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विषम परिस्थितियों के बीच मरुस्थलीय जीवन की सुखद स्थिति

जौनपुर

 07-10-2021 07:54 PM
मरुस्थल

यदि हमारे कमरे में स्थापित वातानुकूलक (Air conditioner) का तापमान गलती से दो डिग्री भी ऊपर या नीचे हो जाए, तो बेचैनी हम पर हावी होने लगती है। पंखे और A.C का ख़राब हो जाना तो एक भयानक सपने जैसा होता है, किंतु यह हम इंसानों का नकारात्मक पहलु है, की हमने स्वयं को पूरी तरह तकनीक और मशीनों का आदि बना लिया है। इंसान कुदरत की सबसे शानदार रचना है, हमारे अंदर बेहद विषम परिस्थितियों जैसे: कम संसाधनों और मौसम के अनुरूप ढलने की गज़ब की क्षमता है, किंतु दुर्भाग्यवश तेज़ी से बढ़ते वैश्वीकरण और सुख-सुविधाओं की चाह में हम अपनी इस कुदरती क्षमता को निरंतर खो रहे हैं। लेकिन हमारी ही धरती पर सूखे मरुस्थलों में आज भी कई जनजातियां और समुदाय ऐसे हैं, जो बिना किसी अत्याधुनिक उपकरण की सहायता के भीषण गर्मी में बेहद विषम परिस्थितियों के बीच सुख-शांति से जीवन यापन कर रहे हैं।
भीषण गर्मी अथवा बेहद सर्दी वाला कोई भी ऐसा भौगोलिक क्षेत्र, जहाँ लंबे समय तक वर्षा अथवा हिमपात दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा में बेहद कम अथवा न के बराबर हो, वह स्थान प्रायः मरुस्थल अथवा रेगिस्तान कहलाता है। अतः स्वाभाविक रूप से यह स्थान पूरी तरह बंजर भूमि होता है, जहां का वातावरण जीवन अथवा पेड़-पोंधों के पनपने के प्रतिकूल होता है। हालांकि मरुस्थलीय क्षेत्र का रेतीला अथवा गर्म होना जरूरी नहीं है, क्यों की बर्फ से ढका एक विशाल क्षेत्र जैसे अंटार्कटिका भी विश्व का सबसे बड़ा मरुस्थल है। साथ ही विश्व के अन्य देशों में कई ऐसे मरुस्थल हैं, जो रेतीले नहीं है।
भारत में थार मरुस्थल (Thar Desert), जो की विश्व का 17वाँ सबसे बड़ा मरुस्थल है, जिसे महान भारतीय मरुस्थल (Great Indian Desert) के नाम से भी जाना जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तरी भाग में विस्तारित, इस मरुस्थलीय क्षेत्र की प्रकृति शुष्क है। यह भारत और पाकिस्तान में 209,000 किमी2 (77,000 वर्ग मील) फैला हुआ है, जिसका 85% भाग भारत और 15% भाग पाकिस्तान में है। यह दुनिया का 9वाँ सबसे बड़ा गरम उपोष्णकटिबन्धीय मरुस्थल है। जिसका अधिकांश लगभग 61.11% भाग राजस्थान राज्य में आता है।
राजस्थान में स्थित थार मरुस्थल में जनसंख्या घनत्व 83 व्यक्ति प्रति किमी 2 है, जो इसे विश्व सबसे अधिक आबादी वाला रेगिस्तान बनाता है, यहां तक की राजस्थान की कुल आबादी का लगभग 40% थार रेगिस्तान में ही रहता है। आजीविका के लिए यहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की यहां के लोगों की अपनी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत रही है, और लोक संगीत और लोक काव्य के प्रति लोगों में काफी लगाव है। राजस्थान के बीकानेर और जैसलमेर जैसे लोकप्रिय शहर भी मरुस्थल में ही स्थित हैं। हालाँकि बड़ी सिंचाई और बिजली परियोजना ने कृषि के लिए उत्तरी और पश्चिमी रेगिस्तान की पुनः स्थापना में बड़ा योगदान दिया है। यहाँ की अधिकांश छोटी आबादी देहाती है, और खाल और ऊन का व्यवसाय करती हैं। यहां के शुद्ध रेगिस्तानी क्षेत्रों में जानवरों और इंसानों की जलापूर्ति करने के लिए पानी के एकमात्र स्त्रोत केवल छोटे प्राकृतिक तालाब (तोबा) और मानव निर्मित तालाब (जिन्हे जोहड़ कहा जाता है) हैं।
अतः पानी की कमी से यहां का जनजीवन प्रभावित भी होता है, जिस कारण लोग खानाबदोश (मूलभूत आवश्कताओं के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना) जीवनशैली अपनाते हैं। यहाँ की अधिकांश स्थायी मानव बस्तियां करोन-झार पहाड़ियों की दो मौसमी धाराओं के पास स्थित हैं। पीने योग्य भूजल भी थार रेगिस्तान में दुर्लभ है। इसमें घुले हुए खनिजों के कारण इसका अधिकांश भाग खट्टा होता है। पीने योग्य पानी आमतौर पर जमीन के गहरे भूमिगत पर ही उपलब्ध होता है। मरुस्थलीय क्षेत्रों के इतने दुर्गम होने के बावजूद,कई ऐसे जातीय समूह हैं, जो इन रेगिस्तानों में कई पीढ़ियों से निवास कर रहे हैं। हालांकि इन लोगों को पानी और भोजन के साथ स्थानों की तलाश में कारवां बनाकर चलते रहना पड़ता है, जिनके सामने रेतीले तूफान, गाद से भरे कुएं और बिना मार्गदर्शन के चलने जैसी गंभीर चुनौतियां होती हैं। दुनियाभर की मरुस्थलीय घुमंतू प्रजातियों में उत्तरी अफ्रीका के काबिलिस और तुआरेग (Kabilis and Tuareg), अरबी रेगिस्तान के बेडौइन (Bedouin), नामीबिया में बेजस (Bezus), कालाहारी रेगिस्तान में सेन्स (Sans) और ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी भी शामिल हैं। तुआरेगस को रेगिस्तान में जीवन का प्रतीक माना जाता है। ये बकरी पालक होते हैं, तथा इन लोगों को "नीले पुरुष" (Blue Men) भी कहा जाता है, क्यों की ये भीषण गर्मी से बचने के लिए विशेष प्रकार के घूँघट का प्रयोग करते हैं। तुआरेग मुख्य रूप से अपने जानवरों से प्राप्त उत्पादों पर निर्भर रहते हैं, दही दूध, किण्वित मक्खन, खजूर और अनाज (विशेष रूप से बाजरा) आदि उनके प्रमुख खाद्य पदार्थ होते हैं। ये अधिकाशंतः शाकाहारी होते हैं, तथा किसी मेहमान के स्वागत में ही अपनी बकरी के मांस को खाते और खिलाते हैं। मूल रूप से, तुआरेग खानाबदोश प्रवृति के लोग थे, किंतु अनेक संघर्षों और फ्रांसीसी उपनिवेशवाद ने कुछ खानाबदोश लोगों को अपने जानवरों और अन्य खाद्य पदार्थों के उत्पादों पर जीवित छोड़ दिया गया। आज वे हस्तशिल्प जैसे चांदी के बर्तन, वे तन की खाल, चटाई बनाते हैं, और ड्रोमेडरी ऊन से कालीनों और वस्त्रों का उत्पादन करते हैं। चूंकि तुआरेग्स रेगिस्तान को अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिए वे टूर गाइड (Tour Guide) के रूप में भी काम करते हैं।
यदि तुआरेग को "सहारा के स्वामी" के रूप में माना जाता है, तो बेजस को भी रेगिस्तान के बड़े हिस्से पर अधिकार प्राप्त है। 4,000 से अधिक वर्षों से, बेजस अपने ऊंटों, मवेशियों, भेड़ों और बकरियों के लिए चरागाहों की तलाश में सूखे मरुस्थलों को पैरों से नाप रहे हैं। अधिकांश बेजस (कुल मिलाकर लगभग 1.5 मिलियन) सूडान के उत्तर-पूर्व में रहते हैं। उनके घुंघराले बालों के कारण उन्हें "फ़ज़ी-वज़ीज़" (Fuzzy Wuzzy) कहा जाता है। ये बेहद बहादुर और मजबूत लोग माने जाते हैं। यहां तक कि उन्होंने न केवल मिस्रियों, यूनानियों और रोमनों के अत्याचारों का विरोध किया, बल्कि 19 वीं शताब्दी में उन्होंने सुसज्जित और प्रशिक्षित तरीकों से ब्रिटिश सेना के खिलाफ एक लड़ाई भी जीती। इस लड़ाई में उन्होंने चांदी की जड़ वाली तलवारें, मुड़े हुए चाकू, हाथी की खाल की गोल ढालें ​​और एक बहुत पुराना हथियार, "थ्रो स्टिक", का भी इस्तेमाल किया। राजस्थान के रेगिस्तान ने भी पिछले15-20 वर्षों के दौरान कई बड़े बदलाव देखे, जिसमे प्रमुख तौर पर मानव और पशु दोनों की आबादी में कई गुना वृद्धि शामिल है। वर्तमान में राजस्थान में मनुष्यों की तुलना में 10 गुना अधिक पशु हैं, थार रेगिस्तान में बड़ी संख्या में किसान अपनी आजीविका के लिए पशुपालन पर निर्भर रहते हैं। क्यों की कृषि की- कठिन परिस्थितियों के कारण पशुपालन लोकप्रिय हो गया है।
यहाँ मवेशी, भैंस, भेड़, बकरी, ऊंट और बैल जैसे सभी जानवर पाए जाते हैं। पशु पालन की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात लगा सकते हैं की राजस्थान का थार क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा ऊन उत्पादक क्षेत्र है। साथ ही भारत में कुल ऊन उत्पादन का 40-50% राजस्थान में होता है। राजस्थान की भेड़-ऊन को कालीन बनाने वाले उद्योग के लिए विश्व में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। अकाल के समय ने खानाबदोश रेबारी लोग भेड़ों और ऊंटों के बड़े झुंडों के साथ दक्षिण राजस्थान या आसपास के राज्यों जैसे मध्य प्रदेश के जंगलों में अपने पशुओं को चराने के लिए चले जाते हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3afL37t
https://bit.ly/2Ys61NI
https://bit.ly/3oFSVHL
https://bit.ly/3oHvtu0

चित्र संदर्भ
1. थार रेगिस्तान में झोपड़ियो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. जैसलमेर, भारत के पास मरुस्थलीय जनजातियों का एक चित्रण (wikimedia)
3. थार रेगिस्तान में मवेशीयो एक चित्रण (wikimedia)
4. मानव निर्मित तालाब (जिन्हे जोहड़ कहा जाता है), को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मरुस्थल में चरती बकरियों का एक चित्रण (flickr)
6. मारवाड़ी भेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)




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