बचपन और खिलौने

जौनपुर

 27-09-2021 12:06 PM
हथियार व खिलौने

यद्दपि बढ़ती उम्र के साथ इंसान अपने बचपन की अधिकांश स्मृतियों को भूलने लगता है। केवल एक चीज जो मरते दम तक नहीं भुलाई जा सकती वह है, "हमारा पहला खिलौना"! वह खिलौना एक प्यारी सी गुड़िया हो सकती है, छोटी सी गाड़ी हो सकती है अथवा चमकीली गेंद हो सकती है। जिन्हें ढेरों मिन्नतें करने के बाद हमारे माता-पिता हमारे लिए लाये थे, अथवा उनमे से कुछ हमें जन्मदिन के अवसर पर मिले थे। आज भी यदि बाज़ारों में कहीं हमें उन खिलौनों से मिलता-जुलता कोई खिलौना दिख जाए, तो बचपन की सारी यादें ताज़ा हो जाती है। खिलौनों की ही भांति उनकी उत्पत्ति भी बेहद गहरीऔर मज़ेदार है।
छोटे बच्चों को खिलौने न केवल मनोरंजन के लिए दिए जाते हैं, बल्कि वह बच्चों के समुचित और संतुलित विकास में भी अहम् भूमिका निभाते हैं। न केवल इंसान बल्कि जानवरों के नन्हें शिशुओं को भी खिलौनों से विशेष लगाव रहता है। मनोंरजन के साथ-साथ खिलौने बच्चो के जीवन में शैक्षिक भूमिका भी निभाते हैं। खिलौने संज्ञानात्मक व्यवहार को बढ़ाते हैं, और रचनात्मकता को उत्तेजित करते हैं। ये बच्चों में उन मूलभूत शारीरिक और मानसिक कौशल का विकास करते है, जो भविष्य में उनके लिए बेहद लाभदायक साबित होता है।
उदारहण के लिए साधारण पत्थरों के अलग-अलग टुकड़े, बच्चे में गणित और गुरुत्वाकर्षण से संबंधित उत्सुकता को बड़ा सकते हैं। अन्य खिलौने जैसे मार्बल, जैकस्टोन और गेंद आदि बच्चों को स्थानिक संबंधों और प्रभाव के बारे में जानने के लिए, अपने दिमाग और शरीर का उपयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं। खिलौने बच्चों के शारीरिक विकास, संज्ञानात्मक विकास, भावनात्मक विकास और सामाजिक विकास को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। प्रायः शिशुओं के लिए खिलौने अक्सर विशिष्ट ध्वनियों, चमकीले रंगों और अद्वितीय बनावट खिलौनों का प्रयोग किया जाता है। इन खिलौनों के साथ खेलने से शिशु आकार और रंगों को पहचानने लगते हैं, खिलौने उनकी याददाश्त को मजबूत करते हैं। साथ ही प्ले-दोह (Play Dough), सिली पुट्टी और अन्य व्यावहारिक खिलौने, बच्चे को अपने खुद के खिलौने बनाने की अनुमति देते हैं, जिससे उनकी रचनात्मकता का भी विकास होता है। बढ़ती उम्र के साथ खिलौनों का प्रकार और प्रारूप आदि भी बदल जाते हैं।
स्कूली उम्र के बच्चों के लिए शैक्षिक खिलौनों में अक्सर एक पहेली, समस्या-समाधान तकनीक या गणितीय प्रस्ताव वाले खिलौनों को शामिल किया जाता है। किशोर या वयस्क के लिए विशेष विज्ञानं खिलौने डिजाइन किये जाते हैं, जैसे न्यूटन (Newton) का पालना, साइमन प्रीबल (Simon Prebble) द्वारा डिजाइन किया गया एक डेस्क खिलौना है जो गति और ऊर्जा के संरक्षण को प्रदर्शित करता है, जो वयस्क के भीतर विज्ञानं संबंधी समझ को विकसित करता है। हालाँकि सभी खिलौने सभी उम्र के बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। यहां तक ​​​​कि कुछ खिलौने बच्चों के विकास को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। उम्र के साथ-साथ लड़का और लड़की के खिलौनों के चुनाव करने में भी अंतर देखा गया है।उदाहरण के लिए, बार्बी डॉल (Barbie Doll) को कभी 8 साल की उम्र की लड़कियों के लिए बेचा जाता था, तथा लड़के यांत्रिक खिलौनों से खेलने की इच्छा रखते हैं। हालांकि बच्चे किसी भी वस्तु को खिलौना बना सकते हैं, लेकिन परंपरिक तौर पर खिलौने बनाने के लिए लकड़ी, मिट्टी, कागज और प्लास्टिक जैसी विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। खिलौनों की उत्पत्ति प्रागैतिहासिक मानी जाती है। कई प्राचीन पुरातात्विक स्थलों पर, शिशुओं, जानवरों और सैनिकों का प्रतिनिधित्व करने वाली गुड़िया के साथ ही वयस्कों द्वारा उपयोग किए जाने वाले औजारों भी प्राप्त हुए हैं । हालाँकि "खिलौना" शब्द की उत्पत्ति अनिश्चित है, किन्तु ऐसा माना जाता है कि इसका इस्तेमाल पहली बार 14 वीं शताब्दी में किया गया था। सबसे पुराना ज्ञात गुड़िया खिलौना 4,000 साल पुराना माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता (3010–1500 BCE) से प्राप्त खिलौनों में छोटी गाड़ियां, पक्षियों के आकार की सीटी, और खिलौना बंदर शामिल हैं। प्राचीन खिलौने प्रकृति में पाए जाने वाले पदार्थों जैसे चट्टानों, लाठी और मिट्टी से बनाए जाते थे। हजारों साल पहले, मिस्र के बच्चे उन गुड़ियों के साथ खेलते थे, जिनमें विग और जंगम अंग होते थे, तथा जो पत्थर, मिट्टी के बर्तनों और लकड़ी से बने होते थे। प्राचीन ग्रीस और प्राचीन रोम (Ancient Greece and Rome) के बच्चे मोम या टेराकोटा से बनी गुड़िया, लाठी, धनुष और तीर और यो-यो से खेलते थे। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की सबसे पुरानी ज्ञात यांत्रिक पहेली भी ग्रीस की ही मानी जाती है। समय के साथ पतंग, चरखा और कठपुतली आदि लोकप्रिय खिलौनों में शामिल हुए। उन्नीसवीं शताब्दी में शैक्षिक उद्देश्य की पूर्ती करने वाले खिलौनों से पहेलियाँ, किताबें, कार्ड और बोर्ड गेम आदि पर ज़ोर दिया गया। खिलौनों के संदर्भ में भारत का भी संपन्न इतिहास रहा है, यहां पर कटपुतली, पतंग, लट्टू, डमरू जैसे कही पारंपरिक खिलौनों का प्राचीन इतिहास है, उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर अपने लकड़ी के लाह के बर्तन और लकड़ी के खिलौनों के लिए प्रसिद्ध है।
वाराणसी लाख के खिलौनों और छोटे बर्तनों के लिए जाना जाता है, जिनमे पक्षियों, जानवरों, आर्केस्ट्रा, सैनिकों और नृत्य कलाकारों के सेट लकड़ी में बने होते हैं। इन लकड़ी के खिलौनों के निर्माण हेतु चित्रकूट और सोनभद्र के जंगलों जैसे आस-पास के क्षेत्रों से लकड़ी के लट्ठे मंगवाए जाते थे। खिलौने बनाने के लिए केरिया (कोरैया) की लकड़ी अभी भी पसंदीदा प्रकार की लकड़ी है। लेकिन 1980 के दशक में सरकार द्वारा केरिया के पेड़ों को काटने पर प्रतिबंध लगाने के बाद, कारीगरों ने यूकेलिप्टस (eucalyptus) की लकड़ी का उपयोग करना शुरू कर दिया है। समय के साथ खेल और खिलौनों का प्रारूप भी निरंतर बदलता रहता है। आज बाज़ारों में लकड़ी के खिलौनों की जगह इलेक्ट्रॉनिक खलौनों ने ले ली है, लेकिन हमारे बचपन के सुनहरी यादों के पारंपरिक खिलौनों हमेशा प्रासंगिक रहेंगे।

संदर्भ
https://bit.ly/3inNppB
https://bit.ly/3CHCej1
https://bit.ly/3EN1wOA
https://en.wikipedia.org/wiki/Toy

चित्र संदर्भ
1. खिलौनों से खेलते नन्हे बच्चों का एक चित्रण (flickr)
2. साथ बैठकर खिलौनों की पहेली को सुलझाते परिवार का एक चित्रण (adobestock)
3. पहियों पर छोटा घोड़ा, 950-900 ईसा पूर्व के एक मकबरे से प्राप्त प्राचीन यूनानी बच्चों के खिलौने का चित्रण (wikimedia)
4. भारत से विभिन्न प्रकार के पारंपरिक लकड़ी के चन्नापटना खिलौनों का एक चित्रण (wikimedia)



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