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विश्वभर में मछलियों की 34,300 वर्णित प्रजातियां पाई जाती हैं, और ऐसी ही न जाने कितनी
प्रजातियों को खोजना अभी भी शेष है। भारत भी मछली संपदा का धनी देश है, यहाँ पर अनेक
प्रजाति की ऐसी दुर्लभ मछलियां भी पाई जाती हैं, जो शायद ही किसी अन्य देश में देखी गई हों।
प्रसिद्ध गंगा शार्क मछली भी ऐसी ही दुर्लभ और लुप्तप्राय मछलियों में से एक है।
गंगा शार्क, जिसे ग्लाइफिस गैंगेटिकस (Glyphis gangeticus) के नाम से भी जाना जाता है,
भारत और बांग्लादेश में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदी में पाई जाने वाली एक बेहद गंभीर रूप से
लुप्तप्राय मछलियों में से एक है। कई बार लोग इसे बुल शार्क (bull shark) भी समझ लेते हैं, किंतु
यह बुल शार्क से एकदम भिन्न है, जिसे प्रजनन के लिए खारे जल की आवश्यकता होती है। वही
गंगा शार्क को मीठी नदियों की मछली माना जाता है। बोर्नियो नदी शार्क (Borneo river shark G.
fowlera) और इरावदी नदी शार्क (Irrawaddy river shark G. siamensis) को गंगा शार्क की
श्रेणी में ही माना जाता है। यह भी बेहद दुर्लभ मानी जाती हैं, तथा इनका विस्तार पकिस्तान और
म्यांमार की सीमाओं तक है।
गैंगेटिकस एक अल्पज्ञात प्रजाति है, जिसका पर्याप्त जानकारी के आभाव में, अभी भी विस्तार
पूर्वक वर्णन नहीं किया जा सका है। जन्म के समय यह 56 से 61 सेमी तक हो सकती है और
परिपक्वता आने पर अनुमानित 178 सेमी तक वृद्धि करती है। हालाँकि इसका अधिकतम आकार
लगभग 204 सेमी यानी लगभग 80 इंच तक हो सकता है। यह एक अति दुर्लभ मछली होती है
और इसके दांतों की पंक्ति संख्या 32-37/31-34 होती है।
जैसा की इसके नाम से ही स्पष्ट है, गंगा शार्क मुख्य रूप से पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत की नदियों तक
खासतौर पर पश्चिम बंगाल में हुगली नदी और बिहार, असम और ओडिशा में गंगा, ब्रह्मपुत्र और
महानदी तक ही सीमित है। यह आम तौर पर कम गहराई वाली और मीठे जल वाली नदियों के
मुहानों पर देखी जाती है, जो की गंदे पानी में भी रहने के अनुकूल मानी जाती है।
यह मछली मुख्य रूप से स्वयं से छोटी मछलियों का ही शिकार करती है, जिसका अंदाज़ा हम इसके
छोटे दांतो से ही लगा सकते हैं। हालाँकि इसकी भोजन संबंधी अधिकांश आदतें अभी भी अज्ञात है।
इसकी आँखे पीठ की ओर झुकी रहती हैं, जिस कारण इसे जल में नीचे की ओर तैरने तथा गंदे पानी
में भी रह सकने में महारत हासिल है। आमतौर पर भूरे रंग की गंगा शार्क पर काफी कम शोध किये
गए हैं, जिस कारण कम जनसंख्या, आकार, लंबी गर्भधारण अवधि से संबंधित काफी कम
जानकारियां प्राप्त हो पाई हैं।
गंगा शार्क को IUCN की लाल सूची (Red List) में एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में
सूचीबद्ध किया गया है। यह प्रजाति इतनी दुर्लभ है, कि 2006 में एक बार देखे जाने के बाद, 2016
तक इस प्रजाति को फिर से नहीं देखा गया था। आमतौर पर इसे भारत की गंगा, हुगली, महानदी
और ब्रह्मपुत्र नदियों में पाया जाता है, किंतु माना जाता है कि इसकी विभन्न प्रजातियों के निवास
स्थान में अब पाकिस्तान, म्यांमार, बोर्नियो और जावा (Borneo and Java, Indonesia) की
नदियाँ भी शामिल हो गई हैं। यह अपने बच्चों को मीठे जल में ही जन्म देती है,जो अपने जीवन
काल में जन्म स्थान की किसी भी दिशा में 100 किमी तक की यात्रा करती है।
गंगा शार्क को बेहद आक्रामक और आदमखोर माना जाता है, हालाँकि यह संभावना नहीं है कि,
गंगा शार्क वास्तव में मनुष्यों पर भी हमला करेंगी। प्रजातियों की जनसंख्या में आती गिरावट को
देखते हुए यह विश्वसनीय रूप से असंभव है। अपेक्षाकृत संकीर्ण आवास सीमा इसे और भी अधिक
संवेदनशील बनाती है। अत्यधिक मछली पकड़ने, अवैध शिकार, आवास विनाश, नदी के उपयोग में
वृद्धि और प्रदूषण के परिणामस्वरूप गंगा शार्क उन दुर्लभ मछलियों की सूची में शामिल हो गई है,
जो विलुप्त होने के कगार पर है। विश्व के महासागरों में 400 से अधिक प्रकार की शार्क पाई जाती
हैं।
कुछ शार्क जैसे ग्रेट व्हाइट और माको (great white and mako) को जीवित रहने के लिए
लगातार आगे की ओर तैरना पड़ता है। क्यों की सभी शार्क सांस लेने के लिए पानी से ऑक्सीजन
लेती हैं । लेकिन इस तरह की शार्क अपने गलफड़ों पर पानी पंप नहीं कर सकती हैं, तो जिंदा रहने
के लिए शार्क को लगातार आगे की ओर तैरना पड़ता है। यह उनके गलफड़ों के माध्यम से पानी को
छानता रहता है, इसलिए वे हमेशा सांस लेने के लिए ऑक्सीजन ले रहे होते हैं।
शार्क इंसानों के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं। पिछले 20 वर्षों में, शार्क-फिन (shark-fin) के
सूप की मांग तेज़ी से बढ़ी है। कई लोग इसे शादियों, जन्मदिनों, व्यापार भोजों और चीनी नव वर्ष
समारोह के दौरान महत्वपूर्ण आयोजनों में महत्वपूर्ण और विलासिता दिखाने का साधन मानते हैं।
शार्क-फिन सूप पारंपरिक चीनी चिकित्सा में भी लोकप्रिय है, जिस कारण इनकी मांग में भारी
बढ़ौतरी भी देखी गई है।
चूँकि हमारा शहर जौनपुर गोमती के तट पर स्थित है, जहां पूरी तरह से विकसित शार्क जैसे ग्रेट
व्हाइट की कई पुष्टि की गई है। शार्क को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के
तहत संरक्षित किया गया है, और इसे पकड़ना, मारना या बेचना कानून द्वारा दंडनीय है। लेकिन
उनकी बेहतर सुरक्षा के लिए और अधिक ठोस कानूनों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3rOXmzE
https://bit.ly/3CbgTz2
https://bit.ly/2Vc1zSj
https://bit.ly/3CfpVej
https://en.wikipedia.org/wiki/Ganges_shark
https://bit.ly/3xm5tVB
https://www.sharksinfo.com/buoyancy.html
चित्र संदर्भ
1. गंगा शार्क का एक चित्रण (youtube)
2. ग्लिफ़िस गैंगेटिकस (Glyphis gangeticus) गंगा-हुगली नदी प्रणाली में निवास करता है, जिसका एक चित्रण (wikimedia)
3. ग्रेट व्हाइट शार्क (great white) को जीवित रहने के लिए लगातार आगे की ओर तैरना पड़ता है। जिसका एक चित्रण (flickr)
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