महामारी के दौरान कोरोना वायरस हमें सबसे बड़ी समस्या नज़र आ रही है, परन्तु भारत में पेय जल संकट एक ऐसी
समस्या है, जो वायरस कि भांति शोर तो नही मचा रही है लेकिन अघात इसी के समान कर रही है। भारत में पूरी
दुनिया के सबसे ज्यादा 163 मिलियन से अधिक लोग पीने योग्य पानी के अभाव में जी रहे है। दुसरे नंबर पर
इथोपिया (Ethopia) जहाँ 6 करोड़ लोग प्रभावित है, और 59 मिलियन के साथ नाइजीरिया (Nigeria) तीसरे स्थान
पर है।
द वाटर गैप (The Water Gap) कि रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर के लगभग 844 मिलियन लोग पीने योग्य
पानी के बिना जीवन जी रहे हैं, जिनमे 200 मिलियन लोग और शामिल हो सकते हैं।
भारत में परिस्थितियों के बिगड़ने का मुख्य कारण भी इंसान ही है। यहाँ प्रतिदिन 38,000 मिलियन लीटर से
अधिक अपशिष्ट या अनुपचारित जल नदियों में बहा दिया जाता है, इसमें से अधिकांश प्रदूषित जल औद्योगिक
कारखानों से निकलता है। यहाँ कि सबसे पवित्र गंगा नदी में सभी कारखानों का 12 प्रतिशत दूषित जल प्रवाहित
किया जाता है।
कई स्थानों पर पानी की कमी नहीं है, परंतु दुर्भाग्य से अनेक कारण हैं जिनकी वजह इस पानी को
पिया नहीं जा सकता। जल का खारा हो जाना भी एक बड़ी समस्या है, दरसल खारे पानी में नाइट्रेट (Nitrate),
फ्लोराइड (Fluoride) और आर्सेनिक (Arsenic) की प्रबल मात्रा पाई जाती है, यह अवयव पाचन तंत्र को प्रभावित
करते हैं जोकि उच्च रक्तचाप भी बढ़ाते हैं। इस कारण खारा जल पीने के लिए अनुपयुक्त होता है।
स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट इन फिगर्स (India’s Environment in Figures) के 2020 में दिए गए आंकड़ों
के अनुसार भारत का 57 प्रतिशत से अधिक भूजल नाइट्रेट, फ्लोराइड और आर्सेनिक युक्त था, और देश के 18 राज्यों
और केंद्र शासित राज्यों के लगभग 249 जिलों का भू-जल खारा पाया गया। देश के दक्षिणी राज्यों से खारा पानी
किसानो के पलायन का कारण भी बना, क्यों कि यह फसलों के लिए भी बेहद हानिकारक सिद्ध होता है। जन
स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) ने हाल में ही किये गए एक सर्वेक्षण से यह पाया कि पिछले साल की
तुलना में वर्ष 2020 के दौरान बिहार के 38 जिलों में से आठ जिलों के भू-जल में गिरावट देखी गयी है, जिनमे से 11
जिलों की स्थिति बेहद दयनीय है, जिन्हें 'जल-तनावग्रस्त' श्रेणी में रखा गया है। मुजफ्फरपुर, दरभंगा और गया जैसे
जिले पहले से ही पानी की कमी का सामना कर रहे हैं, जहाँ अब पंप, कुएं और तालाब भी सूख रहे हैं। भू-जल स्तर
पृथ्वी का 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से भरा है, परंतु यह भी सत्य है कि इसमें से केवल 2.5 प्रतिशत जल ही मीठा और
पीने योग्य है।
पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी (People's Research on India's Consumer Economy) के
एक सर्वेक्षण के अनुसार
भारत के लगभग 90% शहरी परिवारों के पास अब नल के पानी के कनेक्शन हैं, लेकिन देश
में व्याप्त भीषण जल संकट के बीच इन 10 प्रतिशत नालों से पानी निकालना भी एक चुनौती है। हाल के वर्षों में फैली
घातक कोरोना महामारी ने तो जल संकट को हवा देने का काम किया है, क्यों कि देशव्यापी लॉकडाउन ने घरेलू पानी
की मांग को और अधिक बढ़ा दिया है। हालांकि गैर-घरेलू (यानी, वाणिज्यिक, औद्योगिक और संस्थागत) पानी की
मांग को कम भी कर दिया है। विभिन्न नगर पालिकाओं जैसे कोझीकोड-केरल, अहमदाबाद-गुजरात में घरेलू पानी
की खपत में 25% तक की तेज वृद्धि देखी गई है। चूंकि WHO के अनुसार COVID-19 वायरस के संक्रमण को
रोकने के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता सबसे असरदार उपायों में से एक है, इसलिए घर की सफाई , बार-बार हाथ धोने
जैसी आदतों के तहत पानी की मांग बढ़ गई है।
महामारी ने पहले से ही परेशान किसानों के सामने नई चुनौतियां पैदा कर दी हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था में सकल
घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 18% कृषि क्षेत्र द्वारा संचालित है, जो कि देश की 58% आबादी को जीविका प्रदान
करता है। जहा पहले से ही भारतीय किसानों को मानसून में देरी, मौसम की स्थिति, कीमतों में उतार-चढ़ाव और बढ़ते
कर्ज जैसे कई मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं COVID-19 लॉकडाउन के कारण, अधिकांश कृषि गतिविधियों
को कम से कम अथवा निलंबित या स्थगित किया जा रहा है। जिस कारण यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कुछ
निर्धारित छूटों के बावजूद महामारी के दौरान भारत में खाद्यान्न उत्पादन में 23% तक की कमी हो सकती है। कृषि
गतिविधियों और आपूर्ति श्रृंखला में आने वाली गिरावट ने भारत में सब्जियों, फलों और तेल की आपूर्ति में 10% की
कमी कर दी है। जानकारों के अनुसार यदि यह कोविड-19 चरम के बाद भी जारी रहता है, तो देश की खाद्य सुरक्षा में
अनिश्चितता पैदा होगी जिससे अकाल जैसी भयावह स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। साथ ही यह राष्ट्रीय स्तर की
खाद्यान्न आपूर्ति के साथ-साथ वैश्विक स्तर के व्यापार को भी प्रभावित करेगा क्योंकि भारत बड़ी मात्रा में चावल,
गेहूं, मांस, दूध उत्पाद, चाय, शहद और बागवानी उत्पादों का निर्यात करता है।
जल संकट के डरावने शोर के बीच, देश के विभिन्न हिस्सों से पेय जल संरक्षण की गूंज भी उठ रही है,
और कई लोग नयी और क्रांतिकारी जल संरक्षण की तरकीबें पेश कर रहे हैं। एक प्रेरक उदाहरण से इसे
समझते हैं :- ओडिशा के अंगुल जिले के भगतपुर में मोहन साहू का कुआं हर साल फरवरी-मार्च तक सूख
जाता था, परंतु 2015 के बाद दोबारा ऐसा नहीं हुआ, इसके विपरीत मार्च 2021 के पहले सप्ताह तक
इस कुएं का जलस्तर बढ़कर करीब 10 फीट हो गया। यह कोई चमत्कार नहीं था, दरअसल 2005–06 के
दौरान यहाँ आस पास के चालीस गाँव के लोग वनों की कटाई को रोकने, और प्राकृतिक वनों के संरक्षण
के उपाय खोजने के लिए एक ही गांव में एकत्रित हुए तथा एकजुट होकर उन्होंने वाटरशेड (watershed)
परियोजना के के अंतर कंटूर स्टोन बंड, स्टोन गली प्लग, जल अवशोषण खाइयां, चेक बांध और फार्म
बांध का निर्माण किया जिनमे बरसाती जल संरक्षित होता था। ग्रामीणों ने नए कुएं खोदने के बजाय
मौजूदा कुओं का जीर्णोद्धार किया।
उन्होंने वर्षा जल संरक्षण के लिए नए तालाब भी खोदे, इस प्रकार
उन्होंने कम निवेश किया और अधिक प्राप्त किया। उनके द्वारा की गयी इस मेहनत का परिणाम प्रकृति
ने उन्हें मीठे जल रूप में दिया। फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सोसायटी (Foundation for Ecological
Society) (एफईएस) द्वारा क्षेत्र के लगभग 150 कुओं के आंकड़े इकठ्ठा किये गए और तल तथा उप-
सतही जल स्तर में 2-2.5 फीट की वृद्धि देखी गई। यह उदाहरण मूल रूप से जल संरक्षण के उपायों के
अधिक हमें यह बताता है की, प्रकृति के संरक्षण हेतु बिना किसी बाहरी मदद की आस लगाए हर किसी
को एकजुट होकर खुद जिम्मेदारियां लेनी होगी, उपाय निकल ही आते है और परिणाम आश्चर्यजनक होते
हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3fDm4OZ
https://bit.ly/2TB8xPx
https://bit.ly/3uIsuRp
https://bit.ly/3ianYbJ
चित्र संदर्भ
1. जल संकट दर्शाती एक तस्वीर (wikimedia)
2. धरान में कबाड़ बस्ती की लड़कियां नदी से पानी इकट्ठा करती हैं जिसका एक चित्रण (wikimedia)
3. वर्षा जल संचयन और प्लास्टिक तालाब का एक चित्रण (wikimedia)