पृथ्वी के निर्माण प्रक्रिया नें वर्तमान में प्रयोग की जाने वाली कई वस्तुओं का उद्भव किया।
जीवों से लेकर, पहाड़, पर्वत, समुद्र नदी आदि का। भारत के लगभग सभी जिलों और शहरों में इनका कुछ ना कुछ योगदान होता है। शुरुआती जीवों में एक कोशीय जीव प्रमुख थे तथा कालांतर में बहुकोशीय जीवों का भी उद्भव हुआ। इसीलिए कोशिका को समझना महत्वपूर्ण हो जाता है। कोशिकाएं जीवों में ही नहीं अपितु वनस्पतियों में भी पायी जाती हैं।
कोशिका क्या है? तथा शरीर से इसका सम्बन्ध क्या है? ये समझने के लिये कोशिका के इतिहास को समझना अत्यन्त आवश्यक है। कोशिका की सर्वप्रथम खोज का श्रेय अंग्रेज वैज्ञानिक राबर्ट हुक को जाता है। और राबर्ट ब्राउन द्वारा कोशिका के केंद्रक की खोज की गयी। दुजार्डिन ने कोशिका के अंदर पाये जाने वाले विभिन्न पदार्थों की खोज कर इन्हे सारकोड का नाम दिया। हूगो वान मोल ने पादप कोशिकाओं में पाये जाने वाले विभिन्न पदार्थों की खोज की जिन्हें जे.ई. पूरकिंजे ने जीव द्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) का नाम दिया। श्वान तथा श्लाइडेन द्वारा कोशिका सिद्धान्त का प्रतिपादन। इसमें कहा गया कि कोशिका सब जीवों की संरचना एवं उनके कार्य की मूल इकाई है।
सभी जीव, कोशिका या कोशिका समूह से बने होते हैं। कोशिकाएं आकार व आकृति तथा क्रियाओं में कार्य की दृष्टि से भिन्न होती हैं। झिल्लीयुक्त केन्द्रक व अन्य अंगकों की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर कोशिका या जीव को प्रोकैरियोटिक या यूकैरियोटिक नाम से जानते हैं।
एक प्रारूपी युकैरियोटिक कोशिका; केंद्रक व कोशिका द्रव्य से बना होता है। पादप को शिकाओं में कोशिका केंद्रक व कोशिका भित्ति पायी जाती है। जंतु कोशिकाओं में तारककेंद्र कोशिका विभाजन के दौरान तर्कु उपकरण बनाती है। केंद्रक में केंद्रिक व क्रोमोटीन का तंत्र मिलता है। यह अंगकों के कार्य को ही नियंत्रित नहीं करता, बल्की आनुवांशिकी में प्रमुख भूमिका अदा करता है। अतः कोशिका जीवन की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है।
प्रत्येक कोशिका की एक संरचना होती है जिसके द्वारा ने विशिष्ट कार्य जैसे श्वसन, पोषण, तथा अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन अथवा नई प्रोटीन बनाने में सहायता करते हैं।
कोशिकायें पृथ्वी पर इसके ठंडे होने के दौरान आयी।
पृथ्वी एक समय आग का गोला थी जिसपर कई वर्षों तक रासायनिक प्रक्रियायें होती रहीं, तमाम प्रक्रिया होने के उपरान्त पृथ्वी पर कई वर्षों तक वर्षा हुई तथा पूरी पृथ्वी जलमग्न हो गयी। पानी की उपलब्धता व वातावरण में बदलाव नें प्रथम जीव को पृथ्वी पर आने का अवसर दिया और एक कोशीय जीवों की उत्पत्ती हुई। अमीबा, पैरामिसियम आदि जीव एक कोशीय हैं तथा वर्तमान काल में भी ये विद्यमान हैं। जौनपुर में गड़्ढों व तालाबों आदि में ये जीव आराम से पाये जाते हैं। इनको खाली आँखों से देखा जाना असम्भव है इस कारण इन्हे देखने के लिये सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग किया जाता है।
मानव बहुकोशीय प्राणी होता है।
जैसा की जौनपुर में किसी प्रकार का समुद्र आज दिखाई नही देता है परन्तु समुद्र का एक अहम योगदान यहाँ के वातावरण पर पड़ता है। जौनपुर एक कृषक जिला है तथा यहाँ पर वर्षा की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। समुद्र का वर्षा में योगदान जौनपुर के लिये प्राणदायी है। वैसे तो बालू के अलाँवा कोई खनिज जौनपुर जिलें में नही पाया जाता पर यहाँ पर विभिन्न खनिज पदार्थों को आयात किया जाता है। जो भारत के विभिन्न खननक्षेत्रों से आते हैं।
1. माइक्रोबायोलॉजीः प्रस्तावना, गिरजेश कुमार।
2. बायोलॉजी फॉर क्लास 12, ओ.पी. सक्सेना।
3. जियोलॉजी एण्ड मिनरल रिसोर्सेस ऑफ़ इंडिया, जियोलॉजी सर्वे ऑफ़ इंडिया।
4. इवोल्यूशन ऑफ़ लाईफ, एम. एस. रन्धावा, जगजीत सिंह, ए.के. डे, विश्नू मित्तरे।
5. द इवोल्युशन ऑफ़ मॉमल्स, एल. बी. हॉल्सटीड।