वाइट कालर वर्कर्स (White-collar workers) बड़े शहरों का आधार हैं‚ यह उन कर्मचारियों के एक वर्ग से संबंधित
है जो कार्यालय की नौकरियों तथा प्रबंधन के रूप में अत्यधिक कुशल कार्य करते हुए उच्च औसत वेतन
अर्जित करने वालों के रूप में जाने जाते हैं। उदाहरण के लिए, कंपनी प्रबंधन, वकील,
लेखाकार,वित्तीय,बीमा,सलाहकार और कंप्यूटर प्रोग्रामर जैसी नौकरियों । इसके विपरीत, ब्लू कालर वर्कर्स
(Blue Collar Workers) उन श्रमिकों को संदर्भित करता है जो कठिन शारीरिक श्रम में संलग्न होते हैं,
आमतौर पर कृषि, निर्माण, खनन, या रखरखाव। ब्लू-कॉलर कार्यकर्ता कुशल या अकुशल हो सकता है।
कोरोनावायरस महामारी के कारण, वाइट कालर वर्कर्स का कार्य क्षेत्र सिमटता हुआ या अधिक डिजिटल
हो गया है। चूँकि डिजिटल कार्य कहीं से भी किया जा सकता है, कई लोग कम भीड़ वाले चरागाहों की
ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि अभी पलायन में अप्रत्याशित वृद्धि नहीं हुयी है, किंतु फिर भी जो अब
तक गए नहीं हैं वे इस ओर आने की योजना बना रहे हैं।
यह स्थिति विश्व के अनेक देशों में बनी हुयी है। कोरोना वायरस प्रकोप के कारण जाहिर है कि
दूरस्थ कार्य (Work from home) मुख्यधारा में प्रवेश कर रहा है‚ और इसमें कोई आश्चर्य नहीं है
कि कई व्यापारी पहली बार वितरित कार्यबल के प्रबंधन की पहेली का सामना कर रहे हैं। महामारी
से पहले‚ घर से अपना काम करने वालों मे 5 में से केवल 1 कर्मचारी ही होता था।
अब‚ उन
कर्मचारियों में से 70प्रतिशत से अधिक ज्यादातर समय टेलिवर्किंग(Teleworking) कर रहे हैं‚ और
लगभग 40 प्रतिशत लोगों का कहना है कि पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ काम को संतुलित
करना अब आसान हो गया है।
यदि पिछले वर्ष को देखा जाए तो कहा जा सकता है कि वैक्सीन (vaccine) उपलब्ध होने के बाद
भी‚ कोविड–19 से पहले के जीवन में वापस नहीं आया जा सकता। देखा जाए तो कोविड–19 का सबसे
ज्यादा असर निम्न स्तर पर कार्य करने वाले मजदुरों‚ प्रवासी श्रमिकों‚ रेहड़ी वाले व दैनिक
मजदुरी करने वाले लोगों पर पड़ा है‚ जिससे देश में लॉकडाउन की स्थिति उत्पन्न होने पर रोजगार
ठप पड़ गया‚ जिसके चलते बड़ी संख्या में पलायन होने लगा। 1947 में भारत के विभाजन के बाद,
भारत ने कोरोना के दौरान अपने इतिहास में दूसरा सबसे बड़ा सामूहिक प्रवास देखा, जहां 140 लाख
से अधिक लोग विस्थापित हुए।
भारत की ग्रामीण आबादी आज से एक दशक पहले की तुलना में 90.6 मिलियन अधिक है। लेकिन
शहरी आबादी 2011 की तुलना में 91 मिलियन अधिक है। जनगणना‚ शहरी आबादी के ग्रामीण से
अधिक बढ़ने के तीन संभावित कारणों को दर्शाती है: ‘प्रवास’‚ ‘प्राकृतिक वृद्धि’ तथा ‘नए क्षेत्रों को
शहरी रूप में शामिल करना’। यह तीनों कारक पहले के दशकों में भी लागू थे‚ जब ग्रामीण आबादी में
वृद्धि शहरी आबादी से कहीं अधिक थी। ग्रामीण उड़ान या (ग्रामीण पलायन) (Rural flight)ग्रामीण
क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में लोगों का प्रवासी पैटर्न है। यह ग्रामीण दृष्टिकोण से देखा जाने वाला
शहरीकरण है।आधुनिक समय में‚ यह अक्सर कृषि के औद्योगीकरण के बाद एक क्षेत्र में होता है –
जब कृषि उत्पादन की समान मात्रा को बाजार में लाने के लिए कम लोगों की आवश्यकता होती है
तथा संबंधित कृषि सेवाओं और उद्योगों को सम्मिलित किया जाता है। ग्रामीण उड़ान तब तेज हो
जाती है जब जनसंख्या में गिरावट के कारण ग्रामीण सेवाओं (जैसे व्यावसायिक उद्यम और
स्कूल) जैसी सुविधाओं का आभाव होने लगता है, तब लोग उन सुविधाओं की तलाश में निकल जाते
हैं‚ जिससे जनसंख्या का अधिक नुकसान होता है।
औद्योगिक क्रांति से पहले‚ ग्रामीण उड़ान ज्यादातर स्थानीय क्षेत्रों में होती थी। पूर्व–औद्योगिक
समाजों ने बड़े ग्रामीण–शहरी प्रवासन प्रवाह का अनुभव नहीं किया‚ मुख्यता शहरों की अक्षमता के
कारण। बड़े रोजगार उद्योगों की कमी‚ उच्च शहरी मृत्यु दर और कम खाद्य आपूर्ति सभी ने
पूर्व–औद्योगिक शहरों को अपने आधुनिक समकक्षों की तुलना में बहुत छोटा रखने के रूप में कार्य
किया है। 19 वीं शताब्दी के अंत में औद्योगिक क्रांति की शुरूआत ने इनमें से कई अवरोधों को हटा
दिया। जैसे–जैसे खाद्य आपूर्ति बढ़ी और स्थिर हुई तथा औद्योगीकृत केंद्रों का उदय हुआ‚शहरों ने
बड़ी आबादी का समर्थन करना शुरू कर दिया‚ जिससे बड़े पैमाने पर ग्रामीण उड़ान की शुरूआत हुई।
दुसरे विश्व युद्ध के बाद ग्रामीण उड़ान मुख्य रूप से औद्योगिक कृषि के प्रसार के कारण हुई है।
छोटे श्रम प्रधान पारिवारिक फार्म भारी मशीनीकृत और विशेषीकृत औद्योगिक फार्मों में विकसित हो
गए। जबकि एक छोटे परिवार के खेत में आमतौर पर फसल‚ उद्यान और पशु उत्पादों की एक
विस्तृत श्रृंखला का उत्पादन होता है तथा परिवार के सभी सदस्यों को पर्याप्त श्रम करना पड़ता
था। बड़े औद्योगिक खेतों में आमतौर पर केवल कुछ फसल या पशुधन किस्मों के विशेषज्ञ होते थे‚
बड़ी मशीनरी और उच्च घनत्व वाले पशुधन नियंत्रण प्रणालियों का उपयोग करते थे।भारत में युवा
वर्ग ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि में होने वाले निरंतर नुकसान और शहरी क्षेत्र में मिलने वाली अच्छी
मजदूरी और वेतन के कारण गाँव छोड़ रहे हैं, अक्सर बूढ़े लोगों को उन्हीं के हाल में गांवों में छोड़
दिया जाता है जो कि एक दुष्चक्र स्थिति है।
भारत में यह प्रवास पहले की तुलना में काफी हद तक तीव्रता से शहरीकरण को बढ़ा रहा है। एशिया
एक ग्रामीण समाज से एक शहरी समाज में एक ऐतिहासिक जनसांख्यिकीय परिवर्तन के दौर से गुजर
रहा है, जो अतीत में दुनिया के किसी भी अन्य हिस्से में देखे गए किसी भी परिवर्तन से कहीं अधिक
बड़ा है। 2025 तक एशिया की अधिकांश आबादी शहरी होगी। भारत की शहरी आबादी 2014 में 41
करोड़ से बढ़कर 2050 तक 81.4 करोड़ होने की उम्मीद है।
कम घनत्व वाले शहरों की तुलना में उच्च घनत्व वाले शहर प्रति व्यक्ति आधार पर कहीं कम तो
कहीं ज्यादा खर्चीले होते हैं। स्पष्ट रूप से, देश को एक नए शहरी दृष्टिकोण की कल्पना करने और
उसे लागू करने के लिए कहीं अधिक परिष्कृत योजना ढांचे की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित
हो सके कि भारत अपने बढ़ते शहरों में अपने प्रवासियों को बसाने के लिए तैयार है।केंद्र और राज्य
दोनों सरकारों को मध्य-स्तरीय शहरों के लिए बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना होगा, क्योंकि 15 लाख से
कम आबादी वाले 193 छोटे शहरों में निवेश करना बहुत महंगा होगा; लेकिन वर्तमान में, ये छोटे शहर
भारत के आधे से अधिक शहरी निवासियों का घर हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3kmJdrP
https://nyti.ms/3B84lId
https://bit.ly/3kwuD17
https://bit.ly/3hFNViC
https://bit.ly/2VRCmwj
https://bit.ly/3kwuHxT
https://bit.ly/3B8D0Wh
चित्र संदर्भ
1. फैक्टरी श्रमिक तथा ऑफिस वर्कर का एक चित्रण (flickr,flickr)
2. लॉकडाउन के दौरान सामान वितरण का एक चित्रण (flickr)
3. 5 जुलाई 2021 तक प्रति व्यक्ति राज्य द्वारा प्रशासित भारत की कुल खुराक का एक चित्रण (wikimedia)
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