पुनः कल्पना, पुनः निर्माण और पुन: स्थापना, ये तीनों शब्द एक साथ मिलकर विश्व पर्यावरण दिवस 5
जून 2021 का मुख्य विषय बनाते हैं। यह एक ऐसा दिन है, जब संयुक्त राष्ट्र निवेशकों, व्यवसायों,
सरकारों और समुदायों का ध्यान पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को अच्छा करने या संतुलित बनाने की
तत्काल आवश्यकता पर केंद्रित करना चाहता है। पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुंचाने के कारण दुनिया
भर के जंगल और पीटलैंड, जो वातावरण में मौजूद कार्बन का अवशोषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं, लगातार कम होते जा रहे हैं, जिससे वायुमंडल में मौजूद कार्बन की मात्रा बढ़ती जा रही है,
तथा वैश्विक ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन लगातार तीन वर्षों से बढ़ रहा है। वर्तमान समय में कोरोना
महामारी ने पूरे विश्व में भयावह वातावरण बनाया हुआ है, किंतु इसने हमें इस बात का अहसास भी
दिलाया है, कि पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान के परिणाम कितने विनाशकारी हो सकते हैं। जानवरों के
प्राकृतिक आवासों के विनाश के कारण कोरोना विषाणु जैसे रोगजनकों का प्रसार अधिक होता जा रहा है।
इस साल का विश्व पर्यावरण दिवस पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए संयुक्त राष्ट्र दशक का शुभारंभ
भी कर रहा है। यह एक ऐसा मिशन है, जो वनों और कृषि भूमि से लेकर महासागरों तक, अरबों हेक्टेयर
मूल्यवान और आवश्यक प्राकृतिक पूंजी की रक्षा के लिए तथा उसे पुनर्जीवित करने के लिए 2030 तक
चलेगा।
पारिस्थितिकी तंत्र एक ऐसा समुदाय या जीवित जीवों का समूह है, जो एक विशिष्ट वातावरण में
रहते हैं तथा एक दूसरे के साथ परस्पर क्रिया करते हैं।दूसरे शब्दों में सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। यह
तंत्रमुख्य रूप से दो घटकों से मिलकर बना है, जैविक घटक और अजैविक घटक। जैविक घटकों में जहां
उत्पादक (हरे पौधे), उपभोक्ता (जंतु) और अपघटकों (सूक्ष्म जीव) को सम्मिलित किया गया है, वहीं
अजैविक घटक में तापमान, प्रकाश, जल, जलवायु, विभिन्न गैसें, मिट्टी आदि शामिल हैं। पारिस्थितिकी
तंत्र को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है, तथा भारत में भी ये दो पारिस्थितिकी तंत्र देखने को मिलते
हैं। पहला,स्थलीय पारिस्थितिकीतंत्र तथा दूसरा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र। स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के
अंतर्गत वन, घास के मैदान, मरूस्थल, पहाड़ियां, घाट शामिल हैं, जबकि जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में
ताजे पानी और समुद्रीय पारिस्थितिकी तंत्र को शामिल किया गया है।
भारत में वनों की अत्यधिक विविधता देखने को मिलती है, इसलिए उन्हें उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन, उष्ण
कटिबंधीय पर्णपाती वन, शीतोष्ण चौड़ी पत्ती वाले वन, सम शीतोष्ण शंकुधारी वन और एल्पाइन तथा
टुंड्रा वनों में वर्गीकृत किया गया है। इसी प्रकार मरूस्थल की बात करें,तो यहां दो प्रकार के मरूस्थल
देखने को मिलते हैं, जिनमें थार मरुस्थल और कच्छ का रण शामिल हैं। भारत में हिमालय पर्वत 2500
किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फ़ैला हुआ है, जो भारत की उत्तरी सीमा को आवरित करता है। इसे
पश्चिमी मध्य और पूर्वी हिमालय में विभाजित किया गया है। पश्चिमी हिमालय जम्मू और कश्मीर तथा
हिमाचल प्रदेश में स्थित है, जबकि मध्य हिमालय नेपाल और भारतीय राज्य उत्तराखंड में स्थित है। पूर्वी
हिमालय, पश्चिम बंगाल के उत्तरी भागों को आवरित करता है और सिक्किम, भूटान, और अरूणाचल
प्रदेश तक फैला हुआ है। चूंकि, जनसंख्या बढ़ने के साथ प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा
है, इसलिए पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो रहा है, जो जैव विविधता को नुकसान पहुंचाता है।
वनों के कटान, समुद्री जीवों पर अत्यधिक निर्भरता आदि पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान का कारण बन
रहे हैं। उदाहरण के लिए प्रवाल भित्तियां, जो समुद्र के जैविक हॉटस्पाट हैं, कुल समुद्री आबादी के 25%
हिस्से को आश्रय प्रदान करते हैं, जबकि वे केवल समुद्र तल के 0.1% हिस्से को ही आवरित करते हैं।
इसके साथ ही वे हमारे भोजन, दवाई, मनोरंजन और आजीविका का भी महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
अत्यधिक
दोहन के कारण दुनिया के अधिकांश हिस्सों में प्रवाल भित्तियों का आवरण 50%से भी कम हो गया है।
यदि पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस भी वृद्धि करता है, तो यह नुकसान 90% तक हो सकता
है।
परिणामस्वरूप पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को नुक़सान होने की संभावना है।पारिस्थितिकीतंत्र का संरक्षण
करना आवश्यक है, क्यों कि यह एक विस्तृत जैव विविधता को आश्रय प्रदान करता है। चूंकि,सभी जीव
एक दूसरे पर निर्भर हैं, इसलिए सभी का पोषण अत्यधिक आवश्यक है, जो उन्हें पारिस्थितिकी तंत्र से
प्राप्त होता है। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र हमारे पानी को स्वच्छ करता है, मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाता
है, जलवायु को विनयमित करता है, खनिज लवणों का पुनर्चक्रण करता है, तथा हमें भोजन प्रदान करता
है। पारिस्थितिकी तंत्र के प्रत्येक हिस्से के प्रबंधन के लिए ईको सेंसिटिव (Eco-sensitive) जोन, गो और
नो गो (GO and NO GO) जोन, समुद्री संरक्षित जोन आदि बनाए गए हैं। ईको सेंसिटिव जोन, वे क्षेत्र
हैं, जो संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्य जीव अभ्यारण्यों के आस पास 10 किलोमीटर के
अंतर्गत आते हैं। राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्यों के आसपास विकासात्मक गतिविधियों के
कारण होने वाली पारिस्थितिकी क्षति को रोकने के लिए ये क्षेत्र बनाए गए हैं। नो गो जोन, वे क्षेत्र हैजहां
घने जंगल मौजूद हैं तथा खनन कार्यों की अनुमति नहीं है। जबकि, गो जोन वे क्षेत्र हैं, जिसे पर्यावरण
और वन मंत्रालय की वैधानिक वन सलाहकार समिति कोयला खनन उद्देश्यों के लिए वन भूमि में
परिवर्तन करने पर विचार कर सकती है। इसी प्रकार से तटीय और समुद्रीय संरक्षित क्षेत्र, समुद्रीय जैव
विविधता के संरक्षण के लिए बनाए गए हैं।पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के प्रयास में यूएनएफसीसी
कॉन्फ्रेंस ऑफ़ द पार्टीज़ (UNFCCCConference of the Parties) द्वारा वन कटाई और वन हास्र से
होने वाले उत्सर्जन को कम करना या आरइडीडी प्लस (Reducing emissions from deforestation
and forest degradation - REDD+) नामक रूप-रेखा तैयार की गयी है। इसका लक्ष्य वनोन्मूलन से
होने वाले उत्सर्जन को कम करना, वनों का संरक्षण करना, वनों द्वारा कार्बन को संग्रहित करने की
क्षमता में वृद्धि करना, वनों का सतत प्रबंधन करना आदि शामिल हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3fH63HQ
https://bit.ly/2SQf5ZZ
https://bit.ly/3g1avQD
https://bit.ly/3wPsq3u
https://bit.ly/3iaLjtI
चित्र संदर्भ
1. पारिस्थितिक तंत्र का एक चित्रण (flickr)
2. पारिस्थितिक निर्भरता का एक चित्रण (freepik)
3. कैनरी द्वीप समूह के एक द्वीप ग्रैन कैनरिया में मीठे पानी की झील, स्पष्ट सीमाएं पारिस्थितिक तंत्र झीलों का एक चित्रण (wikimedia)