परमाणु ईंधन के रूप में थोरियम का बढ़ता महत्व और यह यूरेनियम से बेहतर क्यों है

जौनपुर

 16-10-2021 05:32 PM
खनिज

उत्तर प्रदेश में नरौरा परमाणु ऊर्जा संयंत्र 220 मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए कम विखंडनीय सामग्री का उपयोग करता है।परमाणु ऊर्जा बिजली उत्पादन के अन्य रूपों के साथ प्रतिस्पर्धी है, सिवाय इसके कि जहां कम लागत वाले जीवाश्म ईंधन तक सीधी पहुंच हो।परमाणु संयंत्रों के लिए ईंधन की लागत कुल उत्पादन लागत का एक मामूली अनुपात है, हालांकि पूंजीगत लागत कोयले से चलने वाले संयंत्रों की तुलना में अधिक है और गैस से चलने वाले संयंत्रों की तुलना में बहुत अधिक है।
विभिन्न प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने वाले नए उत्पादन संयंत्रों की सापेक्ष लागत का आकलन करना एक जटिल मामला है और परिणाम स्थान पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर करते हैं।कोयला चीन (China) और ऑस्ट्रेलिया (Australia) जैसे देशों में आर्थिक रूप से आकर्षक है, और संभवत: तब तक रहेगा, जब तक कार्बन उत्सर्जन लागत मुक्त है।
गैस कई जगहों पर आधार-भार बिजली के लिए भी प्रतिस्पर्धी है, खासकर संयुक्त-चक्र संयंत्रों का उपयोग करके।वहीं परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाना महंगा है लेकिन चलाना अपेक्षाकृत सस्ता है। कई जगहों पर, परमाणु ऊर्जा बिजली उत्पादन के साधन के रूप में जीवाश्म ईंधन के साथ प्रतिस्पर्धी है। अपशिष्ट निपटान और बंद करने की लागत आमतौर पर परिचालन लागत में पूरी तरह से शामिल होती है। यदि जीवाश्म ईंधन की सामाजिक, स्वास्थ्य और पर्यावरणीय लागत को भी ध्यान में रखा जाए, तो परमाणु ऊर्जा इस विषय में भी ठीक है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी(OECD))के विवरण में, हालांकि, ऑस्ट्रेलिया (Australia) के थोरियम (Thorium) के यथोचित रूप से सुनिश्चित भंडार का अनुमान केवल 19,000 टन का संकेत देता है न कि 300,000 टन जैसा कि यूएसजीएस (USGS - संयुक्त राज्य भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण) द्वारा इंगित किया गया है। ब्राजील (Brazil), तुर्की (Brazil) और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के लिए दो स्रोत बेतहाशा भिन्न हैं, लेकिन दोनों विवरण भारत के थोरियम आरक्षित आंकड़ों के संबंध में 290,000 टन (USGS) और 319,000 टन (OECD/IAEA) के साथ कुछ स्थिरता दिखाती हैं।आईएईए की 2005के विवरण में अनुमान लगाया गया कि भारत में 319,000 टन थोरियम का उचित रूप से सुनिश्चित भंडार है, लेकिन 650,000 टन पर भारत के भंडार की हालिया विवरणों का उल्लेख है।आईएईए (IAEA- अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) और ओईसीडी दोनों इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि भारत के पास विश्व के थोरियम भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा हो सकता है। थोरियम अधिकांश चट्टानों और मिट्टी में कम मात्रा में पाया जाता है। मिट्टी में आमतौर पर औसतन लगभग 6 भाग प्रति मिलियन थोरियम होता है।थोरियमथोराइट (ThSiO4), थोरियनाइट (ThO2 + UO2) और मोनाजाइट सहित कई खनिजों में पाया जाता है।थोरियनाइट (Thorianite) एक दुर्लभ खनिज है और इसमें लगभग 12% थोरियमऑक्साइड (Thorium oxide) हो सकता है।मोनाजाइट (Monazite) में 2.5% थोरियम होता है, औरएलानाइट (Allanite) में 0.1 से 2% थोरियम होता है और जिरकोन (Zircon) में 0.4% थोरियम तक हो सकता है।थोरियम युक्त खनिज लगभग सभी महाद्वीपों पर पाए जाते हैं।यूरेनियम (Uranium) के सभी समस्थानिकों की तुलना में थोरियम पृथ्वी की पपड़ी में कई गुना अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और थोरियम -232 यूरेनियम -235 की तुलना में कई सौ गुना अधिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।गामा स्पेक्ट्रोस्कोपी (Gamma spectroscopy) का उपयोग करके पृथ्वी की सतह के पास थोरियम सांद्रता को मैप किया जा सकता है। चंद्रमा की सतह पर सांद्रता का पता लगाने के लिए इसी तकनीक का उपयोग किया जाता है।
जब पृथ्वी की पपड़ी में थोरियम कई गुना अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, तो हम खतरनाक यूरेनियम के बदले इसका उपयोग क्यों नहीं करते हैं? यूरेनियम और थोरियम में, मुख्य समानता यह है कि दोनों न्यूट्रॉन (Neutron) को अवशोषित कर सकते हैं और विखंडनीय तत्वों में बदल सकते हैं।इसका मतलब है कि थोरियम का इस्तेमाल यूरेनियम की तरह परमाणु प्रतिघातक को ईंधन देने के लिए किया जा सकता है। साथ ही यह अपने आप में विखंडनीय नहीं है (जिसका अर्थ है कि जब आवश्यक हो तो प्रतिक्रियाओं को रोका जा सकता है), तथा ऐसे अपशिष्ट उत्पादों का उत्पादन करता है जो कम रेडियोधर्मी होते हैं, और प्रति टन अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता है। तो हम पृथ्वी पर यूरेनियम का उपयोग क्यों कर रहे हैं?जैसा कि आपको याद होगा, परमाणु प्रतिक्रियाओं के मशीनीकरण में अनुसंधान को शुरुआती दौर में ऊर्जा बनाने की इच्छा से नहीं, बल्कि बम बनाने की इच्छा से प्रेरित किया गया था।वहीं थोरियम रिएक्टर प्लूटोनियम (Plutonium) का उत्पादन नहीं करते हैं, जो कि परमाणु बम बनाने के लिए आवश्यक होता है।साथ ही इसके कई उपयोग हैं, जैसे इसका उपयोग बिजली उत्पन्न करने, प्रकाश उत्पन्न करने, ऊर्जा संचारित करने, अत्यधिक उच्च तापमान का प्रतिरोध करने, धातुओं को शक्ति प्रदान करने और विद्युत धाराओं को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
थोरियम का नाम मेघगर्जन के प्राचीन नार्वेजियन देवता थोर (Thor) के नाम पर रखा गया है।इस खनिज की खोज 1828 में स्वीडिश (Swedish) रसायनज्ञ और खनिज-विज्ञानी जोंस जैकब बर्ज़ेलियस (Jons Jakob Berzelius) ने की थी।थोरियम ऑक्साइड एक ज्वाला से गर्म होने पर एक तीव्र चमकदार सफेद रोशनी का उत्सर्जन करता है और सौ से अधिक वर्षों से कैंपिंग लालटेन (Camping Lanterns), गैस लैंप (Gas lamp) और तेल लैंप में उपयोग किया जाता रहा है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3lLBWBY
https://bit.ly/3BMXTX5
https://bit.ly/3aL0yVc
https://bit.ly/30rMez3
https://bit.ly/3pn5pon

चित्र संदर्भ
1. इंडियन पॉइंट एनर्जी सेंटर "Indian Point Energy Center" (बुकानन, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका), दुनिया के पहले थोरियम रिएक्टर का एक चित्रण (wikimedia)
2. स्विट्जरलैंड में 1200 मेगावाट के लीबस्टाड परमाणु ऊर्जा संयंत्र, का एक चित्रण (wikimedia)
3. थोरियम डाइऑक्साइड गैस मेंटल का एक चित्रण (wikimedia)
4. थोरोसिन की सैंडविच अणु संरचना का एक चित्रण (wikimedia)



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