पुष्प, फूल एक जनन संरचना का रूप हैं। इनके ही आधार पर पूरा पर परागण का चक्र चलता है। एक फूल की जैविक क्रिया यह है कि वह पुरूष शुक्राणु और मादा बीजाणु के संघ के लिए मध्यस्तता करे। फूलों के कुल मिलाकर दो रूप पाये जाते हैं। पहला कीट प्रेमी पुष्प, ये परागण के लिये कीटों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं (सूरजमुखी, कनेर, गेंदा, गुलाब आदि)। तथा दूसरे हैं वात परागीत पुष्प, इस प्रकार के पुष्प परागण के लिये कीट का नहीं अपितु हवा का सहारा लेते हैं (घासें, संटी वृक्ष, एम्बोर्सिया जाति की रैग घांस और एसर जाति के पेड़ और झाडियाँ)। पुष्प सौन्दर्य और महक देने के साथ-साथ कई और कार्य में लाये जाते हैं जैसे कि इत्र, दवाइयाँ बनाने आदि में। भारत में पुष्पों का प्रयोग सौन्दर्य, इत्र, दवाइयाँ, गुलदस्ता आदि बनाने के अलावा सबसे ज्यादा संख्या में मंदिरों में किया जाता है। जौनपुर में कनेर, गेंदा, गुलाब, गुढहल व चमेली आदि के पुष्प सबसे ज्यादा दिखाई देते हैं। यहाँ पर फूल की खेती एक बड़े क्षेत्र में की जाती है। जौनपुर में पुष्पों के खेती का इतिहास इसके खुद के स्वर्णिम इतिहास के काल तक जाता है। शर्की काल से ही यहाँ का इत्र मशहूर है तथा इत्र बनाने के लिये पुष्पों की माँग बड़ी संख्या में होती थी। तब से लेकर आज तक यहाँ पर पुष्पों की खेती की जाती रही है। वर्तमान काल में यहाँ पर सूरजमुखी की खेती बड़े क्षेत्र में की जाती है। सूरजमुखी की खेती से यहाँ के किसानों की आमदनी में इजाफा हुआ है।
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