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जौनपुर में मुख्यतः बलुई‚ जलोढ़ या बलुई दोमट मिट्टी पाई जाती है। गोमती नदी के
किनारे स्थित होने के कारण यहाँ की जलोढ़ मिट्टी का अनुपात उत्तर प्रदेश में औसत से
अधिक है। वैश्विक गरीबी मानचित्र और मानक मृदा उत्पादकता उपायों का उपयोग करते
हुए‚ हम पाते हैं कि अफ्रीका (Africa) के सबसे गरीब जिलों में मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर
होने की संभावना है और खराब सड़कों वाले जिलों में भूमि की उर्वरता अधिक है। अध्ययन
बताता है कि परिवहन लागत अफ्रीका में गरीबी का मुख्य कारण है और यह अलगाव मिट्टी
की गुणवत्ता को अभिशाप में बदल सकता है। मुख्यत:‚ खराब बुनियादी ढांचे वाले जिलों में‚
मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होने पर गरीबी दर बढ़ जाती है। हम पाते हैं कि इन परिणामों को
प्रचुर मात्रा में कृषि संसाधनों वाले अलग-अलग जिलों में अपेक्षाकृत कम मानव पूंजी निवेश
के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हम वर्तमान परिवहन लागतों के लिए एक उपकरण
के रूप में औपनिवेशिक सड़क नेटवर्क (Network) का उपयोग करके कार्य-कारण का प्रमाण
प्रदान करते हैं।
अफ्रीका में मिट्टी की गुणवत्ता और गरीबी के बीच सकारात्मक सहसंबंध से पता चलता है
की‚ बुनियादी ढांचे की कमी और बाजारों तक सीमित पहुंच के कारण‚ संसाधनों का व्यापक
उपयोग नहीं हो रहा है‚ जिसके चलते गरीबी की खाई बढ़ती ही जा रही है।
कई नीति
निर्माताओं और कृषि अर्थशास्त्रियों के बीच उर्वरक के उपयोग पर वर्तमान जोर‚ गुमराह कर
रहे हैं‚ इस स्थिति को सुधारने के लिए ग्रामीण बुनियादी ढांचे और मानव पूंजी निवेश पर
अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। सड़कें बाजारों तक पहुंच की सुविधा प्रदान करती हैं‚ तथा
स्थानीय स्तर पर स्कूलों की उपस्थिति मानव पूंजी में निवेश के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती
है। नई तकनीकों को अपनाने की कम दर और कई ग्रामीण समुदायों में उर्वरक का उपयोग
करने की अनिच्छा‚ विरोधाभासी रूप से‚ खराब ग्रामीण बुनियादी ढांचे के संयोजन और
अपेक्षाकृत उच्च गुणवत्ता वाली भूमि की उपलब्धता से प्रेरित हो सकती है। इसलिए ग्रामीण
बुनियादी ढांचे और सामान्य रूप से स्थानीय सार्वजनिक वस्तुओं पर विकास एजेंसियों के
बीच बढ़ती दिलचस्पी अफ्रीका में ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के लिए एक
आशाजनक अवसर है।
मिट्टी एक जीवित इकाई है। एक स्वस्थ मिट्टी में जीवित जीवों का वजन लगभग 5 टन
प्रति हेक्टेयर होता है। मृदा बायोटा की गतिविधि और प्रजातियों की विविधता कई आवश्यक
पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए जिम्मेदार है। मृदा कार्बनिक पदार्थ सामग्री मिट्टी के
स्वास्थ्य का एक संकेतक है‚ और यह जड़ क्षेत्र में वजन के हिसाब से लगभग 2.5% से
3.0% है। भूमि का दुरुपयोग और मिट्टी का कुप्रबंधन मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल
प्रभाव डाल सकता है और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को कमजोर कर सकता है। फसल के
अवशेषों को जलाने‚ फसल अवशेषों को हटाने‚ अत्यधिक जुताई‚ बाढ़ आधारित सिंचाई तथा
रसायनों के अंधाधुंध उपयोग जैसी कृषि पद्धतियां मिट्टी के स्वास्थ्य को खराब कर सकती
हैं। उत्तर पश्चिमी भारत और अन्य जगहों की अधिकांश फसल भूमि में‚ मृदा कार्बनिक पदार्थ
सामग्री अक्सर 0.5% से कम होती है। इससे फसल की पैदावार कम और स्थिर हो जाती है।
पंजाब‚ हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिट्टी का क्षरण हो रहा है। मृदा में कार्बनिक
पदार्थ सामग्री 0.1% जितनी कम हो गई है। ईंट निर्माण ने उपजाऊ ऊपरी मिट्टी को नष्ट
कर दिया है‚ तथा बाढ़ के कारण कुछ हिस्सों में जल-जमाव और खारापन हो गया है।
रसायनों के अत्यधिक‚ अंधाधुंध व अनुचित उपयोग ने सतह और भूजल को प्रदूषित किया
है। अक्टूबर-नवंबर में खेतों में जलाए जाने वाले अवशेषों से वायु भी प्रदूषित होती है‚ तथा
अनाज के अवशेषों को प्लास्टिक की चादरों के नीचे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। इन
प्रथाओं को रोका जाना चाहिए।
मिट्टी‚ पानी और जमीन का सम्मान किया जाना चाहिए
और इसका सही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इस कहावत का पालन करना महत्वपूर्ण है
कि‚ ‘मिट्टी‚ पौधों‚ जानवरों‚ लोगों और पर्यावरण का स्वास्थ्य एक और अविभाज्य है’। एक
बार जब मिट्टी का स्वास्थ्य खराब हो जाता है‚ जैसा कि भारत के अधिकांश क्षेत्रों में होता
है‚ तो लोगों का स्वास्थ्य और कल्याण भी खतरे में पड़ जाता है। इन प्रवृत्तियों को उलट
दिया जाना चाहिए।
मिट्टी के वैज्ञानिक और 2020 के विश्व खाद्य पुरस्कार (World Food Prize) के विजेता
रतन लाल का कहना है कि रसायनों के अधिक उपयोग और फसल अवशेषों को जलाने जैसी
कृषि पद्धतियां‚ भारतीय मिट्टी को खराब कर रही हैं और नागरिकों के स्वास्थ्य को खतरे
में डाल रही हैं। रतन लाल‚ जो वर्तमान में ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी (Ohio State
University) में कार्बन मैनेजमेंट एंड सीक्वेस्ट्रेशन सेंटर (Carbon Management and
Sequestration Center) के निदेशक हैं‚ उनके अनुसार भारत को एक राष्ट्रीय मृदा संरक्षण
नीति तैयार करने और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए किसानों को भुगतान करने की
आवश्यकता है। प्रमुख कृषि भूमि का सीमांकन किया जाना चाहिए तथा शहरीकरण और
अन्य गैर-कृषि उपयोगों के खिलाफ‚ संरक्षित किया जाना चाहिए। मिट्टी का अधिकार या
प्रकृति का अधिकार होना चाहिए। कुछ प्रबंधन पद्धतियां‚ संक्रमण के पहले कुछ मौसमों के
दौरान पारंपरिक प्रथाओं के रूप में उतनी उपज नहीं दे सकती हैं। इस प्रकार‚ किसानों को
पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के भुगतान के माध्यम से मुआवजा दिया जाना चाहिए‚ जो प्रति
वर्ष लगभग 1200 प्रति एकड़ हो सकता है। प्राकृतिक परिस्थितियों के तहत‚ मिट्टी कार्बन
का सबसे बड़ा भंडार है। मिट्टी का कटाव और क्षरण मिट्टी को ग्रीनहाउस गैसों का स्रोत
बनाता है।
मीथेन (methane)‚ कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) की तुलना में ग्लोबल
वार्मिंग (Global warming) पैदा करने में 21 गुना अधिक शक्तिशाली है‚ तथा नाइट्रस
ऑक्साइड (nitrous oxide) 310 गुना अधिक शक्तिशाली है। पानी और हवा द्वारा त्वरित
मिट्टी के कटाव से मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ निकल जाते हैं और वातावरण में कार्बन
डाइऑक्साइड‚ मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। इसके विपरीत‚ कटाव
नियंत्रण और बेहतर कृषि पद्धतियों को अपनाने से वातावरण से कार्बन-डाइऑक्साइड और
मीथेन (methane) को हटाया जा सकता है। मिट्टी और कृषि का सतत प्रबंधन ग्लोबल
वार्मिंग का समाधान है। भारत 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता प्राप्त करने के लिए
हस्ताक्षरी है। टिकाऊ कृषि प्रथाओं को अपनाने से भारत को अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा
करने में मदद मिल सकती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3C9TOfv
https://bit.ly/3lfChf0
https://bit.ly/3ly8P47
https://bit.ly/3z2PAUY
https://bit.ly/3k6DQfX
https://bit.ly/2XarBGA
चित्र संदर्भ
1. पृथ्वी की आकृति और मिट्टी की पोंध का एक चित्रण (flickr)
2. मिट्टी की स्वास्थ जांच को संदर्भित करता एक चित्रण (adobestock)
3. मिट्टी की विभिन्न परतों का एक चित्रण (wikimedia)
4. पहाड़ों में मिट्टी के कटाव को दर्शाता एक चित्रण (Tribune India)
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