बढ़ती जनसंख्या के साथ अनेकों समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं, तथा उन समस्याओं में से एक लोगों के
लिए उपयुक्त आवास की अनुपलब्धता भी है।जापान (Japan) में जब आवास संकट उत्पन्न हुआ, तब
एक विशेष शैली और डिजाइन के अपार्टमेंट इमारतें तैयार की गयी, जिन्हें दांची (Danchi) कहा
गया।दांची, विशेष शैली और डिजाइन में बने अपार्टमेंट इमारतों या घरों के एक बड़े समूह को दिया गया
जापानी नाम है, जिन्हें मुख्य रूप से सरकारी अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक आवास के रूप में बनाया
गया था।सार्वजनिक आवास, वे आवास हैं, जो आमतौर पर एक सरकारी प्राधिकरण (या तो केंद्रीय या
स्थानीय) के स्वामित्व में होते हैं,तथा लोगों को किफायती कीमत पर उपलब्ध करवाए जाते हैं।पुराने दांची
की तुलना कभी-कभी “ख्रुश्च्योवकस” (Khrushchyovkas) से की जाती है, क्यों कि जापान की यह
आवास विकास परियोजना इसी अवधि के दौरान सोवियत संघ की आवास विकास परियोजना जिसे
ख्रुश्च्योवकस कहा जाता था, के समान थी। विश्व युद्ध के बाद दांची शैली के घरों ने जापानी
वेतनभोगियों और उनके परिवारों को अत्यधिक आकर्षित किया। इन आवासीय संरचनाओं को उपनगरीय
क्षेत्रों में बनाया गया था, जिसने जापान के वाइट कॉलर श्रमिकों को उपनगरीय आराम के साथ-साथ
गोपनीयता की सुविधा भी प्रदान की। इन संरचनाओं ने विश्वयुद्ध में भाग लेने वाले लोगों और उससे
प्रभावित अन्य पीड़ितों को बेहतर जीवन देकर उनकी आकांक्षाओं को मूर्त रूप दिया। इससे पहले जापान
में रहने के लिए बड़ी इमारतों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था, तथा अधिकांश घर अलग-अलग बने हुए
होते थे। यहां दांची शैली के घरों के निर्माण की शुरूआत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई, जब युद्ध के
कारण अनेकों घर क्षतिग्रस्त हो गए,तथा लोगों के पास रहने के लिए कोई जगह नहीं बची।
अगस्त 1945
तक, जापान में सभी आवासीय भवनों का 19 प्रतिशत हिस्सा हवाई बमबारी से नष्ट हो गया था। यदि
केवल शहरी क्षेत्रों की बात की जाए, तो यह नुकसान लगभग 44प्रतिशत था।चूंकि उस समय जापान
आर्थिक कठिनाइयों से भी जूझ रहा था, इसलिए सरकार ने इमारतों के पुनर्निर्माण के बजाय पहले
आर्थिक सुधार पर ध्यान केंद्रित करना उचित समझा तथा भारी उद्योगों में निवेश किया।लोग काम के
लिए बड़े शहरों में चले गए, जमीन की कीमतें आसमान छूने लगी तथा शहरी फैलाव टोक्यो (Tokyo)
और ओसाका (Osaka) में एक प्रमुख समस्या बन गया।1950 के दशक में, तीव्र जनसंख्या वृद्धि को
देखते हुए, सरकार के पास प्रतिक्रिया देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा और परिणामस्वरूप 1955 में
जापान हाउसिंग कॉरपोरेशन (Japan Housing Corporation - JHC), जिसे अब शहरी पुनर्जागरण
एजेंसी (Urban Renaissance Agency - UR)कहा जाता है,की स्थापना की गयी, जिसे शहरी मध्यम
वर्गीय परिवारों को समायोजित करने हेतु सार्वजनिक आवास निर्मित करने का कार्य सौंप दिया गया।कई
वर्षों के कठोर अनुसंधान के बाद, JHC ने पूरे देश में दांची परिसरों का निर्माण शुरू किया।दांची का
निर्माण जापान का सबसे बड़ा सार्वजनिक आवासीय प्रयोग था, जिसे पारंपरिक जापानी तत्वों के साथ-
साथ पश्चिमी और सोवियत आधुनिकतावादी टाइपोलॉजी के संयोजन से बनाया गया था।1960के दशक
की अधिकांश दांची इकाइयां कुल 41 वर्ग मीटर में बनायी गयी थी। दांची मुख्य रूप से जापान का
आधुनिकीकरण करने के लिए बनाए गए थे तथा इन्हें बनाने में अपेक्षाकृत बहुत कम लागत आयी
थी।हालांकि,शुरुआती दांची परिसरों में अपार्टमेंट अन्य पृथक आवासों से काफी छोटे थे, तथा शहरी क्षेत्रों
से दूर उपनगरों में स्थित थे, लेकिन फिर भी लोगों के बीच यह अत्यधिक प्रसिद्ध हुआ तथा लोग इन्हें
किराए पर लेने लगे।एक समय में दांची को आधुनिकता का प्रतीक माना जाता था, किंतु अब जापानी
समाज इसे बोझ मानने लगा है। इन आवासीय ईकाइयों में अब अधिकांशतः बुजुर्ग लोग ही निवास करते
हैं,जिनकी खुदकुशी की घटनाएं अक्सर सुनाई देती हैं। दांची अब विभिन्न सामाजिक मुद्दों का स्रोत बन
गये हैं,और नगर पालिकाओं के लिए समस्या उत्पन्न कर रहे हैं।
1970 में, आवास संकट के पूरी तरह से
हल होने के बाद इनके लिए लोगों का उत्साह धीरे-धीरे कम होने लगा तथा जो लोग दांची में निवास कर
रहे थे, वे भी अपने स्वयं के अलग घरों में जाने लगे। इसकी लोकप्रियता के कम होने का मुख्य कारण
यहां की अनुपयुक्त परिस्थितियां भी हैं।सर्दियों के महीनों में यहां अत्यधिक ठंड होती है, तो गर्मियों के
मौसम में अत्यधिक गर्म। इसके अलावा बुजुर्गों और विकलांग लोगों के लिए उपयुक्त प्रवेश द्वार और
स्नानघर भी मुश्किल से उपलब्ध हैं। हालांकि, इन सभी कमियों के कारण इसके पुराने महत्व को नहीं
भुलना चाहिए।चूंकि भारत की जनसंख्या निरंतर बढ़ती जा रही है, इसलिए दांची शैली जैसे सार्वजनिक
आवास भारत में अत्यधिक उपयोगी साबित हो सकते हैं। भारत को किराए के लिए लगभग 500 लाख
शहरी सामाजिक आवास इकाइयों की आवश्यकता है। कोरोना महामारी की वजह से लगाई गयी तालाबंदी
के कारण कई श्रमिकों ने शहरों को न केवल इसलिए छोड़ा, क्योंकि उनके पास कोई नौकरी नहीं थी,
बल्कि इसलिए भी क्यों कि उनके मकान मालिक उनका किराया माफ करने के लिए तैयार नहीं थे।
ऐसा अनुमान लगाया गया है, कि आने वाले समय में संगठित क्षेत्र (विनिर्माण और सेवाओं दोनों में) में
कार्यरत लाखों मध्यम वर्गीय भारतीय, किराया या ईएमआई का भुगतान कर पाने में असमर्थ होंगे। इस
समस्या को सार्वजनिक आवास की सुविधा से हल किया जा सकता है, जो लाखों निम्न-आय वाले
भारतीय परिवारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं तथा आर्थिक विकास को भी गति प्रदान करते
हैं।यह भारत को टिकाऊ शहरों और समुदायों के निर्माण के सतत विकास लक्ष्य - 11 को पूरा करने में
सक्षम बनाएगा।
संदर्भ:
https://bloom.bg/3ioJJnZ
https://bit.ly/2T3ABeb
https://bit.ly/3ppyihy
https://bit.ly/3w4nXKo
https://bit.ly/2RtbLnl
चित्र संदर्भ
1. टोक्यो के इताबाशी में ताकाशिमदैरा दांची शैली का एक चित्रण (wikimedia)
2. हिरोशिमा प्रीफेक्चुरल इंडस्ट्रियल का खंडहर
प्रमोशन हॉल का एक चित्रण (wikimedia )
3. शिराहिगे दांची शैली में निर्मित इमारत का एक चित्रण (flickr)
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