वस्तुतः हमारा देश भारत अपनी अनेक विशेषताओं के संदर्भ में पूरे विश्व में लोकप्रिय है, परंतु भोजन की
विविधताओं के परिपेक्ष्य में हमारा कोई शानी नहीं है। यहाँ जितनी अधिक संस्कृतियाँ होंगी, उतने अधिक व्यंजन।
लजीज व्यंजनों की अनंत श्रृंखला में भारत में यहां खासतौर पर बनाया जाने वाला स्वदिष्ट जर्दा एक अद्वितीय भोज
है। ज़र्दा (Zarda) मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में बनाया जाने वाला व्यंजन है ,इस व्यंजन का मुख्य अवयव
मीठे चावल होते हैं, जिन्हे पारम्परिक तरीके केसर, दूध और चीनी के साथ उबाला जाता है। साथ ही इलायची,
किशमिश, पिस्ता या बादाम के साथ इसका स्वाद अतिविशिष्ट हो जाता है। यही सुगंधित मीठा स्वाद जर्दा को इसके
समतुल्य व्यंजनों से अलग बनाता है।
ज़र्दा शब्द मुख्य रूप से पारसी शब्द " ज़र्द"('zard) से लिया गया है, जिसका अर्थ "पीला" होता है। इसमें मिलाये जाने
वाले खाद्य रंग के कारण इसमें यह पीला रंग आता है, हालाँकि हमारे पडोसी देश पाकिस्तान में पीले रंग के साथ-
साथ अन्य खाद्य रंगो को भी मिश्रित किया जाता है, साथ ही यहाँ इस व्यंजन में खोया, कैंडीड फल (मुरब्बा) और मेवा
को भी डाला जाता है।
भारत में इसे शादी बारातों अथवा अन्य प्रकार के सामूहिक उत्सवों में विशेष तौर पर भोजन के
बाद परोसा जाता है, अर्थात यह स्वादिष्ट व्यंजन यहाँ मिठाई के समानांतर ही रखा गया हैं। यह देश के विभिन्न
हिस्सों में बेहद लोकप्रिय है, इसकी तुलना प्रसिद्द ईरानी मिठाई "शोलेजार्ड" (Showlejard) से की जाती है।
मुग़लकालीन भारत के दौरान यह मुग़ल बादशाह शाहजहां के, पसंदीदा व्यंजनों में से एक था। उनके आग्रह पर यह
व्यंजन महल में कई बार बनाया जाता था, साथ ही चावलों से निर्मित इस व्यंजन को महल में आनेवाले मेहमानों के
लिए विशेष भोज के तौर पर भी बनाया जाता था। भारत में इसकी लोकप्रियता का श्रेय भी मुगलों को ही जाता है,
सिरियाई देशों में भी यह बेहद आम व्यंजन है, वहां भी इसे जर्दा से ही सम्बोधित किया जाता है, और विभन्न अवसरों
पर उपवास के दौरान बिना डेयरी उद्पादों के निर्मित किया जाता है।
लिज़ी कोलिंगम (Lizzie Collingham) ने अपनी पुस्तक "करी: ए टेल ऑफ़ कुक्स एंड विनर्स, 2006" ("Curry: A
Tale of Cooks and Winners, 2006") में 'ज़र्ड बिरंज' का उल्लेख किया है, जिसे आधुनिक ज़र्दा से भी संदर्भित
किया जाता है।
प्रायः "जर्दा" शब्द को सुनकर प्रतीत होता है की, यह उर्दू भाषी लोगों में अधिक प्रचलित है, जिसमे अधिकांशतः
मुस्लिम समुदाय आता है। परतुं इसके विपरीत भारत की सामान्य हिंदी भाषी आबादी में भी स्वादिष्ट पीले चावलों
वाला यह भोज सामान रूप से पसंद किया जाता है। सिख समुदाय में भी यह मीठा व्यंजन बेहद पसंद किया जाता है,
वही भारतीय उपमहाद्वीप के सूफी मंदिरों में इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। देश के पश्चिमी उत्तर प्रदेश
में पुलाव/बिरयानी बेचने वाले लोग इसे कुछ मात्रा में थोड़ा सा अलग से रख लेते हैं, मसालेदार और नमकीन
बिरयानी के साथ इसे मिलाने पर एक विशेष स्वाद आता है।
जर्दा शब्द और स्वाद में कुछ विशेषताओं से मिलती जुलती एक तुर्किश (तुर्की) मिठाई भी अतिलोकप्रिय है, जिसे ज़र्दे
(Zarde) से सम्बोधित किया जाता है। इसे एक प्रकार से चावलों से निर्मित हलवा भी कह सकते हैं, हालाँकि यह हलवे
से थोड़ा भिन्न होता है, क्योंकि इसे दूध के बजाय पानी से निर्मित किया जाता है।
चावलों में केसर मिलाने पर यह भी
पीले रंग का हो जाता है तथा तुर्की में रंग को अधिक आकर्षक बनाने के लिए कई बार हल्दी का भी प्रयोग किया जाता
है। इसे प्लेट में एक बार परोसे जाने पर लगभग 215 कैलोरी (calories) शरीर में प्रवेश कर जाती हैं। यह व्यंजन भी
तुर्की में शादी बारात अथवा पवित्र त्यौहार जैसे रमजान इत्यादि के शुभवसर पर परोसा जाता है।
चावलों से निर्मित इसी श्रंखला में परम्परिक ईरानी मिठाई शोलेज़ार्ड (फ़ारसी: شلهرد /ʃʊllə zærd/) को भी शामिल
किया जाता है। केसर और चावलों से निर्मित इस मीठे व्यंजन का स्वाद अद्वितीय है। ईरान जैसे देशों में पारंपरिक
रूप से त्योहारों जैसे कि तिरगान, साथ ही रमज़ान के अवसर इस भोज को परोसा जाता है। इसे भी पानी के साथ
चावलों को मिलाकर निर्मित किया जाता है। अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें केसर, चीनी, गुलाब जल,
मक्खन, दालचीनी और इलायची को भी डाला जाता है, और दालचीनी, बादाम, गुलाब की कलियों से सजाने पर यह
देखने में भी बेहद आकर्षक और लज़ीज़ नजर आता।
संदर्भ
https://bit.ly/3whzYLP
https://bit.ly/3jSklrR
https://bit.ly/3xfsevh
https://en.wikipedia.org/wiki/Zerde
चित्र संदर्भ
1. जर्दा , उबालकर बनाई जाने वाली पारंपरिक दक्षिण एशियाई मिठाई का एक चित्रण (flickr)
2. रंगीन चावलों से निर्मित जर्दा मिठाई का एक चित्रण (flickr)
3. चावलों से निर्मित हलवा जर्दे का एक चित्रण (wikimedia)
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