घातक रोगों से मुक्ति दिलाती हैं माता शीतला

जौनपुर

 04-10-2021 10:52 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

यदि यह जानना हो की कोई धर्म कितना महान है, तो उसका सबसे आसान तरीका यह है की पहले यह समझें की उस धर्म में नारी को क्या स्थान दिया गया है? अथवा क्या स्त्री को सम्मान दिया जाता है? इस परिपेक्ष्य में यदि हम सनातन धर्म की बात करें तो यहां स्त्री को न केवल पुरुष के बराबर माना गया है, बल्कि कई मायनों में नारी शक्ति को पुरुष से श्रेष्ट भी माना गया है। यहां तक की हिन्दू धर्म में करोड़ों देवी-देवता भी धरती पर मनुष्य के सामान ही बराबरी से बटे हैं! धरती पर मनुष्य रूप में देवताओं के सामान ही हिन्दू देवियों ने भी जीव कल्याण के लिए समय-समय पर विभिन्न अवतार लिए हैं, और ईश्वर के इन्ही देवीय अवतारों में माता शीतला के रूप में माँ शक्ति स्वयं भी पृथ्वी पर अवतरित हुई हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप (विशेष तौर पर उत्तर भारत) में शीतला माता को परम पूजनीय माना गया है। शीतला माता को भगवान शिव की अर्धांगिनी, माता पार्वती का ही एक अवतार माना जाता है। माँ पार्वती के शीतला अवतार को रोगहारक अर्थात सभी रोगों को नष्ट करने वाली माँ, के रूप में पूजा जाता है।
भक्तों का विश्वाश है की माता चेचक, घावों, घोल, फुंसी और अन्य बीमारियों से पीड़ित रोगियों के कष्ट हरती हैं! विशेष तौर पर माता शीतला की उपसना चेचक रोगियों के संदर्भ में बेहद प्रशंसित है। माना जाता है की उनकी दया दृष्टि से हैजा जैसे घातक रोग भी ठीक हो जाते हैं। अष्टमी के अवसर पर रंगों के त्योहार (होली) के आठवें दिन देवी शीतला की पूजा की जाती है। स्कंद पुराण में यह वर्णित है की, जब भगवान शिव के पसीने से ज्वारासुर नामक दानव का जन्म हुआ, जिसने पूरे विश्व में बेहद संक्रामक रोग और बीमारियां फैला दी! तब सभी देवी देवताओं ने मिलकर माता पार्वती की आराधना की और एक यज्ञ का आयोजन किया। माना जाता है की उस यज्ञ की अग्नि से ही माता शीतला प्रकट हुई। उनका रूप बेहद अद्भुद था, वह गधे पर विराजमान थी जिनके हाथों में एक बर्तन और झाड़ू थी। शीतला माता को एक युवा युवती के रूप में दर्शाया जाता है, जिन्हे एक पंखे (कुलो) का ताज पहनाया गया है, जो गधे की सवारी करती है, जिनके हाथ में एक झाड़ू (कीटाणु और रोग को दूर करने के लिए) और ठंडे गंगा के पानी से भरा एक बर्तन रखा हुआ है, (अनावश्यक स्वास्थ्य समस्याओं को धोने और साफ करने के लिए) के रूप में दर्शाया जाता है। बंगाल में कई आदिवासी समुदायों में, इन्हे स्लैब-पत्थरों या नक्काशीदार सिरों के साथ दर्शाया गया है। मान्यता है की माता शीतला ने संसार को ज्वारासुर के घातक रोगों से मुक्ति दिलाई, और तभी से ज्वारासुर उनका दास बन गया। संस्कृत में ज्वर का अर्थ है 'बुखार' और शीतल का अर्थ है, 'शीतलता'। शीतला को कभी-कभी ज्वरासुर, ज्वर दानव के साथ भी चित्रित किया जाता है।
विश्व से सबसे प्राचीन भाषा मानी जाने वाली संस्कृत में शीतला का शाब्दिक अर्थ होता है "वह जो शीतलता अथवा ठंडक प्रदान करे"। शीतला माता को केवल "माँ" कहकर भी उच्चरित किया जाता है इसके अलावा भी शीतला माता को अन्य प्रचलित नामों जैसे एक मौसम की देवी (वसंत, यानी वसंत), ठकुरानी, ​​जागरानी ('दुनिया की रानी'), करुणामयी, दयामयी ('वह जो दया से भरी हुई है'), मंगला (शुभ करने वाली'), भगवती ('देवी'), से भी अनुसरित किया जाता है। दक्षिण भारत में मरिअम्मन को शीतला माता की भूमिका दी जाती है जिनकी पूजा द्रविड़-भाषी लोग करते हैं। हिन्दू धर्म के अलावा बौद्ध और प्राचीन आदिवासी समुदायों में उनकी पूजा की जाती है। स्कंद पुराण के अलावा उनका उल्लेख तांत्रिक और पौराणिक साहित्य में भी मिलता है, साथ ही स्थानीय ग्रंथों (जैसे बंगाली 17 वीं शताब्दी शीतला-मंगल-कब्यास, मणिक्रम गंगोपाध्याय द्वारा लिखित 'शुभ कविता') उनकी उपस्थिति को और अधिक ठोस आधार दिया। हिंदू समाज में माता शीतला की पूजा मुख्य रूप से सर्दियों और वसंत के शुष्क मौसम में की जाती है, जिसे शीतला सतम के नाम से जाना जाता है, और यह पूजा केवल महिलाएं ही करती हैं। बौद्ध संस्कृति में, ज्वरासुर और शीतला को कभी-कभी बीमारियों की बौद्ध देवी पर्णशबरी के साथी के रूप में चित्रित किया जाता है। जिनकी पूजा बाहरी लोगों से फैलने वाले संक्रामक रोगों से प्रभावी सुरक्षा प्रदान करने के लिए की जाती है। ढाका में पाल काल की खुदाई में पर्णशबरी की मूर्तियां मिली हैं। यह मूर्तियां मुख्य देवी के रूप में हैं, और हिंदू देवताओं ज्वरासुर और शीतला
द्वारा अनुरक्षित हैं। इसके अलावा भारत में, कुर्किहार होर्ड में 10वीं-12वीं शताब्दी से संबंधित पर्णशबरी की सात कांस्य मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। बौद्ध धर्म में, पर्णशबरी को इसी नाम के बौद्ध देवता, तारा के परिचारक के रूप में दर्शाया गया है। पूरे भारत में माता शीतला के भव्य मंदिर देखने को मिल जाते हैं, हमारे जौनपुर शहर में मां शीतला चौकिया देवी का काफी पुराना मंदिर है। यहां शिव और शक्ति की पूजा होती है। प्रति सोमवार और शुक्रवार को यहां काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां भारी भीड़ जमा होती है।

संदर्भ
https://bit.ly/3iNcJFJ
https://bit.ly/3irdSCk
https://en.wikipedia.org/wiki/Shitala
https://bit.ly/3osQ1pO
https://en.wikipedia.org/wiki/Jvarasura
https://bit.ly/3a5i0Ud

चित्र संदर्भ
1. कालीघाट शीतला का एक चित्रण (wikimedia)
2. माता शीतला की छवि का एक चित्रण (thehindi)
3. माता शीतला की मूर्ति का चित्रण (wikimedia)
4. गुरुग्राम में स्थित माता शीतला का एक चित्रण (Youtube)



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