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मानव जंगलों से निकल कर शहरों और गावों में तो बसने लगा पर जंगलों की भूमिका नकारी नहीं
जा सकती है । दुनियाभर के जंगलों की विविधताएँ मानवजाती को हमेशा से विस्मित करती रहीं हैं,
साथ ही जंगल और इनसे निकलने वाली नदियां कई कई देशों और शहरों को सदियों से पोषित कर
रही हैं। हमारे शहर से बहने वाली गोमती नदी भी कई वर्षों से जौनपुर शहर की जल संबंधी
आवश्यकताओं की पूर्ति कर रही है, यह नदी आगे चलकर सुंदरवन के सदाबहार ताज़े पानी के
दलदली जंगलों से भी होकर गुजरती है।
ताज़े और मीठे पानी के ये दलदली जंगल जिन्हें बाढ़ के जंगल भी कहा जाता है, स्थायी या मौसमी
रूप से ताज़े पानी से भरे रहते हैं। ऐसे दलदली जंगल आमतौर पर नदियों के निकटतम क्षेत्रों तथा
मीठे पानी की झीलों के आसपास पाए जाते हैं। दलदल के जंगल बोरियल से लेकर समशीतोष्ण
और उपोष्णकटिबंधीय से लेकर उष्णकटिबंधीय तक कई जलवायु क्षेत्रों में पनप जाते हैं। ताज़े
पानी के दलदली जंगलों के उदाहरण के तौर पर आप बंगाल की खाड़ी में गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना
नदियों के संगम से बनने वाले शानदार और सदाबहार सुंदरवन जंगल के कई क्षेत्रों को ले सकते हैं।
ये क्षेत्र भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में हुगली नदी से लेकर बांग्लादेश के खुलना डिवीजन में
बालेश्वर नदी तक फैला है। इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से बंद और खुले सदाबहार वन, कृषि प्रयोजन के
लिए उपयोग की जाने वाली भूमि के साथ-साथ कीचड़ और बंजर भूमि शामिल है। सुंदरबन का
शाब्दिक अर्थ सुंदर जंगल" होता है, इस जंगल को दुनिया के पहले सदाबहार (mangrove) वन होने
का गौरव भी प्राप्त है। सुंदरबन में चार संरक्षित क्षेत्रों सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान, सुंदरवन पश्चिम,
सुंदरवन दक्षिण और सुंदरबन पूर्व वन्यजीव अभयारण्य को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में
शामिल किया गया है।
यहां पाई जाने वाली सबसे प्रचुर मात्रा में वृक्ष प्रजातियां सुंदरी (Heritiera fosms) और गेवा
(Exocaria agalocha) हैं। ये जंगल 453 जीव जंतुओं को आवास प्रदान करते हैं, जिनमें 290
पक्षी, 120 मछलियां, 42 स्तनपायी, 35 सरीसृप और आठ उभयचर प्रजातियां शामिल हैं। यहां
मछली और कुछ अकशेरुकी जीवों के अलावा अन्य सभी वन्यजीवों को मारने या पकड़ने पर पूर्ण
प्रतिबंध है, किंतु इसके बावजूद जंगल की पारिस्थितिक गुणवत्ता में लगातार गिरावट देखी जा रही
है। संरक्षण प्रतिबद्धताओं के बावजूद, सुंदरवन प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों कारणों से
खतरे में है। 2007 में, चक्रवात सिद्र के लैंडफॉल (landfall) ने सुंदरबन के लगभग 40% हिस्से को
क्षतिग्रस्त कर दिया।
सुंदरबन में मीठे पानी के दलदली जंगल भी हैं, मीठे पानी के दलदली जंगलों से यह तात्पर्य है की
यहां का पानी तुलनात्मक रूप से कम खारा होता है, और बरसात के मौसम में काफी ताजा हो जाता
है। मीठे पानी के दलदली जंगल भी कई प्रकार के होते हैं, जिनमे मिरिस्टिका (Myristica) दलदल
भी शामिल हैं, जो मुख्य रूप से मिरिस्टिका (यह मिरिस्टिकासी (myristicaceae) परिवार में पेड़ों
की एक प्रजाति है। इसकी 150 से अधिक प्रजातियां हैं, जो एशिया और पश्चिमी प्रशांत में वितरित
हैं।
1960 में कृष्णमूर्ति द्वारा मिरिस्टिका दलदलों को एक अलग सदाबहार वन प्रकार के रूप में
वर्णित किया गया था। सैकड़ों वर्षों के निवास और शोषण ने इस क्षेत्र के आवास और जैव विविधता
पर भारी असर डाला है। घने सुंदरवन में आमतौर पर मैंग्रोव स्क्रब (mangrove scrub), खारे पानी
के मिश्रित जंगल, तटीय जंगल, गीले जंगल और गीले जलोढ़ घास के जंगल शामिल हैं।
चाहे दलदली हो या कोई भी अन्य प्रकार के जंगल हो शहरों के बेहतर पोषण और स्वास्थ के लिए
पेड़ तथा जंगल बेहद महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। कोरोना महामारी के दौरान शहरी जंगलों ने अभूतपूर्व
महत्व प्राप्त किया है, मनोरंजन, तनाव कम करने, और सामाजिक मजबूती बनाए रखने में जंगलों
ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। दक्षिणी जर्मनी की फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट बाडेन-वुर्टेमबर्ग
(Forest Research Institute Baden-Württemberg) में सामाजिक परिवर्तन विभाग के
शोधकर्ताओं की एक टीम के नतीजे बताते हैं, कि तालाबंदी के दौरान शहरी जंगल गंभीर रूप से
महत्वपूर्ण हो गए।
कई आगंतुकों के लिए, लॉकडाउन की अवधि के दौरान अहम् भूमिका अदा की,
जो सार्वजनिक स्थान आमतौर पर करते हैं। दरअसल महामारी के दौरान जर्मनी में सरकार द्वारा
लोगों को सामाजिक दूरियों की सलाह का पालन करते हुए मनोरंजन और अवकाश के उद्देश्यों के
लिए हरे भरे स्थानों जैसी जंगलों में स्वतंत्र रूप से घूमने की अनुमति थी। जर्मन सरकार द्वारा
उठाया गया यह कदम कुछ लोगों के लिए, मनोरंजन के अहम् साधन के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक
तनाव से निपटने का अहम् जरिया बन गया। जर्मनी के इस प्रयास ने दुनियाभर के शहरों में जंगलों
की भूमिका को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। महामारी के संदर्भ में भी यह बेहद ज़रूरी हो
गया है की, हम अपने शहरों को अधिक से अधिक पेड़ों से आवरित करें। इस आधार पर यदि हम
अपने शहर जौनपुर की वनावरण (पेड़ों से ढका क्षेत्र) की समीक्षा करें तो यह पाते हैं, कि जौनपुर का
वनावरण मात्र 1.26% है, जबकि उत्तर प्रदेश का 6% है, जो भारत के किसी भी राज्य के लिए चौथा
सबसे कम है। यह आंकड़े एक गंभीर चेतावनी हैं, की हमें प्राकृतिक क्षेत्र में विकास करने के लिए
कई ठोस क़दमों को उठाने की आवश्यकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3jisVz6
https://bit.ly/38e1ksP
https://bit.ly/3sRSTfX
https://bit.ly/3kpiR6Z
https://bit.ly/3yo2gVU
https://bit.ly/3gANy7W
चित्र संदर्भ
1. सुंदरबन-बाघ का एक चित्रण (flickr)
2. सुंदरबन के सदाबहार जंगलों का एक चित्रण (flickr)
3. महामारी के दौरान जंगल का भ्रमण करते सैलानी का एक चित्रण (ey)
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