हस्तनिर्मित कालीन से मशीन से बने कालीनों तक का सफर

जौनपुर

 06-07-2021 10:18 AM
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

घर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए हम विभिन्न वस्तुओं का उपयोग करते हैं, तथा कालीन भी उनमें से एक है। कालीन, जौनपुर का एक उत्कृष्ट उत्पाद है, जिसकी मांग दुनिया भर में है। जौनपुर के कालीन उद्योग ने अभी तक लगभग 3500 लोगों को रोजगार प्रदान किया है।यह उन वस्तुओं में से एक है, जिन्हें जौनपुर से मुख्य रूप से निर्यात किया जाता है। इस उत्पाद को “एक जिला एक उत्पाद” योजना के तहत भी शामिल किया गया है। माना जाता है, कि कालीन की उपस्थिति करीब 8 से 9 हजार वर्ष पहले से है। अब तक की प्राचीनतम प्राप्त कालीन पजेरिक (Pazyryk) कालीन है,जो सन् 1949 में साइबेरिया (Siberia) में एक कब्र के उत्खनन से प्राप्त हुई थी। शुरुआती दौर में कालीनों का निर्माण ठंड से बचने के लिये किया जाता रहा होगा, किंतु बाद में यह पूरे विश्व में सजावट के तौर पर उपयोग की जाने लगी। मुगल बादशाह कालीनों के बहुत शौकीन हुआ करते थे। अकबर (Akbar) कालीन के इतने शौकीन थे, कि उन्होंने फारसी कालीन बुनकरों को फारस से भारत बुलवाया और उन्हें यह आदेश दिया कि वह कालीन का निर्माण ठीक वैसे ही करें जैसे फारसी कालीनें होती हैं। जहाँगीर (Jahangir) व शाहजहाँ (Shah Jahan) ने भी कालीनों को अपने जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनाए रखा तथा इस कला का विकास किया। पहले के समय में कालीनें हाथ से बुनी जाती थीं,लेकिन अब कालीन निर्माण की प्रक्रिया को अधिकांशतः मशीनों द्वारा पूरा किया जा रहा है।कालीनों को हाथ से बुनने के लिए एक करघे का इस्तेमाल किया जाता है।किसी भी करघे का मूल उद्देश्य धागों को तनाव में खींचकर पकड़ना होता है, ताकि धागों की बुनाई करके कपड़ा बनाया जा सके। करघे की बनावट और उसकी कार्य प्रणाली भिन्न हो सकती है, लेकिन उनका मूल कार्य समान ही होता है।
औद्योगिक क्रांति के दौरान बुनाई के लिए पावर लूम का विकास किया गया।पावर लूम एक मशीनीकृत करघा है, जिसका निर्माण बुनाई के औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप हुआ। पहला पावर लूम 1786 में एडमंड कार्टराईट (Edmund Cartwright) द्वारा डिजाइन किया गया था और उसी साल इसे पहली बार बनाया गया था। अगले 47 वर्षों तक इसे परिष्कृत किया जाता रहा, तथा उसके बाद हॉवर्ड और बुलो कंपनी (Howard and Bullough company) के एक डिजाइन ने पावर लूम को पूरी तरह स्वचालित बना दिया। इस उपकरण को 1834 में जेम्स बुलो (James Bullough) और विलियम केनवर्थी (William Kenworthy) द्वारा डिजाइन किया गया, और लेंकशायर लूम (Lancashire loom) नाम दिया गया। वर्ष 1850 तक, इंग्लैंड (England) में कुल 260,000 पावरलूम का संचालन शुरू किया जा चुका था। स्वचालित करघे के लिए पहला विचार पेरिस (Paris) में 1678 में एम डी गेनेस (M de Gennes) और 1745 में वाउकेनसन (Vaucanson) को आया, लेकिन उनके डिजाइनों को कभी विकसित नहीं किया गया और उनके इस विचार को भुला दिया गया। 1785 में एडमंड कार्टराईट ने पावरलूम का पेटेंट कराया, जिसमें बुनाई की प्रक्रिया को गति देने के लिए जल शक्ति का उपयोग किया गया। कार्टराइट की मशीन व्यावसायिक रूप से सफल मशीन नहीं थी, इसलिए अगले दशकों में कार्टराइट के विचारों में संशोधन कर स्वचालित करघा निर्मित किया गया। पावर लूम,भाप इंजन या बिजली से संचालित होता है। इसने व्यक्तिगत लूम को प्रतिस्थापित किया क्यों कि यांत्रिक रूप से संचालित होने वाला यह लूम, सामान्य लूम या करघे की तुलना में कम से कम दस गुना तेजी से काम करता है, और इस प्रकार कम समय में अधिक कपड़ों का निर्माण करता है, जिनकी बनावट और गुणवत्ता भी अपेक्षाकृत अधिक होती है। पावर लूम की मदद से कालीनों को इतनी तीव्रता से बनाया जा सकता है, कि यदि कालीन हाथ से बनाया जाए तो इसमें कई वर्ष तक लग सकते हैं। मशीन से बने कालीनों में सिंथेटिक सामग्री का उपयोग आम है, जबकि हस्तनिर्मित कालीनों में सबसे अधिक प्रचलित सामग्री ऊन है। हाथ से बनी कालीन और मशीन से बनी कालीन में स्पष्ट अंतर देखने को मिलता है। जैसे हस्तनिर्मित या हाथ से बुने हुए कालीन पर, फ्रिंजेस (Fringes) और सेल्वेज (Selvedge) दिखाई देती है। फ्रिंज कालीन की नींव (ताना) का विस्तार है, जिन्हें बाद में कालीन पर सिला या चिपकाया नहीं जाता। इसी प्रकार सेल्वेज, कालीन का बाहरी लंबा भाग है, जो कालीन की उत्पत्ति की पहचान भी कराता है।मशीन से बने कालीन पर सेल्वेज आमतौर पर बहुत महीन होते हैं,और फिनिशिंग बहुत सटीक होती है। हस्तनिर्मित कालीन में किनारों को हाथ से सिला जाता है, जिससे अक्सर कालीन के किनारे कुछ असमान हो जाते हैं और पूरी तरह से सीधे नहीं होते।मशीन से बने कालीन पर पैटर्न आम तौर पर बहुत सटीक होते हैं, और डिजाइन आमतौर पर एक तरफ से दूसरी तरफ प्रतिबिंबित होता है। मशीन से बने कालीन के डिजाइन में शायद ही कोई विसंगति पाई जाती है, जो हाथ से बने कालीनों में आम तौर पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। मशीन और हस्तनिर्मित कालीन के बीच एक मुख्य अंतर कालीन के पीछे के भाग से भी सम्बंधित है।
मशीन से बने कालीन के पिछले हिस्से पर गांठें और बुनाई लगभग हमेशा सही और एक समान होती है, जबकि हस्तनिर्मित कालीनों में ऐसा नहीं होता है। वर्तमान समय में मशीनीकरण का चलन बहुत अधिक बढ़ गया है, इसलिए हाथ से बनाई जाने वाली कालीनों के निर्माण से सम्बंधित उद्योगों का पतन हो रहा है। चूंकि, वर्तमान समय में कोरोना महामारी विश्व व्यापक है, इसलिए इस उद्योग की हालत और भी बदतर होने लगी है।अन्य सभी उद्योगों की तरह कालीन उद्योग भी कोरोना महामारी के कारण अपनी पहचान खोता जा रहा है। कालीन और दरियां शीतकालीन उत्पाद हैं, और इन्हें जनवरी और सितंबर के बीच विदेशों में बेचा जाता है। मार्च, अप्रैल और मई के महीने महत्वपूर्ण होते हैं और इस अवधि के दौरान ऑर्डर निर्यात किए जाते हैं। लेकिन कोरोना महामारी के कारण लगी तालाबंदी से यह संभव नहीं हो पाया, और उद्योग को काफी नुकसान झेलना पड़ा। तालाबंदी के कारण श्रमिकों की अनुपलब्धता की वजह से भी श्रमशक्ति अत्यधिक प्रभावित हुई है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3wgLvem
https://bit.ly/2SMm7zn
https://bit.ly/3hiezxC
https://bit.ly/3AqhJXV
https://bit.ly/3dEaxNR
https://bit.ly/3ACXdU6
https://bit.ly/3AqhXyf

चित्र संदर्भ
1. विभिन्न कालीनों का एक चित्रण (unsplash)
2. मुग़ल कार्पेट (कालीन) का एक चित्रण (wikimedia)
3. मशीन में निर्मित होने वाली कालीन का एक चित्रण (youtube)



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