भारत पूरे विश्व में एकमात्र ऐसा देश है, जिसने दुनिया को "ववसुधैव कुटुम्बकम्" की विचारधारा
प्रदान की है। दरअसल सनातन ग्रंथों में वर्णित संस्कृत श्लोक, "ववसुधैव कुटुम्बकम्" का अर्थ
होता है "पूरा विश्व एक परिवार है"। यदि आप अपने चहुं ओर के दृश्यों का गौर से अवलोकन करें
तो, पाएंगे की इस प्रकृति में कुछ भी "एकमात्र" अथवा कोई भी "अकेला" नहीं है। उदहारण के तौर
पर सभी जानवरों का परिवार होता है। चींटियां, मधुमक्खियां, पक्षी, कीट-पतंगे सहित लगभग सभी
जीव-जंतु झुण्ड में रहते हैं, सबका अपना-अपना परिवार होता है। यहां तक की हमारी पृथ्वी का भी
अपना एक सौर परिवार (solar family) है।
धरती पर जीवन को सुचारु रखने में सभी तरह के परिवारों का अहम् योगदान होता है। मनुष्य के
सन्दर्भ में एक परिवार ऐसे लोगों का समूह होता है, जिसमे किसी एक वंश के लोग एक साथ रहते
हैं। परिवार के सभी लोग अपना पैसा और भोजन साझा करते हैं और उनसे एक दूसरे की देखभाल
करने की अपेक्षा की जाती है। इसके सदस्य या तो आनुवंशिक रूप से संबंधित होते हैं (जैसे भाई
और बहन) या कानूनी रूप से (विवाह द्वारा) एक-दूसरे से बंधे होते हैं।
भारत सहित कई संस्कृतियों में, एक परिवार के सदस्यों का उपनाम एक ही होता है। मानवविज्ञानी
आमतौर पर अधिकांश पारिवारिक संगठनों को :
मैट्रिफ़ोकल (matrifocal) "एक माँ और उसके बच्चे" के रूप में,
पैट्रिफोकल (patrifocal) "एक पिता और उसके बच्चे के रूप में "
वैवाहिक (matrimonial) "एक पत्नी, उसका पति और बच्चे, जिसे एकल परिवार भी कहा जाता है"
के रूप में,
एवुंकुलर (avuncular) "एक दादा-दादी, एक भाई, उसकी बहन और उसके बच्चे के रूप में या
विस्तारित (extended) "माता-पिता और बच्चे, एक अन्य माता-पिता के परिवार के अन्य
सदस्यों के साथ सह-निवास करते हैं"। परिवार के सदस्यों के साथ यौन संबंध अनाचारित अथवा
निषेध होते हैं।
परिवार (Family, फैमिली) शब्द लैटिन शब्द 'फैमिलिया' (Familia) से लिया गया है, जो
"व्यक्तियों के समूह (Group of people) को अपने जीवन के महत्वपूर्ण चरणों के दौरान जैविक,
सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संबंधों द्वारा एक दूसरे से बंधे रहने को संदर्भित करता है।
भारतीय समाज सामूहिक और सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है। पारंपरिक भारतीय परिवार
संयुक्त होते हैं, जो सामूहिकता के सिद्धांतों का पालन करते है। मानसिक रूप से बीमार लोगों की
देखभाल के लिए संयुक्त परिवार एक उत्कृष्ट संसाधन साबित हुआ है। भारतीय समाज, पश्चिमी
समाज जो "व्यक्तिवाद" पर जोर देता है, के विपरीत, "सामूहिकता" पर जोर देता है। इसलिए,
भारतीय और एशियाई परिवार अपने सदस्यों की देखभाल में कहीं अधिक कुशल होते हैं, और अपने
पश्चिमी समकक्षों की तुलना में अधिक बीमारी का बोझ भी झेल सकते हैं।
सामूहिक परिवार विभिन्न तनावपूर्ण स्थितियों के प्रबंधन में सहायक हो सकता है। हालाँकि,
अधिकांश समाजशास्त्रीय अध्ययनों में, एशियाई और भारतीय परिवारों को शास्त्रीय रूप से बड़े,
पितृसत्तात्मक, सामूहिक, संयुक्त परिवारों के रूप में माना जाता है, जो तीन या अधिक पीढ़ियों को
लंबवत और क्षैतिज रूप से रिश्तेदारों को आश्रय देते हैं। भारतीय संयुक्त परिवारों को परिवार की
अखंडता, परिवार की वफादारी, और व्यक्तिगत एकता, पसंद की स्वतंत्रता, गोपनीयता और
पारिवारिक एकता पर ध्यान देने के साथ मजबूत, स्थिर, करीबी, लचीला और स्थायी माना जाता
है। संरचनात्मक रूप से, भारतीय संयुक्त परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, चाचा, चाची, भतीजी
और भतीजे सहित तीन से चार जीवित पीढ़ियां एक ही घर में एक साथ रहते हैं, सभी आम तौर पर
एक ही रसोई का उपयोग करते हैं, और समान रूप से खर्च वहन करते हैं। इस तरह की पारिवारिक
संरचना में परिवर्तन धीमा होता है, और बुजुर्ग माता-पिता के निधन के बाद परिवार की इकाइयों का
नुकसान परिवार अन्य सदस्यों तथा वैवाहिक गठबंधनों द्वारा प्रवेश करने वाले नए सदस्यों
(पत्नियों) और उनकी संतानों द्वारा संतुलित किया जाता है।
अधिकांश भारतीय संयुक्त परिवार पितृसत्तात्मक (मुखिया के रूप में घर के बुजुर्ग पुरुष)
विचारधारा का पालन करते हैं। हालांकि देश के कुछ दक्षिणी हिस्सों में मातृसत्तात्मक (महिला
मुखिया) परिवार काफी प्रचलित हैं। जीवन के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित करने वाले निर्णय
जैसे: करियर पसंद, साथी चयन और विवाह आदि, सही गलत जानकर सामूहिक राय मशवरे के
बाद लिए जाते हैं।
महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे पुरुषों के अधीन स्थिति को स्वीकार करें, और अपनी
व्यक्तिगत प्राथमिकताओं को दूसरों की जरूरतों के कम रखे। और पुरुषों से अपेक्षा की जाती है कि
वे दूसरों की जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी स्वीकार करें। कमाने वाले पुरुषों से अपेक्षा की
जाती है कि वे परिवार के वृद्धों का सहयोग करें। साथ ही उनसे घर की विधवाओं, अविवाहित
वयस्कों और विकलांगों की देखभाल करना, बेरोजगारी और बीमारी की अवधि के दौरान सदस्यों
की सहायता करना, और महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने की अपेक्षा की जाती है।
मनोवैज्ञानिक रूप से, परिवार के सदस्य एक दूसरे के प्रति भावनात्मक अन्योन्याश्रयता,
सहानुभूति, निकटता और वफादारी महसूस करते हैं।
हालांकि पश्चिमी संस्कृति से प्रभवित होकर भारत का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश जबरदस्त
गति से परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जिससे पारिवारिक संरचना में मूलभूत परिवर्तन हो रहे हैं।
पिछले दशक में भारत में न केवल सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और व्यावसायिक
क्षेत्रों में तेजी से और अराजक परिवर्तन देखे गए हैं, साथ ही वैवाहिक मानदंडों और महिलाओं की
भूमिका में पारिवारिक परिवर्तन भी देखे जा रहे हैं।
राष्ट्रीय जनगणना के आंकड़ों और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health
Survey (NFHS) के आंकड़ों की समीक्षा के अनुसार भारत में धीरे-धीरे शहरी क्षेत्रों में संयुक्त
भारतीय परिवार एकल परिवार का प्रमुख रूप बनते जा रहे हैं। 2001 और 2010 की जनगणना की
तुलना से यह भी पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में खास तौर पर शहरों में एकल परिवारों में
प्रगतिशील वृद्धि हुई है। भारत में ज्यादातर संयुक्त परिवार पाए जाते हैं, जहां परिवार के सदस्य
एक ही छत के नीचे एक साथ रहते हैं। वे सभी परस्पर साथ में काम करते हैं, खाते हैं, पूजा करते हैं
और किसी न किसी रूप में एक दूसरे का सहयोग करते हैं। इससे परिवार को मानसिक, शारीरिक
और आर्थिक रूप से मजबूत होने में भी मदद मिलती है, बच्चों को अपने दादा-दादी और बड़ों से
समाज के मूल्यों और परंपराओं के बारे में भी पता चलता है। हालांकि शहरीकरण और
पश्चिमीकरण का भारतीय परिवार संरचना की मूल संरचना पर प्रभाव पड़ा। संयुक्त परिवार का
छोटी इकाइयों में विभाजन होने लगा है।
संदर्भ
https://bit.ly/3r73G7o
https://bit.ly/3lcaooS
https://bit.ly/3cOo44M
https://en.wikipedia.org/wiki/Family
चित्र संदर्भ
1. दिवाली उत्सव मनाते भारतीय परिवार को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. भारत के मिजोरम में 38 पत्नियों और 89 बच्चों के साथ 'दुनिया के सबसे बड़े परिवार' की मुखिया जिओना चाना के विश्व में सबसे बड़े संयुक्त परिवार को दर्शाता एक चित्रण (inews)
3. संयुक्त परिवार को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
4. एकल परिवार को संदर्भित करता एक चित्रण (masterfile)
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