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सनातन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि, यह केवल ईश्वर की पूजा और आराधना करने तक
ही सीमित नहीं है, बल्कि यह इससे कई अधिक संक्षिप्त है। अर्थात यह हमें केवल ईश्वर की पूजा
करने के लिए नहीं कहता, बल्कि यदि आप गौर करेंगे पाएंगे की, सनातन में हम हर उस ऊर्जा की
पूजा करते हैं जिसने धरती पर जीवन को संभव बनाया। उदाहरण के तौर पर हम रौशनी देने वाले
सूरज को केवल सूर्य न कहकर सूर्य देवता के नाम से संबोधित करते हैं, और उनकी पूजा के माध्यम
से उनका आभार व्यक्त करते हैं। इसी प्रकार हम, वायु देव, अग्नि देव, माँ गंगा, आदि देवी देवताओं
की आराधना करके उनका आभार व्यक्त करते हैं।
चूंकि धरती पर जीवन को बनाए रखने और जीव जंतुओं को पोषित करने में भोजन अथवा अन्न
की सबसे अहम् भूमिका होती है और, यही कारण है की अनाज (अन्न) देकर हमें पोषित करने वाली
देवी माँ "अन्नपूर्णा" देश भर में हिन्दुओं द्वारा पूजी जाती हैं।
माँ अन्नपूर्णा को अन्नपूर्णेश्वरी या अन्नदा के रूप में भी पूजा जाता है। माँ अन्नपूर्णा देवी,
आदिशक्ति का ही एक अवतार मानी गई है, और हिंदू धर्म में इन्हे भोजन और पोषण की हिंदू देवी
के रूप में जाना जाता है। हिन्दू धर्म में पूजा और भोजन को जीवन का सबसे अहम् पहलू माना गया
है, इसलिए माँ अन्नपूर्णा को एक लोकप्रिय देवी माना जाता है। वह भगवान शिव की अर्धांगिनी
देवी पार्वती की अभिव्यक्ति मानी गई हैं।
अनेक देवी-देवताओं की भांति माँ अन्नपूर्णा को "अन्नपूर्णा सहस्रनाम" नामक श्लोक समर्पित हैं,
जिनके भीतर उनके एक हजार नामों की स्तुति की गई है। जबकि अन्नपूर्णा शतनाम स्तोत्रम
उनके 108 नामों को समर्पित है।
अन्नपूर्णा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से की गई है जिसका शाब्दिक अर्थ "भोजन और पोषण
का दाता" होता है। जहाँ अन्न (अन्न) का अर्थ "भोजन" या "अनाज" एवं पूर्ण का अर्थ "पूर्ति अथवा
परिपूर्ण होता है। उनके कुछ अन्य बेहद प्रचलित नाम नीचे भी दिए गए हैं।
1. विशालाक्षी (संस्कृत: विशालाक्षी) - जिसकी आंखें बड़ी हैं।
2. विश्वशक्ति (संस्कृत: विश्वशक्ति) - विश्व शक्ति।
3. विश्वमाता (संस्कृत: विश्वमाता) - जगत की माता।
4. सतीहेतुकावरदानी (संस्कृत: हेतुकावरदानी) - वह जो दुनिया के लिए वरदान देने वाली है।
5. भुवनेश्वरी (संस्कृत: कलाकारी) - पृथ्वी की देवी।
6. रेणु - परमाणु की देवी माँ अन्नपूर्णा का चित्रण
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ (आगमास) में माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा को एक युवा हिन्दू देवी के रूप में
दर्शाया जाता है। उनके चेहरे को लाल पूर्णिमा के तेज़ के साथ दर्शाया जाता है। यहाँ उनकी तीन
आँखे और चार हाथ दिखाए जाते हैं, तथा निचले बाएँ हाथ को स्वादिष्ट दलिये से भरे बर्तन को
पकड़े हुए दर्शाया गया है। दाहिने हाथ में विभिन्न रत्नों से अलंकृत सोने की कलछी (gold ladle)
और अन्य दो हाथ अभय और वरदा मुद्रा के रूप में दर्शाएं गए हैं। उनके शरीर को और कलाई को
सुंदर सोने के गहनों से सजाया गया है। शेर को उनके वाहन के रूप में दर्शाया जाता हैं।
माता अन्नपूर्णा के कुछ अन्य चित्रों में भगवान शिव को उनसे भिक्षा मांगते हुए भी दर्शाया जाता
है। अन्नपूर्णा स्तोत्र में भी भगवान् शिव का वर्णन है, माँ अन्नपूर्णा का उल्लेख हिंदू धार्मिक ग्रंथों
जैसे रुद्रयामाला, शिवरहस्य, अन्नपूर्णामंत्रत्सव, महा त्रिपुरसिद्धांत, अन्नपूर्णा कवच,
अन्नपूर्णाहवमती, अन्नपूर्णमालिनिनक्षत्रमालिका और भैरवाहतंत्र में में भी मिलता है। तीसरी और
चौथी शताब्दी सीई के दौरान लिखी गई देवी भागवत पुराण में अन्नपूर्णा को कांचीपुरम की देवी
और विशालाक्षी को वाराणसी की देवी के रूप में संदर्भित किया गया है। 7 वीं शताब्दी के दौरान
लिखे गए स्कंद पुराण में कहा गया है कि ऋषि व्यास को एक श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए
अन्नपूर्णा एक गृहिणी के रूप में आई और उन्हें भोजन की पेशकश की।
जब भगवान शिव ने माँ से क्षमा मांगी!
माँ पार्वती को अन्नपूर्णा, या खाद्य देवी के रूप में भी पूजा जाता है। मान्यता है की, भगवान शिव
की पहली पत्नी सती का पुनर्जन्म देवी पार्वती के रूप में हुआ। भगवान् शिव और माँ पार्वती ने
मिलकर ब्रह्मांड का संतुलन बनाए रखा। दोनों को संसार का रक्षक और पोषक माना गया है। दोनों
के बीच आकाशीय मिलन को अधनारीश्वर के नाम से जाना जाता है। दोनों में से किसी एक की भी
अनुपस्थिति से ब्रह्माण्ड असंतुलित हो जाएगा।
किवदंती के अनुसार गुजरते समय के साथ प्रकृति के संतुलन में माता पार्वती ने प्रेम और देखभाल
के साथ अपना कर्तव्य निभाया, किन्तु भगवान शिव ने प्रकृति में स्थिरता कायम रखने के लिए माँ
पार्वती के योगदान को कम आंकना शुरू कर दिया।
उन्होंने सोचा कि ब्रह्माण्ड के निर्माता ब्रह्मा ने पृथ्वी पर सभी भौतिकवादी चीजों को केवल अपनी
कल्पना के लिए बनाया है, इसलिए शिव ने सोचा कि भोजन की मानव आवश्यकता केवल एक
लौकिक भ्रम या 'माया' है। जब माँ पार्वती को शिव के विचारों का आभास हुआ तो, भगवान शिव
को अपने शक्तिशाली संबंध की महत्ता समझIने के लिए, पार्वती ने पृथ्वी को बांधने वाली ब्रह्मांडीय
ऊर्जा के संतुलन को तोड़ दिया। जिस कारण पृथ्वी पर सभी प्रकार के भोजन और पोषण का भयंकर
आभाव हो गया। माँ पार्वती के बिना दुनिया को सूखा, भूख और सभी प्रकार के मानवीय भय का
सामना करना पड़ गया। संसार के दुखों को देखकर शिव को शीघ्र ही पार्वती के महत्व का ज्ञान हो
गया। उन्हें यह भी आभास हुआ कि भौतिकवादी जरूरतों की आवश्यकता को त्यागा नहीं जा
सकता। चूंकि माँ पार्वती भी शिव की स्थिति से अवगत थी, इसलिए माता ने तब अन्न की देवी
अन्नपूर्णा का रूप धारण किया, और सबसे पहले काशी के पवित्र शहर का दौरा किया।
उनके आगमन से पृथ्वी पर जल और अन्न की वर्षा हुई और पृथ्वी चमत्कारिक रूप से खिल उठी।
माता के नए अवतार में उनके हाथ में चावल का सुनहरा कटोरा और दूसरे हाथ में एक करछुल था।
काशी के लोग काशी की रसोई में माँ पार्वती को धन्यवाद और पूजा करने के लिए एकत्र हुए, इन
सभी लोगों में न केवल नश्वर (आम इंसान) बल्कि भगवान शिव ने भी बूढ़े भिखारी का वेश धारण
कर प्रवेश किया। वे भी माँ की रसोई में पधारे और पार्वती से भोजन और क्षमा मांगी। दयालु देवी ने
शिव को क्षमा कर दिया, और दोनों अपने निवास (कैलाश पर्वत) में वापस चले गए। इस घटना क्रम
के माध्यम से माँ पार्वती ने स्पष्ट किया है कि भौतिकवादी जरूरतें केवल भ्रम नहीं हैं, बल्कि जीवन
का एक चक्र है जिसे जीवन को बनाए रखने के लिए पूरा किया जाना ही चाहिए।
भारत में माता अन्नपूर्णा हिन्दुओं की एक प्रमुख देवी हैं, ग्रंथों के अनुसार माँ अन्नपूर्णा ने काशी
(आज के वाराणसी) में पहली बार अपने दर्शन दिए यहाँ उनको समर्पित मंदिर भी स्थापित हैं। किंतु
लगभग एक शतक यानी आज से लगभग सौ वर्ष पूर्व शिव की नगरी काशी से माता अन्नपूर्णा की
एक दुर्लभ प्रतिमा गायब हो गई! सौभाग्य से आज माता की दुर्लभ प्रतिमा का भारत में दोबारा
आगमन हुआ है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी की पहल पर मां अन्नपूर्णा देवी की
मूर्ति कनाडा सरकार ने भारत वापस भेजी है। सदियों पहले ग़ायब हुई अन्नपूर्णा की मूर्ति को काशी
(आज के वाराणसी) में पुनः स्थापित किया जाएगा। 11 नवंबर को मां अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति
दिल्ली से सुसज्जित वाहन से जुलूस के रूप में चली निकली और देश में विभिन्न स्थानों पर रुकते
हुए 14 नवम्बर को अयोध्या से चलकर सुल्तानपुर-प्रतापगढ़ होते हुए जौनपुर बार्डर पर पहुंची।
जहां श्रद्धालु जनों को भी माता के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
संदर्भ
https://bit.ly/30AsjhG
https://bit.ly/31XiWJl
https://bit.ly/3wTxBk6
https://bit.ly/30ACOli
https://bit.ly/3ChZVxO
https://bit.ly/3CqBj65
https://bit.ly/3nkOVLW
https://en.wikipedia.org/wiki/Annapurna_(goddess)
चित्र संदर्भ
1. कनाडा से प्राप्त माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (The EconomicTimes)
2. माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. माँ अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगते भगवान शिव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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