वैश्विक विकास सुनिश्चित करने के लिए महामारी के बाद देश में कुशल कार्यबल का होना आवश्यक है

अवधारणा II - नागरिक की पहचान
31-05-2021 07:55 AM
वैश्विक विकास सुनिश्चित करने के लिए महामारी के बाद देश में कुशल कार्यबल का होना आवश्यक है

वैश्विक विकास सुनिश्चित करने के लिए महामारी के बाद देश में कुशल कार्यबल का होना आवश्यक है। विश्व आर्थिक मंच के 'कार्यबल कौशल' कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञों ने कहा कि महामारी के बाद के देश में कर्मचारियों को कौशल, कौशल में बदलाव और कौशल बढ़ाने की जिम्मेदारी न केवल सरकारों की है बल्कि कर्मचारियों और उद्योगों की भी है।एस्टुपिनन और शर्मा के अनुसार 24 मार्च, 2020 और 3 मई, 2020 (2017-18 की कीमतों पर) के बीच सभी श्रमिकों की कुल वेतन हानि 86,448 करोड़ थी।जिसमें औपचारिक श्रमिकों का वेतन नुकसान 5,326 करोड़ और अनौपचारिक श्रमिकों का 81,122 करोड़ था।आनुपातिक रूप से, अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक श्रमिकों की तुलना में अधिक नुकसान हुआ, यानी अनौपचारिक श्रमिकों को औपचारिक श्रमिकों के 3.66 प्रतिशत की तुलना में 22.62 प्रतिशत मजदूरी का नुकसान हुआ।भारत में सभी आर्थिक गतिविधियों में लगभग 79.4 प्रतिशत श्रमिक अनौपचारिक/असंगठित क्षेत्र में पाए जाते हैं, जिनमें से केवल 0.5 प्रतिशत उनके भीतर औपचारिक रोजगार अनुबंध के तहत हैं। औपचारिक/संगठित क्षेत्र में भी, अनौपचारिक रोजगार वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी लगभग 52 प्रतिशत है, जो औपचारिक क्षेत्र के 'अनौपचारिकीकरण' का गठन करती है।कुल मिलाकर, भारत में श्रम बाजार में लगभग 91 प्रतिशत अनौपचारिक कर्मचारी हैं।
अनौपचारिक या असंगठित श्रम रोजगार भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषता है।भारत की 94 प्रतिशत से अधिक कामकाजी आबादी असंगठित क्षेत्र का हिस्सा है। असंगठित क्षेत्र उस श्रम रोजगार को संदर्भित करता है, जो सरकार के साथ पंजीकृत नहीं होते हैं, तथा इस क्षेत्र में रोजगार की शर्तें भी सरकार द्वारा तय नहीं की जाती हैं। इसलिए जब असंगठित क्षेत्र की उत्पादकता कम होती है, तो उसमें शामिल श्रमिकों का वेतन अपेक्षाकृत बहुत कम हो जाता है। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने असंगठित श्रम बल को व्यवसाय, रोजगार की प्रकृति, विशेष रूप से व्यथित श्रेणियों और सेवा श्रेणियों के संदर्भ में चार समूहों में वर्गीकृत किया है। व्यवसाय के आधार पर छोटे और सीमांत किसानों, भूमिहीन खेतिहर मजदूरों,फसल काटने वाले, मछुआरे, पशुपालक, लेबलिंग (Labelling) और पैकिंग (Packing) में संलग्न लोगों, भवन निर्माण में शामिल लोग, चमड़े का काम करने वाले,बुनकर, कारीगर, नमक कर्मचारी, ईंट भट्टों और पत्थर की खदानों तथा तेल मिलें आदि में काम करने वाले श्रमिकों को असंगठित क्षेत्र में शामिल किया गया है। रोजगार की प्रकृति के आधार पर कृषि मजदूर, बंधुआ मजदूर, प्रवासी श्रमिक, अनुबंध और आकस्मिक मजदूर आदि को असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत रखा गया है। इसी प्रकार से विशेष रूप से व्यथित श्रेणी के आधार पर शराब बनाने वाले, सफाई करने वाले, भार ढोने वाले, पशु चालित वाहनों के चालक, सामान लादने और उतारने में शामिल लोग आदि असंगठित क्षेत्र में शामिल किए गए हैं। इसी प्रकार से सेवा श्रेणी के तहत घरेलू कामगार, मछुआरे,नाई, सब्जी और फल विक्रेता, समाचार पत्र विक्रेता आदि को असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत रखा गया है। इन चार श्रेणियों के अलावा, असंगठित श्रम बल का एक बड़ा वर्ग मोची, हस्तशिल्प कारीगर, हथकरघाबुनकर, महिला दर्जी, शारीरिक रूप से विकलांग स्वरोजगार वाले व्यक्ति, रिक्शामजदूर, ऑटोचालक, रेशम उत्पादन के कार्यकर्ता, बढ़ई, चमड़ा कारखाने में कार्य करने वाले श्रमिक, बिजली करघाश्रमिक आदि के रूप में मौजूद है। असंगठित क्षेत्र में शामिल श्रमिकों को कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। भारत के श्रम मंत्रालय ने प्रवासी, स्थायी या बंधुआ श्रमिकों और बाल श्रमिकों की महत्वपूर्ण समस्याओं की पहचान की है।प्रवासी श्रमिकों की बात करें तो, भारत में प्रवासी मजदूरों को दो व्यापक समूहों में बांटा गया है। इनमें से एक समूह जहां, विदेशों में अस्थायी रूप से काम करने के लिए पलायन करते हैं, तो वहीं दूसरा समूह मौसमी या काम के उपलब्ध होने के आधार पर घरेलू रूप से प्रवास करता है। बेहतर काम की तलाश में हाल के दशकों में बांग्लादेश (Bangladesh) और नेपाल (Nepal) से भारत में लोगों का पर्याप्त प्रवाह हुआ है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल श्रमिकों की संख्या 101 लाख है। गरीबी, स्कूलों की कमी, खराब शिक्षा के बुनियादी ढांचे और असंगठित अर्थव्यवस्था की वृद्धि को भारत में बाल श्रम का सबसे महत्वपूर्ण कारणमाना जाता है। परंपरागत रूप से, संघीय और राज्य स्तर पर भारत सरकार ने श्रमिकों के लिए उच्चस्तर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारतीय श्रम कानून निर्धारित किया है। भारत में कई श्रम कानून हैं, जो श्रमिकों के साथ होने वाले भेदभाव और बाल श्रम को रोकने, सामाजिक सुरक्षा, न्यूनतम वेतन, संगठन बनाने के अधिकार आदि से सम्बंधित हैं। इन कानूनों में औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947; व्यापार संघ अधिनियम, 1926 ; न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948; मजदूरी का भुगतान अधिनियम, 1936; बोनस (Bonus) के भुगतान का अधिनियम, 1965; कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952; कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948; कारखानों अधिनियम,1948 आदि शामिल हैं, जो श्रमिकों के वेतन, सामाजिक सुरक्षा, काम करने के घंटों, स्थिति, सेवा,रोजगार आदि से सम्बंधित हैं।
कोरोना महामारी के कारण जहां हर क्षेत्र प्रभावित है, वहीं असंगठित क्षेत्र भी इससे बच नहीं पाया है। 2020 में देश में लगायी गयी तालाबंदी के कारण भारतीय प्रवासी श्रमिकों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। तालाबंदी के चलते लाखों प्रवासी श्रमिकों ने रोजगार के नुकसान, भोजन की कमी और अनिश्चित भविष्य के संकट का सामना किया। परिवहन का कोई साधन उपलब्ध न होने से हजारों प्रवासी श्रमिकों को पैदल अपने घर वापस जाना पड़ा, इस दौरान भुखमरी, सड़क और रेल दुर्घटनाओं, पुलिस की बर्बरता, समय पर चिकित्सा देखभाल न मिलने आदि कारणों से कई प्रवासी श्रमिकों की मौतें भी हुई। इस स्थिति को देखते हुए,केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उनकी मदद के लिए कई उपाय भी किए और उनके लिए परिवहन की व्यवस्था की गई। अनिश्चित आर्थिक स्थिति का सामना करने के लिए अनौपचारिक श्रम बाजारों की व्यापकता को सामाजिक सुरक्षा ढांचे में बड़े बदलाव की आवश्यकता है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/34ruWRj
https://bit.ly/3oXpxLf
https://bit.ly/2SAMms0
https://bit.ly/3vuEhE0
https://bit.ly/2BUh3gr
https://bit.ly/3bUBfRJ

छवि संदर्भ
1. ढाका के बाहर कपड़ा कारखाने का एक चित्रण (wikimedia)
2. एक हस्तशिल्प निर्माण उद्यम श्रमिक का एक चित्रण (wikimedia)
3. पलायित मजदूरों का एक चित्रण (Youtube)