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वर्तमान समय में भारत की आबादी और शहरीकरण विभिन्न कारकों की वजह से तीव्र गति से
बढ़ रहा है, जो देश में अनेकों समस्याओं को उत्पन्न कर रहा है। यदि देश की आबादी और
शहरीकरण में यूं ही वृद्धि होती रही तो, देश में खाद्य मरूस्थल की स्थिति उत्पन्न हो सकती
है। खाद्य मरूस्थल आम तौर पर कम आय वाले क्षेत्र होते हैं, जहां बड़ी संख्या में शहरी
निवासी, सुपरमार्केट या अन्य स्वस्थ किराने की दुकान से एक मील से अधिक दूर रहते हैं या
ग्रामीण क्षेत्रों में 10 मील से अधिक दूर रहते हैं।
इन क्षेत्रों की सस्ती और पौष्टिक भोजन तक पहुंच बहुत सीमित होती है। खाद्य रेगिस्तानों में
कम आय वाले निवासियों की गतिशीलता कम होती है, जो उन्हें बड़ी सुपरमार्केट श्रृंखलाओं के
लिए कम आकर्षक बाजार बनाता है।खाद्य मरूस्थलों में मीट, फलों और सब्जियों जैसे ताजे
खाद्य पदार्थों के आपूर्तिकर्ताओं की कमी होती है।इसके बजाय, यहां उपलब्ध खाद्य पदार्थ
अक्सर संसाधित होते हैं और उनमें शर्करा और वसा की उच्च मात्रा होती है, जो मोटापे सहित
अनेकों बीमारियों का कारण बनती है।
1973 तक, मरूस्थल शब्द उन उपनगरीय क्षेत्रों के लिए उपयोग किया जाता था, जिसमें
सामुदायिक विकास के लिए महत्वपूर्ण सुविधाओं की कमी थी। कमिंस और मैकिनटायर
(Cummins and Macintyre) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी स्कॉटलैंड
(Scotland) में सार्वजनिक आवास के एक निवासी ने 1990 के दशक की शुरुआत में वाक्यांश
"फूड डेजर्ट" (Food desert) गढ़ा था। इसे पहली बार आधिकारिक तौर पर 1995 के एक
दस्तावेज़ में उपयोग किया गया, जो ग्रेट ब्रिटेन के न्यूट्रीशन टास्क फोर्स (UK's Nutrition
Task Force) की निम्न आय परियोजना टीम पर नीति कार्य समूह से सम्बंधित था।
प्रारंभिक शोध पहले केवल शहरी केंद्र से खुदरा प्रवास के प्रभाव तक सीमित था, लेकिन अधिक
हाल के अध्ययनों ने अन्य भौगोलिक क्षेत्रों (जैसे - ग्रामीण और सीमांत) और विशिष्ट आबादी
(जैसे अल्पसंख्यक और बुजुर्ग) के बीच खाद्य मरूस्थलों के प्रभाव का पता लगाया। ये अध्ययन
खुदरा खाद्य वातावरण की गुणवत्ता (पहुंच और उपलब्धता), भोजन की कीमत और मोटापे के
बीच संबंधों को संबोधित करते हैं।पर्यावरणीय कारक भी लोगों के खाने के व्यवहार में योगदान
कर सकते हैं।
2010 में, संयुक्त राज्य अमेरिका (America) के कृषि विभाग ने बताया कि अमेरिका में 235
लाख लोग खाद्य मरूस्थल में रहते हैं,जिसका अर्थ है कि वे शहरी या उपनगरीय क्षेत्रों में एक
सुपरमार्केट से एक मील से अधिक तथा ग्रामीण क्षेत्रों में एक सुपरमार्केट से 10 मील से अधिक
दूरी पर रहते हैं। अर्लिंग्टन (Arlington) में टेक्सास विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर ट्रांसपोर्टेशन
इक्विटी, डिसीजन एंड डॉलर्स (Center for Transportation Equity, Decisions and Dollars
at the University of Texas) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि
डलास (Dallas) और टैरंट (Tarrant) काउंटियों में लगभग 20 प्रतिशत निवासी स्वस्थ भोजन
विकल्पों तक पहुंच के बिना निवास कर रहे थे।
अध्ययन से पता चलता है कि आवास घनत्व बढ़ने से पड़ोस के लैंडिंग स्टोर की संभावना बढ़
जाती है जो अच्छा,स्वस्थ भोजन प्रदान करते हैं।अधिक कॉम्पैक्ट क्षेत्र नस्लीय और आय
अलगाव को कम करते हैं,इस प्रकार समुदाय में स्वस्थ भोजन की पेशकश करने के अवसर बढ़
जाते हैं। भारत के लिए अच्छी खबर यह है कि शोधकर्ताओं ने पाया है, कि अधिक कॉम्पैक्ट
पड़ोस या परिवेश अधिक संख्या में किराना स्टोर का समर्थन करने की संभावना रखते हैं,और
उनके निकट क्षेत्रों में स्वस्थ खाद्य भंडार हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका जहां गरीब लोग अंत में सबसे खराब खाना खाते हैं,के विपरीत भारतीय
गरीबों के पास स्वस्थ भोजन की बेहतर पहुंच है। यहां शहरों में सड़क किनारे अनेक सब्जी
बाजार मौजूद होते हैं,जहां कई तरह की ताजी मौसमी सब्जियां उपलब्ध होती हैं। लेकिन कुछ
इलाकों की पहुंच केवल अपस्केल डिपार्टमेंटल स्टोर्स तक है, जहां केवल सीमित किस्म की
सब्जियां उपलब्ध हैं। कई महंगे इलाकों में सब्जी विक्रेताओं का प्रवेश प्रतिबंधित होता है, तथा
लोकप्रिय विकल्प बन चुके रिलायंस फ्रेश (Reliance Fresh) और बिग बास्केट (Big Basket)
जैसी ऑनलाइन दुकानें भी सीमित किस्में उपलब्ध कराती हैं।
बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण को देखते हुए यह संभव है, कि भविष्य में खाद्य पदार्थों के
लिए विकल्प बहुत सीमित हो जाएं। भविष्य में लोग स्थानीय रूप से उगाए गए खाद्य पदार्थों
का सेवन करना चाहेंगे, लेकिन तब तक अधिकांश बाजार से गायब हो चुके होंगे।कुछ मामलों में
इसके प्रमुख कारणों में से एक जलवायु परिवर्तन या औद्योगीकरण के कारण आवास के
नुकसान के कारण वनस्पतियों का गायब होना भी है।
उपयुक्त शहरी नियोजन इस स्थिति से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।यह
सुनिश्चित करने के लिए कि भारत में संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह शहरी खाद्य मरूस्थल
की स्थिति उत्पन्न न हो, यह आवश्यक है कि भारत के शहरी नियोजन में स्थानीय रूप से
उगाए गए खाद्य पदार्थों तक पहुंच बढ़ाने के तरीकों को शामिल किया जाए।
समुदायों को गतिशील बनाने और स्वस्थ भोजन तक पहुंच में सुधार के लिए भूमि की विविधता
को लाभकारी बनाना होगा। यदि हम उन खाद्य पदार्थों का सेवन जारी रखना चाहते हैं जो
स्थानीय रूप से उगाए जाते हैं, तो हमें ऐसे पौधों की मात्रा बढ़ानी होगी, जिन्होंने स्थानीय
समुदायों को पीढ़ियों से स्वस्थ और पौष्टिक भोजन प्रदान किया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3stre55
https://bit.ly/3k1Hmqy
https://bit.ly/3sx65qM
https://bit.ly/2VZJvv5
चित्र संदर्भ
1. खाद्य संकट के बीच बकरियों को चराती बच्ची तथा शहर का एक चित्रण (flickr)
2. भूखे बच्चों को भोजन वितरित करते संस्थागत कार्यकर्ताओं का एक चित्रण (flickr)
3. सड़क किनारे भारतीय सब्जी विक्रेता का एक चित्रण (flickr)
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