पृथ्वी पर जीवन होने का एक प्रमुख कारण है वन। वनों पर समय के साथ-साथ कई चलचित्र, कार्टून, कामिक्स आदि का निर्माण किया गया है। मोगली किसे नही याद होगा? रूडयार्ड किपलिंग ने मोगली की रचना अमेरिका में बैठ कर की परन्तु मोगली का मंच भारत को रखा। कोनेमारा पुस्तकालय, चेन्नई का साजसज्जा जंगल बुक (मोगली) के आधार पर किया गया गया है। भारत हमेशा से वानस्पतिक रूप का धनी रहा है यही कारण है कि विदेशीयों के साथ-साथ भारतीय ग्रन्थों में जंगलों का विषद् उदाहरण देखने को मिलता है। भारत में विदेशियों के आगमन का जंगल व वानस्पतिक संसाधन से महत्वपूर्ण जोड़ था। भारत के वनस्पति पर पहला कार्य हेन्ड्रिक वॉन रीड द्वारा किया गया था यह कार्य भारत ही नही अपितु विश्व के वनस्पति पर पहला कार्य था। हेन्ड्रिक वॉन रीड ने हॉर्टिकस मालाबारकस नामक पुस्तक लिखा और इसे सन् 1693 में छापा गया तथा यह पुस्तक केरल, कर्नाटक और गोवा आदि क्षेत्रों के विषय में जानकारी देती है। हेन्ड्रिक वॉन रीड डच ईस्ट इंडिया कम्पनी के गवर्नर थे । कार्ल लिनियस ने इस पुस्तक को लीनियस सारणी बनाते वक्त मूलग्रन्थ के रूप में प्रयोग किया। भारतीय वनस्पति पर ह्यू क्लेगहार्न का कार्य मील का पत्थर साबित हुआ, उन्होने दक्षिण भारत व उत्तर भारत के वनस्पतियों व जंगलों पर कार्य किया। क्लेगहार्न को भारतीय वैज्ञानिक वन अध्ययन का पिता कहा जाता है। मद्रास प्रेसीडेंसी में पहली बार इन्होने वन विभाग की स्थापना की।
जौनपुर पाँच नदियों के जिले के रूप में जाना जाता है तथा यहाँ विभिन्न खुदाईयों से जंगलों के कई प्रमाण मिले हैं। वर्तमान काल में भी यदि देखा जाये तो सई नदी के किनारे कंधी व अन्य क्षेत्रों में, पैतियापुर के पास पीली नदी के क्षेत्र में, खुटहन के पहले गोमती नदी के किनारे के अलावां मछलीशहर विधानसभा क्षेत्र में कई जगह जंगलों के कई अवशेष आज भी दिखाई देते हैं, परन्तु अब यहाँ पर सघन जंगल की उपलब्धता नही है। द फॉरेस्ट्स ऑफ इंडिया पुस्तक में इ.पी. स्टेबिंग जो की क्लेगहार्न के वनस्पति अन्वेषण के अधार पर पुस्तक को आधारित किये हैं, सन् 1841 में जौनपुर को इमारती लकड़ी से भरा होने की बात कहते हैं। यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि 1841 के दौरान तक जौनपुर इमारती लकड़ी का गढ था।
जौनपुर के गावों के नाम भी इस बात कि पुष्टि करते हैं कि यहाँ पर बड़ी संख्या में जंगल हुआ करते थे जैसे- बारीगाँव, बनगाँव, बगौझर, बनकटिया आदि। आज सम्पूर्ण उत्तरप्रदेश में जमीन की उपलब्धता 2 लाख 40 हजार नौ सौ अठ्ठाईस स्क्वायर किलोमीटर है जिसमें जंगल 14 हजार 4 सौ इकसठ स्क्वायर किलोमीटर है, वहीं जौनपुर की कुल भूमि 4 हजार अडतिस स्क्वायर किलोमीटर है और यहाँ पर जंगल भूमि मात्र 67 स्क्वायर किलोमीटर है जो वास्तविकता में अत्यन्त कम है। जंगल वातावरण का संतुलन बनाने में प्रमुखता से कार्य करते हैं। तथा वर्षा का होना भी जंगलों पर आधारित होता है। बढती आबादी ने जंगलों को कम करने का प्रमुख कार्य किया है।
1. द फॉरेस्ट्स ऑफ इंडिया- इ.पी. स्टेबिंग, इडनबर्ग युनिवर्सिटी।
2. http://www.madrasmusings.com/vol-26-no-12/the-man-who-saved-our-forests/
3. रिपोर्ट ऑफ द 21 मीटिंग ऑफ द ब्रिटिश एसोशियेशन फॉर द एडवाँस साइंसेज़ हेल्ड एट इप्सविच इन जुलाई 1851, लंदन जॉन मूरे, एल्बीमार्ले स्ट्रीट, 1852।