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पक्षियों के प्रवास का इतिहास व भारत के प्रमुख प्रवासी पक्षी

जौनपुर

 02-09-2021 09:24 AM
पंछीयाँ

पक्षी‚ मौसमी तापमान के वैश्विक अंतर का लाभ उठाने के लिए पलायन करते रहते हैं। ये प्रवास पक्षियों के विभिन्न समूहों के बीच भिन्न-भिन्न होते हैं तथा खाद्य स्रोतों और प्रजनन आवास की उपलब्धता के अनुकूल होते हैं। प्रशांत (Pacific) क्षेत्र में‚ माइक्रोनेशियन (Micronesians) और पॉलिनेशियन (Polynesians) द्वारा उपयोग की जाने वाली पारंपरिक लैंडफाइंडिंग (land finding) तकनीकों से पता चलता है कि‚ पक्षियों के प्रवासन को 3000 से अधिक वर्षों पहले से देखा जा रहा है तथा कई एतिहासिक ग्रन्‍थों में इसका उल्‍लेख भी किया गया है। प्राचीन यूनानी लेखकों हेसियोड (Hesiod)‚ होमर (Homer)‚ हेरोडोटस (Herodotus) और एरिस्टोटल (Aristotle) द्वारा लगभग 3000 साल पहले यूरोप (Europe) में पक्षियों के प्रवास को दर्ज किया था।
प्रवासन एक नियमित मौसमी परिवर्तन के साथ होता है, या फिर प्रजनन हेतु भी पक्षी प्रवास करते हैं।कभी-कभी‚ यात्रा को वास्‍तविक प्रवास नहीं कहा जाता है क्योंकि ये अनियमित या केवल एक ही दिशा में होती हैं। गैर-प्रवासी पक्षियों को निवासी या गतिहीन कहा जाता है। दुनिया की 10‚000 पक्षी प्रजातियों में से लगभग 1800 प्रजातियां ही लंबी दूरी के प्रवासी हैं। यही प्रवास पक्षियों के शिकार एवं उनकी उच्‍च मृत्‍यु दर का कारण बनता है, मुख्‍यत: उत्तरी गोलार्ध में भोजन प्राप्ति के उद्देश्‍य से मनुष्‍यों द्वारा इनका उच्‍च मात्रा में शिकार किया जाता है। प्रवासन का समय मुख्य रूप से दिन की अवधि में परिवर्तन से नियंत्रित होता है। पक्षी सूर्य और सितारों के आकाशीय संकेतों‚ पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र तथा मानसिक मानचित्रों का उपयोग करके पलायन के लिए संचालन करते हैं। कई पक्षियों का समूह हवाई रास्तों द्वारा लंबी दूरी तय करता है। जिसमें सबसे आम समशीतोष्ण या आर्कटिक (Arctic) गर्मियों में प्रजनन के लिए वसंत में उत्तर की ओर उड़ना तथा शरद ऋतु में दक्षिण में गर्म क्षेत्रों में सर्दियों के मैदानों में लौटना शामिल है। जबकि दक्षिणी गोलार्ध (Southern Hemisphere) में दिशाएँ बदल जाती हैं‚ लेकिन लंबी दूरी के प्रवास का सहयोग करने के लिए सुदूर दक्षिण में भूमि क्षेत्र कम पाया जाता है।
भारतीय उपमहाद्वीप गर्मियों के साथ-साथ सर्दियों के मौसम में भी कई प्रवासी पक्षियों की खातिरदारी करता है। ऐसा कहा जाता है कि प्रवासी पक्षियों की सौ से अधिक प्रजातियां चारागाह की खोज में या अपने मूल आवास की भीषण सर्दी से बचने के लिए भारत में आगमन करती हैं। उनके अस्थायी आवास की व्यवस्था हेतु देश में कई वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना की गई है। ये प्रवासी पक्षी कुछ समय अंतराल के लिए यहां रुकते हैं‚ इन दुर्लभ प्रजातियों को देखने के लिए सम्पूर्ण भारत तथा विदेशों से भी पक्षी प्रेमी इन अभयारण्यों में आते हैं। इन पक्षियों की अद्वितीय सुंदरता‚ प्राकृतिक वातावरण के सौंदर्य के साथ मिलकर प्रकृति प्रेमियों के लिए तथा पर्यटकों के लिए एक शानदार‚ शांत तथा आदर्श वातावरण का निर्माण करती है।
सर्दियों के मौसम में भारत आने वाले प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियां हैं‚ जैसे- साइबेरियन क्रेन (Siberian Cranes)‚ ग्रेटर फ्लेमिंगो (Greater Flamingo)‚ रफ (Ruff)‚ ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट (Black Winged Stilt)‚ कॉमन टील (Common Teal)‚ कॉमन ग्रीनशांक (Common Greenshank)‚ नॉर्थन पिनटेल (Northern Pintail)‚ येलो वैगटेल (Yellow Wagtail)‚ वाइट वैगटेल (White Wagtail)‚ नॉर्थन शॉवलर (Northern Shoveler)‚ रोजी पेलिकन (Rosy Pelican)‚ गड़वॉल (Gadwall)‚ वुड सैंडपाइपर (Wood Sandpiper)‚ स्पॉटेड सैंडपाइपर (Spotted Sandpiper)‚ यूरेशियन विजोन (Eurasian Wigeon)‚ ब्लैक टेल्ड गॉडविट (Black Tailed Godwit)‚ स्पॉटेड रैडशांक (Spotted Redshank)‚ स्टार्लिंग (Starling)‚ ब्लू थ्रोट (Blue Throat)‚ लॉन्ग बिल्ट पिपिट (Long Billed Pipit) आदि तथा गर्मियों के मौसम में भी कुछ प्रजातियां भारत प्रवास करती हैं‚ जैसे- एशियन कोए (Asian Koe)‚ ब्लैक क्राउन नाइट हेरॉन (Black Crowned Night Heron)‚ यूरेशियन गोल्डन ओरिओल (Eurasian Golden Oriole)‚ कौम डक (Comb Duck)‚ ब्लू-चीकड बी-ईटर (Blue-Cheeked Bee-Eater)‚ ब्लू-टेल्ड बी-ईटर (Blue-Tailed Bee-Eater)‚ कॅकूस (Cuckoos) आदि शामिल हैं।
कुछ प्राचीन यूनानी लेखकों द्वारा “द बुक ऑफ जॉब” (The Book of Job) में सारस‚ कछुआ‚ कबूतर‚ और स्वैलोज़ (Swallows) जैसी प्रजातियों के प्रवास के विषय में लिखा गया था। 1749 से जोहान्स लेचे (Johannes Leche) ने फ़िनलैंड (Finland) में वसंत ऋतु के प्रवासियों के आने की तारीखों को दर्ज करना शुरू कर दिया था। हालांकि‚ आधुनिक वैज्ञानिकों ने प्रवासियों का पता लगाने के लिए बर्ड रिंगिंग (Bird Ringing) और सैटेलाइट ट्रैकिंग (Satellite Tracking) सहित कई अन्य प्रकार की तकनीकों का प्रयोग किया है। प्रवासी पक्षियों के लिए विशेष रूप से रुकने और सर्दियों में निवास स्थानों के विनाश के साथ-साथ बिजली लाइनों और विभिन्‍न कारखानों के कारण खतरा बढ़ गया है।
पक्षियों के लिए सबसे लंबी दूरी के प्रवास का रिकॉर्ड आर्कटिक टर्न (Arctic tern) में है‚ जहां पक्षी हर साल आर्कटिक (Arctic) प्रजनन मैदान और अंटार्कटिक (Antarctic) के बीच प्रवास करते हैं। अठारहवीं शताब्दी के मध्य में उत्तरी जलवायु से सर्दियों के मौसम में पक्षी गायब होने लगे थे। जिससे यह बात स्पष्ट हुई कि पक्षी मौसम के अनुसार प्रवास करते हैं। भारत कई पक्षियों को आवास करने के लिए आकर्षित करता है। भारत में इन आगंतुकों में से कुछ प्रजातियां प्रमुख रूप से दिखाई देती हैं‚ जो इस प्रकार हैं:
(1) फाल्कन (Falcon) परिवार का रैप्टर (Raptor) नामक एक पक्षी मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक उत्तरी पूर्व भारत के जंगलों में सबसे अधिक दिखाई देता है। यह जाड़े के मौसम में साइबेरिया (Siberia) और उत्तरी चीन (Northern China) से दक्षिणी अफ्रीका (Southern Africa) के लिए प्रवास करता है‚ और अपने इस वार्षिक प्रवास के दौर में यह भारत में कुछ समय के लिए रुकता है।
सम्पूर्ण भारत में और अरब सागर (Arabian Sea) के ऊपर से यह काफी बड़ी संख्या में उड़ान भरते हैं और इनकी यह उड़ान बेहद आश्चर्यजनक होती है। इनकी उड़ान का आनंद लेने का अवसर‚ बाकी पक्षियों के जीवन में केवल एक ही बार आता है।
(2) क्रेन (Crane) परिवार कि सबसे छोटी प्रजाति का नाम डेमोइसेल क्रेन (Demoiselle Crane) है‚ जिसका नामकरण क्वीन मैरी एंटोनेट (Queen Marie Antoinette) द्वारा किया गया था। इनके द्वारा किए गए प्रवास पूरी दुनिया में सबसे कठिन प्रवासों में से एक है।
यह पक्षी 400 के समूह में उड़ान भरते हैं और अगस्त और सितंबर महीने के अंत में हिमालय को पार करते हुए चीन (China) और मंगोलिया (Mongolia) से होकर भारतीय उपमहाद्वीप तक प्रवास करते हैं। इसके पश्चात ये सभी वसंत ऋतु में‚ उत्तर दिशा कि ओर अपने सफर की शुरुआत करते हैं। इन क्रेन पक्षियों द्वारा किए जाने वाले ‘बैले’ (ballet) प्रदर्शन को देखने का अवसर बहुत कम प्राप्‍त होता है।
(3) यूरोपीय रोलर्स (European Roller) पश्चिमोत्तर भारत तक प्रवास करते हैं‚ जो मध्य पूर्व तक फैले हुए होते हैं। वे दक्षिणी अफ्रीका (Southern Africa) में सर्दियों के लिए लंबे सफ़र की यात्रा तय करते हैं।
भारत में पूर्वी यूरोपीय रोलर (Eastern European Roller) प्रजाति आमतौर पर दिखाई देती है जिसे कश्मीरी रोलर (Kashmiri Roller) के नाम से भी जाना जाता है।
(4) ब्लू थ्रोट (Bluethroat) नामक खूबसूरत विश्वयात्री‚ अलास्का (Alaska) से उड़ान भरते हैं और सर्दियों में भारतीय उपमहाद्वीप आते हैं। ये बहुत शर्मीले और गुप्त स्वभाव के होते हैं।
वे घनी वनस्पतियों में छिपना पसंद करते हैं। ये कभी-कभी उड़ान भरते समय या किसी शाखा पर चहचहाते हुए दिखाई दे सकते हैं।
(5) ब्लैक रेडस्टार्ट (Black Redstart) नामक पक्षी बहुत शर्मीले स्वभाव का होता है। दो रंगों वाला यह पक्षी “ब्लैक रेडटेल” (black redtail) या “टिथी के रेडस्टार्ट” (Tithy’s redstart) नाम से प्रसिद्ध है।
यह पक्षी दक्षिण और मध्य यूरोप (Europe) में अपने प्रजनन के मैदानों से सर्दियों में भारत आता है।
(6) येलो वैगटेल (Yellow Wagtail) नामक पक्षी आकार में छोटा और स्वभाव में सुरुचिपूर्ण होता है। यह प्रारंभिक शीत काल में प्रवास करने वाला पक्षी पश्चिमी यूरोप (Western Europe) से आता है।
छोटे आकार के ये खूबसूरत चमकदार पीले रंग के पक्षी दौड़ते समय अपनी सफेद पूंछ को ऊपर और नीचे घुमाते हुए दिखाई देते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3t04p9u
https://bit.ly/38pv71E
https://bit.ly/3ButvAl

चित्र संदर्भ
1. नाव सफारी के दौरान प्रवासी पक्षियों को खाना खिलाते पर्यटकों का एक चित्रण (Flickr)
2. विश्राम करते प्रवासी पक्षियों का एक चित्रण (Britannica)
3. प्रवासी पक्षियों के झुंड की आदत का एक चित्रण (wikimedia)
4. फाल्कन (Falcon) पक्षी का एक चित्रण (flickr)
5. डेमोइसेल क्रेन (Demoiselle Crane) पक्षी का एक चित्रण (flickr)
6. यूरोपीय रोलर्स (European Roller) पक्षी का एक चित्रण (flickr)
7. ब्लू थ्रोट (Bluethroat) नामक खूबसूरत पक्षी का एक चित्रण (flickr)
8. ब्लैक रेडस्टार्ट (Black Redstart) नामक खूबसूरत पक्षी का एक चित्रण (flickr)
9. येलो वैगटेल (Yellow Wagtail) पक्षी का एक चित्रण (flickr)



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