पारलौकिक लाभ पाने के लिए प्रिय वस्तुओं को समर्पित करना है बलिदान

जौनपुर

 20-07-2021 10:17 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

इब्राहिम के धर्मों के नैतिक, धार्मिक, भक्ति और अनुष्ठानिक लेखों में बलिदान का विस्तृत वर्णन मिलता है। माना जाता है, कि इब्राह्मिक धर्मों में बलिदान की प्रथा की शुरूआत तब हुई, जब पैगम्बर इब्राहिम ने दिव्य ज्ञान में विश्वास रखते हुए तथा अल्लाह की आज्ञा का पालन करते हुए अपने प्रिय बेटे का बलिदान देने का निर्णय किया। इस प्रारंभिक घटना को सबसे सामान्य शब्दों में प्रस्तुत करें, तो पारलौकिक या कल्पित लाभ प्राप्त करने के लिए बलिदान में ऐसी मानव वस्तुओं को त्यागना या समर्पित करना होता है, जो बहुत प्रिय हैं।
इब्राहिम के धर्मों में बलिदान के महत्व को चिन्हित करने के लिए बकरीद पर्व का आयोजन किया जाता है, जो कि इब्राहिम और उसके पुत्र के बलिदान पर आधारित एक विशेष पर्व है।एक प्रसिद्ध किवदंती के अनुसार एक दिन इब्राहिम ने एक भयानक सपना देखा, जिसमें वह अपने बेटे की बलि देता है। जब यही सपना वह बार-बार देखने लगता है, तो इसे वह ईश्‍वर की आज्ञा मानकर अपने प्रिय बेटे इस्‍माइल की बलि देने को तैयार हो जाता है। वह अपने बेटे को आराफात की पहाड़ियों में ले जाकर उसे ईश्‍वर की इच्‍छा बताता है। इस्‍माइल ईश्‍वर की आज्ञा को मानने हेतु बलि के लिए तैयार हो जाता है। अपनी आंख पर पट्टी बांधने के बाद इब्राहिम अपने बेटे पर चाकू चलाता है, किंतु आंखे खोलने के बाद देखता है, कि उसके बेटे की जगह वहां पर एक मृत भेड़ पड़ी है। कुछ ही देर बाद एक आवाज आती है, कि ‘चिंता करने की कोई बात नहीं है, ईश्‍वर सदैव अपने अनुयायियों की फिक्र करता है’। इब्राहिम और इस्माइल दोनों अपनी कठिन परीक्षा में सफल होते हैं।
इस प्रकार प्रत्‍येक वर्ष इब्राहिम और इस्माइल के बलिदान को याद करने के लिए हजारों लोग हज यात्रा के दौरान मीना और आराफात का दौरा करते हैं। वे उन स्थानों में जाते हैं, जहां इब्राहिम और इस्माइल रहते थे। वे इब्राहिम की तरह अल्लाह के आदेशानुसार बलिदान के रूप में एक पशु की बलि भी देते हैं। हालांकि,कुरान की कहानी के अनुसार इब्राहिम और इस्माइल दोनों ही ईश्वरीय इच्छा को पूरा करते हैं, जिससे वे दोनों ही बलिदान कार्य में भाग लेते हैं,लेकिन जेनेसिस 22 (Genesis 22) में पायी गयी हिब्रू (Hebrew) बाइबिल की “द बाइंडिंग ऑफ इसहाक” (The Binding of Isaac) के अनुसार, ईश्वर इब्राहिम को मोरिया (Moriah) पर अपने बेटे इसहाक (Isaac) का बलिदान करने के लिए कहते हैं। इब्राहिम ईश्वर के आदेश को मान जाता है, तथा जब वह इसहाक की बलि देता है, तब वह एक भेड़ में बदल जाता है। यह प्रकरण पारंपरिक यहूदी, ईसाई और मुस्लिम स्रोतों में टिप्पणी का केंद्र बिंदु रहा है।
यहूदियों का मत है, कि द बाइंडिंग ऑफ इसहाक का यह तर्क है कि इब्राहिम का वास्तव में अपने बेटे को बलिदान करने का कोई इरादा नहीं था, और उसे यह विश्वास था कि भगवान का भी ऐसा कोई इरादा नहीं है। द बाइंडिंग ऑफ इसहाक के अनुसार, इस्माइल, इब्राहिम की पहली संतान थी, जो उसकी दूसरी पत्नी हागर से उत्पन्न हुई थी। परन्तु इस्माइल अपने पिता की आशा के अनुसार बड़ा नहीं हुआ था। उसका झुकाव उन अनेकों चीजों की ओर था, जिन्हें इब्राहिम बुरा मानता था। वह मानता था कि उसकी देखरेख नहीं की जाती है, इसलिए वह मूर्तियों से भी प्रार्थना करता था। जबकि इजहाक, इब्राहिम और सारा की संतान थी, जो इस्माइल के पैदा होने के 14 वर्ष बाद हुई थी।सारा ने महसूस किया कि युवा इसहाक पर इस्माइल का बुरा प्रभाव पड़ेगा। इसलिए उसने इब्राहिम से इस्माइल को कहीं दूर भेजने की याचना की। अपनी पत्नी की बात मानते हुए इब्राहिम ने इस्माइल और हागर को कहीं दूर भेज दिया था। हागर और इस्माइल रास्ते में भटक गये तथा उनका पानी भी खत्म हो गया। जब इस्माइल को बहुत तेज प्यास लगने लगी तथा वह प्यास से तड़पनेलगा, तब स्वर्गदूत ने हागर को विश्वास दिलाया कि वह जीवित रहेगा और एक शक्तिशाली राष्ट्र का पिता बनेगा और इसके बाद अचानक एक झरना उत्पन्न हो गया। इस्माइल ने अपना जीवन अपने तरीके से जिया। उन्होंने शादी की और उनके कई बच्चे हुए। उनके बच्चे कई गुना बढ़ गए और इस्मालियों या अरब के नाम से प्रसिद्ध हुए। यहूदी, ईसाई और इस्लामी परंपराएं इस्माइल को इस्मालियों का पूर्वज और कयदार (Qaydār) का कुलपति मानती हैं। मुस्लिम परंपरा के अनुसार, इस्माइल और उनकी मां हागर को मक्का (Mecca) में काबा (Kaaba) के बगल में दफन किया गया था। इस्माइल की पूजा मुसलमानों द्वारा पैगंबर के रूप में पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में भी बलिदान की कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा शुनाशेपा से सम्बंधित है।
शुनाशेपा एक पौराणिक ऋषि माने जाते हैं, जिनके संदर्भ भारतीय महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं में मिलते हैं। ऋग्वेद के अनुसार उन्हें विश्वामित्र द्वारा गोद लिया गया था तथा देवव्रत नाम दिया गया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार,शुनाशेपा को एक अनुष्ठान में बलि के लिए चुना गया था, लेकिन ऋग्वैदिक देवताओं से प्रार्थना करने के बाद उन्हें बचा लिया गया। इस किंवदंती का उल्लेख करने वाला सबसे पुराना ग्रंथ ऋग्वेद का ऐतरेय ब्राह्मण है। वाल्मीकि की रामायण के बालकांड में कुछ बदलावों के साथ यह कहानी दोहराई गई है। कई अन्य ग्रंथों जैसे सांख्यन श्रौत सूत्र, बौधायन श्रौत सूत्र, पुराण और चंद्रकीर्ति के कार्य में भी यह कहानी वर्णित हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3hMabr9
https://bit.ly/3kubpcl
https://bit.ly/2Uh9VHP
https://bit.ly/3kxYZ39
https://bit.ly/2UsBk9J
https://bit.ly/3zer3wE

चित्र संदर्भ
1. मोज़ेक "इसहाक का बलिदान ("Sacrifice of Isaac")" - सैन विटाले की बेसिलिका Basilica of San Vitale (A.D. 547) का एक चित्रण (wikimedia)
2. ड्यूक जिंग (Duke Jing of Qi) (क्यूई के ड्यूक जिंग (चीनी: 齊景公; मृत्यु 490 ईसा पूर्व) 547 से 490 ईसा पूर्व क्यूई राज्य के शासक थे।) की कब्र में 547 से 490 ई.पू. में बलि किए गए 145 घोड़े के कंकाल का एक चित्रण (wikimedia)
3. अंबरीसा ने यौवन शुनाशेपा को बलि में अर्पित करने का एक चित्रण (wikimeida)



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