जौनपुर के क्रांतिकारी शायर सैय्यद अहमद मुज्तबा उर्फ़ वामिक़ जौनपुरी की बेहतरीन रचनाएं

जौनपुर

 22-11-2021 10:19 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

"शब्दों से अधिक अनुभवी जादूगर कोई नहीं होता।" अर्थात शब्दों में कुछ ऐसी जादूगरी होती है की यदि उन्हें सही क्रम में भवनाओं के अनुरूप लगाया जाए, तो वे आपके मन की, दशा और दिशा दोनों बदल देते हैं। भारत के इतिहास में शब्दों के कुछ ऐसे महान जादूगर (शायर अथवा लेखक) रहें हैं, जिनके गहरे अल्फ़ाज़ों का रसपान आज भी दुनिया बड़े चाव से करती हैं। दिग्गजों की इस सीमित श्रेणी में हमारे जौनपुर के उम्दा उर्दू शायर 'वामिक़' जौनपुरी भी शामिल हैं। जिनके शब्दों और भावनाओं पर मजबूत पकड़ को आप नीचे दी गई उनकी इस रचना से समझ सकते हैं: अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है।

ये कम कि आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार बाक़ी है।।
अभी तो शहर के खण्डरों में झाँकना है मुझे।
ये देखना भी तो है कोई यार बाक़ी है।।
अभी तो काँटों भरे दश्त की करो बातें।
अभी तो जैब ओ गिरेबाँ में तार बाक़ी है।।
अभी तो काटना है तिशों से चट्टानों को।
अभी तो मरहला-ए-कोहसार बाक़ी है।।
अभी तो झेलना है संगलाख़ चश्मों को।
अभी तो सिलसिल-ए-आबशार बाक़ी है।।
अभी तो ढूँडनी हैं राह में कमीं-गाहें।
अभी तो मारका-ए-गीर-ओ-दार बाक़ी है।।
अभी न साया-ए-दीवार की तलाश करो।
अभी तो शिद्दत-ए-निस्फु़न-नहार बाकी है।।
अभी तो लेना है हम को हिसाब-ए-शहर-ए-क़िताल।
अभी तो ख़ून-ए-गुलू का शुमार बाक़ी है।।
अभी यहाँ तो शफ़क़-गूँ कोई उफ़ुक़ ही नहीं।
अभी तसादुम-ए-लैल-ओ-नहार बाक़ी है।।
ये हम को छेड़ के तन्हा कहाँ चले ‘वामिक़’।
अभी तो मंज़िल-ए-मेराज-ए-दार बाक़ी है।।
'वामिक़' जौनपुरी द्वारा रचित उक्त पंक्तियाँ, यदि मृत्यु शैय्या पर लेटे किसी व्यक्ति को सुना दी जाएँ, और यदि उसे समझ में आ गई, तो संभव है की वह भी एक पल के लिए उठने की कोशिश तो जरूर कर दे।
जौनपुर के मशहूर शायर, सैय्यद अहमद मुज्तबा उर्फ़ “वामिक़ जौनपुरी" का जन्म, 23 अक्टूबर 1909 के दिन भारत के ऐतिहासिक शहर जौनपुर से लगभग आठ किमी दूर कजगांव में हुआ। उनकी माँ का नाम अश्र्फुन्निसा बीवी और पिताजी का नाम खान बहादुर सैय्यद मोहम्मद मुस्तफा था। महज पांच साल की उम्र में ही मुज्तबा, शिक्षा-दीक्षा के लिए अपने नाना मीर रियाउद्दीन साहब की अतालिकी में चले गए। 1926 में इंटर (बारहवीं) करने के लिए वे गवर्नमेंट इंटर कालेज, फैजाबाद में आ गए। बचपन में घर के इस्तेमाल की मामूली मशीने ठीक करते देख पिता ने उन्हें इंजिनियर बनाने की ठान ली थी। लेकिन उनका स्कूली किताबो में मन नहीं लगता था। हालांकि 1929 में उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी में बी.एस.सी में दाखिला लिया और फिर फ़ेल हुए। जिसके बाद उन्होंने बी. ए. में दाखिला लिया।
उनके मन में आजादी की लड़ाई में शामिल होने की गहरी ललक थी, लेकिन पिता के असर के कारण यह जज्बा दबा ही रह गया। फैजाबाद में पढाई के दौरान, वही जेल में हुई अशफाकउल्ला खां की फांसी की घटना ने उन जैसे बेफिकरे को भी अशफाकउल्ला जिंदाबाद, महात्मा गाँधी जिंदाबाद, अंग्रेज हुकूमत जिंदाबाद, बर्तानिया मुर्दाबाद के नारे लगाने पर मजबूर कर दिया। हालांकि वे इंजिनियर बनने निकले थे, लेकिन 1937 में वकील बनकर निकले। ट्रेनिंग पूरी की और फैजाबाद में औसत दर्जे का मकान, फर्नीचर-किताबे और मुंशी का जुगाड करके तैयारी शुरू कर दी। उनकी शायरी की शुरुआत, फैजाबाद में एक लतीफे के साथ शुरू हुई। दरअसल उनके मकान मालिक हकीम मज्जे दरियाबादी साहब शेरो-शायरी के शौकीन थे, और उनके यहां आये दिन आते रहते। यहाँ आते-जाते वामिक़ को लगा की ज्यादातर मोकामी शायर खराब और बासी शेर पढते है। और यह भी कि जो शेर किसी की समझ में न आता उसकी खूब तारीफ होती। 1948 में उनका पहला कविता संग्रह ‘चीखे’ छपा। इसके बाद 'जरस' 1950 में छपा, इसमें 46 नज्मे, 24 गज़ले और फुटकर अशआर शामिल है। भूखा बंगाल नामक उनकी रचना भी इंकलाब की आवाज़ बन गई। उन्होंने प्रोफ़ेसर मसिउज्ज्मा के साथ ‘इंतिखाब’ पत्रिका भी निकाली। उनकी कविता के प्रशंसक डॉ. ज़ाकिर हुसैन ने उन्हें इंजीनियरिंग कॉलेज के ऑफिस सुपरिटेंडेंट पद पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बुला लिया। रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज, श्रीनगर के रजिस्ट्रार पद से रिटायर होकर 1969 के अंत में वे गाँव वापस आए और मृत्युपर्यंत (21 नवम्बर 1998) तक खूब लिखा।
उनकी कई प्रसिद्ध किताबों अथवा संग्रहों में क्रमशः "गुफ्तानी ना गुफ्तानी, जरस, सफ़र-ए- नतामा, और शब-ए-चरग जैसे उत्कृष्ट संग्रह शामिल हैं। हालांकि आज बहुत कम लोग उर्दू पढ़ने में सक्षम हैं, लेकिन हमारे जौनपुर शहर में पैदा हुए वामीक जौनपुरी की वर्तमान में कई उर्दू शायरी की किताबें संग्रहणीय हैं। कार्ल मार्क्स और बंगाल अकाल पर वामीक जौनपुरी की कुछ प्रसिद्ध कविताओं का वास्तव में बहुत सफलता के साथ अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया गया है। जिन्हे कोई भी अंग्रेज़ी या कोई अन्य भाषा पढ़ने वाला आसानी से समझ सकता है। कविता में अपनी विचारधारा व्यक्त करते हुए, उन्होंने जीवन और अपने समय के उन सपनों को भी पोषित किया जो उत्पीड़न से मुक्ति सुनिश्चित करेंगे और सामाजिक न्याय के उद्धार के लिए स्थितियां पैदा करेंगे।

संदर्भ
https://bit.ly/3kW0sje
https://bit.ly/3CxVBe5
https://bit.ly/3cx4TfR
https://bit.ly/3CFRKeV
https://bit.ly/3qW9H6J
https://bit.ly/3nywUd3
https://www.rekhta.org/poets/wamiq-jaunpuri/all
https://www.rekhta.org/poets/wamiq-jaunpuri/profile
https://www.jakhira.com/2013/02/wamik-jounpuri-biography.html

चित्र संदर्भ   
1. वामिक़ जौनपुरी का एक चित्रण (youtube)
2. वामिक़ जौनपुरी के घर को दर्शाता एक चित्रण (hamarajaunpur)
3. वामिक़ जौनपुरी के हस्ताक्षर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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