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कितना महान होता है यह रक्षाबंधन का त्यौहार, जहां भाई की कलाई पर केवल एक रक्षा सूत्र बांधने
के एवज में, भाई अपनी लाड़ली बहन को जीवन पर्यन्त रक्षा करने का वचन देता है, और बहन भी
भाई की लंबी उम्र और सफलता के लिए ईश्वर से कामना करती है। इतिहास में ऐसी कई महान
भाई-बहनों की जोड़ियां रही हैं, जिन्होंने एक दूसरे के जीवन में अभूतपूर्व योगदान देकर मानव
समाज में अमरता प्राप्त कर ली।
सूर्पनखा और रावण: हम सभी पवित्र महाकाव्य रामायण की कहानियों को सुनकर बड़े हुए हैं, और सूर्पनखा और रावण
के व्यक्तित्व से भली भांति परिचित हैं। रावण और सूर्पनखा दोनो का आपसी रिश्ता, भाई-बहन का
था। हम प्रायः रामायण को प्रभु श्री राम के नज़रिये से देखते हैं, यदि हम रावण के नज़रिये से
रामायण को देखे तो पाएंगे की, श्री राम से युद्ध करने का बड़ा कारण यह भी था, की राम के भ्राता
लक्षमण ने रावण की बहन सूर्पणखा की नाक काट दी। क्यों की उसने प्रभु श्री राम के रूप पर
मोहित होकर उन्हें विवाह प्रस्ताव दिया था।
नाक कटने के पश्चात वह दर्द से कराहते हुए जब उसने
इस घटना की सूचना अपने भाई रावण लंका के राजा को दी, तो उसने सीता का अपहरण करके
बदला लेने की कसम खाई। जिसके बाद के विशाल राम-रावण युद्ध के साक्षी हम सभी हैं।
देवकी और कंस: द्वापरयुग में भगवान कृष्ण को जन्म देने वाली माता देवकी, और उनके मामा कंस में, भाई बहन
का रिश्ता था। अपने पूरे जीवन में महारथी कंस कई प्रकार के जघन्य और अपवित्र कृत्यों में लिप्त
थे। हालाँकि कंस को अपनी बहन प्रिय थी, किंतु एक भविष्यवाणी ने दोनों भाई बहनों का जीवन
पूरी तरह से बदल दिया, जिसमे कहा गया की, “देवकी का पुत्र ही कंस की मृत्यु का कारण बनेगा”।
इसके बाद कंस ने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में कई यातनाएँ दी।
हालांकि कंस ने अपनी किस्मत बदलने के लिए तमाम हथकंडे आजमाए, लेकिन आखिरकार
हमेशा की भांति बुराई पर अच्छाई की जीत हुई और श्री कृष्ण ने कंस का वध करके देवकी सहित
समस्त संसार को पापी कसं के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
कृष्ण, बलराम और सुभद्रा: कृष्ण और बलराम की एक स्नेही बहन भी थी, जिसका नाम सुभद्रा था। महारथी अर्जुन से सुभद्रा
का विवाह कराने के लिए, श्री-कृष्ण ने योजना भी बनाई, क्योंकि इस गठबंधन के माध्यम से श्री-
कृष्ण आसानी से अर्जुन और पांडवों की मदद कर सकते थे, ताकि वे कुरुक्षेत्र की लड़ाई में विजयी हो
सकें। सुभद्रा ने अर्जुन के साथ अभिमन्यु नामक एक महान योद्धा को जन्म दिया। अभिमन्यु की
वीरगाथा से हम सभी भली भांति अवगत हैं।
उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी के मंदिर के गर्भगृह में कृष्ण,
बलराम और सुभद्रा, तीनों भाई बहनों को दर्शाती है।
यमुना और यमराज: ऋग्वेद में यह वर्णित है की, यामी या यमुना नदी, मृत्यु के हिंदू पौराणिक देवता यमराज की जुड़वां
बहन हैं। ऐसी मान्यता है की रक्षा बंधन मनाने की पवित्र परंपरा यामी और यमराज ने ही शुरू की
थी। पुराने हिंदू ग्रंथों में लिखा गया है कि, यमुना ने यमराज को रक्षा सूत्र बांधकर उन्हें अमर बना
दिया। यम ने अपनी बहन के स्नेहपूर्ण भाव से प्रेरित होकर यह आह्वाहन किये की जो कोई भाई
अपनी बहन से राखी बंधाता है, उसे लंबी आयु जीने का आशीर्वाद मिलेगा।
सती और विष्णु: राजा हिमवान और मेनावती के घर में जन्मी भगवान शिव की पहली पत्नी सती, भगवान शिव से
विवाह करने की आशा के साथ बड़ी हुई। लेकिन जब शिव ने उन्हें अपनी पत्नी बनाने योग्य न
समझा, तो सती ने अपनी इंद्रियों को शुद्ध करने तथा अपने चक्रों को सक्रिय करने के लिए कठोर
तपस्या की, ताकि वह भगवान से शादी करने के योग्य हो सकें। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु
भगवान विष्णु ने उसे अपनी कलाई पर राखी बाँधने के लिए कहा, ताकि उसके भाई के रूप में वह
उसके रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को दूर कर सके। किंवदंती है कि शिव और पार्वती के दिव्य
विवाह में भगवान विष्णु ने सभी कार्य एक भाई के रूप में किये।
पांचाली और भगवान कृष्ण: द्रौपदी अथवा पांचाली को भगवान कृष्ण की दत्तक बहन होने का गौरव प्राप्त है। कृष्ण ने उन्हें
प्यार से 'कृष्णा' भी कहा था, क्योंकि वह उसी रंग की थीं, जैसे स्वयं कृष्ण थे। कौरवों और पांडवों की
सभा में जब द्रोपती को कौरवों द्वारा निर्वस्त्र किया जा रहा था, तो इस दुखद और शर्मनाक स्थिति
में इतनी बड़ी सभा में द्रोपती को अपनी बहन मानने वाले श्री कृष्ण ने उसकी सहायता की और
उसके मान सम्मान कि रक्षा की।
रक्षा बंधन और रक्षा सूत्र के सम्मान की चर्चाएं केवल पौराणिक काल तक ही सीमित नहीं हैं, वरन
मात्र कुछ सौ वर्ष पूर्व ही राखी से जुड़े महान प्रसंग सामने आए हैं। इन प्रसंगों में राजा हुमायूँ और
रानी कर्णावती का किस्सा सबसे चर्चित रहा है।
दरअसल भाई-बहन की यह जोड़ी अपने जमाने की काफी चर्चित रही थी। उस समय रक्षा बंधन
राजपूतों और मुगलों में आपसी प्रेम बढ़ाने का मूल श्रोत था। किंवदंतियां हैं कि जब गुजरात के
बहादुर शाह जफर ने चित्तौड़ की विधवा रानी, कर्णावती के गढ़ पर हमला किया, तो उन्होंने राजा
हुमायूं को राखी भेजकर मदद के लिए अनुरोध किया। हुमायूं ने धर्म अलग होने के बाद भी उसकी
राखी की लाज रखी और फैसला किया कि वो उसकी मदद के लिए जरूर जाएगा। दुर्भाग्य से जब
तक हुमायूं चित्तौड़ पहुंचा तब तक रानी कर्णवती ने चित्तौड़ की वीरांगनाओं के साथ जौहर करने के
पश्चात् अग्नि में समा गई थीं।
इस घटना के बाद बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर कब्जा कर लिया।
किन्तु यह खबर सुनकर हुमायूं को बहुत दुख हुआ और उसने चितौड़ पर हमला कर दिया और
विजयी हुआ। इसके बाद हुमायूं ने पूरा शासन रानी कर्णवती के बेटे विक्रमजीत सिंह को सौंप दिया।
तब से रानी कर्णवती और हुमायूं भाई-बहन का रिश्ता इतिहास के पन्नों में अमर है।
संदर्भ
https://bit.ly/2XzkYgA
https://bit.ly/3z8E23d
चित्र संदर्भ
1. श्री कृष्णा को राखी बांधती हुई पांचाली का एक चित्रण (krishna bhumi)
2. नाक कटने के बाद भाई रावण के आगे विलाप करती सूर्पनखा का एक चित्रण (flickr)
3. उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी के मंदिर के गर्भगृह में कृष्ण,
बलराम और सुभद्रा, का एक चित्रण (wikimedia)
4. अग्नि में आत्मदाह करती चित्तौड़ की विधवा रानी, कर्णावती
का एक चित्रण (wikimedia)
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