने के अलावा, पूरे राज्य में वृक्षों के
आवरण को बढ़ाने के लिए जनता के बीच जागरूकता पैदा करने में मदद कर सकती है।
४. चूंकि राज्य में अधिकांश विरासत के पेड़ मंदिर परिसर में पाए जाते हैं, इसलिए हिंदू धार्मिक और
धर्मार्थ बंदोबस्ती (एचआर और सीई) विभाग के अधिकारियों को पेड़ों की सुरक्षा के बारे में प्रशिक्षित
किया जा सकता है।
ऐसे ही कई अन्य उपाय भीं हैं, जिन्हे लागू करके किसी न किसी मायने में दुर्लभ, इन वृक्षों की रक्षा
की जा सकती हैं।
विरासत के पेड़ दुनिया भर के शहरों में पाए जाते हैं। इन पेड़ों को अलग-अलग कारणों से महत्व
दिया जाता है।
बीजिंग, चीन (Beijing, China) में, सबसे पुराने पेड़ों की ओर ध्यान आकर्षित करने और उनके
विरासत मूल्य को उजागर करने के लिए अलग-अलग आकार के एल्यूमीनियम संकेत लटकाए
(aluminum plate) जाते हैं। जैसे, जो पेड़ 100 वर्ष पुराने हैं, उनमें दो गुणा पांच (2X5 ) इंच की
एल्युमिनियम प्लेट होती है, 500 से अधिक वर्षों में चार बटा आठ की प्लेट होती है और 1000 वर्ष
से अधिक पुराने पेड़ों के लिए प्लेट चार गुणा बारह इंच से बड़ी होती हैं।
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया (Sydney, Australia) में, 300 मिमी (लगभग 12 इंच) या उससे अधिक के
व्यास वाले किसी भी पेड़ को हेरिटेज ट्री के रूप में संरक्षित किया जाता है।
भारत के शहरों में बड़े आकार, पुरातनता, किसी व्यक्ति या किसी घटना से जुड़े पेड़ विरासत के पेड़
के तौर पर पाए जाते हैं।
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू शहर में, 150 फीट लंबा न्यू कैलेडोनियन पाइन या कुक पाइन
(New Caledonian Pine or Cook Pine) (एशिया में क्रिसमस ट्री के रूप में भी जाना जाता है)
स्थित है। इसके अलावा बेंगलुरु में डोड्डा आलादा मारा या बिग बरगद (Dodda Alada Mara or
Big Banyan) लगभग 400 साल पुराना है, और जिसकी छतरी हवाई जड़ों द्वारा समर्थित है, जो
4 एकड़ में फैली हुई है।
देश भर में 6 अन्य प्रसिद्ध बरगद के पेड़ हैं, जैसे राजस्थान के जोधपुर के रेगिस्तानी शहर में बाल
समंद पैलेस में 550 साल पुराना बरगद, कोलकाता बॉटनिकल गार्डन (Kolkata Botanical
Garden), में बरगद, जिसकी छतरी 4.67 एकड़ में फैली हुई है, और चेन्नई, तमिलनाडु में 450
साल पुराना बरगद है। एक और प्राचीन बरगद इलाहाबाद किले के अंदर पाया जाता है जो भारतीय
सेना द्वारा संरक्षित है।
मलिहाबाद के दशहरी आम का मातृ (mother tree) वृक्ष उन 943 पेड़ों में शामिल है, जिन्हें उत्तर
प्रदेश सरकार द्वारा 'विरासत वृक्ष' घोषित किया गया है। 100 साल से अधिक पुराने, ये विरासत
पेड़ 28 दुर्लभ प्रजातियों के हैं, और अद्वितीय सौंदर्य, सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, वनस्पति
और पारिस्थितिक मूल्यों के संदर्भ में विशेष महत्व रखते हैं।
दशहरी आम के पेड़ के अलावा
वाराणसी में लंगड़ा किस्म के आम के पेड़, फतेहपुर के इमली के पेड़, जिस पर 1857 में 52 स्वतंत्रता
सेनानियों को फांसी दी गई थी, हमारे जौनपुर के बरगद के पेड़, प्रयागराज के करील, पारिजात और
शीशम के पेड़ आदि भी उन 943 पेड़ों में से हैं, जिनमें हेरिटेज ट्री घोषित किया गया है।
इनमें से कई विरासत वृक्षों का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। हमारे जौनपुर के बरगद के पेड़
पर लोग कलाई घड़ी चढ़ाते हैं जो वहां रहने वाले ब्रह्म बाबा के सम्मान में चढाई जाती हैं। कहा
जाता है कि बाबा को कलाई घड़ी पहनने का बहुत शौक था। सारनाथ (वाराणसी) का विश्व प्रसिद्ध
बोधि वृक्ष जिसके तहत भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था, भी इस सूची में शामिल है।
संदर्भ
shorturl.at/gxyNW
https://bit.ly/3sX8CuU
https://bit.ly/3p67jsu
चित्र संदर्भ
1. बोधगया के बोधि बृक्ष को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. सुखना लेक में चंडीगढ़ का हेरिटेज ट्री को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. चंडीगढ़ हेरिटेज ट्री बोर्ड को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. डोड्डा आलादा मारा या बिग बरगद (Dodda Alada Mara or
Big Banyan) को दर्शाता चित्रण (flickr)
5. वियतनामी विरासत वृक्ष को दर्शाता चित्रण (flickr)