15 अगस्त 1947, एक ऐसा दिन है, जब लगभग 200 वर्षों बाद भारत को अंग्रेजों की गुलामी से
आजादी प्राप्त हुई। किंतु आजादी प्राप्त करने का यह रास्ता बहुत आसान नहीं था।लड़ाई में शामिल हुए
कई लोगों को अपनी जानें भी गंवानी पड़ी। महात्मा गांधी,सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, बाघा जतिन, सूर्य
सेन,रवींद्रनाथ टैगोर, सुब्रमण्यम भारती, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय,सरोजिनी नायडू, प्रीतिलता वद्देदार,
बेगम रोकैया, लाला लाजपत राय, चंद्र शेखर आजाद समेत ऐसे कई लोग हैं,जिन्होंने देश को आजाद
कराने के लिए विभिन्न रूपों में अथक प्रयास किए। हालांकि, इन सभी के साथ कुछ अन्य कारक भी हैं,
जिनकी भारतीय स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन कारकों में प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध तथा
विदेशी प्रभाव शामिल हैं।यूं तो, भारत में पहले से ही आजादी के लिए कई प्रयास किए जा रहे थे, किंतु
1914 में जब प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ा, तब भारत में राजनीतिक अशांति और भी अधिक बढ़ने लगी। इस
समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ऐसे लोगों का समूह बन चुकी थी, जो केवल एक निकाय से सम्बंधित
मुद्दों पर चर्चा करती थी, और अपने देश की सरकार या स्व-सरकार पर जोर दे रही थी। युद्ध शुरू होने
से पहले, जर्मनों (Germans) ने भारत में एक ब्रिटिश-विरोधी आंदोलन को भड़काने की कोशिश में काफी
समय और ऊर्जा खर्च की। इस समय यह विचार भी साझा किए जाने लगे,कि यदि ब्रिटेन (Britain)
दुनिया में कहीं भी किसी संकट में फंसता है, तो भारतीय अलगाववादी इस स्थिति को अपने उद्देश्य को
आगे बढ़ाने के लिए एक अवसर के रूप में उपयोग करेंगे।
भारत ने ब्रिटेन के युद्ध प्रयासों में बहुत बड़ा योगदान दिया, क्यों कि भारत से सैनिकों की एक बड़ी
संख्या को विश्वयुद्ध में लड़ने और मरने के लिए भेजा गया।
पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु
और बिहार जैसे क्षेत्रों के लगभग 15 लाख मुस्लिम, सिख और हिंदू पुरुषों ने भारतीय अभियान बल में
स्वेच्छा से भाग लिया। इन सैनिकों ने पूर्वी अफ्रीका (Africa), मेसोपोटामिया (Mesopotamia), मिस्र
(Egypt) और गैलीपोली (Gallipoli) में पश्चिमी मोर्चे पर अपना योगदान दिया। युद्ध में लगभग
50,000 सैनिक मारे जा चुके थे, 65,000 घायल हुए, तथा 10,000 लापता दर्ज किए गए। जबकि
भारतीय सेना की 98 नर्सों की मौत हो गई। चूंकि, उस समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण
हिस्सा था, तथा भारतीय लोग विश्वयुद्ध में सैनिकों और अन्य संसाधनों के रूप में महत्वपूर्ण योगदान
दे रहे थे, इसलिए राष्ट्रवादी नेताओं के बीच स्वतंत्रता की उम्मीद जगने लगी। लेकिन युद्ध के समाप्त
होने पर मार्शल लॉ (Martial law) के विस्तार से यह उम्मीद बिखरती हुई नजर आयी।
हालांकि,विश्वयुद्ध ने आजादी की मांगों को और भी तीव्र कर दिया।इस युद्ध में भारतीय लोगों और
संसाधनों का उपयोग किया गया था, जिसने भारतीयों में बहुत आक्रोश पैदा किया, खासकर तब जब
युद्ध में शामिल होने से पहले उनसे सलाह भी नहीं ली गई थी।
अंग्रेज तुर्की साम्राज्य के खिलाफ लड़ रहे थे, जिस पर खलीफा का शासन था। मुसलमान खलीफा का
बहुत सम्मान करते थे। इसलिए तुर्की की रक्षा के लिए भारतीय मुसलमान अंग्रेजों के खिलाफ खिलाफत
आंदोलन में शामिल हुए।युद्ध के दौरान, गरीब किसानों के बीच अशांति बढ़ने लगी, जिसने अंग्रेजों के
खिलाफ आंदोलनों में वृद्धि की। 1914 में एनी बेसेंट (Anne Besant) कांग्रेस में शामिल हुईं, तथा
1916 में उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ होमरूल आंदोलन (Home rule movement) शुरू किया।
होमरूल लीग ने भारतीयों के लिए स्वशासन की मांग की। 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच
लखनऊ समझौता किया गया, ताकि कार्यकारी परिषद और विधान परिषदों के सदस्यों के चुनाव में
भारतीयों की अधिक हिस्सेदारी और शक्ति के लिए एकजुट होकर काम किया जा सके।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गांधीजी भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता के रूप में उभरे, तथा स्वतंत्रता
की उम्मीदें बढ़ने लगी। प्रथम विश्वयुद्ध के समान द्वितीय विश्वयुद्ध ने भी भारत के स्वतंत्रता
आंदोलन को अत्यधिक प्रभावित किया।द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरूआत 1939 में हुई तथा फिर से
भारतीय लोगों की राय मांगे बिना उन्हें युद्ध में शामिल कर लिया गया। इस युद्ध ने औपनिवेशिक
शक्तियों की अर्थव्यवस्थाओं को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।ब्रिटेन और फ्रांस (France) की
अर्थव्यवस्थाएं इस हद तक नष्ट हो गयी थीं, कि वे अपने सैन्य बलों को आर्थिक रूप से बनाए रखने में
सक्षम नहीं थे, और इसलिए अपने उपनिवेशों में बढ़ते स्वतंत्रता आंदोलनों को रोकने में असमर्थ थे।इस
प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध के चलते वित्तीय रूप से पिछड़ने के कारण भी ब्रिटेन को 1947 में भारत को
स्वतंत्र करना पड़ा। द्वितीय विश्व युद्ध का एक अन्य प्रमुख परिणाम यह था कि इसने भारतीय
राजनीतिक स्वतंत्रता को बहुत तेज कर दिया था।भारतीय राष्ट्रीय नेताओं ने फासीवाद का विरोध किया
और स्वतंत्रता के दुश्मन के रूप में इसकी निंदा की। इसलिए फासीवाद का विरोध करने वाले सहयोगी
कई देशों ने ब्रिटिश सरकार पर भारतीय लोगों की मांग को पूरा करने का दबाव डाला।विभिन्न विदेशी
प्रभाव भी वह कारक था, जिसने भारतीय स्वतंत्रता में अपना योगदान दिया।
यूरोप (Europe) में एक सैन्य प्रमुख, फ्रांस की हार के बाद विंस्टन चर्चिल (Winston Churchill) ने यह
महसूस किया कि ब्रिटेन, नाजी जर्मनी (Nazi Germany) को अकेले हरा नहीं पाएगा। इसलिए उन्होंने
सक्रिय सैन्य समर्थन के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका (America) के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट
(Franklin Roosevelt) की सहायता ली। लेकिन फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने चर्चिल के सामने अटलांटिक चार्टर
(Atlantic Charter) का मसौदा रख दिया।इस मसौदे में ऐसे नियम या उपबंध बनाए गए थे, जिसकी
वजह से ब्रिटेन को एशियाई (Asian) क्षेत्रों को अपने नियंत्रण से मुक्त करना ही पड़ता। इस चार्टर पर
विंस्टन चर्चिल के हस्ताक्षर करवा कर अमेरिका ब्रिटेन को अपमानित करना चाहता था, क्यों कि एक
समय अमेरिका भी ब्रिटेन का उपनिवेश था।चार्टर पर हस्ताक्षर करने से पूर्व केवल ब्रिटेन ही अपने
उपनिवेशों के साथ व्यापार कर सकता था, लेकिन चार्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद अमेरिका भी स्वतंत्र
राष्ट्रों में प्रत्यक्ष रूप से प्रवेश कर लाभ प्राप्त कर सकता था।चार्टर के अनुसार ब्रिटेन को संयुक्त राज्य
अमेरिका के राजनीतिक आभार या दायित्व के अधीन रहना था। इस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता पर
अटलांटिक चार्टर का विशेष प्रभाव पड़ा।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय राष्ट्रीय आंदोलनों ने जोर पकड़ा जो स्वतंत्रता के लिए अन्य महत्वपूर्ण
कारण बना। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन 1857 से 1947 तक चला। भारतीय स्वतंत्रता के लिए पहला
राष्ट्रवादी क्रांतिकारी आंदोलन बंगाल से उभरा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन से स्वतंत्रता आंदोलन
और तीव्र हो गया। 20वीं सदी के प्रारंभ में लाल बाल पाल तिकड़ी, अरबिंदो घोष और वीओ चिदंबरम
पिल्लई जैसे नेताओं द्वारा प्रस्तावित राजनीतिक स्व-शासन के कारण भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने उग्र
रूप धारण किया। 1920 के दशक से स्व-शासन संघर्ष के अंतिम चरण में महात्मा गांधी के अहिंसा और
सविनय अवज्ञा आंदोलन ने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। द्वितीय विश्व युद्ध की
अवधि में कांग्रेस के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन और जापान की मदद से सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व
में भारतीय राष्ट्रीय सेना आंदोलन के अभियानों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों की गति तेज की।लेबर
पार्टी, जो विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटेन में सत्ता में आई थी, ने कांग्रेस पर से प्रतिबंध हटा
लिया और भारत में चुनावों की घोषणा की गई, जिसने शक्तिशाली भारतीय नेताओं के लिए आगे आने
का मार्ग प्रशस्त किया। अंग्रेजों के पास भारत और उन उत्साही भारतीयों को पकड़ने की ऊर्जा और
संसाधन नहीं बचे थे जो स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए दृढ़ थे।द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद,
दुनिया भर के लोगों में साम्राज्यवाद और युद्धों के प्रति कटुता पैदा हो गई थी तथा लोग अपने
अधिकारों, समानता और मानवता के लिए खड़े होने लगे। उनका मानना था कि भारत और उपनिवेशों को
स्वतंत्रता देने से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और इस प्रकार उनका कल्याण होगा।
संदर्भ:
https://bit.ly/2XCxdFi
https://bit.ly/2U2ov5z
https://bit.ly/3cyTgp7
https://bit.ly/2U09jWr
https://bit.ly/3iyWCw4
चित्र संदर्भ
1. भारतीय सैनिक सैनिक 1916 का एक चित्रण (wikimedia)
2. ब्रिटिश सेना में भारतीय सैनिकों का एक चित्रण (flickr)
3. नव-आगमन भारतीय सैनिकों का एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.