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पूरी दुनिया में पाई जाने वाली छिपकलियों की प्रजाति अपने आप में अनेक विविधताएँ रखती है। कहीं यह
इतनी छोटी होती है कि आपकी छोटी से मुट्ठी में समा जाए, और कही इतनी विशाल की इनकी कमर पर
रस्सी बांधकर बड़े-बड़े किलों की दीवारों पर चढ़ा जाता था। यह सुनने में एक कल्पना लगता है, लेकिन
प्राचीन काल में मॉनिटर छिपकली के सहारे विशालकाय किलों को भेदा जाता था।
मॉनिटर छिपकली क्या है?
मॉनिटर छिपकली सरिसर्प (रेंगने वाले जीव) प्रजाति का एक जीव है। इसे बंगाल में गोशाप, पंजाब और
बिहार में गोह और महाराष्ट्र में घोरपड़ कहा जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप, साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया
और पश्चिम एशिया के विभन्न प्रांतों में अपने विभिन्न रूपों में पाई जाती है। यह थूथन की नोक से पूंछ के
अंत तक, लगभग 61 से 175 सेमी तक लंबी हो सकती है। मॉनिटर छिपकली की प्रजाति के नर का आकार
मादा छिपकली से बड़ा होता है। इस प्रजाति के व्यसक प्रायः जमीन पर ही शिकार करते हैं, परंतु युवा
मॉनिटर वृक्षों पर भी देखे जा सकते हैं। युवा मॉनिटर छिपकली वयस्कों की तुलना में अधिक रंगीन भी होते
हैं, जिनके गर्दन, गले और पीठ पर गहरे रंगों की एक श्रृंखला होती है। आमतौर पर इनका शिकार
सन्धिपाद (Arthropods) होते हैं, परंतु यह छोटे स्थलीय और जलीय जीवों जैसे कशेरुक (Vertebrates,),
जमीन के पक्षी, अंडे और मछली का शिकार भी करते हैं। हालांकि यह खुद भी इंसानों और कुछ अन्य जीवों
का शिकार बन जाते हैं।
बढ़ती उम्र के साथ इनका रंग भी जमीन के रंग के सामान हल्का भूरा या धूसर हो जाता है, और शरीर पर
काले धब्बे उभी उभर जाते हैं। बंगाल मॉनिटर के बाहरी नथुने (nares) भुट्टे के सामान उन्मुख होते हैं,
आंख और थूथन की नोक की स्थिति ऐसी होती है की मलबे या पानी को दूर रखने के लिए इन्हे इच्छानुसार
बंद किया जा सकता है। त्वचा के शल्क (scales) खुरदुरे होते हैं, जिनके किनारों पर छोटे गड्ढे होते हैं।
अन्य मॉनिटर प्रजाति की भांति , बंगाल मॉनिटर में सांपों के समान एक कांटेदार जीभ होती है, यह बेहद
संवेदनशील होती है। बंगाल मॉनिटर की पूंछ और शरीर में वसा जमा होता है, जो शिकार न मिलने की
स्थिति में इनकी सहायता करता है। इनके फेफडे स्पंजी होते हैं, जिससे शरीर के भीतर हवा का संचरण
आसान हो जाता है, साथ ही यह शिकार के पाचन और शरीर को फुर्तीला बनाए रखने में इनकी सहायता
करता है। इनके दांत जबड़े की हड्डियों के अंदर से जुड़े होते हैं, जो कि एक दूसरे के पीछे क्रम में होते हैं।
मॉनिटर छिपकली जहरीली होती है, किंतु बंगाल मॉनिटर में जहर के प्रभाव की कोई रिपोर्ट नहीं की गई है।
हालांकि इस प्रजाति के विष से घातक गुर्दे की विफलता होने जैसे कुछ मामले सामने ज़रूर आए हैं।
मॉनिटर सरीसृपों में सबसे बुद्धिमान होते हैं, यह अन्य जानवरों के सामान अधिक विनम्र नहीं होते फिर
भी इन्हे सीमित सीमा तक प्रक्षिशित करके पालतू भी बनाया जा सकता है। इनके पास बेहद मजबूत पंजे
होते हैं, जो कठिन चढाई जैसे खड़ी दीवारों में चढ़ने में इनकी सहायता करते हैं। एशिया महाद्वीप में इनके
विशालकाय आकार और चढ़ने के गुणों के किस्से बेहद आम हैं।
1670 के दशक के दौरान भारत में मुगल-मराठा युद्ध अपने चरम पर थे, एक तरफ, धरती में सबसे
शक्तिशाली माना जाने वाला मुगल सम्राट, औरंगजेब था, वही दूसरी ओर, मराठों के नेता, शिवाजी और
महाराष्ट्र में मावल क्षेत्र के कुछ मुट्ठी भर लेकिन बहादुर लोग थे, जिन्होंने औरंगजेब के उत्पीड़न से मुक्त
होने का प्रण लिया था। मराठों ने मुगलों के चंगुल से कोंढाना के किले पर कब्जा करने का फैसला किया था।
1670 के फ़रवरी माह में लड़े गए युद्ध में एक तरफ मुगलों ने जय सिंह के एक रिश्तेदार उदयभान राठौड़ के
नेतृत्व में लगभग 5000 सेना बनाई हुई थी, वहीँ दूसरी और मराठों का नेतृत्व शिवाजी की सेना में एक
सेनापति तानाजी मालुसरे कर रहे थे, जिनके साथ उनके बचपन के कुछ मित्र थे। औरंगजेब के प्रत्येक बुर्ज
पर किले की रक्षा तोपों द्वारा की जाती थी, केवल एक बुर्ज को बिना सुरक्षा के छोड़ दिया गया था। क्योंकि
यह एक खड़ी चट्टान के शीर्ष पर था, जिस पर चढ़ना असंभव माना जाता था। लेकिन बुद्धिमान तानाजी
ने एक गज़ब की चाल चली, उन्होंने यशवंती नाम की एक मॉनिटर छिपकली का इस्तेमाल किया, जिसकी
कमर के चारों ओर खड़ी चट्टान पर चढ़ने के लिए एक रस्सी बंधी हुई थी, और जिसकी सहायता से 342
मराठा किले के शीर्ष पर पहुँच गए, परंतु दुर्भाग्यवश चट्टानों के घर्षण के कारण वह रस्सी छूट गई और
रस्सी पर चढ़ रहे 60 मराठा नीचे गिर गए, जिससे तत्काल उनकी मृत्यु हो गई। किंतु तानाजी ने युद्ध
जारी रखा। उन्होंने अपने भाई सूर्यजी को मुख्य द्वार से अन्य मराठों के साथ हमले जारी रखने का निर्देश
दिया, किले के भीतर प्रवेश करते ही उन्होंने मुगलों पर हमला कर दिया। तानाजी एवं उदयभान के बीच हुए
भयंकर युद्ध में दोनों की मृत्यु हो गई, लेकिन मराठा किले पर कब्जा करने में सफल रहे। आधी रात के
अंधेरे का फायदा उठाकर लगभग 1500 मुगल पैदल सेना युद्ध से भाग गई।
हमारे शहर जौनपुर का शाही किला भी अभेद्य माना जाता है, परंतु संभव है कि हास्यास्प्रद रूप से मॉनिटर
छिपकली की सहायता से इस पर भी चढ़ा जा सके। हालांकि आईयूसीएन (IUCN) 2009 द्वारा इन
बुद्धिमान जीवों का मूल्यांकन LC (कम से कम चिंता) किया गया है, किन्तु 1972 के वन्यजीव संरक्षण
अधिनियम की अनुसूची में इनकी जंगली आबादी कम हो रही है। क्योंकि इसका, उपभोग और औषधीय,
दोनों उद्देश्यों के लिए शिकार किया जाता है। ईरान जैसे देशों में इन्हे खतरा समझकर मार भी दिया जाता
है। कुछ हद तक इनके आवासीय ठिकानो में भी कमी आई है। पिछले दिनो इस चतुर मॉनिटर छिपकली
अथवा गोह से सम्बंधित एक वीडियो भी बेहद वायरल हुआ, जहां कुछ लोगों ने थाईलैंड के एक डिपार्टमेंटल
स्टोर (Department store) में एक असामान्य नजारा देखा जब एक मॉनिटर छिपकली स्टोर में घुस गई
और अलमारियों पर चढ़ने लगी।
संदर्भ
https://bit.ly/36X2EPZ
https://bit.ly/36Zgstq
https://bit.ly/3BALu90
https://bit.ly/3BDIbxG
https://en.wikipedia.org/wiki/Bengal_monitor
चित्र संदर्भ
1.किले की प्राचीर पर चढ़ते तानाजी तथा मॉनीटर छिपकली का एक चित्रण (twitter, wikimedia)
2.आज मॉनिटर छिपकलियों (वाराणस) के वितरण को दर्शाने वाला मानचित्र का एक चित्रण (wikimedia)
3.दीवार पर चढ़ते तानाजी का एक चित्रण (twitter)
4.जौनपुर किले का एक चित्रण (prarang)