दुनियाभर में भारत को "विश्वगुरु" का दर्जा दिया जाता है। दरसल विश्व गुरु की पद्वी प्राप्त करने के लिए हमारे
महान पूर्वजों ने चिकित्सा, विज्ञानं और पर्यावरण के क्षेत्र में कई ऐसे सराहनीय कार्य किये हैं, जो तत्कालीन समय में
भारत के अलावा किसी अन्य देश के विचारों में भी नहीं थे। आयुर्वेद जैसे प्राचीन उपचार ग्रंथ ने मध्यकालीन वैश्विक
चिकित्सा क्षेत्र में कई लोगों को जीवनदान दिया है। किंतु आज पर्यावरण संबंधी दुष्प्रभावों का दोष भारत के विश्वगुरु
की छवि को ठेस पहुंचा रहा है।
पर्यावरण थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी , एनवायरनमेंट एंड वाटर (Environmental think-tank Council on
Energy, Environment and Water) ने अपनी तरह का पहला जिला-स्तरीय जलवायु भेद्यता मूल्यांकन
(Climate Vulnerability Index (CVI) किया है, जिसके अंतर्गत भारत के कुल 640 जिलों का विश्लेषण किया
गया, ताकि अत्यधिक मौसमी संवेदनशीलताओं जैसे चक्रवात, बाढ़, गर्मी की लहरें, सूखा आदि का आंकलन किया
जा सके।
जलवायु सुभेद्यता सूचकांक क्या है?
जलवायु भेद्यता मूल्यांकन (Climate Vulnerability Index (CVI) मानचित्र यह प्रदर्शित करता है, की क्या जिला
चरम मौसम की घटनाओं के लिए प्रवण है?, संवेदनशीलता (मौसम की प्रतिक्रिया से जिले पर प्रभाव की संभावना
क्या है?), और जिले की प्रतिक्रिया या मुकाबला तंत्र क्या है?
यह जलवायु-प्रूफिंग समुदायों, अर्थव्यवस्थाओं और
बुनियादी ढांचे द्वारा लचीलापन बढ़ाने और महत्वपूर्ण कमजोरियों और योजना रणनीतियां बनाने में मदद करता है।
यह निरिक्षण जलवायु चरम सीमाओं को अलग-थलग करने के बजाय, जल-मौसम आपदाओं के संयुक्त जोखिम
जैसे बाढ़, चक्रवात और सूखा और उनके प्रभाव को देखता है। साथ ही इन अध्ययन भूकंप जैसी अन्य प्राकृतिक
आपदाओं का निरिक्षण नहीं करता है।
भारत को जलवायु भेद्यता सूचकांक की आवश्यकता क्यों है?
जर्मनवॉच के 2020 के निष्कर्षों के अनुसार, भारत जलवायु चरम सीमाओं (Extreme weather events) के संबंध
में सातवां सबसे कमजोर देश है। भारत में बंगाल की खाड़ी में सुपरसाइक्लोन अम्फान जैसी चरम मौसम की घटनाएं
निरंतर बढ़ रही हैं। साथ ही पिछले एक दशक में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और केरल में भूस्खलन और बाढ़ जैसी
मौसमी आपदाओं में भी वृद्धि देखी गई है। सीईईडब्ल्यू (CEEW) द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार भारत में
प्रति चार में से तीन जिले चरम घटना के केंद्र हैं, जिनमें से 40 प्रतिशत जिलों में एक अदला-बदली की प्रवृत्ति प्रदर्शित
होती है, अर्थात - पारंपरिक रूप से बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में ही कई बार भयंकर सूखे की घटनायें सामने आ रही हैं। साथ ही
आईपीसीसी (IPCC) का यह भी मानना है कि भारत में तापमान में हर डिग्री की वृद्धि से वर्षा में तीन प्रतिशत की
वृद्धि होगी, जिससे चक्रवात और बाढ़ की तीव्रता बढ़ जाएगी। इसलिए भारत को जलवायु भेद्यता सूचकांक की
आवश्यकता है।
जलवायु भेद्यता सूचकांक के निष्कर्ष क्या हैं?
जलवायु भेद्यता मूल्यांकन (CVI) के अनुसार, भारतीय राज्यअसम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार
राज्य बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी चरम जलवायु घटनाओं के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं। साथ ही अन्य
कुल 27 भारतीय राज्य और केंद्र शासित प्रदेश चरम जलवायु घटनाओं के दायरे में आते हैं। सभी राज्यों के कुल 640
में से 463 जिले चरम मौसम की घटनाओं की चपेट में हैं।
असम राज्य में धेमाजी और नागांव, तेलंगाना में खम्मम, ओडिशा में गजपति, आंध्र प्रदेश में विजयनगरम, महाराष्ट्र
में सांगली और तमिलनाडु में चेन्नई भारत के सबसे संवेदनशील जिलों में से हैं। यह एक गंभीर समस्या इसलिए भी
है क्यों की 80 प्रतिशत से अधिक
भारतीय जलवायु जोखिम के प्रति संवेदनशील जिलों में रहते हैं - यानी भारत में 20
में से 17 लोग जलवायु जोखिमों की चपेट में हैं, जिनमें से हर पांच भारतीय अति संवेदनशील क्षेत्रों में रहते हैं। देश के
कुल 183 हॉटस्पॉट जिले एक से अधिक चरम जलवायु घटनाओं के प्रति अति संवेदनशील हैं।
दुर्भाग्य से लगभग 60% भारतीय जिलों में चरम मौसम की घटनाओं से निपटने के लिए पर्याप्त इंतज़ाम भी नहीं हैं।
साथ ही इन जिलों में प्रभाव को कम करने के लिए मजबूत योजना भी नहीं है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्य बाढ़ से ग्रस्त हैं,
दक्षिण और मध्य राज्य अत्यधिक सूखे की चपेट में हैं, तथा पूर्वी और पश्चिमी राज्यों के कुल जिलों में से क्रमशः 59
और 41 प्रतिशत जिले अत्यधिक चक्रवातों से घिरे हैं।
हालांकि सभी नकारात्मकताओं के बावजूद देश के कुछ राज्य ऐसे भी हैं जो इन चरम मौसमी घटनाओं में अच्छा
प्रदर्शन कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर केरल और पश्चिम बंगाल ने तटीय राज्य होने और सालाना चक्रवात और बाढ़
के खतरों को झेलने के बावजूद तुलनात्मक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है। दरअसल इन राज्यों ने अपनी जलवायु
कार्य योजनाओं के साथ-साथ एक चरम मौसम की घटना से निपटने के लिए तैयारियों को हमेशा पुख्ता किया है।
यही कारण है की इन राज्यों ने तुलनात्मक रूप से बेहतर प्रदर्शन किया है। इन राज्यों के प्रदर्शन को लेकर कई मानक
निर्धारित किये गए हैं, जैसे चक्रवात और बाढ़ जैसी विषम परिस्थितियों में आश्रयों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की
उपलब्धता, आपदा प्रबंधन योजनाओं, शमन रणनीतियों, मानक संचालन प्रक्रियाओं को अद्यतन करने सहित
सरकारी तंत्र की उपलब्धता, चरम मौसम की घटना से पहले, दौरान और बाद में मानक संचालन प्रक्रियाएं जैसे कि
लोगों और पशुओं को कैसे निकाला जा रहा है? या कैसे भोजन लामबंद किया जा रहा है?, और प्रशासन कैसे जान-माल
के नुकसान को रोकता है?
अचानक से बढ़ी मौसम की चरम घटनाओं का जिम्मेदार मुख्य रूप से जलवायु परवर्तन को माना गया है। अमेरिकी
खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान और पाकिस्तान सहित 11 देश जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले
पर्यावरणीय और सामाजिक संकटों से उभरने और प्रतिक्रिया देने की अपनी क्षमता के मामले में अत्यधिक
असुरक्षित देश हैं।
भारत भी उन 11 देशों में शामिल है। राष्ट्रीय खुफिया निदेशक (ओडीएनआई) के कार्यालय ने
भविष्यवाणी की है कि 2040 आते-आते ग्लोबल वार्मिंग से संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी भू-
राजनीतिक तनाव और जोखिम बढ़ जाएगा। भारत उन देशों में से एक है जिसने उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने का
प्रयास किया है। भारत और चीन क्रमशः चौथे और पहले सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश हैं। दोनों देश अपने कुल और
प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में वृद्धि कर रहे हैं। दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू), दूसरे और
तीसरे सबसे बड़े उत्सर्जक के रूप में, अपने उत्सर्जन को कम कर रहे हैं। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है, "चीन और
भारत दोनों अधिक नवीकरणीय और कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों को शामिल कर रहे हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3ExRdx8
https://bit.ly/3pR4Djx
https://bit.ly/3bp3F5D
चित्र संदर्भ
1. जलमग्न हुई गाड़ियों को दर्शाता एक चित्रण (twitter)
2. हिमस्खलन को दर्शाता एक चित्रण (climateaction)
3. भारी भूस्खलन का एक चित्रण (thestatesman)
4. भारत के तटीय चक्रवात को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)