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हमारे शहर जौनपुर ने अपनी मस्जिदों के परिपेक्ष्य में खासा लोकप्रियता हासिल की, अतः यहां की सबसे
चर्चित और दार्शनिक मस्जिदों में से एक खालिस मुखलिस मस्जिद, का उल्लेख करना अति आवश्यक हो
जाता है। जिसे देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटकों की भीड़ यहाँ पहुँचती है, और यही कारण है, कि
खालिस मुखलिस मस्जिद जौनपुर में प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक बन गई है। अपने भीतर ढेरों
विशेषताओं को संजोये, खालिस मुखलिस मस्जिद को अटाला मस्जिद के समकक्ष ही माना जाता है।
हालाँकि खालिस मुखलिस की मस्जिद का आकार तुलना करने पर कुछ छोटा प्रतीत होता है, लेकिन
मस्जिद की आंतरिक और बाहरी सजावट अदितीय है, जिसे देखने के लिए सैलानी और इस्लाम धर्म के
अनुयाई यहाँ खींचे चले आते हैं। इस पवित्र धार्मिक स्थली को मुस्लिम समुदाय का अभिन्न हिस्सा माना
जाता है। यहां पर प्रत्येक शुक्रवार को मन की शांति हेतु की जाने वाली प्रार्थना आगंतुकों के लिए विशेष
आकर्षण होती है।
खालिस मुखलिस मस्जिद का निर्माण 1470 ईस्वी में सुल्तान इब्राहिम के शासनकाल के दौरान किया गया
था, सुल्तान ने मस्जिद का नामकरण अपने मुख्य प्रशासक मलिक खालिस और मलिक मुखलिस के नाम
पर किया था। इस मस्जिद का निर्माण प्रसिद्ध अटाला मस्जिद सिद्धातों पर किया गया है, अटाला
मस्जिद जौनपुर के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है। यह केवल जौनपुर ही नहीं वरन, पूरे भारत में
मस्जिदों के नायाब नमूनों में से एक है। यह मस्जिद संरचना में खालिस मुखलिस मस्जिद से कई
समानताएं रखती है, इसका निर्माण सर्वप्रथम सुल्तान इब्राहिम ने करवाया था, जिसका निर्माण कार्य वर्ष
1408 में संपन्न हुआ था। खालिस मुखलिस मस्जिद संरचना को सादगी से मूर्त रूप दिया गया है, और
सजावट के लिए इसमें किसी भी बाहरी आवरण अथवा आभूषण का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है।
इस मस्जिद को कुछ अन्य नामों जैसे दरबिया मस्जिद अथवा चार उंगली मस्जिद के नाम से भी जाना
जाता है। इसके मुख्य प्रवेश द्वार के बाईं ओर दक्षिण घाट में तीन इंच लंबा एक पत्थर ठीक चार अंगुलियों
(उंगलियों) को मापने के लिए प्रसिद्ध है जो लंबाई में लगभग चार इंच का माना जाता है। ऐसी मान्यता है
कि पहले इसे कितनी बार भी नापने पर यह चार अंगुल ही आता था, साथ ही माना जाता है, कि इस मस्जिद
के निर्माण में जितने भी पत्थरों का प्रयोग किया गया वह सभी चार अंगुल ही थे। चूँकि इस घटना की
सत्यता पूर्णतः प्रमाणित नहीं है, परंतु यह स्पष्ट है कि मस्जिद अत्यत्न विशिष्ट है। यहाँ रमजान के
महीनों में शिया मुस्लिमो द्वारा इफ्तार का इंतजाम भी किया जाता है, यह मस्जिद मूल रूप से प्रसिद्ध
संत सैय्यद उस्मान के सत्कार और सुविधा के लिए बनाई गई थी, जिनका जन्म शीराज़, ईरान में हुआ था,
फिर बाद में उनका दिल्ली आगमन हुआ जहां से तैमूर के आक्रमण पर वे जौनपुर आ गए। यहां आज भी
उनके वंशज मस्जिद के पास रहते हैं। हमें ज्ञात है कि मस्जिद की संरचना सादगी से डिज़ाइन की गई है,
परंतु इसके बड़े स्तंभ, आकर्षक और विशालकाय गुंबद, दो पंख और मध्य में एक 66 फीट गहरा वर्गाकार
घेरा है, जिसकी छत को सपाट रखा गया है। यह संरचना के दस स्तंभों पर खड़ी है जो की हिंदु शैली को
दर्शाती हैं। माना जाता है कि प्राचीन समय में इसकी दीवारों को सिकदर लोदी का आदेश पाकर गिरा दिया
था, और कई वर्षों तक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़ा रहा, लेकिन अब इसकी मरम्मत कर दी गई है, और तभी
से यह लोकप्रिय स्थलों में से एक है।
जौनपुर की यह प्राचीन धरोहर आज नाजुक हालातों में है, निर्माण कला के क्षेत्र में यह मस्जिद शर्की कला
को दिखाती है सिकंदर लोदी ने भी इसे बेहद नुकसान पहुँचाया। चूँकि आज यह मस्जिद भारतीय पुरातत्व
विभाग के संरक्षण में है परंतु बावजूद इसके मस्जिद के पीछे का हिस्सा जीर्ण क्षीण हो चुका है, और आज भी
इसे अच्छी खासी मरम्मत की आवश्यकता है। यह मस्जिद हिन्दू और ईरानी शिल्प शैली का एक उत्कृष्ट
उदहारण है, और जौनपुर के प्रसिद्ध दार्शनिक स्थल होने के कारण भी इस पर विशेष ध्यान देने की ज़रुरत
है। परंतु इसकी जीर्ण क्षीर्ण हालत को देखते हुए पुरातत्त्व विदों और निर्माण शैली के जानकार भी एक पल
के लिए भावुक हो जायेगे।
संदर्भ
https://bit.ly/3gx41dY
https://bit.ly/3pXWAiO
https://bit.ly/3vEMswV
https://bit.ly/3cL1fiR- youtube
चित्र संदर्भ
1. खालिस मुखलिस मस्जिद का एक चित्रण (Prarang)
2. बाहर से खालिस मुखलिस मस्जिद का एक चित्रण (wikimedia)
3. खालिस मुखलिस मस्जिद का एक चित्रण (Prarang)