प्रत्येक वर्ष पुरी के जगन्नाथ रथ उत्सव को मनाने के लिए जौनपुर में उर्दू चौराहा में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर
से रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।इस रथयात्रा में भगवान् जगन्नाथ, बालभद्र और देवी शुभद्रा तीनों को
समर्पित तीन रथ होते हैं जिस पर क्रमशः तीनों देवता विराजित होते हैं और ये रथ पारंपरिक रूप से विशेष
विश्वकर्मा सेवकों द्वारा बनाए जाते हैं। विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा के दौरान दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों को
वास्तुकार (विश्वकर्मा) द्वारा बनाए गए विशाल रथ मंत्रमुग्ध कर देते हैं। हालांकि इन मंत्रमुग्ध कर देने वाले
रथों को देखकर अधिकांश लोगों को यह विश्वास नहीं होगा कि इतने भव्य वास्तुकला को बनाने वाले वास्तुकार
एक निर्धनता का जीवन जी रहे हैं।
पुरी श्री मंदिर के विभिन्न अनुष्ठानों से जुड़े सेवकों के लगभग 120 समूहों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति
का 2013 में एक सर्वेक्षण में आकलन किया गया था, विडंबना यह है कि इस सर्वेक्षण से कुछ खास प्राप्त नहीं
हुआ और श्रीमंदिर प्रशासन द्वारा एक और सर्वेक्षण कराए जाने के लिए कहा गया है।
दरसल जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव के शुरू होने के बहुत पहले से ही रथों का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाता
है, ये रथ पुरी के प्राचीन भगवान् जगन्नाथ के मंदिर के आँगन में बनाए जाते हैं। पुरी में कोई भी इन रथों के
निर्माण का कार्य नहीं कर सकता है, यहाँ पर सदियों से रथों का निर्माण विश्वकर्मा सेवक करते आ रहे हैं।
हालांकि भगवान जगन्नाथ मंदिर की वार्षिक रथयात्रा के रथों के निर्माण की विधि कई ग्रंथों में मौजूद है,
लेकिन विश्वकर्मा सेवक अपने पारंपरिक ज्ञान से ही इन रथों को बनाते हैं।
मुख्यतः इन रथों का निर्माण प्रत्येक वर्ष की अक्षय तृतीय के दिन से शुरू होता है। इन रथों को बनाने के लिए
विशेष पेड़ों का चयन किया जाता है, और इन पेड़ों का चयन प्रत्येक वर्ष वसंत पंचमी के दिन से शुरू हो जाता
है।रथ के लिए पेड़ों का चयन करने वाले इस दल को महाराणा कहा जाता है।इन रथों को बनाने के लिए
आमतौर पर नीम और नारियल के पेड़ों का उपयोग किया जाता है, इन पेड़ों को मुख्य रूप से दसपल्ला जिले के
जंगलों से ही लाया जाता है। विश्वकर्मा सेवक द्वारा इन पेड़ों को शास्त्रों में वर्णित विधान के आधार पर काटा
जाता है, पेड़ों को काटने से ग्राम देवी की अनुमति ली जाती है और पहला पेड़ काटने के बाद पूजा होती है,
हालांकि अन्य पेड़ों को काटने के बाद गांव के मंदिर में पूजा की जाती है, फिर इन्हें पुरी लाया जाता है।
इन रथों के निर्माण के समय से ही चन्दन यात्रा की शुरुआत होती है तथा इन पेड़ों के तनों को मंदिर परिसर
में रखकर पूजा आदि के बाद एक चांदी की कुल्हाड़ी से सांकेतिक रूप से काटा जाता है तथा फिर इनसे रथों का
निर्माण किया जाता है।रथों को बनाने वाले विश्वकर्मा सेवक कई पुश्तों से यह काम करते आ रहे हैं। इनके
पूर्वजों द्वारा भी यही कार्य किया जाता था, जिसके कारण रथ बनाने में इन लोगों को विशेष योग्यता हासिल
है।इन रथों को बनाने वाले विश्वकर्मा सेवक आठ श्रेणियों में बंटे हुए होते हैं।ये सभी विश्वकर्मा सेवक अलग-
अलग कला के जानकार होते हैं जैसे गुणकार, पहिमहाराणा, कमर कंट नायक/ ओझा महाराणा, चंदाकार, रूपकार
और मूर्तिकार, चित्रकार, सुचिकार/दरजी सेवक और रथभोई आदि।
भगवान जगन्नाथ के रथ को गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष जैसे नामों से जाना जाता है।
इनकी उंचाई परस्पर
13 मीटर (Meter), 13.2 मीटर 12.9 मीटर होती है। इनमें पहिये भी भिन्न भिन्न संख्या में मौजूद होते हैं,
जैसे 16 पहिये, 14 पहिये और 12 पहिये।भगवान जगन्नाथ की शोभायात्रा को भक्तों द्वारा नंगे पांव रथ को
खींच कर निकाला जाता है, वहीं रथ के आगे-आगे भक्त शोभायात्रा में विराजमान भगवान के स्वागत में सफाई
करते हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3qYAbCG
https://bit.ly/3wuHlj5
https://bit.ly/3e3PPHG
चित्र संदर्भ
1. विशाल रथ पर चित्रकारी करते विश्वकर्मा सेवक का एक चित्रण (gaatha)
2. विशाल रथ का निर्माण करते विश्वकर्मा सेवक का एक चित्रण (gaatha)
3. विशाल रथ नंदिघोष का एक चित्रण (gaatha)
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